"मै हूँ संजय गाँधी की बेटी" : प्रिया सिंह पॉल, एडीशनल डायरेक्टर जनरल

आज से दो वर्ष पूर्व एक ट्वीट बहुत चर्चित हुआ था। भारत सरकार में एडीशनल डायरेक्टर जनरल रहीं प्रिया सिंह पॉल नामक एक महिला लेखिका ने स्वयं को स्व. संजय गांधी की जैविक पुत्री घोषित किया था। ट्वीट इस प्रकार था -
neither AFRAID OR ASHAMED OF TELLING THE TRUTH THAT Sanjay Gandhi WAS MY BIOLOGICAL FATHER AND I WAS NAMED PRIYADARSHINI when born.
मुझे यह सच बताने में कोई भय या झिझक नहीं है, कि संजय गांधी मेरे जैविक पिता थे और जन्म के समय मेरा नाम प्रियदर्शिनी रखा गया था !
जन्म के बाद प्रिया को लालन पालन के लिए कलावती शरण चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल की संस्थापक और निदेशक श्रीमती शैला सिंह पॉल को सोंपा गया, जिनकी परवरिश में प्रिया सिंह एक जुझारू और साहसी लेखिका/पत्रकार बनीं। 16 दिसंबर 2018 को उन्होंने लिखा कि मैं पैदा तो हुई “प्रियदर्शिनी नेहरू गांधी” के रूप में, किन्तु बना दी गई “प्रिया सिंह पॉल”। अर्थात उनका पहचान पाने का संघर्ष लगातार जारी है। विगत 4 जनवरी को प्रिया सिंह जी ने अपना एक साक्षात्कार ट्वीट किया, जिसकी विषय वस्तु कुछ इस प्रकार है – 
क्या सचमुच संजय गांधी की बेटी – लड़ रही है इन्साफ की जंग !संजय गांधी मेरे फादर हैं, हर अडॉप्टेड चाइल्ड को अपने मूल माता पिता को जानने का हक़ है। उनका नाम लेने का हक़ है। मैं इंदिरा गांधी की पोती हूँ, संजय गांधी की बेटी हूँ, मुझे जस्टिस मिलना चाहिए 
उनका दावा है कि संजय गांधी की शादी के एक माह पूर्व उन्हें अडाप्शन में दे दिया गया। मुझे प्रियदर्शिनी से प्रिया सिंह पॉल बनाया गया, उसके कागजात कोर्ट में प्रस्तुत किये जा चुके हैं। 1969 से 1974 के बीच मेरे तीन अडाप्शन हुए और तीनों में अलग अलग कहानियां लिखी गईं। यह सब इसलिए किया गया कि मुझे कभी पता न चले कि मेरे मां बाप कौन हैं 
जब 2010 में मैं दिल्ली आई तो गुजराल परिवार की डॉ. विमला गुजराल ने मुझे सलाह दी कि मैं वापस मुम्बई चली जाऊं, क्योंकि मेरा राजनैतिक और प्रशासनिक हलकों में रहना उचित नहीं है। किन्तु मैंने यहाँ ही रहकर अपनी मूल पहचान जानने का प्रयत्न करना तय किया। 2015 में बड़ी जद्दो जहद के बाद मुझे कुछ कागजात मिले हैं 
स्व. संजय गांधी के एक मित्र सुशील शर्मा जो आजकल सुशील महाराज के नाम से जाने जाते हैं, उन्होंने प्रिया के समर्थन में शपथ पत्र दिया है। इन सुशील महाराज का कहना है कि संजय गांधी मेरे उस समय से मित्र थे, जब वे राजनीति में भी नहीं आये थे।  हमारी मित्रता के चलते मैं उनकी कई निजी बातें भी जानता था | उस समय के अखबारों में भी कुछ समय इस घटना की चर्चा हुई थी, किन्तु बड़े घर का बेटा होने के कारण दबा दी गईं। बाद में लोग भूल भी गए कि कौन सी बच्ची हुई थी, कहाँ उसकी परवरिश हुई 
प्रिया सिंह के अनुसार उन्हें 2010–11 में पता चला कि वे संजय गांधी की बेटी हैं। किन्तु उस समय उनके पास इस बात का कोई सबूत नहीं था। 2015 में जाकर उन्हें कुछ सबूत हाथ लगे। उनका तर्क है कि बच्चों को जब अडॉप्ट किया जाता है, तब हमारे देश में मां बाप का नाम भी कागजात में लिखा जाता है। अगर बाप का नाम न हो तो मां का नाम होता है। लेकिन मेरे कागजात में दोनों ही नाम नहीं हैं। उसमें महज इतना उल्लेख है कि जिन्होंने लिया है, वे जानी मानी शख्शियत हैं तथा जिन्होंने दिया है, वे इंदिरा गांधी के साथ काम करने वाले इन्द्रजीत कपूर हैं।  
जब मुझे ज्ञात हुआ कि संजय गांधी मेरे पिता थे, तब मुझे बहुत दुःख हुआ, क्योंकि अब मैं उनसे मिल तो सकती ही नहीं थी। अगर राजीव गांधी भी होते तो मैं जरूर उनका दरवाजा खटखटाती। लेकिन अब उस परिवार के जो लोग हैं, वे मुझसे मिलने के कतई अनिच्छुक हैं 
मेरा कोर्ट केस आगे बढ़ ही नहीं पा रहा था, तब मेरे परिचितों ने सलाह दी कि मैं अपना डीएनए खुद कराऊँ, ताकि आपका ओरिजिन पता चल सके। जब डीएनए हुआ, तो पता चला कि मैं पारसी और कश्मीरी हूँ | संजय गांधी भी पारसी और कश्मीरी पंडित हैं | संजय गांधी की शादी के एक माह पूर्व मुझे अडॉप्ट कराया गया। फिर खुशवंत सिंह की आत्मकथा में भी सीक्वेंस का उल्लेख है 
बाल्यकाल में मुझे दिल्ली से गिफ्ट आया करते थे। मुझे नहीं पता कि वे मुझे मां की तरफ से आते थे या दादी की तरफ से | लेकिन यह अजीब सी बात है कि संजय गांधी की डेथ के बाद इंदिरा गांधी और मेनका गांधी ने जो किताब पब्लिश की, उसमें संजय गांधी का लुधियाना कान्वेंट का भी एक फोटो है। यह भी एक सबूत है कि वे लुधियाना आकर मुझसे मिलते थे। हालांकि वे मुझे अपना नाम कबीर बताते थे 
दिल्ली में डीकेएस आरके पुरम स्कूल में मैं पढ़ती थी। होने को तो वहां सेंट कोलंबस और जेवियर भी है, किन्तु केवल मेरे स्कूल के ग्रुप को ही इंदिरा गांधी के अंतिम संस्कार में ले जाया गया। उस समय दंगे चल रहे थे, फिर भी हमें तीन मूर्ति ले जाया गया। मेरे उस समय के सहपाठी कहते हैं कि अब हमें समझ में आया कि हमें क्यों ले जाया गया 
लोग यह तो मानते हैं कि संजय गांधी को एक बेटी हुई थी, किन्तु वे अमृता सिंह को संजय गांधी की बेटी मानते रहे, जबकि उनका जन्म 1958 में हुआ था और उस समय संजय गांधी महज 13 साल के थे। मेरा कहना है कि वह मैं हूँ, मेरे जन्म के समय संजय गांधी 23 साल के थे। मुझे इतनी अच्छी तरह पंजाब में छुपाया गया था कि मुझे कोई ढूंढ ही नहीं सकता था। मुझे पालन करने वाले माता पिता बहुत वृद्ध थे। उन्हें मेरे लालन पालन में बहुत कठिनाई भी आई। वे अपनी तुलना ईसा, मूसा, कर्ण और कृष्ण से करते हुए कहती हैं कि हमारे देश का नाम भारत जिन भरत के नाम पर पड़ा, वे भी ऐसी ही परिस्थिति में पले बढे थे, अपनी मां शकुंतला और पिता राजा दुष्यंत के विवाह पूर्व की संतान थे। देश ने उन्हें इज्जत दी, तो मुझे भी मेरा पारिवारिक मान पाने का अधिकार मिलना चाहिए 
गांधी परिवार राजनीति में है, तो उनका उद्देश्य पब्लिक की मदद करना होना चाहिए और मैं भी कोई राजनैतिक नहीं हूँ, एक आम पब्लिक ही हूँ, अतः उन्हें चाहिए कि वे मुझे अपना कर मेरी मदद करें। वे मानें चाहे न मानें किन्तु वे मेरे भाई हैं, रिश्तेदार हैं। लोगों को भी लगेगा कि आपने अपने खानदान को जस्टिस दिया। मैं चाहती तो इस विषय का राजनीति करण कर सकती थी, किन्तु मैं उनसे किसी बात पर लड़ना नहीं चाहती | उन्हें भी सच पता है, अतः वे मेरे विरुद्ध खुलकर सामने नहीं आये हैं। मैं टीवी चेनल की हेड रह चुकी हूँ, शासकीय अधिकारी के रूप में भी काम किया है, किन्तु बजूद इन सब बातों से नहीं बनता। बजूद मां बाप से बनता है। जिनके मां बाप का पता नहीं, वे उस मुसाफिर की तरह होते हैं, जिन्हें अपनी मंजिल का पता नहीं | मैं अपनी पहचान पाकर ही मरना चाहती हूँ। मैंने ठान लिया है कि अपने मां बाप को जरूर ढूंढूंगी।  
इस साक्षात्कार की यूट्यूब लिंक है - https://youtu.be/8xtEDwmLKqQ
इस सन्दर्भ में स्मरण आता है हास्य कवि अखिलेश द्धिवेदी का कविता पाठ, जिसमें राजनेताओं पर व्यंगात्मक कटाक्ष किया है:--

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मेरे पास राजनीतिक दलों के प्रस्ताव भी आये, लेकिन मैं अपनी कहानी खुद लिखना चाहती हूँ। झूठ के आधार पर नहीं, एकदम सच्ची। मैं अपने पिता के नाम के लिए और मां की तलाश में जुटी हूँ, हालांकि मेरे पति केवल नैतिक समर्थन देते हैं, इसमें सीधे सीधे सहयोग नहीं करते। वे अपने केरियर पर ही ध्यान देते हैं।उनका साफ़ कहना है कि इस लड़ाई में न मैं तुम्हारे खिलाफ हूँ, न तुम्हारे साथ खड़े हो सकता हूँ 
यह पूछे जाने पर कि अगर मान लिया जाए कि संजय गांधी आपके पिता थे, तो वे हिन्दू थे, दादा पारसी थे, दादी हिन्दू थीं, यूनुस साहब मुस्लिम थे, मां का पता नहीं, आप किस धर्म को मानती हैं ? प्रिया ने बताया कि मेरी परवरिश करने वाले पिता सरदार थे और मां यहूदी थीं। जिन्होंने मुझे पाला पोसा, उनका सरनेम सिंह पॉल था, अतः उनके सम्मान में मैंने भी सिंह पॉल ही अपनाया है, अहलूवालिया मेरे पति हैं। किन्तु मेरा असली नाम प्रियदर्शिनी गांधी ही है 

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