गाँधी परिवार अपने आपको देश का बहुत बड़ा हितैषी और देशभक्त बताता है। 1971 के युद्ध को कांग्रेस तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी की जीत और उपलब्धि बताती रही है। लेकिन इस युद्ध से जुड़े अनेक तथ्य जनता से छुपाए गए हैं, जिस तरह कश्मीर में अलगाववादी नेता अपने बच्चों को कश्मीर से बाहर रख, बेकसूर कश्मीरियों को बलि का बकरी बना रहे हैं। उसी तरह तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने अपने पुत्र राजीव को युद्ध से दूर रखा। ऐसे में जनता जानना चाहती है कि "आधार पर कांग्रेस राष्ट्रहित की बात करती है? जब युद्ध घोषित होने पर किसी भी कारण से छुट्टियों पर समस्त पायलट अपनी छुट्टियाँ रद्द कर, काम पर लौट आये थे, प्रधानमंत्री का पुत्र राजीव क्यों नहीं आया? क्यों इटली में बैठा रहा? क्या राजीव गाँधी भारत माता का लाल नहीं था या इटली की लड़की से शादी कर इटैलियन बन गया था?"
1971 युद्ध के दौरान पायलट राजीव गाँधी इटली में शादी का आनन्द ले रहे थे
1971 युद्ध के समय राजीव गाँधी इंडियन एयरलाइन्स में पायलट थे। जैसाकि होता है की, युद्ध के दौरान समस्त पायलटो की छुट्टियाँ तक रद्द कर दी जाती हैं। किया भी गया वैसा, लेकिन समस्त युद्ध के दौरान केवल एक पायलट था, जो युद्ध से बेखबर अपनी छुट्टिओं का आनन्द ले रहा था और वह था कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के पिताश्री राजीव गाँधी। काश, किसी अन्य पायलट ने ऐसा दुस्साहस किया होता, निश्चित रूप से कार्यवाही के अंतर्गत नौकरी से हाथ धोना पड़ता। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री का पुत्र होने के कारण उस समय तो क्या, आज भी किसी माँ मुँह नहीं खुलता। क्यों नहीं राजीव गाँधी पर कोई कार्यवाही? हालाँकि उस समय यह समाचार काफी समय तक चर्चा में भी रहा था। कहते हैं कि शायद ही कोई ऐसा समाचार-पत्र/पत्रिका ने इस सनसनीखेज समाचार से अछूता रहा हो।
वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता के विस्तृत लेख में बताया कि युद्ध प्रारम्भ होते ही देश आपातकालीन घोषित कर दी गयी थी। आपातकालीन नियमों के अनुसार, समस्त पायलट की छुट्टियाँ रद्द कर दी गयीं थीं। क्योकि लड़ाई के दिनों में युद्ध सामग्री आदि सामानों को लेकर जाने में नागरिक विमानों की कब जरुरत पड़ जाए, कहना कठिन होता है। सभी पायलट अपने काम पर लगे हुए थे, लेकिन केवल एक पायलट राजीव गाँधी जो अपनी नवविवाहित पत्नी सोनिया गाँधी उर्फ़ एंटोनियो माइनो के साथ इटली में शादी का आनन्द लेने चले गए थे। वो सोनिया गाँधी जो भारतीयता पर उठे विवाद पर कहती है कि "मै आखिरी साँस तक भारतीय हूँ।" राजीव और सोनिया की शादी 1968 में हुई थी। और 1970 में राहुल का जन्म हुआ। यानि युद्ध के समय राहुल की आयु एक वर्ष के लगभग थी। 3 से 16 दिसम्बर 1971 तक लड़ाई यानि 13 दिन तक चला था। इस दौरान राजीव, सोनिया और राहुल इटली में रह रहे थे। लेकिन वापस आये जब पाकिस्तानी जनरल नियाज़ी ने सरेंडर के कागजात पर हस्ताक्षर नहीं कर दिए, और औपचारिक रूप से युद्ध की समाप्ति की घोषणा नहीं हो गयी।
1977 में भी राजीव भारत भागे थे
1971 युद्ध के बाद 1977 में आपातकाल के हटने पर हुए हुए चुनावों में ,कांग्रेस के हारने पर जनता पार्टी के सत्ता में आने पर राजीव और सोनिया एक बार फिर भारत छोड़ गए थे। चुनाव परिणाम आते ही सोनिया अपने पति और दोनों बच्चों को लेकर चाणक्यपुरी स्थित इटली के दूतावास चली गयी थी। उस दौर में प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार उनके साथ बहुत सारे बड़े-बड़े बैग,और अटैचियाँ थी। बाद में संजय गाँधी और मेनका के बहुत समझाने बाद ही घर लौटने को तैयार हुई। इस घटना का जिक्र उस समय के समाचार-पत्रों में खूब हुआ था। यह अपने आप में ऐसी मिसाल है, जो दर्शाती है कि सोनिया की भारत के प्रति कितनी निष्ठां है।
भारतीय बनने से बचती रही सोनिया
अब चूँकि वे देश के एक खास परिवार से हैं और प्रधानमंत्री पद के लिये बेहद आतुर हैं (जी हाँ) तब वे एक सामाजिक व्यक्तित्व बन जाती हैं और उनके बारे में जानने का हक सभी को है (14 मई 2004 तक वे प्रधानमंत्री बनने के लिये जी-तोड़ कोशिश करती रहीं, यहाँ तक कि एक बार तो पूर्ण समर्थन ना होने के बावजूद वे दावा पेश करने चल पडी़ थीं, लेकिन14 मई 2004 को राष्ट्रपति कलाम साहब द्वारा कुछ "असुविधाजनक" प्रश्न पूछ लिये जाने के बाद यकायक 17 मई आते-आते उनमे वैराग्य भावना जागृत हो गई और वे खामख्वाह "त्याग" और "बलिदान" (?) की प्रतिमूर्ति बना दी गईं - कलाम साहब को दूसरा कार्यकाल न मिलने के पीछे यह एक बडी़ वजह है, ठीक वैसे ही जैसे सोनिया ने प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति इसलिये नहीं बनवाया, क्योंकि इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बाद राजीव के प्रधानमंत्री बनने का उन्होंने विरोध किया था... और अब एक तरफ़ कठपुतली प्रधानमंत्री और जी-हुजूर राष्ट्रपति दूसरी तरफ़ होने के बाद अगले चुनावों के पश्चात सोनिया को प्रधानमंत्री बनने से कौन रोक सकता है?)बहरहाल... सोनिया गाँधी उर्फ़ माइनो भले ही आखिरी साँस तक भारतीय होने का दावा करती रहें, भारत की भोली-भाली (?) जनता को इन्दिरा स्टाइल में, सिर पर पल्ला ओढ़ कर "नामास्खार" आदि दो चार हिन्दी शब्द बोल लें, लेकिन यह सच्चाई है कि सन 1984 तक उन्होंने इटली की नागरिकता और पासपोर्ट नहीं छोडा़ था (शायद कभी जरूरत पड़ जाये)। राजीव और सोनिया का विवाह हुआ था सन 1968 में, भारत के नागरिकता कानूनों के मुताबिक (जो कानून भाजपा या कम्युनिस्टों ने नहीं बल्कि कांग्रेसियों ने ही सन 1950 में बनाये) सोनिया को पाँच वर्ष के भीतर भारत की नागरिकता ग्रहण कर लेना चाहिये था अर्थात सन 1974 तक, लेकिन यह काम उन्होंने किया दस साल बाद...यह कोई नजरअंदाज कर दिये जाने वाली बात नहीं है। इन पन्द्रह वर्षों में दो मौके ऐसे आये जब सोनिया अपने आप को भारतीय(!)साबित कर सकती थीं। पहला मौका आया था सन 1971 में जब पाकिस्तान से युद्ध हुआ (बांग्लादेश को तभी मुक्त करवाया गया था), उस वक्त आपातकालीन आदेशों के तहत इंडियन एयरलाइंस के सभी पायलटों की छुट्टियाँ रद्द कर दी गईं थीं, ताकि आवश्यकता पड़ने पर सेना को किसी भी तरह की रसद आदि पहुँचाई जा सके। सिर्फ़ एक पायलट को इससे छूट दी गई थी, जी हाँ राजीव गाँधी, जो उस वक्त भी एक पूर्णकालिक पायलट थे। जब सारे भारतीय पायलट अपनी मातृभूमि की सेवा में लगे थे तब सोनिया अपने पति और दोनों बच्चों के साथ इटली की सुरम्य वादियों में थीं, वे वहाँ से तभी लौटीं, जब जनरल नियाजी ने समर्पण के कागजों पर दस्तखत कर दिये। दूसरा मौका आया सन 1977 में जब यह खबर आई कि इंदिरा गाँधी चुनाव हार गईं हैं और शायद जनता पार्टी सरकार उनको गिरफ़्तार करे और उन्हें परेशान करे। "माईनो" मैडम ने तत्काल अपना सामान बाँधा और अपने दोनों बच्चों सहित दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थित इटालियन दूतावास में जा छिपीं। इंदिरा गाँधी, संजय गाँधी और एक और बहू मेनका के संयुक्त प्रयासों और मान-मनौव्वल के बाद वे घर वापस लौटीं। 1984 में भी भारतीय नागरिकता ग्रहण करना उनकी मजबूरी इसलिये थी कि राजीव गाँधी के लिये यह बडी़ शर्म और असुविधा की स्थिति होती कि एक भारतीय प्रधानमंत्री की पत्नी इटली की नागरिक है? भारत की नागरिकता लेने की दिनांक भारतीय जनता से बडी़ ही सफ़ाई से छिपाई गई। भारत का कानून अमेरिका, जर्मनी, फ़िनलैंड, थाईलैंड या सिंगापुर आदि देशों जैसा नहीं है जिसमें वहाँ पैदा हुआ व्यक्ति ही उच्च पदों पर बैठ सकता है। भारत के संविधान में यह प्रावधान इसलिये नहीं है कि इसे बनाने वाले "धर्मनिरपेक्ष नेताओं" ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि आजादी के साठ वर्ष के भीतर ही कोई विदेशी मूल का व्यक्ति प्रधानमंत्री पद का दावेदार बन जायेगा। लेकिन कलाम साहब ने आसानी से धोखा नहीं खाया और उनसे सवाल कर लिये। संविधान के मुताबिक सोनिया प्रधानमंत्री पद की दावेदार बन सकती हैं, जैसे कि मैं या कोई और। लेकिन भारत के नागरिकता कानून के मुताबिक व्यक्ति तीन तरीकों से भारत का नागरिक हो सकता है, पहला जन्म से, दूसरा रजिस्ट्रेशन से, और तीसरा प्राकृतिक कारणों (भारतीय से विवाह के बाद पाँच वर्ष तक लगातार भारत में रहने पर)। इस प्रकार मैं और सोनिया गाँधी, दोनों भारतीय नागरिक हैं, लेकिन मैं जन्म से भारत का नागरिक हूँ और मुझसे यह कोई नहीं छीन सकता, जबकि सोनिया के मामले में उनका रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है। वे भले ही लाख दावा करें कि वे भारतीय बहू हैं, लेकिन उनका नागरिकता रजिस्ट्रेशन भारत के नागरिकता कानून की धारा 10 के तहत तीन उपधाराओं के कारण रद्द किया जा सकता है (अ) उन्होंने नागरिकता का रजिस्ट्रेशन धोखाधडी़ या कोई तथ्य छुपाकर हासिल किया हो, (ब) वह नागरिक भारत के संविधान के प्रति बेईमान हो, या (स) रजिस्टर्ड नागरिक युद्धकाल के दौरान दुश्मन देश के साथ किसी भी प्रकार के सम्पर्क में रहा हो। (इन मुद्दों पर डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी काफ़ी काम कर चुके हैं और अपनी पुस्तक में उन्होंने इसका उल्लेख भी किया है, जो आप पायेंगे इन अनुवादों के "तीसरे भाग" में)। राष्ट्रपति कलाम साहब के दिमाग में एक और बात निश्चित ही चल रही होगी, वह यह कि इटली के कानूनों के मुताबिक वहाँ का कोई भी नागरिक दोहरी नागरिकता रख सकता है, भारत के कानून में ऐसा नहीं है, और ये वो रहस्य हैं, जिन पर वर्षों तक पर्दा डाले रखा। अब जब इन रहस्यों से पर्दा हटना शुरू हो गया है, लोगों ने गाँधी परिवार से प्रश्न करने शुरू कर दिए हैं।
राष्ट्रपति कलाम साहब के दिमाग में एक और बात निश्चित ही चल रही होगी, वह यह कि इटली के कानूनों के मुताबिक वहाँ का कोई भी नागरिक दोहरी नागरिकता रख सकता है, भारत के कानून में ऐसा नहीं है, और अब तक यह बात सार्वजनिक नहीं हुई है कि सोनिया ने अपना इटली वाला पासपोर्ट और नागरिकता कब छोडी़? ऐसे में वह भारत की प्रधानमंत्री बनने के साथ-साथ इटली की भी प्रधानमंत्री बनने की दावेदार हो सकती हैं। अन्त में एक और मुद्दा, अमेरिका के संविधान के अनुसार सर्वोच्च पद पर आसीन होने वाले व्यक्ति को अंग्रेजी आना चाहिये, अमेरिका के प्रति वफ़ादार हो तथा अमेरिकी संविधान और शासन व्यवस्था का जानकार हो। भारत का संविधान भी लगभग मिलता-जुलता ही है, लेकिन सोनिया किसी भी भारतीय भाषा में निपुण नहीं हैं (अंग्रेजी में भी), उनकी भारत के प्रति वफ़ादारी भी मात्र बाईस-तेईस साल पुरानी ही है, और उन्हें भारतीय संविधान और इतिहास की कितनी जानकारी है यह तो सभी जानते हैं। जब कोई नया प्रधानमंत्री बनता है तो भारत सरकार का पत्र सूचना ब्यूरो (पीआईबी) उनका बायो-डाटा और अन्य जानकारियाँ एक पैम्फ़लेट में जारी करता है। आज तक उस पैम्फ़लेट को किसी ने भी ध्यान से नहीं पढा़, क्योंकि जो भी प्रधानमंत्री बना उसके बारे में जनता, प्रेस और यहाँ तक कि छुटभैये नेता तक नख-शिख जानते हैं। यदि (भगवान न करे) सोनिया प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुईं तो पीआईबी के उस विस्तृत पैम्फ़लेट को पढ़ना बेहद दिलचस्प होगा। आखिर भारतीयों को यह जानना ही होगा कि सोनिया का जन्म दरअसल कहाँ हुआ? उनके माता-पिता का नाम क्या है और उनका इतिहास क्या है? वे किस स्कूल में पढीं? किस भाषा में वे अपने को सहज पाती हैं? उनका मनपसन्द खाना कौन सा है? हिन्दी फ़िल्मों का कौन सा गायक उन्हें अच्छा लगता है? किस भारतीय कवि की कवितायें उन्हें लुभाती हैं? क्या भारत के प्रधानमंत्री के बारे में इतना भी नहीं जानना चाहिये!
इतना ही नहीं, सोनिया ने अपनी शैक्षिक योग्यता से भी जनता और सरकार को भ्रमित कर रखा था। जिस रहस्य से एक सार्वजानिक कार्यक्रम में डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने पर्दा हटाया। उन्होंने आरोप लगाया कि "सोनिया गाँधी प्राइमरी है", इस कार्यक्रम की विस्तृत रपट एक पाक्षिक को सम्पादित करते प्रकाशित किया था।
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