
आज जनता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध करती नज़र आ रही है, लेकिन मोदी विरोधियों को मोदी द्वारा हिन्दुओं को मिले सम्मान को नजरअंदाज करवाने का भरसक कर रहे हैं। मोदी के इन प्रयासों को बल दे रहे हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। केन्द्र में मोदी सरकार आने से पूर्व आतंकवादियों को संरक्षण देते हुए, हिन्दू विरोधी कभी "हिन्दू आतंकवाद" तो कभी "भगवा आतंकवाद" के नाम से हिन्दुओं को कलंकित किया जा रहा था। परन्तु तुष्टिकरण पुजारियों को हिन्दुओं को मिले सम्मान रास नहीं आ रहे। वैसे, जयचन्दों की किसी काल में कभी कमी नहीं रही। इन्ही जयचन्दों के कारण भारत मुस्लिम आक्रान्ताओं का गुलाम बना। जिन्होंने हिन्दू आस्थाओं को धूमिल करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा। भूतपूर्व महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी ने अपनी पुस्तक में सोनिया गाँधी के हिन्दू-विरोधी होने पर स्पष्ट रूप से लिखा है। राहुल गाँधी है कि कभी दत्तात्रेय गोत्र बताते हैं, तो कही जनेऊधारी हिन्दू , जबकि उनके दादा फिरोज जहाँगीर एक पारसी मुस्लिम थे। उनके दादा ने कब हिन्दू धर्म अपनाया था, यह नहीं बताते और ना ही कोई उनसे पूछने का साहस करता है।
स्वामी यतीन्द्रानन्द गिरि(वरिष्ठ महामंडलेश्वर श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा) के अनुसार, प्रयागराज में करीब 5 शताब्दी पूर्व मुगल शासक अकबर द्वारा बंद कराई गई पंचकोसी परिक्रमा का फिर से आरंभ हुआ। कई वर्षों के बाद साधु-संतों और मेला प्रशासन की कोशिशों से पंचकोसी परिक्रमा की शुरुआत हुई। संगम नोज पर साधु संतों और मेला प्रशासन के अधिकारियों ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजा-अर्चना के बाद पांचकोसी परिक्रमा शुरू की। इस परिक्रमा पर 550 साल पहले अकबर ने रोक लगा दी थी।
परिक्रमा की शुरुआत से पहले संगम पर अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि, जूना पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरि और अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत हरिगिरि के साथ ही दूसरे साधु-संतों और मेला प्रशासन के अधिकारियों ने संगम में पूजा अर्चना की। संगम में पूजा अर्चना के बाद तीन दिवसीय परिक्रमा शुरू हुई, जिसमें वाहनों के काफिले के साथ साधु-संत और मेला प्रशासन के अधिकारी भी रवाना हुए।
इस सन्दर्भ में अवलोकन करें:--
NIGAMRAJENDRA28.BLOGSPOT.COM
पंचकोसी यात्रा की पौराणिक मान्यता
प्रयागराज के पूर्व दिशा में दुर्वासा ऋषि का आश्रम है और पश्चिम में
भारद्वाज ऋषि का आश्रम है। उत्तर में पांडेश्वर महादेव स्थापित हैं और
दक्षिण में पाराशर ऋषि की कुटिया बनी हुई है। पौराणिक कथाओं में बताया गया
है कि यदि प्रयागराज पहुंचकर इन चारों स्थानों के दर्शन कर लिए जाएं तो
प्रयाग की परिक्रमा पूरी मानी जाती है और व्यक्ति के पूर्व जन्म के पाप
धुल जाते हैं। प्रयागराज की पंचकोसी परिक्रमा में इन चारों तीर्थ स्थानों
को शामिल किया जाता है।
ऐसा होता है परिक्रमा का मार्ग
तीन दिवसीय इस परिक्रमा के पहले दिन अक्षयवट और सरस्वती कुंड के बाद
जलमार्ग द्वारा बनखंडी महादेव और मौजगिरी बाबा के दर्शन किए जाएंगे।
मौजगिरी मंदिर भृगु ऋषि का स्थान माना जाता है। उसके बाद सूर्य टंकेश्वर
महादेव के दर्शन करते हुए, चक्र माधव और गदा माधव होते हुए परिक्रमा
सोमेश्वर महादेव के मंदिर पहुंचेगी। उसके बाद दुर्वासा ऋषि के आश्रम के
दर्शन करने बाद शंख माधव मंदिर होते हुए पहला दिन पूरा होगा।दूसरे दिन कोतवाल हनुमानजी के दर्शन
दूसरे दिन की परिक्रमा में कोतवाल हनुमान जी के दर्शन करने के बाद दत्तात्रेय मंदिर, चेतनपुरी के साथ ही उत्तर में स्थित पांडेश्वर महादेव होते हुए वासुकी मंदिर आदि के दर्शन करते हुए भजन कीर्तन के साथ पूरी होगी।महर्षि भरद्वाज आश्रम
परिक्रमा के आखिरी दिन श्रद्धालुओं की टोली संगम से गंगाजल लेकर प्रयागराज स्थित भरद्वाज ऋषि के आश्रम में जाकर अभिषेक करेगी। इसी के साथ तीन दिवसीय परिक्रमा का समापन होगा।प्रयाग कुंभ में इस बार कई बंद हो चुकी परंपराओं की शुरुआत हुई। अकबर के किले में कैद अक्षय वट और सरस्वती कूप जिनका धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व रहा है उसे श्रद्धालुओं के लिए सुगम बना दिया गया। इस बार श्रद्धालु भगवान राम और कृष्ण से संबंधित अक्षय वट के दर्शन कर पा रहे हैं। अब श्रद्धालु सरस्वती कूप के भी दर्शन का लाभ ले पा रहे हैं। पंचकोसी यात्रा का आरंभ अकबर के समय में बंद हो चुकी तीसरी बड़ी परंपरा का आरंभ माना जा रहा है।
No comments:
Post a Comment