यासीन मलिक पर कसा शिकंजा, पीएसए के तहत केस दर्ज

Yasin Malik, Separatist Leader JKLF
पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद से मोदी सरकार के देश की सुरक्षा को लेकर तेवर सख्त होते जा रहे हैं, जो यह भी दर्शाता है कि है कोई सख्त निर्णय लेने वाला। 
हालाँकि यह निर्णय बहुत देरी से लिया गया है, यदि यह निर्णय मोदी सरकार ने सत्ता आते ही ले लिया होता, कश्मीर अब तक बहुत सुधर गया होता। चलो, "जब उठो, तभी सवेरा।" 
जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेताओं पर शिकंजा कसता जा रहा है। अलगावादी नेताओं की सुरक्षा पहले ही वापस ली जा चुकी है। अब जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के मुखिया यासीन मलिक के ऊपर जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत केस दर्ज हुआ है। जेकेएलएफ के एक प्रवक्ता ने गुरुवार को इस बारे में जानकारी दी। प्रवक्ता ने कहा, 'मलिक के ऊपर जन सुरक्षा अधिनियम के तहत केस दर्ज हुआ है।'
एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक प्रवक्ता ने कहा कि हम उनकी 'गिरफ्तारी' और एक राजनीतिक व्यक्ति पर पीएसए लगाने की कड़ी शब्दों में निंदा करते हैं। बता दें कि मलिक को गत 22 फरवरी को हिरासत में लिया गया और इसके बाद उन्हें कोठीबाग पुलिस स्टेशन में रखा गया। इसके पहले राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गत 26 फरवरी को अलगाववादी नेता के आवास पर छापे मारे।
पुलवामा में गत 14 फरवरी को सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकवादी हमले में 40 जवान शहीद हो गए। इस घटना के बाद जम्मू-कश्मीर सरकार ने 18 अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा में या तो कटौती कर दी या उनकी सुरक्षा हटा ली। जिन नेताओं से सुरक्षा हटाई गई उनमें हुर्रियत नेता एसएएस गिलानी, आगा सैय्यद मोसवी, मौलवी अब्बास अंसारी, यासीन मलिक, सलीम गिलानी, शाहिद उल इस्लाम, जफर अकबर भट, नयीम अहमद खान, मुख्तार अहमद वाजा के नाम हैं।
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सुरक्षा हटाए जाने पर कई अलगाववादी नेताओं ने कहा कि उन्होंने कभी सरकार से सुरक्षा की मांग नहीं की थी। अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा हटाए जाने के सरकार के कदम को लोगों ने सराहा। लोगों ने कहा कि भारत विरोधी गतिविधियां बढ़ाने वाले इन अलगाववादी नेताओं से सुरक्षा बहुत पहले वापस ले लेनी चाहिए थी। तो कुछ ने कहा कि उन्हें यह बात कभी समझ में नहीं आई कि सरकार ने उन्हें सुरक्षा क्यों दी थी? 
अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा पर सरकार प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपए खर्च करती आई है। लेकिन इसके बदले सरकार या देश को मिला क्या? कश्मीरी पंडितों को प्रताड़ित किया गया, घाटी छोड़ने को मजबूर किया, क्या इसी काम के लिए इन पर इतना धन खर्च करके पाला जा रहा था? किसी भी हुर्रियत नेता ने या फिर पीडीपी अथवा नेशनल कांफ्रेंस के किसी भी नेता ने कश्मीरी पंडितों से यह कहने का साहस किया कि "पुरानी बात छोड़, नए सिरे से अपने स्थानों पर आकर रहिए, आप पर वार बाद में होगा, पहले हमारे पर वार होगा।" वहां आतंकवाद क्यों पनपा? क्यों सुरक्षाकर्मियों पर पथराव किया जाता रहा? क्या सुरक्षाकर्मियों का कोई जीवन नहीं? मस्जिदों का दुरूपयोग हो रहा है, आतंकवादियों को बचाने पत्थरबाजों को मस्जिदों में लगे लॉउड स्पीकरों से चीख-चीख कर बुलाया जाता है, कभी इनमे से किसी ने विरोध किया? यदि इन कश्मीरी नेताओं ने ही इन राष्ट्र विरोधी गतिविधियों पर नकेल डाली होती, कश्मीर की इतनी खस्ता हालत नहीं हुई होती। आज तक किसी ने नहीं कहा और न ही किसी में हिम्मत। कश्मीर से बाहर आकर राष्ट्रीयता की बात करते इन्हे शर्म भी नहीं आती। इतना ही नहीं, जो पार्टी या नेता इन कश्मीरी पार्टीयों से गठबन्धन करते हैं, उनसे पूछा जाए, "सुरक्षाकर्मियों पर पत्थरबाज़ी क्यों होती है? पत्थरबाजों को धन कहाँ से आता है और कौन से सूत्रों से।"      

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