
सूत्रों के अनुसार कहा जा रहा है कि इस बैठक में रणनीति बनी है कि दोनों पार्टियां 37-37 सीटों पर अपने-अपने उम्मीदवार उतारेंगी. सूत्रों ने बताया कि शेष सीटों को राष्ट्रीय लोक दल और अन्य छोटी पार्टियों के लिए छोड़ा जाएगा.वहीं कांग्रेस को गठबंधन में शामिल ना करने पर फिलहाल सपा-बसपा की सहमति बनी है. बता दें कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं.
सपा और बसपा के बीच यूपी में 37-37 सीटों पर चुनाव लड़ने पर सहमति बनी है. वहीं आरएलडी को भी सीट देने का फैसला हुआ है. यह भी फैसला लिया गया है कि अमेठी और रायबरेली की 2 सीटों पर गठबंधन उम्मीदवार नहीं उतारेगा.
साथ ही दोनों के बीच इस बात पर भी सहमति बनी है कि कांग्रेस को इस गठबंधन से दूर रखा जाएगा. लेकिन दोनों दलों ने इस पर भी सहमति जताई है कि कांग्रेस को दो लोकसभा सीटों पर राहत दी जाएगी. यानी कि कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाली दो सीटों अमेठी और रायबरेली में सपा-बसपा अपने-अपने प्रत्याशी नहीं उतारेगी. वहीं सपा-बसपा ने राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) को करीब 2 सीटें देने का फैसला लिया है.
इससे पहले पिछले साल नवंबर में पांच राज्यों विधानसभा चुनाव के समय भी ऐसी ही खबरें सूत्रों के अनुसार आई थीं. इन चुनावों के नतीजे आने से पहले ही लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर उत्तर प्रदेश में गठबंधन की तस्वीर लगभग साफ हो चुकी थी. तब भी कहा जा रहा था कि सपा और बसपा के बीच सबकुछ फाइनल हो चुका है. सीटों को लेकर बात फाइनल हो चुकी थी. रिपोर्ट की मानें तो सपा-बसपा ने उस समय ही अपने गठबंधन फॉर्मूले से कांग्रेस को अलग कर दिया था.
यह भी उम्मीद जताई गई थी कि बसपा को 35 से 40 सीटें मिल सकती हैं. साथ ही RLD को भी 3 से 4 सीटें मिलने की संभावना जताई गई थी. अगर, राजभर भी गठबंधन का हिस्सा बनते हैं तो उनके खाते में 2-3 सीटें आ सकती हैं. अन्य सभी सीटें समाजवादी पार्टी के खाते में आएंगी.
मध्य प्रदेश में कांग्रेस और सपा में गठबंधन नहीं होने को लेकर पिछले दिनों अखिलेश यादव ने खुलकर बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि कांग्रेस नहीं चाहती थी कि इस गठबंधन में बसपा शामिल हो, इसलिए गठबंधन कोई रूप नहीं ले पाया. सपा किसी भी सूरत में मायावती को नाराज नहीं करना चाहती है. इसलिए, सपा और कांग्रेस का भी गठबंधन नहीं हो पाया.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कांग्रेस नेतृत्व को लेकर यह भी कहा था कि यूपी में हमारा गठबंधन बीजेपी के खिलाफ है. बीजेपी को अगर सत्ता से हटाना है तो हमें एकजुट होने की जरूरत है. इसी दौरान उन्होंने कहा था कि, कांग्रेस गैर बीजेपी दलों को एकजुट करने में नाकामयाब रही है क्योंकि वह बहुत ज्यादा एरोगेंट है. अखिलेश यादव ने परोक्ष रूप से कहा था कि हम तो गठबंधन के लिए तैयार थे, लेकिन कांग्रेस से हाथ मिलाने के लिए तैयार नहीं थी.
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