मसूद अज़हर पर कार्यवाही के लिए पाकिस्तान में उठनी लगी आवाज़ें

'अगर दुनिया मसूद अजहर को ब्लैक लिस्ट में डालना चाहती है, तो पाक और चीन को ‘हिचकिचाना’ नहीं चाहिए’
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
पाकिस्तान के एक प्रमुख अखबार ने अपने संपादकीय में मार्च 18 को कहा कि पाकिस्तान और चीन को जैश ए मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी चिह्नित करने के रास्ते में रोड़ा नहीं अटकाना चाहिए। अखबार ने संपादकीय में पाकिस्तान में आतंकी समूहों पर सख्त कार्रवाई करने पर जोर देते हुए कहा कि ऐसा करने से इस्लामाबाद को अंतरराष्ट्रीय समुदाय का आदर-सम्मान दोबारा प्राप्त होगा। ‘डॉन’ ने संपादकीय में कहा है कि कोई भी ‘अच्छा’ या ‘बुरा’ आतंकी समूह नहीं होता है और ये समूह या तो देश में तबाही लाते हैं या तबाही लाते रहे हैं 
संपादकीय में कहा गया है, ‘‘ लेकिन उम्मीद है कि अब यह नजरिया खत्म हो चुका है क्योंकि प्रधानमंत्री इमरान खान ने वादा किया है कि किसी भी समूह को आतंकी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान की जमीन के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जाएगी’’ क्या इमरान खान फौज के विरुद्ध कोई निर्णय लेने में सामर्थ है?
संपादकीय में कहा गया है, ‘‘ उनको अपने वादे पर खरा उतरना चाहिए। यही एकमात्र रास्ता है जिसके जरिए पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय का आदर-सम्मान हासिल कर सकता है और इसी तरह से भारत के पाकिस्तान को अलग-थलग करने के प्रचार का मुकाबला कर सकता है। ’’ 
डॉन ने संपादकीय में कहा है, ‘‘ ज्यादातर आतंकी समूहों पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है लेकिन यह सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है कि ये सभी फिर से पुनर्जीवित न हो पाएं। अगर दुनिया मसूद अजहर को काली सूची में डालना चाहती है तो पाकिस्तान को इस पर हिचकिचाना नहीं चाहिए और न ही चीन को ऐसा करना चाहिए’’ चीन ने पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चौथी बार मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की राह रोक दी थी। इस कदम को भारत ने निराशाजनक बताया था 
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी को सीआरपीएफ के जवानों पर हुए हमले की जिम्मेदारी जैश ने ली थी और इसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया था। इस हमले में 40 जवान शहीद हो गए थे 
पाकिस्तान से उठ रही मसूद अज़हर के विरुद्ध आवाज़ सिद्ध करती है कि भारत की मोदी सरकार द्वारा आतंकवाद पर की जा रहे प्रहारों से पाकिस्तान विश्व में केवल अलग-थलग ही नहीं, बल्कि भारत द्वारा MFN वापस लेने से पाकिस्तान में जनजीवन दूबर हो रहा है। शायद यही कारण है, कि अब पाकिस्तान मीडिया ने आतंकवाद के विरुद्ध बोलना प्रारम्भ कर दिया है। जिसे भारत प्रधानमंत्री की कूटनीति की सबसे बड़ी जीत कहा जा सकता है। 
जैसाकि सर्वविदित है कि पाकिस्तान में चाहे पूर्णबहुमत से चुनी हुई सरकार क्यों न हो, परन्तु जहाँ उसने फौज की मर्जी के विरुद्ध निर्णय लिया, उस सरकार का तख्ता पलट होना स्वाभाविक है। फौज के भय को ख़त्म करने के लिए पाकिस्तान को कम से कम दो अथवा तीन सरकारों की क़ुरबानी देनी होगी। अन्यथा पाकिस्तान इन्ही दिक्कतों से गुजरता रहेगा। वैसे पाकिस्तान के पिछले प्रधानमंत्री जैसे ज़ुल्फ़िकार और बेनज़ीर भुट्टो आदि 1000 सालों तक भारत के साथ युद्ध की बात करते थे, लेकिन वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान की मंशा अभी सामने नहीं आयी है।  

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