जनसेवा के नाम पर लूट मचाते नेता

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
आज हर कांग्रेस विरोधी कांग्रेस का विरोध करता नज़र आता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने कोई अच्छा काम नहीं किया। 
स्मरण हो, तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी ने राजे-रजवाड़ों को प्रिवी पर्स समाप्त किया था, ताकि देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हो। परन्तु समय परिवर्तन ने राजनीती को एक पेशा बना दिया है। समाजसेवक के नाम पर पार्षद से लेकर लोक/राज्य सभा तक सभी जनता के धन को लूट रहे हैं और जनता मात्र एक मूकदर्शक बनी इनको बहुत बड़ा नेता और समाज सुधारक मान अपना कामकाज छोड़ जय-जयकार करने निकल पड़ते हैं।  
चुनावों में जनता को नैतिकता और राजा हरिश्चन्द्र की ईमानदारी का लॉलीपॉप देने वाले नेता स्वयं किस तरह कानून को ताक पर रख जनता को लूट रहे हैं, जिसे हर जनता समझ नहीं पाती और इन्हे अपना सच्चा समाज सेवक समझने की भूल कर रहे हैं। 
लगभग तीन दशक पूर्व तक कोई निर्वाचित जनसेवक फ्री में इतनी सुविधाएं और पेंशन नहीं लेता था, लेकिन आज जनसेवा के नाम पर खुली लूट मची हुई है। आज वास्तव में जनसेवा के नाम सफेदपोशी लुटेरे राज कर रहे हैं। कोई राजनीती के नाम पर, कोई RWA के नाम, तो कोई एनजीओ के नाम पर। जबकि किसी राजनीतिक संरक्षण के कोई एनजीओ नहीं चलता, पब्लिक का क्या है, एक रूपए खर्च कर दस रूपए खर्चे में डालकर, तुम भी खाओ और हमें भी खिलाओ, पब्लिक को मरने दो। 
दो दशक पूर्व तक चीनी, गेहूँ, चावल, दूध अथवा घी पर 25 पैसे बढ़ने पर विपक्ष धरने और प्रदर्शन करता था, लेकिन आज दो रूपए बढ़ने पर सब अपने बिलों में छुपे रहते हैं। क्या इसी का नाम जनसेवा है?
सरकारी आवास कब्जाए 50 पूर्व सांसदों को दिल्ली पुलिस की मदद से बाहर करने की प्रक्रिया शुरू 
केंद्र सरकार ने उन सभी पूर्व सांसदों को सरकारी आवासों से निकाल बाहर करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जो नियमों को ताक पर रख कर डेरा जमाए हुए थे। ये सभी पूर्व सांसद सरकार द्वारा दिए गए समय की अवधि होने के बावजूद सरकारी आवासों में टिके हुए थे। अब सरकार ने दिल्ली पुलिस की मदद से उन्हें निकाल बाहर करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इन पूर्व सांसदों ने आवास खाली न करने के पीछे कई बहाने बनाए थे।
कुछ पूर्व सांसदों ने कहा था कि उनके बच्चे दिल्ली में पढ़ रहे हैं, इसीलिए वे सरकारी आवास खाली नहीं कर सकते। कुछ सांसदों ने अपने किसी परिवारजन के स्थानीय अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती होने का बहाना बनाया था। कुछ अन्य पूर्व सांसदों ने तो अजोबोग़रीब तर्क देते हुए कहा था कि वे दिल्ली में कहीं और आवास नहीं ढूँढ पा रहे हैं, इसीलिए वे सरकार आवास खाली नहीं कर सकते। शहरी मामलों के मंत्रालय ने अंत में दिल्ली पुलिस की मदद ली है और कुछ पूर्व सांसदों द्वारा कब्जाए गए सरकारी आवास खाली करा भी लिया गया है।
अब पुलिस की मदद से सरकारी बंगलों पर कब्जा करे बैठे पूर्व सांसदों को निकाला जाएगा बाहर#Delhi #MemberOfParliament https://t.co/DMCLVzhWqR
— Intl. Business Times (Hindi) (@IBTimesHindi) October 7, 2019
अक्टूबर 4, 2019 तक की बात करें तो कुल 50 पूर्व सांसद ऐसे थे, जिन्होंने अपने सरकारी बंगले खाली नहीं किए थे। इन लोगों को कई बार लीगल नोटिस दिया जा चुका था। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के सूत्रों के अनुसार, इस लिस्ट में जन अधिकार पार्टी के संस्थापक पप्पू यादव, उनकी पत्नी और कॉन्ग्रेस नेता रंजीता रंजन, दीपेंद्र सिंह हुड्डा, मेघालय के मुख्यमंत्री कोर्नाड संगमा और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ का नाम शामिल है।
अभी इस बात पर स्थिति साफ़ नहीं है कि पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और पूर्व भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी अपने सरकारी आवासों में बने रह सकते हैं या नहीं। 91 वर्षीय आडवाणी और 85 वर्षीय जोशी के सुरक्षा की संवेदनशीलता को देखते हुए सरकार इस सम्बन्ध में निर्णय लेगी। अधिकारियों ने कहा है कि पूर्व सांसद जिस तरह से सरकारी आवासों में डेरा जमा कर बैठे हैं, उससे नए सांसदों को आवास उपलब्ध कराने में काफ़ी दिक्कतें आ रही हैं।
20 अगस्त को ख़बर आई थी कि जो भी पूर्व सांसद सरकारी आवास खाली करने में आनाकानी कर रहे हैं, उनके घर में बिजली और पानी की सप्लाई काट दी जाएगी। ऐसा करने के लिए अधिकारियों को निर्देश दे दिया गया था। उस समय 200 ऐसे पूर्व सांसद थे जो सरकारी आवासों में जमे हुए थे। नियमानुसार, दोबारा चुन कर न आए सांसदों को लोकसभा भंग होने के एक महीने के भीतर अपना सरकारी आवास खाली करना होता है। राष्ट्रपति कोविंद ने 25 मई को ही पिछली लोकसभा भंग कर दी थी। इस हिसाब से देखें तो अब तक लगभग साढ़े 4 महीने हो चुके हैं।
पप्पू यादव ने सरकारी बंगले को खाली करने से पहले उखाड़े खिड़की, दरवाजे और टाइलें भी, देखें VIDEO
पप्पू यादव ने सरकारी बंगले को खाली करने से पहले उखाड़े खिड़की, दरवाजे और टाइलें भी 
लुटियन दिल्ली स्थित बलवंत राय मेहता लेन के 11 ए नंबर बंगले का नजारा युद्ध क्षेत्र की किसी इमारत में मची तबाही जैसा है. कमरों से उखाड़े गये खिड़की दरवाजे और दीवारों से निकाली गयी टाइलें, बिखरा पड़ा फर्नीचर, खंडहर में तब्दील हुये बरामदे, इस बंगले की ताजा तस्वीर का हिस्सा हैं. यह बंगला बिहार से पूर्व सांसद पप्पू यादव के नाम आवंटित है और बंगले में तबाही के मंजर की वजह, इसे खाली करने से पहले इसमें किये गये अतिरिक्त निर्माण कार्य को हटाना बताया गया है. आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा पूर्व सांसदों से बलपूर्वक सरकारी बंगला खाली कराने की कार्रवाई पप्पू यादव को आवंटित बंगले में शुरु होती, इससे पहले ही उन्होंने बंगले में किये गये सैकड़ों लोगों के रुकने के इंतजामों का नामोनिशान मिटाने के लिये अस्थायी निर्माण को ढहा दिया है.
आवास पर मौजूद पप्पू यादव के निजी सचिव अजय कुमार ने दावा किया कि बंगले में लगभग 400 लोगों के रुकने का इंतजाम था, उन्होंने बताया, ‘‘हमारे सांसद जी ने उन मरीजों के लिये आवास में रुकने ठहरने के इंतजाम किया था जो मधेपुरा सहित बिहार के अन्य इलाकों से इलाज कराने के लिये दिल्ली आते थे. इसीलिये बंगले के बाहर सुभाष चंद्र बोस सेवाश्रम का बोर्ड पर भी लगा है जिस पर लिखा है, आपका घर, सबका घर.'
कुमार ने हालांकि निर्माण कार्य को ढहाने और खिड़की दरवाजे उखाड़ कर ले जाने की तोहमत केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) के सिर पर मढ़ दी लेकिन सीपीडब्ल्यूडी ने इस आरोप को सिरे से खारिज करते हुये स्पष्ट किया कि पूर्व सांसद ने अभी बंगले का कब्जा हस्तांतरित नहीं किया है. कुमार ने बताया, ‘‘मंगलवार को सीपीडब्ल्यूडी के अधिकारियों की मौजूदगी में निर्माण कार्य को हटाया गया था और इससे निकले खिड़की दरवाजे भी सीपीडब्ल्यूडी का दल ले गया.''
सीपीडब्ल्यूडी के एक अधिकारी ने पप्पू यादव को आवंटित बंगले में ऐसी किसी कार्रवाई से इंकार करते हुये बताया कि इस तरह की कार्रवाई पुलिस की मौजूदगी में बलपूर्वक बंगला खाली कराते समय होती है जबकि बलपूर्वक बंगला खाली कराने वालों की सूची में पप्पू यादव का नाम शामिल नहीं है.
उल्लेखनीय है कि लुटियन दिल्ली स्थित बंगलों की देखरेख और रखरखाव की जिम्मेदारी केन्द्रीय भवन निर्माण एजेंसी सीपीडब्ल्यूडी की है. मंत्रालय का संपदा निदेशालय इन बंगलों के आवंटन के बाद आवंटी को कब्जा दिलाने और आवंटन रद्द होने पर कब्जा वापस लेने की जिम्मेदारी निभाता है. हाल ही में लोकसभा चुनाव के बाद संपदा निदेशालय ने 230 पूर्व सांसदों को बंगले खाली करने के नोटिस जारी किये थे. अक्टूबर के पहले सप्ताह तक बंगले खाली नहीं करने वाले लगभग 50 सांसदों को कारण बताओ नोटिस जारी कर तीन दिन में जवाब तलब किया गया था. 
इस सूची में पप्पू यादव और उनकी पूर्व सांसद पत्नी रंजीत रंजन भी शामिल थी. सुपौल से पूर्व सांसद रंजीत रंजन को बलवंत राय मंहता लेन में ही सात नंबर बंगला आवंटित है. गत सोमवार को निदेशालय ने नोटिस का जवाब नहीं देने वाले 40 पूर्व सांसदों के बंगले बलपूर्वक खाली कराने की कार्रवाई शुरु कर दी है. निदेशालय के एक अधिकारी ने बताया कि पप्पू यादव और उनकी पत्नी ने एक सप्ताह में आवास खाली करने की सूचना दी थी, इसलिये बलपूर्वक आवास खाली कराने वालों की सूची में उनका नाम नहीं है.
सीपीडब्ल्यूडी के लुटियन दिल्ली स्थित कार्यालय ने पप्पू यादव के आवास में लोगों के रुकने ठहरने के अतिरिक्त इंतजाम किये जाने की जानकारी होने की बात को भी स्वीकार किया है. एक अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया, ‘‘नियमों के तहत विभाग ने इससे जुड़ी सभी जानकारियां लोकसभा सचिवालय को दे दी थी। अतिरिक्त निर्माण कार्य के खिलाफ कार्रवाई करने की पहल मंत्रालय के स्तर पर की जाती है.'अधिकारी ने कहा कि बंगले में की गयी तोड़फोड़ से सीपीडब्ल्यूडी का कोई संबंध नहीं है लेकिन बंगले के कब्जे के हस्तातंरण के समय इस पर संज्ञान लेकर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी. 
कुमार ने बताया कि बिहार में बाढ़ राहत कार्यों में लगे पप्पू यादव शुक्रवार तक दिल्ली पंहुच रहे हैं. इसके बाद दोनों बंगलों का कब्जा सीपीडब्ल्यूडी को सौंपा जाएगा. सरकारी आवास में व्यापक पैमाने पर किये गये निर्माण कार्य और तोड़फोड़ के मामले में प्रतिक्रिया के लिये पप्पू यादव और रंजीत रंजन उपलब्ध नहीं थे.
अखिलेश और तेजस्वी यादव भी कर चुके हैं ऐसी हरकत 
इसके पहले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी ऐसी ही हरकत कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव हारने के बाद पहले तो उन्होंने ये-वो बहाने कर के बंगला छोड़ा ही नहीं, और जब छोड़ा, तो उसकी टोंटियाँ तक साथ ले गए। वहीं पप्पू यादव के ही गृह राज्य बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का बंगला लंबी जद्दोजहद के बाद जब यादव का पदभार संभालने वाले सुशील मोदी को मिला तो पता चला कि तेजस्वी यादव ने बंगले में तमाम निर्माण कार्य करा रखा था। मोदी ने पत्रकारों को आलीशान बंगले का भ्रमण कराया, और उसके सौन्दर्यीकरण में तेजस्वी यादव के खर्च को करोड़ों के सरकारी धन का दुरुपयोग बताया था। 
पुलिस की मदद से खाली कराया गया पूर्व सांसद हरी मांझी और पप्पू यादव का बंगला
अरुण जेटली के परिवार को नहीं चाहिए पेंशन, पत्नी ने जरूरतमंद कर्मचारियों के लिए की दान
अरुण जेटली के परिवार को नहीं चाहिए पेंशन, पत्नी ने जरूरतमंद कर्मचारियों के लिए की दान
पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के परिवार ने मौत के बाद मिलने वाली उनकी पेंशन दान कर दी है। दिवंगत नेता की पत्नी संगीता जेटली ने इस बारे में राज्यसभा सभापति और उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू को चिट्ठी लिखी है।संगीता जेटली ने अपने पति की पेंशन उन कर्मचारियों को दान करने को कहा है जिनकी सैलरी कम है। जेटली परिवार के फैसले के बाद अब उनकी पेंशन राज्यसभा के कम सैलरी वाले कर्मचारियों को दी जा सकती है। बता दें कि पेंशन के रूप में परिवार को सालाना करीब 3 लाख रुपये मिलते
अरुण जेटली के परिवार में पत्नी संगीता जेटली के अलावा बेटी सोनाली और बेटा रोहन हैं। ये दोनों ही अपने पिता की तरह वकील हैं। वकालत में ये जेटली परिवार की तीसरी पीढ़ी है। अरुण जेटली वकालत और राजनेता के साथ-साथ दिल्ली व जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) के अध्यक्ष भी रहे
पेंशन जरूरतमंद लोगों को देने की बात ने जनता में उपज रहे रोष को बल दे दिया है। काफी समय से जनता सरकार से प्रश्न कर रही है कि "आखिर किस आधार पर अपने आपको जनसेवक कहलवाने पेंशन और मुफ्त में सुविधाओं क्यों लेते हैं? पार्षद से लेकर सांसद तक सबको पेंशन भी चाहिए, क्यों? जनता इनसे पूछे "आप लोग कर्मचारी हो या जनसेवक?" 
यदि पेंशन के नाम पर इन जनसेवकों द्वारा मचाई जा रही लूट पर अंकुश लगता है, देश का बजट लाभ में जाएगा ही नहीं, महंगाई एवं दूसरे संसाधन भी प्रभावित होंगे, जिसका लाभ जनता को ही मिलेगा।  
अरुण जेटली का निधन?
बता दें पूर्व वित्त मंत्री और बीजेपी के वरिष्‍ठ नेता अरुण जेटली का 24 अगस्त को दिल्‍ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था। जेटली काफी समय से एक के बाद एक बीमारी से लड़ रहे थे। इसी के चलते उन्‍होंने लोकसभा चुनाव, 2019 में बीजेपी को मिली प्रचंड जीत के बाद पीएम नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर कैबिनेट में शामिल नहीं करने की गुजारिश की थी

सांसदों को कितनी मिलती है पेंशन?
साल 2010 में हुए संशोधन के अनुसार संसद से रिटायर होने के बाद सदस्यों को 20 हजार रुपये प्रति माह पेंशन मिलती है। साथ ही उनके कार्यकाल के एक साल के आधार पर 1500 रुपये अधिक मिलते हैं।खास बात ये है कि पेंशन हर सदस्य को मिलती है, चाहे उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया हो गया या नहीं। इसके अलावा किसी भी पूर्व सांसद के निधन के बाद उनके पति या पत्नी को पेंशन का आधा हिस्सा दिया जाता है

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