योगी सरकार ने वक्फ बोर्ड संपत्तियों की सीबीआई जांच की सिफारिश की

योगी सरकार ने वक्फ बोर्ड संपत्तियों की सीबीआई जांच की सिफारिश की
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
योगी सरकार ने शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड के संपत्तियों की खरीद-फरोख्त में अनियमितता की जाँच सीबीआई (CBI) से कराने की सिफारिश कर बहुत ही साहसिक काम किया है। जिसे करने में पूर्व की समस्त सरकारें पूर्णरूप से असफल रही, उसे उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने करने का बीड़ा उठाया है। प्रयागराज और लखनऊ में दर्ज मुकदमों को इसका आधार बनाया गया है। उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य गृह सचिव अवनीश कुमार अवस्थी ने अक्टूबर 12, 2019 रात को इसकी सिफारिश की। 
अवनीश कुमार अवस्थी ने बताया कि उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा अनियमित रूप से क्रय-विक्रय और स्थानांतरित की गई वक्फ संपत्तियों की जाँच और विवेचना सीबीआई से कराए जाने का फैसला किया गया है। इस संबंध में प्रदेश सरकार द्वारा कोतवाली प्रयागराज और थाना हजरतगंज लखनऊ में मुकदमा दर्ज है।
उन्होंने बताया कि इस संबंध में सचिव कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, कार्मिक लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय भारत सरकार और निदेशक सीबीआई को पत्र भेज दिया गया है। पत्र में  प्रयागराज के कोतवाली में 26 अगस्त 2016 को दर्ज शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड और 27 मार्च 2017 को हजरतगंज कोतवाली में दर्ज मुकदमों की जाँच सीबीआई से कराए जाने का अनुरोध किया गया है। बता दें कि 27 मार्च को दर्ज शिकायत में शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी और वक्फ बोर्ड के अधिकारियों पर 27 लाख रुपए लेकर कानपुर में वक्फ की बेशकीमती संपत्ति का पंजीकरण निरस्त करने और पत्रावली से महत्वपूर्ण कागजात गायब करने का आरोप है।
इस मामले में पहली एफआईआर प्रयागराज के कोतवाली थाने में दर्ज की गई थी। इस एफआईआर में इमामबाड़ा गुलाम हैदर त्रिपोलिया (पुरानी जीटी रोड) पर अवैध रूप से दुकानों का निर्माण शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी के द्वारा शुरू कराया गया था। इसे क्षेत्रीय अवर अभियंता द्वारा निरीक्षण के बाद पुराने भवन को तोड़कर किए जा रहे अवैध निर्माण को बंद करा दिया था। बाद में फिर से निर्माण कार्य शुरू करा दिया गया। बता दें कि यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा गलत तरीके से तमाम जमीनों की खरीद और ट्रांसफर कराने की शिकायतें मिल रही थीं, जिसके बाद सीबीआई जाँच कराने की सिफारिश की गई है।
समस्त वक़्फ़ बोर्डों की भी जाँच हो 
यदि उत्तर प्रदेश के बाहर भी वक़्फ़ सम्पत्तियों की गंभीरता से जाँच करवाई जाने पर बहुत अनिमिताएं पायी जाएँगी। चर्चा है कि बहुत बड़े घोटाले सामने आएंगे, जिनसे आम नागरिक ही नहीं, मुस्लिम समाज भी बेखबर है। 
बात 1993/94 की है, दिल्ली के मुसलमानों में उन घटनाओं की बड़ी चर्चा थी, लेकिन सत्ता में तुष्टिकरण पुजारियों की वजह से आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। जब तुष्टिकरण के चलते इमाम के विरुद्ध कोर्ट नोटिस तामील नहीं हुए, तो उन घटनाओं पर पर्दा पड़ना ही था। इन बातों की मेरे मुस्लिम पत्रकार मित्र ने भी पुष्टि की। जबकि पुलिस ने उन घटनाओं को नकार दिया। खैर, इस चर्चा के दौरान मेरे उस मुस्लिम पत्रकार मित्र एक और जानकारी दी कि सिविल लाइन्स पर कब्रिस्तान की जमीन पर फ्लैट्स बन रहे हैं, जो जगह बताई वहां जाकर देखने पर बात सत्यापित भी हो गयी। 
इसकी विस्तार से जानकारी लेने दरिया गंज स्थित वक़्फ़ बोर्ड ऑफिस गया। लेकिन वहां जाने पर मालूम हुआ कि वक़्फ़ बोर्ड को आज तक यही नहीं मालूम की दिल्ली में उसकी कितनी जमीन है और कितने कब्रिस्तान हैं? उस सम्माननीय पदाधिकारी से कोई कार्यवाही न किये जाने का कारण पूछने पर जामा मस्जिद और निजामुद्दीन इमामों के विरुद्ध बहुत ही चौकाने वाली बातों का खुलासा किया। संक्षेप में केवल इतना ही कहूंगा कि "आज हम जो आपको जीवित दिख रहे हैं, केवल दिल्ली पुलिस की मेहरबानी से", कोई सरकारी मदद नहीं मिली। 
बातें प्रकाशित न करने के वायदे पर, एक से बढ़कर एक घोटालों पर रौशनी डालते बोले कि इन स्थानों में होती आमदनी और अधिक्रमण से हुई कमाई का हिसाब वक़्फ़ बोर्ड ने अपने निजी प्रयोग के लिए नहीं बल्कि बोर्ड के लिए माँगा था। यदि वही पैसा बोर्ड के पास आये, बोर्ड को किसी सरकारी मदद की जरुरत नहीं। दिल्ली में जितने भी दरगाह, मस्जिदें और कब्रिस्तान हैं उनको दर्शनीय बनाया जा सकता था। बोर्ड कर्मचारियों और इमामों को बिना किसी सरकारी मदद के अच्छा वेतन मिलता। लेकिन इन लोगों के सिरों पर नेताओं का हाथ होने के कारण बोर्ड कोई कार्यवाही नहीं कर सकता। सरकार बस मन्दिरों की कमाई पर दाँत रखना जानती है। "निगम साहब अपने परिवार को सम्भालो, अगर आपके संपादक ने रपट छाप भी दी, दोनों ही मुसीबत में पड़ जाओगे।"  
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उन पुरानी वार्तालाप को स्मरण करते यही कहा जा सकता है कि वास्तव में उत्तर प्रदेश की तर्ज पर दिल्ली समेत अन्य राज्यों के वक़्फ़ बोर्डों की भी जाँच होनी चाहिए। संभव है, अनुच्छेद 370 समाप्त करने पर शोर मचाने वाले इस पर भी शोर मचा सकते हैं। यह भी संभव है की वक़्फ़ कर्मचारी और अधिकारी गुप्त रूप से सरकार की मदद कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश में तो बिल्ली के गले में घंटी बंध गयी, अन्य राज्यों में भी बंधती है या नहीं, यह तो सरकार या फिर नेता ही बता सकते हैं।  

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