अंग्रेजों की देन है अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक: केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान साहब ये तो मुगलों की देन है

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अब देशभक्तों को देश निकाला नहीं दिया जाता बल्कि उन्हें सम्मान दिया जाता है
पूर्व केंद्रीय मंत्री और वास्तव में प्रगतिशील व समाज सुधारक की छवि रखने वाले आरिफ मोहम्मद खान को केरल का राज्यपाल बनाकर केंद्र की मोदी सरकार ने बहुत सराहनीय कार्य किया है । अब से पहले आरिफ मोहम्मद खान जैसे देशभक्तों को देश निकाला और राष्ट्र विरोधी देशद्रोही लोगों को सत्ता की थाली देने की परंपरा रही थी , परंतु अब कुछ ऐसा लग रहा है कि जैसे राजनीति अपनी दिशा बदल रही है । अब देशभक्तों को सम्मान और देशद्रोहियों को जेल भेजने की एक राष्ट्र प्रेमी परंपरा स्वरूप लेती हुई दिखाई दे रही है । इसी रूप में श्री खान की नियुक्ति को देश के सभी बुद्धिजीवी और राष्ट्रवादी लोग देख रहे हैं ।
बहुचर्चित शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकार द्वारा अमान्य घोषित करने के विरोध में आरिफ मोहम्मद खान ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था । पिछले दिनों आरिफ मोहम्मद खान के बयान का ही हवाला देकर पीएम मोदी ने संसद में कहा था, कांग्रेस के नेता ने कहा था कि मुस्लिम अगर गढ्ढे में रहना चाहते हैं तो रहने दो क्या हम मुस्लिमों के समाज सुधारक हैं? बाद में इस बात की पुष्टि आरिफ मोहम्मद खान ने यह कहते हुए की थी कि जब उन्होंने तीन तलाक के मुद्दे पर राजीव गांधी सरकार से इस्तीफा दिया था तो पीवी नरसिम्हा राव ने उनसे यह बात कही थी।
आरिफ मोहम्मद खान वंदे मातरम बोलने के लिए समर्थक रहे हैं। उन्होंने वंदे मातरम गीत का उर्दू अनुवाद करके भी अपनी देशभक्ति का परिचय दिया था। मोदी सरकार ने वास्तव में ही ऐसे देश भक्तों को राज्यपाल का पद देकर राज्यपाल पद को ही सम्मानित किया है।

अंग्रेजों की देन है अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक: केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान
केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान ने अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक को अंग्रेजों की देन बताया है। राज्यपाल नियुक्त होने के बाद एशियानेट न्यूज़ को दिए गए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि उनके मुताबिक एक लोकतान्त्रिक देश और गणतांत्रिक समाज में केवल एक तरह के “अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक” हैं- जो क़ानून को माने, वह बहुसंख्यक है और जो कानून के खिलाफ है, वह अल्पसंख्यक है। इस इंटरव्यू की यह क्लिप सोशल मीडिया के कई हलकों में चर्चित हो रही है।

आरिफ़ मोहम्मद खान ने कहा कि जब तक अंग्रेज़ों की दी हुई महज़बी अल्पसंख्यक-मज़हबी बहुसंख्यक की शब्दावली जीवित रखेंगे, तब तक “मुस्लमानों में मोदी का डर” जैसी भ्रांतियाँ बनी रहेंगी। उन्होंने उपनिषदों को उद्धृत करते हुए कहा कि उपनिषदों में बताया गया है कि “द्वय”, पराएपन की भावना डर पैदा करती है। साथ ही कुरान में से मौलाना अली की एक आयत के ज़रिए बताया कि जिससे इंसान अनभिज्ञ होता है, उससे डर पैदा होता है। अपने राज्यपाल के कार्यकाल के बारे में उन्होंने कहा कि वे लोगों के साथ अपना विश्वास, कि अपने अंदर victimhood की प्रवृत्ति पैदा करना पाप है, गुनाह है, केरल के लोगों के साथ बाँटेंगे।
अंग्रेज़ों की नहीं मुगलों की देन है अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक यानि हिन्दू-मुसलमान 
आरिफ साहब एक बहुत सुलझे हुए राजनीतिज्ञ हैं, बड़ी बेबाकी से अपनी बात रखने वाले राजनेताओं में से हैं। लेकिन इनके इस कथन कि "अंग्रेजों की देन है अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक" से केवल मै ही नहीं, वास्तविक इतिहास का कोई भी जानकर सहमत नहीं होगा, क्योकि जिसे आज अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक कहा जा रहा है, मुग़ल युग में हिन्दू-मुसलमान कहा जाता था, जिस कारण मुगलों ने तलवार के के दम पर हिन्दुओं का कत्लेआम किया, जिन हिन्दू महिलाओं ने इस्लाम नहीं कबूला उनका बलात्कार किया जाता था, हरम में ले जाया जाता था। हिन्दू धर्म की रक्षा करने में सिख गुरुओं की जान लेने वाले मुग़ल यानि मुसलमान ही थे, कहने का अभिप्राय है कि ये जहर मुगलों के आने पर ही शुरू हुआ था और उनको बचाने के लिए अंग्रेज़ों को दोष देना गलत है, अंग्रेज़ों ने तो बस इसी नब्ज को पकड़ कर इतने वर्ष भारत में राज किया था।        

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