
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
हिन्दुओं को बदनाम करने और उनके इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने के लिए कुख्यात इतिहासकार और JNU की प्रोफेसर एमेरिटस रोमिला थापर को विश्विवद्यालय प्रशासन ने पद पर बने रहने के लिए अपना CV जमा करने को कहा है। उसके आधार पर प्रशासन यह तय करेगा कि प्रोफेसर एमेरिटस के तौर पर विश्वविद्यालय को उनकी सेवाएँ आगे चाहिए या नहीं। हिन्दू इतिहास में “आर्य आक्रमण सिद्धांत”, “हिन्दुओं ने बौद्धों को प्रताड़ित किया” जैसे झूठों को खुराक देने, अयोध्या में राम मंदिर के अस्तित्व को बेवजह झुठलाने की कोशिशों आदि के लिए जाना जाता है।
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पिताश्री के पीछे वास्कट पहने बैठे स्वतन्त्रता सैनानी प्रो नन्द किशोर निगम |


स्मरण हो, जितने भी वास्तविक स्वतन्त्रता सैनानी थे, इतने आत्म-सम्मानी थे, आज़ादी की लड़ाई के बदले कभी सरकार से अपने आप किसी पुरस्कार की न कोई कामना की और न ही चमचागिरी।
सदमें में बुद्धिजीवी
मीडिया खबरों के मुताबिक JNU प्रशासन की इस कार्रवाई के बाद से कई प्रोफेसर झटके में हैं। उनका कहना है कि प्रोफेसर एमेरिटस को पहले कभी भी CV जमा कर अपनी योग्यता साबित नहीं करनी पड़ी है। द टेलीग्राफ़ को दो प्रोफेसरों ने तो बताया कि एक बार जो इस पद पर काबिज़ हो गया, वह अमूमन जीवन-भर पद पर बना रहता है। खुद प्रोफेसर थापर 1993 से यानी 26 वर्षों से इस पद पर कायम हैं।
What else can one expect from the current administration? JNU wants to see Romila Thapar's CV https://t.co/F4LLhikG0J— S lrfan Habib (@irfhabib) September 1, 2019
इतिहास के ही एक दूसरे JNU वाले जानकार प्रोफेसर इरफ़ान हबीब ने ट्वीट किया कि इस प्रशासन से इसके अलावा क्या उम्मीद की जा सकती है।
इतिहास के नोबेल से मोदी पर हमले तक फैला है थापर का करिअर
JNU में 1970 से 1991 तक शिक्षिका रहने वालीं प्रोफेसर थापर को अमेरिकी लाइब्रेरी ऑफ़ कॉन्ग्रेस का प्रतिष्ठित क्लूग प्राइज़ मिल चुका है, यह प्राइज़ उन विषयों के लिए दिया जाता है, जिन विषयों पर नोबेल नहीं मिलता है। लेकिन उन्हें हाल-फ़िलहाल में मोदी के खिलाफ अपनी किताब The Public Intellectual in India में लिखने के लिए अधिक जाना जाता है। इसके अलावा उन्होंने नयनतारा सहगल, अमिताव घोष, मरहूम गिरीश कर्नाड और खूँखार नक्सलियों को “बंदूक वाले गाँधीवादी” और पाकिस्तानी सेना को हिंदुस्तानी सेना से बेहतर बताने वाली लेखिका अरुंधति रॉय के साथ मिलकर मोदी को हराने की अपील वाला पत्र लोकसभा चुनावों के ठीक पहले जारी किया था।
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