दिल्ली भाजपा में फूट? भाजपा सांसद ने ही दिए संकेत

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
दक्षिणी दिल्ली से भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने दावा किया है कि अगर पार्टी के नेता एकजुट होकर काम करते तो हालिया लोकसभा चुनाव में पार्टी और अधिक वोट हासिल कर सकती थी। उनके बयान को पार्टी की दिल्ली इकाई के भीतर मतभेद होने का संकेत माना जा रहा है। बिना किसी का नाम लिए बिधूड़ी ने आरोप लगाया कि पार्टी के कुछ नेता चुनाव के दौरान उनके खिलाफ काम कर रहे थे लोकसभा चुनाव में भाजपा को दिल्ली की सभी सीटों पर जीत मिली थी 
दिल्ली भाजपा की ‘सोशल मीडिया मीट' में जुलाई 30 को बिधूड़ी ने कहा, ‘‘अगर आप रमेश बिधूड़ी पर प्रहार करेंगे तो पार्टी को भी नुकसान होगा और आपको कुछ नहीं मिलेगा पार्टी के सत्ता में आने पर ही आपको कुछ हासिल होगा अगर ऐसी चीजें नहीं होती तो हम लोकसभा चुनाव में 57 प्रतिशत वोट की बजाए 62 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल कर सकते थे''
चित्र देख कर बताइये
विधायक महोदय
 "कौन पियेगा इस पानी को?"
 

लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 303 सीटें जरूर अर्जित कर मोदी को पुनः सत्ता सौंपी है, लेकिन सच्चाई यह है कि यह मोदी-योगी-अमित की मेहनत से, स्थानीय स्तर के पदाधिकारियों की वजह से नहीं। प्रमाण के रूप में जीत का अंतर देखा जा सकता है। वैसे तो जीत तो एक वोट से भी होती है। व्हाट्सअप पर फोटो डालने से कुछ नहीं होता, नगर निगम और विधान सभा चुनाव नेता की लोकप्रियता पर जीते जाते हैं, अब मै आपको शाहदरा लेकर चलता हूँ, एक जगह विधायक है भाजपा का और दूसरी तरफ है आप का, कब नलों में गन्दा पानी आ जाये पता नहीं, अचानक देखने पर मोटर बंद कर पूरी टंकी खाली करनी पड़ती है। मैंने कई बार विधायक के फेसबुक पर गंदे पानी की फोटो डालने पर, मेरे परिचित के घर कार्यकर्ता शिकायत करने पहुँच गए कि "साहब की फेसबुक पर क्यों शिकायत करवाई?" जबकि बेशर्म और हरामखोर कार्यकर्ता साथ वाली गली में रहते हैं। सांसद क्षेत्र का दौरा नहीं कर सकता, लेकिन पार्षद और विधायक को क्षेत्र में दौरा कर जन समस्याओं को सुनने जा सकता है, नहीं जी साहब के ऑफिस में आकर लिखवाओ, तब विचार होगा। जिस विधायक के ऐसे विचार हों, न ही ऐसा विधायक और न ही उसके कार्यकर्ता वोट के हक़दार हैं। वोट मांगने घर-घर जाएंगे, पैर छुएंगे, आशीर्वाद दो। अच्छे नाटककार हैं। स्थानीय स्तर पर भाजपा कार्य मोदी-योगी-अमित के अनुरूप नहीं हो रहा। गिनती के विधायक हो, इनका कर्त्तव्य था कि ऐसा काम करते जो साथ के के क्षेत्र को भी प्रभावित कर, भाजपा का जनादेश बढ़ता। फिर वही बात, दिल्ली में सातों सीटें मोदी के नाम पर, किसी सांसद अथवा स्थानीय नेताओं के दम पर नहीं। जबकि जनसंघ के कार्यकाल में हर गली का कार्यकर्ता जन समस्या को अपने नेता तक पहुंचाता था, चाहे वह पराजित क्यों न हुआ हो, यही कारण था, जनसंघ हर नागरिक के दिल में समाये हुए थी। 
उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ नेताओं ने अपने प्रतिद्वंद्वियों से बदला लेने के लिए पार्टी के मंच का इस्तेमाल किया उन्होंने मौके पर मौजूद दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी का नाम लिए बिना कहा, ‘‘कभी-कभी हम पार्टी के मंच का इस्तेमाल बदला लेने के लिए करने लगते हैं सोशल मीडिया टीम को इसे देखना चाहिए। मनोज मुझसे सहमत नहीं होंगे, लेकिन इस पर फैसला लेना चाहिए''
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चलो देर आए, दुरुस्त आए। बिधूड़ी ने जिस बात को आज उजागर किया है, मै अपने इस ब्लॉग कई बार लिख चुका हूँ, जिसे पार्टी के चमचों--इस शब्द का जानबूझ कर प्रयोग कर रहा हूँ-- ने पार्टी विरोधी कहकर अपनी वाह-वाही को बनाये रखने के लिए उच्च पदाधिकारियों को भ्रमित कर किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। हकीकत यह है, जिसे देखो मोदी-योगी-अमित के करिश्मा पर ही अधीन रहते हैं। जिला चाँदनी चौक में ही कम से कम तीन मंडल ऐसे हैं, जो 1977 में जनता पार्टी बनने के बाद से आज तक संगठित नहीं हो पाए। कौन है कसूरवार, चमचे पदाधिकारियों के पास कुछ पकवान ले जाकर उनको खुश कर भ्रमित कर अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं। जिसे देख एवं विचारने से यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि आज की भारतीय जनता पार्टी वह पार्टी जो भारतीय जनसंघ के समय थी। बिधूड़ी ने जो दर्द बयां किया है, केन्द्रीय पदाधिकारियों को उसे गंभीरता से लेकर मंथन करना होगा, अन्यथा मोदी-योगी-अमित की मेहनत पर पानी फेर दिया जाएगा। क्यों मोदी-योगी-अमित की मेहनत व्यर्थ कर रहे हो। वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी शायद यह जानने का कष्ट किया होगा कि जनसंघ कालीन कमर्ठ कार्यकर्ता कहाँ है? क्यों उन्हें उपेक्षित किया हुआ है?  

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