झारखंड में नोटा से भी पीछे रही आम आदमी पार्टी: अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत जब्त

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
दिल्लीवासियों को फ्री बिजली, पानी और महिलाओं को फ्री बस यात्रा आदि से सरकारी खर्चे पर वोट खरीदने की राजनीती से दिल्ली से बाहर कोई आम आदमी पार्टी के मकड़जाल में नहीं फंसा। जबसे इस पार्टी का गठन हुआ है, दिल्ली से बाहर नोटा से कम वोट ही इस पार्टी के हिस्से आए। 
यह सभी दिल्लीवासियों के लिए आंख खोलने वाली बात है। दिल्ली से बाहर, एक अपवाद पंजाब को झोड़, कोई इस पार्टी को इतना महत्व नहीं देती, जितना दिल्ली वाले मुफ्त के लालच में इस पार्टी को अपने सिर बैठाकर रखे हैं। लोगों का कहना है कि मुफ्तखोरी की बजाए निर्वाचित सदस्यों को मिलने वाली हर माह मिलने वाली मुफ्त सुविधाएं और सदन लो शपथ लेते ही पेंशन के अधिकार आदि आदि के विरुद्ध आवाज़ बुलंद की होती, शायद देश का हर नागरिक इनके पीछे खड़ा होता। केजरीवाल कहते थे "कोई सरकारी सुविधा नहीं लेंगे" आदि आदि लेकिन सत्ता आते ही सब कुछ ले लिया।  
झारखंड विधानसभा चुनावों की मतगणना के अनुसार आम आदमी पार्टी की राज्य में स्थिति नोटा से भी ख़राब रही। नतीजे देखकर साफ पता चल गया कि आप के उम्मीदवार एक बार फिर अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए।
उल्लेखनीय है कि राज्य में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी के वोट शेयर NOTA से कम है। चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक शाम 6:40 बजे तक की गिनती के मुताबिक आम आदमी पार्टी को सिर्फ 33637 वोट मिले हैं जबकि NOTA के तहत 189792 वोट पड़ चुके है। हालँकि, बता दें ‘आप’ ने इन चुनावों में केवल 26 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था।
गौरतलब है कि इससे पहले साल 2018 में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में तीसरी शक्ति बनने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी को करारी हाल मिली थी। इस बार की तरह ही आप के अधिकतर प्रत्याशी तब भी अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे। इसके अलावा तीनों राज्यों में तब भी आम आदमी का वोट शेयर झारखंड की तरह ही नोटा से भी कम था।
झारखंड के इन विधानसभा चुनावों में नोटा से हारने वाली 14 पार्टियाँ हैं। इनमें से आम आदमी पार्टी को 0.23 फीसदी, तृणमूल कॉन्ग्रेस को 0.30 फीसदी, बीएलएसपी को 0.01 फीसदी, भाकपा को 0.45 फीसदी, माकपा को 0.34 फीसदी, आइयूएमएल को 0.02 फीसदी, जेडीएस को 0.01 फीसदी, जदयू को 0.79 फीसदी, लोजपा को 0.26 फीसदी, एनसीपी को 0.45 फीसदी और एनपीइपी को 0.01 फीसदी वोट मिले। सभी 14 दलों को संयुक्त रूप से 5.29 फीसदी वोट मिले। जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआइ) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआइ एम) और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक (एआइएफबी) मिलकर एक फीसदी वोट भी नहीं पा सकी। वामदलों से बेहतर प्रदर्शन तो असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने किया। जिसे 1 फीसद से ज्यादा वोट मिले और उससे भी बेहतर बसपा ने जिसे 1.38 फीसदी वोट मिले। लेकिन सभी पार्टियाँ मिलकर भी नोटा से आगे नहीं निकल पाईं, क्योंकि 1.43 फीसदी मतदाताओं ने नोटा (NOTA) का विकल्प चुना।(एजेंसीज इनपुट्स सहित)

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