चुनाव पूर्व ही महागठबन्धन बिखराव की ओर

opposition meet at Sharad Pawar residenceबजट सत्र के अंतिम दिन लोकसभा में समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोबारा पीएम देखने की कामना ने विपक्षी दलों में अफरा-तफरी का माहौल पैदा कर दिया था। जबकि जंतर-मंतर पर आम आदमी पार्टी के धरने में शामिल दलों ने भाजपा एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एकजुटता का प्रदर्शन किया। इसके अलावा विपक्षी जमावड़े का एक नजारा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के मुखिया शरद पवार के आवास पर देखने को मिला जहां विपक्षी पार्टियों ने लोकसभा चुनावों से पहले गठबंधन के विचार और न्यूनतम साझा कार्यक्रम के विचार पर चर्चा की। जिसे अन्तिम रूप आज तक न दिया जा सका, जबकि चुनाव बिसात बिछ चुकी है और पार्टी अपने विरोधियों पर तीर छोड़ने से नहीं चूक रहे। 
समझा जाता है कि लोकसभा में मोदी को समर्थन देकर मुलायम सिंह ने विपक्ष की बेचैनी बढ़ा दी। इसका असर कांग्रेस सहित विपक्षी दलों की कई बैठकों में नजर आया। आप के धरने को समर्थन देने दिल्ली पहुंचीं तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं तेदेपा अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू राकांपा सुप्रीमो शरद पवार के आवास पर मिलने पहुंचे। इसके बाद पवार की ओर से आयोजित रात्रिभोज में उनके आवास पर विपक्षी दलों की एक और बैठक हुई जिसमें राहुल गांधी, ममता बनर्जी, नायडू, अरविंद केजरीवाल और फारूक अब्दुल्ला शामिल हुए। 
  1. पीएम मोदी पर मुलायम सिंह के बयान के बाद विपक्षी दलों की बढ़ी बेचैनी
  2. राकांपा सुप्रीमो शरद पवार के आवास पर रात्रिभोज में जुटा विपक्ष
  3. बैठक में चुनाव पूर्व गठबंधन बनाने और कॉमन एजेंडा पेश करने पर हुई चर्चा
  4. विपक्ष की इस बैठक में शामिल नहीं हुए सपा और लेफ्ट
  5. ममता बनर्जी बोलीं-हम मिलकर काम करेंगे और हमारा कॉमन एजेंडा होगा
इस बैठक में विपक्षी दलों ने लोकसभा चुनावों से पहले राष्ट्रीय स्तर पर एक गठबंधन बनाने और न्यूनतम साझा कार्यक्रम पेश करने के विचार पर चर्चा की। इस बैठक के बाद ममता बनर्जी ने मीडियाकर्मियों से कहा, 'हमें एक दूसरे का सहयोग करने की जरूरत है। हम मिलकर काम करेंगे। हमारा नारा है-सबको एक रखो, देश को बचाओ। हमारा एक न्यूनतम साझा एजेंडा होगा और हम चुनाव पूर्व गठबंधन करेंगे।' परन्तु हर पार्टी अपना अलग ही घोषणा पत्र निकल रही है, भई ये कैसा गठबन्धन? अगर किसी की समझ में आता हो, बताने का कष्ट करें। वास्तव में इनमें मोदी विरोध से अधिक महत्वकांक्षा हर पार्टी प्रमुख की प्रधानमंत्री बनने की है। शायद जनता भी अब समझने लगी है, कि महागठबन्धन के शोर से जितना अधिक जनता को भ्रमित कर सकते हो, करो क्योकि मोदी के पुनः वापस आने पर इस गठबन्धन के बर्तन बीच चौराहे पर आ जाएंगे, लेकिन उनका कोई खरीदार नहीं होगा। यही शंका इन सबको खाए जा रही है।  
मोदी के खिलाफ विपक्ष की लामबंदी पर सवाल भी उठने लगे हैं। 'मोदी हटाओ, देश बचाओ' के नारे पर सभी विपक्षी दल तो एकजुटता की बात तो कर रहे हैं लेकिन उनकी इस एकजुटता इस बात से समझी जा सकती है कि विपक्ष की इस बैठक से समाजवादी पार्टी और लेफ्ट नदारद रहे। इससे जाहिर है कि मोदी विरोधी नारे पर अपना तालमेल एवं लामबंदी दिखाने वाले विपक्ष में राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बनाने को लेकर अपनी चुनौतियां एवं मजबूरियां हैं। केरल में वामपंथी राहुल गाँधी को हराने की बात कर रहे हैं, विपरीत इसके कांग्रेस ने मुस्लिम लीग से हाथ मिला लिया। 
ज्ञात हो, बँटवारे उपरान्त पाकिस्तान जाते मुसलमानों का नारा था "हँस के लिया पाकिस्तान, लड़कर लेंगे हिन्दुस्तान", तब मोहम्मद अली जिन्ना ने जवाहर लाल और महात्मा गाँधी से हिन्दुस्तान में मुस्लिम लीग को बैन करने की मुफ्त में सलाह दी थी। जिसे नहीं माना गया, नेहरू ने इसे केरल तक ही सीमित रखा, लेकिन इन्दिरा गाँधी इसे केरल से बाहर ले आयी। और आज उसी इन्दिरा गाँधी की बहु(सोनिया), पौत्र(राहुल) ने उसी मुस्लिम से हाथ मिला लिया, अब जनता समझ ले कि हाँडी में क्या पक रहा है। 
विपक्ष के एक बड़े नेता का कहना है, 'राज्य स्तर पर हमारे बीच मतभेद हो सकते हैं और ऐसा हमारी स्थानीय राजनीतिक वजहों से हो सकता है। राष्ट्रीय स्थितियां एवं लोकतांत्रिक चुनौतियों की मांग राष्ट्रीय स्तर पर एक गठबंधन बनाने की है।' विपक्ष के इस नेता ने राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन के प्रारूप को लेकर क्षेत्रीय दलों में असहमति होने की बातों को खारिज किया।
भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बनाने के विचार पर राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल साथ तो नजर आए लेकिन दिल्ली में क्या वे एक साथ नजर आएंगे। इसी तरह ममता बनर्जी और राहुल भी साथ दिखे लेकिन कांग्रेस पश्चिम बंगाल में आम चुनावों से पहले लेफ्ट के साथ गठबंधन करने का विचार कर रही है। इससे यही जाहिर होता है कि विपक्ष खुद अपने अंतर्विरोधों से नहीं निकल पा रहा है।
इन पार्टी के नेताओं ने नायडू का किया समर्थनआखिर क्यों टीडीपी के हर मंच से गायब रही बीएसपी?
भूख हड़ताल करने वाले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी के नेता चंद्रबाबू नायडू बीजेपी को हराने के लिए विपक्ष के नेताओं को एकजुट करने में लगे हुए हैं। लेकिन चंद्रबाबू नायडू के भूख हड़ताल में बसपा प्रमुख मायावती की अनुपस्थिति ने राजनीतिक रूप से संकेत दिया है कि ये दोनों एक मंच पर नहीं आ सकते हैं लेकिन सूत्रों की माने तो विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए टीडीपी ने बीएसपी को भी आमंत्रित किया था। पिछले कुछ महीनों ने नायडू ने कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने भरपूर प्रयास किया है और कई नेता एक साथ आए भी हैं ताकि केंद्र की सत्ता से बीजेपी को उखाड़ फेका जाए।
इन पार्टी के नेताओं ने नायडू का किया समर्थन 

सोमवार को विपक्षी राजनीतिक दलों के पास एक और मौका था जब वे आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जे की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे चंद्रबाबू नायडू के विरोध प्रदर्शन में शामिल होने पहुंचे थे। इसमें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला, टीएमसी के डेरेन ओ ब्रायन और आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, शरद पवार, सपा के मुलायम सिंह, शिवसेना के संजय राउत समेत कई नेता शामिल हुए लेकिन बीएसपी ने इससे दूरी बनाई रखी।
मायावती तो दूर, पार्टी से भी नहीं पहुंचा 

कोई बीएसपी की ओर से मायावती तो दूर की बात हैं पार्टी का कोई नेता धरना स्थल पर नहीं गया। हालांकि आपको बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं है जब मायावती ने नायडू को नजरअंदाज किया है। मायावती और नायडू के बीच पिछले साल 27 अक्टूबर को मुलाकात हुई थी। जहां उन्होंने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में गठबंधन के प्रति कांग्रेस के रवैये पर नाराजगी व्यक्त की थी। यहां तक बसपा ने कांग्रेस के बीच किसी भी गठबंधन पर गंभीर चिंता जताई थी। बीएसपी का मानना है कि नायडू कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी हैं, जो दोनों पार्टियों को करीब ला सकते हैं, लेकिन मायावती को कुछ पसंद नहीं था। नायडू ने पिछले साल 10 दिसंबर को विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने से एक दिन पहले विपक्षी दलों के नेताओं के साथ बैठक की लेकिन बसपा और सपा दोनों ने इससे दूरी बनाई रखी।
बीएसपी की दूरी पर बोले नायडू 

हालांकि तब यह सोचा गया कि हो सकता है मायावती चुनाव नतीजें घोषित होने का इंतजार कर रही हो इसलिए वो बैठक में शामिल नहीं हुईं। विपक्ष के लिए चिंता की बात यह है कि बसपा अन्य दोनों की ओर से आयोजित बैठकों में भाग ले रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की ओर से आयोजित रैली है, जिसमें बीएसपी की ओर से सांसद सतीश चंद्र मिश्रा शामिल हुए थे। इसके बाद 1 फरवरी को दिल्ली में कांग्रेस की ओर से आयोजित सेव द नेशन, सेव द डेमोक्रेसी की बैठकों में भी बीएसपी ने हिस्सा लिया था। हालांकि बीएसकी के साथ दूरी पर चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि हमारे बीच कम्यूनिकेशन गैप हो सकता है लेकिन हमारे बीच किसी प्रकार की समस्या नहीं है, हम राष्ट्रीय हित के लिए इस विषय पर चर्चा करेंगे।

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