ममता बनर्जी : RSS का मुकाबला करने के लिए बनाएंगी 'जय हिंद ब्रिगेड'

Mamata Banerjee
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में इस बार भाजपा को शानदार सफलता मिली है जबकि सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को खासा नुकसान हुआ है। अपने अभेद्य किले में लगी सेंध से परेशान ममता बनर्जी ने अब इस हार को लेकर मंथन करना शुरू कर दिया है। राज्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की बढ़ती सक्रियता से परेशान ममता ने अब संघ की तर्ज पर जय हिंद ब्रिगेड बनाने का निर्णय लिया है।
ममता ने इस ब्रिगेड की जिम्मेदारी अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को दी है। वहीं राज्य में इस संगठन के महिला ब्रिगेड की जिम्मेदारी को ममता ने काकोली दस्तीदार को सौंपी हैं। जय हिंद ब्रिगेड के लिए अभिषेक बनर्जी के अलावा ममता के भाई कार्तिक बनर्जी को भी दी गई है। ममता के मंत्री इंद्रनील सेन तथा बर्त्य बासु को भी टीम की अगुवाई करने की जिम्मेदारी दी गई है।
ममता ने ब्रिगेड से आरएसएस का मुकाबला करने के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव के लिए कहा है। सूत्रों की मानें तो ममता ने ब्रिगेड से कहा है कि वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए समाजिक कार्यों में भागीदारी करें, ताकि आरएसएस का मुकाबला किया जा सके।
ऐसे में प्रश्न होता है कि "क्या ममता का जय हिन्द ब्रिगेड संघ की तर्ज पर राष्ट्रहित में काम करेगा या तुष्टिकरण की राह पर?" 
Image result for आरएसएस इतिहासज्ञात हो, कांग्रेस का भी कांग्रेस सेवा दल बनाया था। जिसका गणवेश संघ के गणवेश, यानि खाकी निकर, सफ़ेद कमीज और हाथ में डंडा, के समान्तर था। लेकिन उसका उपयोग राष्ट्र सेवा की बजाए मात्र पार्टी सेवा तक ही सीमित रहने के कारण जनता में कांग्रेस सेवा दल प्रभावहीन रहा। 1962 भारत-चीन युद्ध के दौरान सड़क से लेकर सीमाओं तक संघ सक्रीय रहा, युद्ध के दौरान, यानि संकट की घडी में संघ की सेवा भावना से प्रसन्न होकर 1963 की गणतन्त्र दिवस परेड में संघ की बटेलियन को भी सम्मिलित किया गया था। जबकि कांग्रेस सेवा दल केवल अपने नेताओं की सेवा में व्यस्त रहा। कांग्रेस सेवा दल में भी आरएसएस की महिला शक्ति वाहिनी की भाँति महिलाओं को सम्मिलित किया गया था। जवाहर लाल नेहरू से लेकर राजीव गाँधी तक कांग्रेस सेवा दल धूमिल होते-होते कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी के बाद से लगभग कहाँ लुप्त हो गया, आज तक कोई अतापता नहीं। नेताओं की सेवा करना ही जिस सेवा दल का उद्देश्य हो, वह सेवा दल नहीं, मात्र एक दिखावा है।
Image result for कांग्रेस सेवा दल
देखिए अन्तर कांग्रेस सेवा दल और संघ में  
Image result for कांग्रेस सेवा दल
Image result for कांग्रेस सेवा दल संघ की भाँति कभी कांग्रेस सेवा दल को किसी विपत्ति के समय सक्रीय होते नहीं देखा गया, जबकि संघ किसी भी संकट की घडी में,- चाहे बाढ़ का प्रकोप हो या कोई अन्य प्राकृतिक विपदा- सरकारी मदद से पूर्व सहायता करने मोर्चे पर पहुँच जाती है। शायद यही कारण है कि हर छद्दम संघ की आलोचना करता रहता है। आलोचना करना अच्छी बात है, लेकिन उसका कोई तर्क होना चाहिए। जहाँ केवल सत्ता लोलुपता ही उद्देश्य हो, जनसेवा भावना कहाँ से आएगी? 
Related image
उद्देश्यों में जमीन-आसमान का अन्तर 
सेवादल का गठन संघ से दो साल पहले 1923 में हुआ था और संघ का गठन 1925 में। सेवादल के संस्थापक डा. नारायण सुब्बाराव हार्डिकर और संघ के संस्थापक डा. केशव बलिराम हेडगेवार दोनों अगर एक साथ पढ़ते थे तो इस तथ्य में भी कोई एतिहासिक गलती नहीं है। लेकिन सेवादल अगर कांग्रेस का फालोअर्स बन कर रह गया है और आरएसएस भाजपा का मास्टर्स तो इसमें गलती किन लोगों की है, इसे समझना क्या कठिन है। डा. हेडगेवार के लक्ष्य लंबे थे इसलिए उन्होंने खरगोश की चाल को चुना। डा. हार्डिकर ने सेवादल को एक फौजी अनुशासन में ढालने की कोशिश की तो डा. हेडगेवार ने संघ में इसे अमल में लाने में कामयाब हो गए।
Related image
कांग्रेस सेवा दल में भाग लेते
जवाहर लाल नेहरू 
Related imageआजादी की लड़ाई के दौरान ही 1931 में सेवादल का स्वतंत्र अस्तित्व खत्म कर इसे कांग्रेस का हिस्सा बना दिया गया था। उस समय के कांग्रेस नेताओं की सोच थी, यदि सेवादल को स्वतंत्र छोड़ दिया गया तो यह सभी बडे नेताओं को लील जाएगा। तब इसका नाम हिन्दुस्तानी सेवादल हुआ करता था। सेवादल का महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि जब 1932 में अंग्रेज सरकार ने कांग्रेस और सेवादल पर प्रतिबंध लगाया तो बाद में कांग्रेस से तो प्रतिबंध उठा लिया गया लेकिन सेवादल पर प्रतिबंध जारी रहा। आजादी के बाद सेवादल के पास कोई और लक्ष्य बाकी नहीं रहा लिहाजा उसे कांग्रेस में सबसे पीछे धकेल दिया गया। कांग्रेस के बड़े कार्यक्रमों में सेवादल के कार्यकर्ता के पास वर्दी पहनकर बस खड़ा होने के अलावा अब और काम नहीं है। कांग्रेस के किसी भी मामले में सेवादल की कहीं कोई निर्णायक भूमिका नहीं है। हालांकि आजादी के बाद कांग्रेस में शामिल होने वालों को सेवादल में प्रशिक्षण दिया जाता था, लेकिन बाद में यह व्यवस्था भी खत्म हो गई। 1969 के बाद तो कांग्रेस वैसे भी एक परिवार के प्रभाव वाली पार्टी में सिमटकर रह गई इसलिए कांग्रेस में अब बस नाम के लिए ही बाकी रह गया है।
Image result for आरएसएस का गंदा इतिहास
Image result for कांग्रेस सेवा दलदूसरी तरफ हिन्दू राष्ट के लक्ष्य को लेकर शुरू हुआ ,राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कछुआ चाल से चलता हुआ अपना विस्तार करता रहा। महात्मा गांधी की हत्या के बाद जब संघ पर प्रतिबंध लगा तो उसे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में अपने हितों की रक्षा के लिए एक राजनीतिक दल की जरूरत महसूस हुई। 
लिहाजा, 1952 में कांग्रेस से ही आए श्यामाप्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर संघ के कुछ लोगों ने जनसंघ की स्थापना की। 
1977 में इमरजेंसी के बाद जब देश के तमाम गैर कांग्रेसी राजनीतिक दल जनता पार्टी के रूप में एक हुए तो जनसंध का भी उसमें विलय हो गया। लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपनी जो कार्यपद्धति विकसित की, उसमें अपने तमाम अनुषांगिक संगठनों को स्वतंत्र रूप से अपने क्षेत्र मेंं काम करने के अवसर दिए। बस, हर संगठन की मजबूती के लिए संघ ने अपने पूर्णकालिक, निष्ठावान और जीवन समर्पित कार्यकर्ताओं को हर जगह संगठन महामंत्री के तौर पर स्थापित किया। लिहाजा, संघ से जुड़े तमाम संगठन एक तयशुदा कार्यशैली से आगे बढ़ते हुए मजबूत होते चले गए। किसी भी एक संगठन का किसी दूसरे संगठन में कोई हस्तक्षेप नहीं है, जो भी हस्तक्षेप है, वो बस संघ का है।
Image result for आरएसएस का गंदा इतिहास1980 में जब जनता पार्टी टूटी तो उसका जनसंघ के रूप में जो घड़ा था वो 6 अप्रैल, 1980 को भारतीय जनता पार्टी के रूप में एक नए दल के तौर पर सामने आ गया। यह एक ऐसा राजनीतिक दल था जिसके कार्यकर्ता और आधार सब कुछ पहले से ही तय और मजबूत था। जाहिर है ऐसा इसलिए था क्योंकि यह संघ का अनुषांगिक संगठन है। सिर्फ 38 साल में भाजपा पूरे बहुमत के साथ केन्द्र की सत्ता में आने वाली आजादी के बाद गठित हुई देश का पहली राजनीतिक पार्टी है। कांग्रेस में सेवादल उपेक्षा का शिकार हो गया और दूसरी तरफ आरएसएस ने अपने संस्कारों से अपने हर अनुषांगिक संगठन को मजबूत स्वरूप दिया। लिहाजा, आज भाजपा देश में काडर बैस सबसे बड़ा राजनीतिक दल माना जाता है। कांग्रेस में तो काडर का कभी निर्माण ही नहीं हो पाया। 
Image result for आरएसएस का गंदा इतिहास
दिल्ली में राममन्दिर हेतु संकल्प यात्रा 
एक तरफ संघ जहां निर्णायक भूमिका में है तो दूसरी तरफ सेवादल कांग्रेस में अनसुनी आवाज है। जिसका अब कोई महत्व नहीं है। यह हकीकत फिर भी अपनी जगह कायम है कि सेवादल और आरएसएस दो सहपाठियों के अपने सपनों के साथ खड़े किए गए दो अलग संगठन है। जिनमें एक आज देश का सबसे ताकतवर स्वयंसेवी संगठन माना जाता है। देश भर में आज संघ की पचपन हजार से भी ज्यादा शाखाएं लगती है, जहां उसके स्वयंसेवक रोज आपस में मिलते हैं। 
Related image
मोरवी में प्राकृतिक आपदा के दौरान
मृतकों को ढोते स्वयंसेवक 
Related image
गुजरात में आए भूकंप
में पीड़ितों की सेवा करता संघ
 
संघ के उद्देश्य आज भी अपनी गति से रफ्तार पा रहे हैं। राजनीति में संघ का सीधा कोई दखल नहीं है। भाजपा देश की राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार अपने निर्णय करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन संगठन का जहां तक सवाल है, उस पर नियंत्रण आज भी संघ का ही मजबूत है। संघ के स्वयंसेवकों ने खुद भी अनेक प्रकल्प खड़े किए हैं और संघ सेवा कार्यों में आज भी बढचढ़ कर हिस्सा लेता है। ताजा तौर पर देखना हो तो केरल में बाढ़ की जो आपदा आई है, उसमें संघ के स्वयंसेवक, संघ के राहत शिविर बिना किसी भेदभाव के पीढ़ितों की सेवा करते हुए नजर आ रहे हैं। संघ की कछुआ चाल और लक्ष्य के प्रति स्पष्ट सोचा का ही असर है कि आज देश के प्रधानमंत्री, राष्टपति, उपराष्टपति और लोकसभा अध्यक्ष जैसे तमाम बड़े पदों पर संघ के स्वयंसेवक मौजूद हैं। दूसरी और कांग्रेस में ही कोई यह कहने की स्थिति में नहीं है कि उसने सेवादल में कब और क्या काम किया है। क्योंकि सेवादल कांग्रेस के निर्देशों पर चलने वाला संगठन बन कर रह गया है। इसलिए अगर आज कांग्रेस में जब संगठन लगभग बर्बाद हो चुका है तो संघ का उदाहरण देकर ही बार-बार संगठन खड़ा करने की वकालत की जा रही है। यह बहुत मुश्किल है, संघ के पास जो निष्ठावान, अनुशासित और अपना जीवन संगठन के लिए समर्पित करने वाले कार्यकर्ता हैं, उन्हें कांग्रेस में अब कैसे खड़ा किया जा सकता है। असल में कांग्रेस का लक्ष्य सिर्फ सत्ता है जबकि संघ लक्ष्य हमेशा सेवा रहा है। ये जमीन आसमान का अंतर है जिसे पाटना कम से कम कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व के लिए तो संभव नहीं है। 
लगता है, इसी भाँति ममता के सत्तामुक्त होने के बाद जय हिन्द ब्रिगेड भी कांग्रेस सेवा दल की भाँति कहीं लुप्त हो जाएगा। दूसरे अर्थों में यही कहा जाए कि "गुड़ खाएंगे, लेकिन गुलगुलों से परहेज करेंगे।"   
बंगाल में भाजपा के बढ़ते जनाधार को लेकर ममता बनर्जी लगातार परेशान है। चुनाव प्रचार के दौरान, जब ममता बनर्जी अपने काफिले के साथ कही जा रहीं थीं तो उसी समय कुछ लोगों ने जय श्रीराम के नारे लगा दिए जिससे ममता भड़क गईं। ममता अपनी कार से उतरीं और डाटना फटकारना शुरू कर दिया। इसके बाद 10 लोगों के खिलाफ जमानती धाराओं में मुकदमा दर्ज कर दिया गया। सोशल मीडिया में इस घटना का वीडियो वायरल हो रहा है।

No comments: