क्या गिरिराज सिंह को हरा सकेंगे कन्हैया कुमार?

Quaint Media, Quaint Media consultant pvt ltd, Quaint Media archives, Quaint Media pvt ltd archives, Live Bihar, Live Indiaगुजरात के विधायक और दलित नेता जिग्नेश मेवानी बेगूसराय पहुंच गए हैं। उनका कहना है कि “भात-दाल-चोखा खाएंगे, कन्हैया कुमार को जीताएंगे।” सिर्फ मेवानी ही नहीं देश के कई हिस्सों से लोग कन्हैया को जीताने के लिए बेगूसराय पहुंच रहे हैं। शबाना आज़मी और स्वरा भास्कर तो समर्थन दे ही रही हैं, सम्भव है, #metoo, #awardvapsi, #notinmyname, #moblynching, #intolerance आदि गैंग भी समर्थन में आ जाए, कोई बड़ी बात नहीं। महज चंद घंटों में ही क्राउड फंडिंग के जरिए कन्हैया को 30 लाख रुपये भी मिल गए हैं। मतलब माहौल बनने लगा है। खबरें बनने लगी हैं। लेकिन इन सबके बीच सवाल यही है कि क्या कन्हैया चुनाव जीतने की हैसियत में हैं? इसका उत्तर जानने के लिए हमें बेगूसराय और बिहार के मौजूदा हालात पर गौर करना होगा।   
बिहार में इस बार का चुनाव बीते चुनावों से अलग है। वोटों का विभाजन सीधे तौर पर दो धड़ों – एनडीए और महागठबंधन – के बीच होने जा रहा है। सूबे में लंबे समय बाद लालू यादव ने गैर बीजेपी वोटों में विभाजन को रोकने के लिए सभी को एक सूत्र में पिरो दिया है। पूरे प्रदेश में कुछ सीटें ही ऐसी हैं जहां किसी ताकतवर नेता के मैदान में उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। बांका और बेगूसराय ऐसी ही दो सीटें हैं। बीजेपी ने बांका की सीट जेडीयू को सौंप दी। जिसकी वजह से पुतुल कुमारी ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला लिया। वो दिग्विजय सिंह की पत्नी हैं और उनके निधन के बाद वहां से चुनाव जीत चुकी हैं। इस बार भी उनके मैदान में उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। इस त्रिकोणीय मुकाबले पर चर्चा फिर कभी होगी। अभी हम अपनी चर्चा को बेगूसराय और कन्हैया कुमार पर ही केंद्रित रखते हैं।
कन्हैया युवा नेता हैं। भाषण अच्छा दे लेते हैं। जेएनयू से पढ़े लिखे हैं। और जाति से भूमिहार हैं। बेगूसराय में करीब पौने पांच लाख भूमिहार मतदाता हैं। इसलिए कन्हैया के चुनाव लड़ने से वहां माहौल अच्छा बनेगा। इतना ही नहीं, जिस तरह बेगूसराय में जिग्नेश मेवानी जैसे लोग इकट्टठा हो रहे हैं उससे माहौल और रोचक होगा। हल्ला होगा। नाच-गाना होगा। भाषणबाजी होगी। अच्छे विजुअल बनेंगे। टीवी के लिए रोचक खबरें बनेंगी।
लेकिन माहौल बनने से क्या कन्हैया चुनाव जीत जाएंगे? इसका सीधा जवाब है - नहीं जीतेंगे। बेगूसराय के सभी समीकरण उनके खिलाफ हैं। तो फिर इस त्रिकोणीय मुकाबले में कौन जीतेगा? वो जीतेगा जिसे कन्हैया कम नुकसान पहुंचाएंगे। अगर बीजेपी के वोट में सेंध ज्यादा लगी और भूमिहार पूरी तरह से कन्हैया के समर्थन में चले गए तो फिर गिरिराज हार जाएंगे और अगर गैर बीजेपी वोटों में विभाजन ज्यादा हुआ और मुसलमान भी दो हिस्सों में बंटे तो फिर गिरिराज जीत जाएंगे।
अब सवाल उठता है कि आखिर कन्हैया किन परिस्थितियों में चुनाव जीत जाते? कन्हैया तब जीतते जब लड़ाई सिर्फ गिरिराज सिंह से होती। उन्हें महागठबंधन का साझा उम्मीदवार बनाया गया होता। उस स्थिति में गिरिराज को हराया जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं होने पर कन्हैया को चाहिए था कि महागठबंधन के लिए काम करते। अपनी सियासी जमीन तैयार करते। लेकिन उन्होंने और उनके संगठन ने हड़बड़ी में चुनाव लड़ने का फैसला ले लिया।
कन्हैया का दावा है कि उनकी लड़ाई गिरिराज सिंह से है। नरेंद्र मोदी और बीजेपी से है। यह बेतुकी बात है। उनकी लड़ाई गिरिराज सिंह के साथ तो है ही, लेकिन अब उनकी लड़ाई तेजस्वी यादव से भी है। बल्कि पहली लड़ाई तो तेजस्वी यादव से ही है। महागठबंधन के सभी वोटों को अपनी तरफ किए बगैर कन्हैया जीत हासिल नहीं कर सकते। अगर कन्हैया को जीतना है तो सबसे पहले उन्हें तेजस्वी को हराना होगा। बेगूसराय से महागठबंधन को खत्म करना होगा। सभी गैर बीजेपी वोटों को अपनी तरफ करना होगा।
अवलोकन करें:-
आखिरकार वह गैंग बाहर आ ही गया, जिसका इन्तजार था। समझ नहीं आ रहा था कि #metoo#not in my name, #intolerance#mob lynching, #award vapsi आदि गैंग कहाँ है, चुनावों की बिसात बिछ चुकी है, लेकिन ये गैंग पता नहीं कहाँ है? चलो देर आए, दुरुस्त आए। अपनी औकात दिखाने आ ही गए। इस गैंग को केवल सिक्के का एक ही पहलु दिखता है, दूसरा नहीं। जब तक ये गैंग सक्रीय रहेगा, भारत देश में सौहार्द रह ही नहीं सकता। इस गैंग को इस वीडियो को देख माफ़ी माँगनी चाहिए:


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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार आखिरकार वह गैंग बाहर आ ही गया, जिसका इन्तजार था। समझ नहीं आ रहा था कि #metoo, #not in my name, #intoleran...

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बेगूसराय में करीब पौने पांच लाख भूमिहार मतदाता हैं। डेढ़ लाख यादव और ढाई लाख मुसलमान है। जीत के लिए कन्हैया को बड़ी संख्या में भूमिहार वोटों के साथ यादव और मुसलमान वोट भी चाहिए। अब आप ही सोचिए कि क्या ऐसा होने जा रहा है? क्या मुसलमान और यादव महागठबंधन को छोड़ कर, तेजस्वी यादव को छोड़ कर कन्हैया के पक्ष में मतदान करेंगे? क्या सच में ऐसा होगा कि बेगूसराय में गिरिराज और तेजस्वी दोनों ही हार जाएंगे और जीत कन्हैया की होगी? मेरी समझ से ऐसा नहीं होने जा रहा। ऐसा हुआ तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।

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