आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
त्यौहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें काफी कठिन माना जाता है और इन्हीं में से एक है लोक आस्था का महापर्व छठ, जिसे रामायण और महाभारत काल से ही मनाने की परंपरा रही है।
महापर्व छठ पूजा इस साल 31 अक्टूबर से लेकर 3 नवबंर तक मनाई जाएगी। छठ पूजा भारत के पूर्वी हिस्सें में मनाई जाती है। बिहार, झारखंड और पूर्वी यूपी में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इन राज्यों में छठ पूजा का महत्व सबसे बड़े त्यौहार के रूप में है। इस पर्व का लोग पूरे साल बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। छठ पूजा के करने के लिए बिहार के लोग अपने घर वापस लौट आते हैं। इस दिन बड़े बुजुर्ग से लेकर बच्चों तक नए कपड़े पहनते हैं। लोगों के बीच इस महापर्व का काफी उत्साह होता है। महापर्व छठ हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है।

देवताओं ने व्याकुल होकर देवी सरस्वती से उपाए करने की प्रार्थना की। देवी सरस्वती ने मन्थरा, जो कि रानी कैकयी की दासी थी, उसकी मती को फेर दिया. इसके बाद मन्थरा की सलाह पर रानी कैकयी कोपभवन में चली गई। राजा दशरथ जब रानी को कैकयी को मनाने आए तो उन्होंने वरदान मांगा कि भरत को राजा बनाया जाए और राम को 14 साल के लिए वनवास पर भेज दिया जाए। इसके बाद भगवान राम जी के साथ सीता और लक्ष्मण भी वनवास पर चले गए।
मान्यता है कि भगवान राम सूर्यवंशी थे और इनके कुल देवता सूर्य भगवान थे। इसलिए भगवान राम और सीता जब वनवास खत्म होने और लंका से रावण वध करके अयोध्या वापस लौटे तो अपने कुलदेवता का आशीर्वाद पाने के लिए इन्होंने देवी सीता के साथ षष्ठी तिथि का व्रत रखा और सरयू नदी में डूबते सूर्य को फल, मिष्टान एवं अन्य वस्तुओं से अर्घ्य प्रदान किया। सप्तमी तिथि को भगवान राम ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद राजकाज संभालना शुरु किया। इसके बाद से आम जन भी सूर्यषष्ठी का पर्व हर साल मनाने लगे।


किंवदंती के अनुसार, ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने छह दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगा छिड़क कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रह कर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
इस लोकआस्था और सूर्य उपासना के चार दिवसीय त्यौहार की शुरुआत नहाय-खाय की परम्परा से होती है। यह त्यौहार पूरी तरह से श्रद्धा और शुद्धता का पर्व है। इस व्रत को महिलाओं के साथ ही पुरुष भी रखते हैं। चार दिनों तक चलने वाले लोकआस्था के इस महापर्व में व्रती को लगभग तीन दिन का व्रत रखना होता है जिसमें से दो दिन तो निर्जला व्रत रखा जाता है।
छठ को पहले केवल बिहार, झारखंड और उत्तर भारत में ही मनाया जाता था, लेकिन अब धीरे-धीरे पूरे देश में इसके महत्व को स्वीकार कर लिया गया है। छठ पर्व षष्ठी का अपभ्रंश है। इस कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया। छठ वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक माह में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है।
इस पूजा के लिए चार दिन महत्वपूर्ण हैं नहाय-खाय, खरना या लोहंडा, सांझा अर्घ्य और सूर्योदय अर्घ्य। छठ की पूजा में गन्ना, फल, डाला और सूप आदि का प्रयोग किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, छठी मइया को भगवान सूर्य की बहन बताया गया हैं। इस पर्व के दौरान छठी मइया के अलावा भगवान सूर्य की पूजा-आराधना होती है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इन दोनों की अर्चना करता है उनकी संतानों की छठी माता रक्षा करती हैं। कहते हैं कि भगवान की शक्ति से ही चार दिनों का यह कठिन व्रत संपन्न हो पाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी के सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न षष्ठी माता बालकों की रक्षा करने वाले विष्णु भगवान द्वारा रची माया हैं। बालक के जन्म के छठे दिन छठी मैया की पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं और जिंदगी में किसी प्रकार का कष्ट नहीं आए। इस मान्यता के तहत ही इस तिथि को षष्ठी देवी का व्रत होने लगा।
यह पर्व सबको एक सूत्र में पिरोने का काम करता है। इस पर्व में अमीर-गरीब, बड़े-छोटे का भेद मिट जाता है। सब एक समान एक ही विधि से भगवान की पूजा करते हैं। अमीर हो वो भी मिट्टी के चूल्हे पर ही प्रसाद बनाता है और गरीब भी, सब एक साथ गंगा तट पर एक जैसे दिखते हैं। बांस के बने सूप में ही अर्घ्य दिया जाता है। प्रसाद भी एक जैसा ही और गंगा और भगवान भास्कर सबके लिए एक जैसे हैं।
व्रती महिलाएं न करें ये काम
छठ में साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जाता है, इसलिए इस दिन व्रत करने वाले को साफ सुथरे और धुले कपड़े ही पहनने चाहिए। छठ पर्व के 4 दिन व्रत करने वाले किसी भी व्यक्ति को बिस्तर पर भी सोना नहीं चाहिए।
कौन हैं छठ देवी और क्यों होती है पूजा?
मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं। उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना और उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर (तालाब) के किनारे यह पूजा की जाती है। षष्ठी मां यानी कि छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है और इसलिए छठ पूजा की जाती है।
छठी मैया से मिलते हैं सैकड़ों यज्ञों के फल
व्रती महिलाएं न करें ये काम
छठ में साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जाता है, इसलिए इस दिन व्रत करने वाले को साफ सुथरे और धुले कपड़े ही पहनने चाहिए। छठ पर्व के 4 दिन व्रत करने वाले किसी भी व्यक्ति को बिस्तर पर भी सोना नहीं चाहिए।
कौन हैं छठ देवी और क्यों होती है पूजा?
मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं। उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना और उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर (तालाब) के किनारे यह पूजा की जाती है। षष्ठी मां यानी कि छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है और इसलिए छठ पूजा की जाती है।
छठी मैया से मिलते हैं सैकड़ों यज्ञों के फल
- छठी मैया का पूजा करने से नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- छठी मैया संतान की रक्षा करती हैं और उनके जीवन को खुशहाल रखती हैं।
- छठी मैया की पूजा से सैकड़ों यज्ञों के फल की प्राप्ति होती है।
- परिवार में सुख समृद्धि की प्राप्ति के लिए भी छठी मैया का व्रत किया जाता है।
- छठी मैया की पूजा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है, जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्राय: महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं।
व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैया का भी त्याग किया जाता है।
छठ पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती द्वारा फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं, पर व्रती बिना सिलाई किए कपड़े पहनते हैं।
महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहन कर छठ करते हैं। इस व्रत को शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालोसाल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहिता महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए। (इनपुट्स सहित)
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