जब राजा जयसिंह को लिखा था शिवाजी ने एक पत्र

मित्रो ! आज के दिन आमेर के राजा मिर्जा जयसिंह का जन्म 1611 में हुआ था । यह हिंदूद्रोही शासक मुगल बादशाहों की गुलामी में जीवन जीता रहा और जब शिवाजी दक्षिण में हिंदुत्व के लिए संघर्ष कर रहे थे, तो उस समय औरंगजेब ने इस हिंदूद्रोही राजा को मां भारती के शेर पुत्र शिवाजी को पकड़ने के लिए भेजा। बिना आगा पीछा सोचे यह हिंदूद्रोही शासक हमारे महान देशभक्त शिवाजी महाराज को पकड़ने के लिए एक सेना के साथ दक्षिण की ओर चल दिया । तब इस हिंदू द्रोही व देशद्रोही के लिए शिवाजी ने एक ऐतिहासिक पत्र लिखा था। आज हम उस पत्र को यहां पर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं ।
मूल पत्र तो फारसी में है । उसके महत्वपूर्ण अंश इस इस प्रकार हैं ---
" ऐ सरदारों के सरदार , राजाओं के राजा तथा भारतोउद्यान की क्यारियों के व्यवस्थापक . ऐ रामचंद्र के चैतन्य हृदयांश , तुझसे राजपूतों की ग्रीवा उन्नत है । ( पर दुर्भाग्य है भारत देश का कि )तुमसे बाबर वंश की राज्यलक्ष्मी अधिक प्रबल हो रही है ।
मैंने सुना है की तू मुझ पर आक्रमण करने आया है । हिन्दुओं के हृदय तथा आँखों के रक्त से तू लाल मुँहवाला ( यशस्वी ) होना चाहता है । परन्तु तू यह नहीं जानता कि यह तेरे मुँह पर कालिख लग रही है , क्योंकि इससे देश तथा धर्म को आपत्ति हो रही है ।
तू अपनी ओर से स्वयं दक्षिण विजय करने आता तो मैं तेरे घोड़े के साथ अपनी सेना लेकर चलता और एक सिरे से दूसरे सिरे तक सारी भूमि जीत कर तुझे सौंप देता । परन्तु तू औरंगजेब की ओर से आया है । यदि मैं तुझसे मिल जाऊं तो यह पुरुषत्व नहीं होगा । सिंह लोमड़ीपन नहीं करते । यदि मैं तलवार से काम लेता हूँ तो दोनों ओर हिन्दुओं को हानि पहुंचती है । ( कहने का अभिप्राय है कि मुगल बादशाह औरंगजेब हम हिंदुओं को आपस में लड़ना चाहता है और हमारी शक्ति को भंग कर देना चाहता है । अच्छा हो कि तू मेरे हाथों ना मरे और हमारी हिंदू शक्ति का विनाश ना हो , इसलिए या तो वापस लौट जा या मेरे साथ आकर हिंदू संगठन के लिए काम कर ) मुझे इसका खेद है कि मुसलमानों के खून पीने के अतिरिक्त किसी अन्य कार्य के निमित्त मेरी तलवार को म्यान से निकलना पड़े । ( अर्थात इस देश की संस्कृति के विनाश करने वाले मुगलों के अतिरिक्त मैं अपने किसी हिंदू भाई को मारना नहीं चाहता )
औरंगजेब न्याय तथा धर्म से वंचित प्राणी पापी . जो मनुष्य के रूप में राक्षस है , जब अफज़ल खान से कोई श्रेष्ठता प्रगट न हुई , न शैस्ताखान की कोई योग्यता देखी तो उसने तुझको हमारे युद्ध के निमित्त नियत किया । वह स्वयं तो हमारे आक्रमण को सहन करने की योग्यता नहीं रखता । वह चाहता है कि सिंह गण आपस में लड़कर घायल तथा शांत हो जाएँ जिससे कि गीदड़ जंगल के सिंह बन बैठें । यह गुप्त भेद तू कैसे नहीं समझता ? ( अर्थात तेरी मति क्यों मारी गई ? तू एक विदेशी आक्रांता शासक के कहने से अपने भाई से ही लड़ने के लिए चला आया तो तुझसे बड़ा मूर्ख और कौन होगा ? )
यदि मेरी तलवार में पानी है , यदि तेरे कूदने वाले घोड़े में दम है तो हिन्दू धर्म के शत्रु पर ( अर्थात मुगल बादशाहा औरंगजेब ) आक्रमण कर । इस्लाम की जड़ - मूल खोद डाल । तू उस नीच औरंगजेब की कृपा पर क्या अभिमान करता है ? यदि तू राजभक्ति की दुहाई देता है तो तू यह तो स्मरण कर कि उसने शाहजहाँ के साथ क्या बर्त्ताव किया ?
यह अवसर हम लोगों के आपस में लड़ने का नहीं है । हिन्दुओं पर इस समय कठिन समय आ गया है । हमारे लड़के - लड़कियां . देश - धन , देवालय और पवित्र देवपूजक इन सब पर संकट आया हुआ है । यदि कुछ दिन ऐसे ही चला तो हम लोगों का कोई चिन्ह भी पृथ्वी पर नहीं रहेगा । ( हमारे मूर्ख हिंदू यदि अपने इस महानायक के इन शब्दों पर ध्यान देते तो न पाकिस्तान बनता और न ही को आज इस्लामिक आतंकवाद जैसे भस्मासुर से जूझना पड़ता) बड़े आश्चर्य की बात है कि मुट्ठी भर मुसलमान हमारे इतने बड़े देश पर अपनी प्रभुत्ता जमाये हुए हैं । इस समय हम लोगों को हिन्दू धर्म और हिन्दुस्थान की रक्षा के निमित्त अत्यधिक प्रयत्न करने चाहिए । चारों तरफ से धावा करके तुम लोग युद्ध करो । उस सांप का सर कुचल दो । मैं इस ओर से दोनों बादशाहों का भेजा निकाल दूंगा । दक्षिण के पटल से इस्लाम का नाम तथा चिन्ह धो डालूँगा । हम लोग अपनी सेनाओं की तरंगों को दिल्ली में पहुंचा दें , फिर तो औरंग ( राजसिंहासन ) न रहेगा और न जेब ( शोभा ) |
हम लोग शुद्ध रक्त से भरी नदी बहा दें और उससे अपने पितरों की आत्माओं का तर्पण करें । ( शिवाजी के ये शब्द उन्हें दूसरा भगीरथ बना देते हैं , कितने उचित शब्द हैं , कितनी देशभक्ति है ? मन करता है नतमस्तक हो शांत खड़े हो जाएं ) ईश्वर की सहायता से हम लोग औरंगजेब का स्थान पृथ्वी के नीचे कब्र में बना दें । यह काम कठिन नहीं है । दो ह्रदय अगर एक हो जाएँ तो पहाड़ को भी तोड़ सकते हैं । इस विषय में मुझे तुझसे बहुत कुछ कहना है , तुझसे सुनना है जो बातें पत्र में लिखना युक्तिसंगत नहीं । मैं चाहता हूँ कि हम लोग मिल कर परस्पर बातचीत करें । यदि तू चाहे तो मैं तुझसे साक्षात् बातचीत करने आऊं ।
तलवार की शपथ , घोड़े की शपथ , देश की शपथ तथा धर्म की शपथ लेता हूँ कि इससे तुझ पर कदापि आपत्ति नहीं आएगी । अफ्ज़लखान के परिणाम से तू शंकित मत हो । वह झूठा था । बारह सौ बड़े लड़ाकू हब्शी सवार वह मेरे घात में लगाये हुए था । ( था तो तू यह मत सोच कि तेरा हाल ही में अफजल खान जैसा कर दूंगा यदि तुम मेरा भाई बनकर मेरे साथ खड़ा होगा तो तुझे मैं बहुत सम्मान दूंगा । ) यदि मैं पहले ही उसको ना मारता तो यह पत्र तुझको कौन लिखता ? तुझे स्वयं मुझसे कोई शत्रुता नहीं है । यदि मैं तेरा उत्तर मेरे अनुकूल पाऊँगा तो तेरे समक्ष रात्री को अकेले में आऊंगा । मैं तुझको वो गुप्त पत्र दिखाऊंगा जो मैंने शैस्ताखान की जेब से निकाल लिए थे ।
यदि मेरा यह पत्र तेरे मन के अनुकूल ना पड़े तो फिर मैं हूँ और मेरी काटने वाली तलवार तथा मेरी सेना । ( समझो शिवाजी कह रहे हैं कि:-- न्यायार्थ निज बंधु को भी दंड देना धर्म है ) कल सूर्यास्त के बाद मेरा खडग म्यान से बाहर निकल आएगा । बस तेरा भला हो ।
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मित्रो ! भारत का दुर्भाग्य रहा कि मिर्जा जयसिंह मुगलों की गुलामी करता रहा और वह ' जयचंद ' धर्म निभाते हुए अपने महान देशभक्त शिवाजी महाराज के साथ न् आकर शत्रु पक्ष में खड़ा होकर देश , धर्म और संस्कृति के साथ गद्दारी करने पर ही उतारू रहा । ऐसे गद्दारों के कारण ही हम आज की दुर्दशा को प्राप्त हुए हैं ।
राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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