अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के भारत को जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज (GSP) से बाहर करने वाले नोटिस पर केंद्र सरकार भी सख्त हो गई है। केंद्र सरकार ने भी अमेरिका को याद दिलाया है कि अमेजन, उबर, गूगल और फेसबुक जैसी कई कंपनियां भारत से अरबों रुपए की कमाई करती है। और भविष्य में यह बाजार और बढ़ेगा। लिहाजा, अमेरिका को कोई भी कदम उठाने से पहले समग्र दृष्टि से विचार करना चाहिए। भारत के इस जवाब से माना जा रहा है कि जल्द ही वाणिज्य मंत्रालय विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर इन कंपनियों पर टैक्स में इजाफा कर सकता है। ताकि जीएसपी से होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सके। गौरतलब है कि भारत और तुर्की को दिए गए तरजीही दर्जे को खत्म करने से निर्यात करने वाले छोटे व मझोले उद्योगों पर बड़ा असर पड़ सकता है। नोटबंदी के बाद अब इस सेक्टर पर दोहरी मार पड़ेगी। निर्यात कम होने से उत्पादन में 25 फीसदी तक गिरावट आ सकती है। इससे कम सैलरी वाली नौकरियों पर भी संकट आ सकता है।
अमेरिकी मांग हमारी धार्मिक भावनाओं के खिलाफ
केंद्र सरकार के प्रेस इंफार्मेशन ऑफ ब्यूरो (PIB)द्वारा जारी प्रेस रिलीज के मुताबिक अमेरिका जीएसपी जारी रखने के एवज में डेयरी, मेडिकल उपकरण, टेलीकॉम आदि में छूट चाहता है। दिक्कत यह है कि डेयरी प्रोडक्ट्स में अमेरिका में पशुओं को भी पोर्क खिलाया जाता है। इस तरह के पशु के डेयरी उत्पादों को अमेरिका भारत में निर्यात करना चाहता है। यह उत्पाद भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं के खिलाफ होंगे। जबकि मेडकल व टेलीकॉम के लिए भारत बातचीत के लिए तैयार है।
WTO के मापदंडों के भीतर है भारत के टैरिफ
अमेरिका भारतीय टैरिफ के उच्च होने का मुद्दा समय-समय पर उठाता है। लेकिन केंद्र सरकार ने यह तर्क दिया है कि भारत के टैरिफ WTO डब्ल्यूटीओ प्रतिबद्धताओं के तहत अपनी बाउंड दरों के भीतर हैं। कई दरें इन बाउंड दरों से कम औसत पर भी हैं।
GSP से हमें क्या है फायदे
GSP यानी जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज। अमेरिका ने GSP की शुरुआत 1976 में विकासशील में आर्थिक वृद्धि बढ़ाने के लिए की थी। इसके तहत चुनिंदा गुड्स के ड्यूटी-फ्री या मामूली टैरिफ पर इम्पोर्ट की अनुमति दी जाती है। GSP के तहत केमिकल्स और इंजिनियरिंग जैसे सेक्टरों के करीब 1900 भारतीय प्रॉडक्ट्स को अमेरिकी बाजार में ड्यूटी फ्री पहुंच हासिल है।भारत ने 2017-18 में अमेरिका को 48 अरब डॉलर (3,39,811 करोड़ रुपये) मूल्य के उत्पादों का निर्यात किया था। इनमें से सिर्फ 5.6 अरब डॉलर यानी करीब 39,645 करोड़ रुपये का निर्यात GSP रूट के जरिए हुआ। इससे भारत को सालाना 19 करोड़ डॉलर (करीब 1,345 करोड़ रुपये) का ड्यूटी बेनिफिट मिलता है। इसके तहत मुख्य तौर पर ऐनिमल हस्बैंड्री, मीट, मछली और हस्तशिल्प जैसे कृषि उत्पादों को शामिल किया गया है। इन उत्पादों को आम तौर पर विकासशील देशों के उत्पाद के तौर पर देखा जाता है।
अवलोकन करें:-
यह था मकसद
अमेरिका और ब्रिटेन के साथ-साथ यूरोपियन यूनियन भी विकासशील देशों से GSP के तहत कुछ वस्तुओं का आयात करते हैं। यूएस ट्रेड रेप्रिजेंटटिव ऑफिस के मुताबिक GSP का उद्देश्य विकासशील देशों को अपने निर्यात को बढ़ाने में मदद करना है ताकि उनकी अर्थव्यवस्था बढ़ सके और गरीबी घटाने में मदद मिल सके।
क्या है पूरी कार्रवाई
राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से फैसले पर दस्तखत किए जाने के बाद 60 दिन का नोटिफिकेशन भेज दिया गया है. जीएसपी समाप्त करने की यही वैध प्रक्रिया है. भारत और तुर्की के लगभग 2 हजार प्रोडक्ट हैं जो इसके प्रभाव में आएंगे. इनमें ऑटो पार्ट्स, इंडस्ट्रियल वॉल्व और टेक्सटाइल मैटीरियल प्रमुख हैं. राष्ट्रपति चाहें तो अपना फैसला वापस ले सकते हैं, लेकिन इसके लिए भारत और तुर्की को अमेरिकी प्रशासन की चिंताओं को दूर करना होगा?
साल 2017 में भारत विकासशील देशों में अकेला देश था जिसे जीएसपी के तहत सबसे ज्यादा लाभ मिला था. भारत से अमेरिका ने 5.7 बिलियन डॉलर का आयात बिना किसी टैक्स के किया था जबकि तुर्की पांचवें स्थान पर था जहां से 1.7 बिलियन डॉलर का ड्यूटी फ्री आयात किया गया था. पिछले साल अप्रैल में अमेरिका ने एलान किया था कि वह भारत और तुर्की को मिलने वाली राहत पर विचार करेगा क्योंकि अमेरिका की कुछ डेयरी और मेडिकल कंपनियों ने शिकायत की थी कि इससे स्वदेशी कारोबार पर गहरा असर पड़ रहा है.
भारत, तुर्की पर कितना असर?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने फैसले से पहले कहा कि भारत ने हमें इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं किया कि वह अपने बाजार में भी हमारे प्रोडक्ट की पहुंच कहां तक और कितना आसान बनाएगा. तुर्की के बारे में ट्रंप ने कहा कि वहां की आर्थिक तरक्की देखकर उसे विकासशील देशों की श्रेणी में नहीं रख सकते.
ट्रंप का यह फैसला ऐसे वक्त में सामने आया है जब भारत में आम चुनाव है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह मुश्किल हो सकता है क्योंकि उन्हें चुनावी माहौल में देश की आर्थिक प्रगति की चिंता सता सकती है. दूसरी ओर, ट्रंप और तुर्की के प्रधानमंत्री अर्दोगन के बीच संबंधों में खटास जगजाहिर है. वहां की अर्थव्यवस्था भी कमजोर होती जा रही है. साथ में वहां भी आम चुनाव हैं. इसलिए भारत और तुर्की दोनों देशों पर अमेरिका के इस फैसले का गहरा असर देखा जा सकता है.
अमेरिका के इस फैसले पर भारत के वाणिज्य सचिव अनूप वाधवा ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच 5.6 बिलियन डॉलर के व्यापार पर इसका खास असर नहीं पड़ेगा.
(स्रोत)
United States Trade Representative: At direction of President Donald Trump, US Trade Representative Robert Lighthizer announced that US intends to terminate India’s & Turkey’s designations as Beneficiary Developing Countries under Generalized System of Preferences (GSP) program
राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से फैसले पर दस्तखत किए जाने के बाद 60 दिन का नोटिफिकेशन भेज दिया गया है. जीएसपी समाप्त करने की यही वैध प्रक्रिया है. भारत और तुर्की के लगभग 2 हजार प्रोडक्ट हैं जो इसके प्रभाव में आएंगे. इनमें ऑटो पार्ट्स, इंडस्ट्रियल वॉल्व और टेक्सटाइल मैटीरियल प्रमुख हैं. राष्ट्रपति चाहें तो अपना फैसला वापस ले सकते हैं, लेकिन इसके लिए भारत और तुर्की को अमेरिकी प्रशासन की चिंताओं को दूर करना होगा?
साल 2017 में भारत विकासशील देशों में अकेला देश था जिसे जीएसपी के तहत सबसे ज्यादा लाभ मिला था. भारत से अमेरिका ने 5.7 बिलियन डॉलर का आयात बिना किसी टैक्स के किया था जबकि तुर्की पांचवें स्थान पर था जहां से 1.7 बिलियन डॉलर का ड्यूटी फ्री आयात किया गया था. पिछले साल अप्रैल में अमेरिका ने एलान किया था कि वह भारत और तुर्की को मिलने वाली राहत पर विचार करेगा क्योंकि अमेरिका की कुछ डेयरी और मेडिकल कंपनियों ने शिकायत की थी कि इससे स्वदेशी कारोबार पर गहरा असर पड़ रहा है.
भारत, तुर्की पर कितना असर?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने फैसले से पहले कहा कि भारत ने हमें इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं किया कि वह अपने बाजार में भी हमारे प्रोडक्ट की पहुंच कहां तक और कितना आसान बनाएगा. तुर्की के बारे में ट्रंप ने कहा कि वहां की आर्थिक तरक्की देखकर उसे विकासशील देशों की श्रेणी में नहीं रख सकते.
ट्रंप का यह फैसला ऐसे वक्त में सामने आया है जब भारत में आम चुनाव है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह मुश्किल हो सकता है क्योंकि उन्हें चुनावी माहौल में देश की आर्थिक प्रगति की चिंता सता सकती है. दूसरी ओर, ट्रंप और तुर्की के प्रधानमंत्री अर्दोगन के बीच संबंधों में खटास जगजाहिर है. वहां की अर्थव्यवस्था भी कमजोर होती जा रही है. साथ में वहां भी आम चुनाव हैं. इसलिए भारत और तुर्की दोनों देशों पर अमेरिका के इस फैसले का गहरा असर देखा जा सकता है.
अमेरिका के इस फैसले पर भारत के वाणिज्य सचिव अनूप वाधवा ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच 5.6 बिलियन डॉलर के व्यापार पर इसका खास असर नहीं पड़ेगा.
(स्रोत)
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