देश का एकलौता सांसद जिसने 9 वर्षों से नहीं ली सैलरी, बोले-पैसे कमाने के लिए नहीं होती राजनीति

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
भारतीय राजनीति में ऐसी मिसाल कम ही देखने को मिलती हैं, जिनमें नेता जो कहें, उन पर खुद भी अमल करें। लेकिन एक नेता ने अपने कहे पर अमल करके राजनीति में नई मिसाल कायम की है। बीजेपी सांसद वरुण गांधी अमीर सांसदों द्वारा अपना वेतन छोड़ने की मांग करते रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि वे केवल दूसरे सांसदों को वेतन नहीं लेने की सलाह देते हैं बल्कि वे खुद भी वेतन नहीं ले रहे हैं। ZEE NEWS की रिपोर्ट के अनुसार, वरुण गांधी ने पिछले 9 साल से सांसद के रूप में मिलने वाले वेतन को गरीब और जरूरतमंदों में बांट रहे हैं। वेतन का एक पैसा भी वह अपने लिए इस्तेमाल नहीं करते हैं। वरुण गांधी सुल्तानपुर से सांसद हैं। वे अक्सर संसद सत्रों में जनहित के मुद्दों पर बहस नहीं होने और सांसदों के वेतन व भत्ते में होने वाले इजाफे पर चिंता जाहिर करते रहते हैं।
वरुण की गतिविधियों को देख सत्ता गलियारों में हमेशा से यह चर्चा रही है कि इन में अपने पिता संजय गाँधी के संस्कार बोलते हैं। क्योकि वरुण ही शायद ऐसे सांसद हैं, जो सांसदों के वेतन, वेतन वृद्धि एवं मिलने वाली पेंशन का विरोध करते रहे हैं। इतना जरूर है कि यदि भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने वरुण को थोड़ा भी आगे करने का प्रयत्न किया, संभव है मोदी-योगी-अमित को अपने प्रोग्राम किर्याविन्त करने में सहायक सिद्ध हों।
इतिहास पर दृष्टि डालने पर ऐसी ही घटना भारत के प्रथम महामहिम डॉ राजेन्द्र प्रसाद की मिलती है, जो अपने खर्चे से अधिक मिले शेष वेतन को प्रति माह राष्ट्रीय सुरक्षा फण्ड में देते थे। फिर चर्चित क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर की, जिन्होंने अपने 6 वर्षीय राज्य सभा सांसद के रूप में मिले वेतन को अपने कार्यकाल की समाप्ति पर वापस कर दिया यानि बिना वेतन के सांसद।   
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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर हुई है। भारत में हर नागरिक को आवाज उठानी चाहिए,...

उन्होंने इस साल के शुरू में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन से अपील की थी कि आर्थिक रूप से सम्पन्न सांसदों द्वारा 16वीं लोकसभा के बचे कार्यकाल में अपना वेतन छोड़ने के लिए आंदोलन शुरू करें। लोकसभा अध्यक्ष को लिखे पत्र में वरुण गांधी ने कहा था कि भारत में असमानता प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। भारत में एक प्रतिशत अमीर लोग देश की कुल संपदा के 60 प्रतिशत के मालिक हैं। भारत में 84 अरबपतियों के पास देश की 70 प्रतिशत संपदा है। यह खाई हमारे लोकतंत्र के लिए हानिकारक है।
उन्होंने पत्र में लिखा था, ‘स्पीकर महोदया से मेरा निवेदन है कि आर्थिक रूप से सम्पन्न सांसदों द्वारा 16वीं लोकसभा के बचे कार्यकाल में अपना वेतन छोड़ने के लिए आंदोलन शुरू करें। ऐसी स्वैच्छिक पहल से हम निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की संवेदनशीलता को लेकर देशभर में एक सकारात्मक संदेश जाएगा।’ वरुण गांधी ने इस बात पर खुद ही शुरू से अमल कर रहे हैं। वह पिछले 9 वर्षों से सांसद के तौर पर वेतन के रूप में मिलने वाले पैसे का अपने ऊपर इस्तेमाल नहीं करते हैं, बल्कि वेतन की पूरी रकम को गरीबों पर खर्च कर देते हैं।
इसमें कोई दो राय भी नहीं कि किसी भी सदन में निर्वाचित या चुनाव लड़ने वाला आर्थिक रूप से कमजोर नहीं होता। किसी न किसी व्यापार से आते हैं। लेकिन जब जनसेवा के नाम पर वेतन और मुफ्त सेवाओं पर खर्च होने वाला धन देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं। ऊपर से निर्वाचित होने पर मिलने वाली पेंशन एक बोझ बन रही हैं, जिस पर किसी जनसेवक ने मन्थन करने का साहस तक नहीं किया। शायद यही कारण है बजट का घाटे में होना। महंगाई पर कोई लगाम नहीं। आखिर तेल तो तिलों में से ही निकलेगा।  
अभी हाल ही में उन्होंने एक ऐसे ही जरूरतमंद रामजी गुप्ता को ढाई लाख रुपये की आर्थिक मदद की थी। रामजी गुप्ता को कैंसर से जूझ रहे अपने पिता के इलाज के लिए पैसे की जरूरत थी और उन्होंने इसके लिए वरुण गांधी से आर्थिक मदद की अपील की। वरुण गांधी ने रामजी गुप्ता की जरूरत को देखते हुए उन्होंने तत्काल ढाई लाख रुपये की मदद महैया कराई। इससे पहले वरुण गांधी ने सुल्तापुर के एक किसान को 5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता मुहैया कराई थी।
जानकारी के मुताबिक, बीजेपी सांसद 13 जिलों के जरूरतमंद किसानों को मदद पहुंचा चुके हैं। सुल्तानपुर में वह दो दर्जन गरीब लोगों का घर भी अपने पैसों से बनवा चुके हैं। इस मदद के पीछे वरुण गांधी तर्क देते हैं कि वह राजनीति में पैसा कमाने के लिए नहीं बल्कि जनता की सेवा के लिए आए हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद की जा सकती है।

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