कमलेश तिवारी हत्याकांड: फरार हत्यारे मोइनुद्दीन और अशफ़ाक़ गुजरात-राजस्थान बॉर्डर से गिरफ़्तार

कमलेश तिवारी के दोनों हत्यारों को गुजरात ATS ने किया गिरफ्तार
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
हर हिन्दू को एक साथ हो कर इस देश की सरकार से, इस देश के मुसलमानों से, इस देश के बुद्धिजीवियों से एक ही सवाल पूछना चाहिए कि कमलेश तिवारी की हत्या क्यों हो जाती है? आखिर इन मौलवियों को ऐसे फतवा देने पर जेल में क्यों नहीं डाला जाता? ये तो आग लगाने वाले लोग हैं जिनके हाथों में मजहब को राह दिखाने की बागडोर दे दी गई है। कहा जाता है कि फतवा लाने वाले लोग पढ़े-लिखे और समझदार होते हैं।
अब सवाल यह है कि इन्होंने क्या पढ़ा, क्या लिखा और समझदारी किस चीज की है? क्योंकि पढ़ने-लिखने वाले समझदार लोग किसी की गर्दन उतार लेने की बातें तो नहीं करते। जब मजहब शांतिप्रिय है, तो इसके मानने वाले इस तरह के कैसे हो गए हैं जो या तो कमलेश तिवारी जैसों का गला रेतने के लिए छुरा तेज कर रहे हैं, या हत्या के बाद नाच रहे हैं?
हत्यारे गिरफ्तार 
अभी-अभी आ रही जानकारी के अनुसार कमलेश तिवारी हत्याकांड के दोनों आरोपित मोईनुद्दीन और अशफाक पुलिस के हत्थे चढ़ गए हैं। दोनों को गुजरात पुलिस के एटीएस ने गुजरात-राजस्थान बॉर्डर पर गिरफ्तार कर लिया और लखनऊ पुलिस ने दोनों को सीजेएम की अदालत में पेश किया। उन दोनों और बाकी आरोपितों फैजान, राशिद पठान और मौलाना मोहसिन शेख सलीम की न्यायिक रिमांड अदालत ने पुलिस को अगले 5 दिन के लिए सौंप दी है।
एक प्रेस नोट में मीडिया को यह जानकारी देते हुए बताया गया कि मोईनुद्दीन और अशफाक दोनों ही सूरत के रहने वाले थे और अपने साथ लाया हुआ पैसा खत्म हो जाने के बाद परिवार और दोस्तों से आर्थिक सहायता लेने की कोशिश कर रहे थे। गुजरात एटीएस के फिजिकल और टेक्निकल सर्विलांस के ज़रिए इन दोनों के रिश्तेदारों और करीबियों पर कड़ी निगरानी रखने से ही गिरफ़्तारी सम्भव हो पाई। एटीएस के अनुसार दोनों ही आरोपित पाकिस्तान भागने की फ़िराक में थे। दोनों से हुई प्राथमिक पूछताछ में एक बार फिर कमलेश तिवारी के विवादित बयान के ही हत्या के पीछे होने के शक की एक बार और पुष्टि हो गई है। दोनों को शामलाजी के पास से हिरासत में लिया गया है।

देखें गिरफ़्तारी का वीडियो:


आरोपितों की गिरफ्तारी से पहले एसआईटी ने सोमवार(अक्टूबर 21) को दोनों की तलाश में कई होटलों, लॉज और मदरसों में छापेमारी की थी, लेकिन उन्हें नहीं पकड़ सकी। हालाँकि, सभी आने-जाने वाले मार्गो पर अलर्ट जारी कर दिया गया था। दोनों हत्यारों पर अलग-अलग 2.5 लाख रुपए का इनाम घोषित करने के अलावा पुलिस ने दोनों के फोटोग्राफ्स भी जारी कर दिए थे। बता दें कि कमलेश तिवारी की हत्या 18 अक्टूबर को लखनऊ में की गई थी।
कमलेश तिवारी हत्याकांड
कमलेश की हत्या के बाद वामपंथी हिन्दू को ही गुनहगार कह रहे हैं!
ट्विटर और फेसबुक पर आज-कल एक नई बात सामने आ रही है: हिन्दू घृणा फैला रहे हैं, मुसलमानों के खिलाफ संगठित होने के लिए आवाज़ उठा रहे हैं, ब्ला-ब्ला-ब्ला… सारे हैंडल या तो वामपंथियों के हैं या उनके नाम एक खास मजहब से ताल्लुक रखते हैं। अब मजहब का नाम लेने से भी बचता हूँ क्योंकि मिठाई के डब्बे में चाकू ले कर कौन दरवाजे पर आ जाए, और हाथ-पैर पकड़ कर रेत दे, कोई नहीं जानता।
कमलेश तिवारी की हत्या हुई, गर्दन हलाल किया गया, कुछ मीडिया रिपोर्ट की बात मानें तो तेरह बार गर्दन पर चाकू से हमला हुआ, एक बार गर्दन में चाकू मार कर रीढ़ की तरफ खींचते हुए शरीर का फाड़ दिया गया। गर्दन पर कैसे निशान हैं, वो तो आप सब ने देखे ही होंगे। छाती पर भी तस्वीरों में पाँच-छः बार चाकू से गोदने के चिह्न दिख ही रहे हैं।
नृशंस हत्याएँ होती रही हैं, पूरी दुनिया में होती हैं, और होती रहेंगी, आपसी दुश्मनी में लोग कई बार क्रूरता की हदें पार कर देते हैं। लेकिन ये दुश्मनी आपसी नहीं थी। ये दुश्मनी तो एक हिंसक विचारधारा और मजहबी उन्माद से सनी हुई उस सोच से उत्पन्न हुई, जहाँ कोई फतवा जारी कर देता है, और लाख लोग किसी की हत्या करने के लिए, बेखौफ तैयार हो जाते हैं। किसी ने ये भी नहीं देखा कि कमलेश तिवारी ने क्या कहा था, किस संदर्भ में कहा था, जो बोला जा रहा था, वो कब और कैसे कहा था। लेकिन किसी दाढ़ी वाले ने, टोपी लगा कर, लाउडस्पीकर पर चिल्ला कर कह दिया कि फलाने का अपमान हुआ है, गर्दन काटो इसकी। गर्दन काट दी गई।
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हिन्दुओं से डरने का भी हक़ छीन रहे हैं 
ऐसी हत्याएँ समाज और देश की चेतना को झकझोड़ देते हैं। एक आम आदमी इस देश की न्याय व्यवस्था की प्रक्रिया से गुजरते हुए, उसका सम्मान करते हुए, जेल जाता है, शारीरिक और मानसिक यातनाएँ झेलता है, जबकि उसका अपराध बस ऐसा ही है कि लाखों लोगों द्वारा उसी तरह की बातें हर रोज सोशल मीडिया पर होता हैं, लेकिन उन पर कोई कानून कुछ भी काम नहीं करता। वो आदमी बाहर आता है, एक खास मजहब के लोग, जिसका नाम लेना भी आज-कल गुनाह हो गया है, ताक में रहते हैं कि कब दबोचें और मार दें। फिर एक दिन उसे मार देते हैं।
इससे उस धर्म के लोगों में डर फैलता है जो स्वतः हिंसक नहीं रहा। हिन्दू आज किस कदर खौफ में जी रहे हैं, वो सोशल मीडिया पर दिख रहा है। लोग इसलिए डर रहे हैं कि कोई उनके धर्म के देवी-देवताओं पर अश्लील बातें करे, वो तो बच जाएगा लेकिन आप ने अगर दूसरे मजहब वाले को उसी भाषा में जवाब दिया तो आपको मिठाई के डब्बे में चाकू और पिस्तौल के साथ कोई अशफ़ाक़ या मोइनुद्दीन हलाल कर देगा।
अगर वो डर रहा है तो अब वामपंथी और एक खास मजहब के लोग हिन्दुओं से डरने का अधिकार भी छीन लेना चाहते हैं। मतलब, हिन्दू डर भी नहीं सकता। उसके सामने, सिर्फ और सिर्फ, मजहबी कारणों से किसी की गला रेत कर, हलाल स्टाइल में हत्या की जाती है, क़ातिल जान-बूझ कर गोली मारने के बाद संदेश देने के लिए समय ले कर हलाल करता है, और हिन्दुओं से कहा जा रहा है तुम्हारा डर गलत है, हम तो शांतिप्रिय लोग हैं, हमारे फलाने तो प्रेम की बातें करते हैं, इसलिए तुम भी प्रेम की बात करो।

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