जेएनयू हिंसा मामले पर कथित स्टिंग ऑपरेशन को लेकर मीडिया ग्रुप इंडिया टुडे लगातार सुर्खियाँ बटोर रहा है। वही फर्जी स्टिंग ऑपरेशन, जिसका न सिर है और न ही पाँव। दरअसल इंडिया टुडे के पत्रकारों का फर्जी स्टिंग ऑपरेशन को लेकर पुराना इतिहास रहा है या फिर यूँ कहें कि इनका इससे गहरा नाता रहा है। ये ‘पत्रकार’ किस तरह से ‘पत्रकारिता’ के नाम पर कारनामा करते हैं और आम लोगों की जिंदगी बर्बाद करते हैं।
मीडिया जगत में सबसे तेज और नंबर 1 बने रहने की चाह में इंडिया टुडे समूह ने अपने खोजी पत्रकारों से बीते दिनों फर्जी पड़ताल करवाई। उन्होंने एबीवीपी कार्यकर्ताओं को पूरी हिंसा के लिए दोषी साबित करने के लिए जी-जान लगा दी । लेकिन, झूठ का पर्दाफाश होते ही वे अपने दर्शकों को समझाने लगे कि आलोचना करने वालों पर ध्यान न दिया जाए। ऐसा इसलिए शायद, क्योंकि उनका मानना है कि उन्होंने जो अपने चैनल के माध्यम से दिखाया, वही अंतिम सत्य है।
ये पहली बार नहीं है, जब आजतक ने फर्जीवाड़ा फैलाकर ऑडियंस का ध्यान अपनी ओर खींचने का प्रयास किया हो। इससे पहले भी कई ऐसे मौके आए, जब इंडिया टुडे की फैक्ट चेक टीम ‘एंटी फेक न्यूज़ वॉर रूम’ ने पत्रकारिता को शर्मसार किया।
इसमें प्रमुख नाम है: बार-बार अपनी फजीहत कराने वाले अविश्वसनीय पत्रकार राजदीप सरदेसाई का। जिन्होंने अभी हाल ही में 2007 में किए गए फर्जी स्टिंग ऑपरेशन को लेकर कोर्ट के समक्ष माफी माँगी थी। हालाँकि राजदीप सरदेसाई तो यह कभी नहीं चाहते होंगे कि उनके द्वारा कोर्ट के समक्ष माफी माँगने की घटना सामने आए, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
टीवी पर बैठकर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले ये तथाकथित पत्रकार किस कदर शातिर हैं, ये इसी बात से पता चलता है कि उन्होंने गलती पकड़े जाने के बावजूद कभी माफी नहीं माँगी। जब उन्हें कोर्ट का नोटिस आया, तो वो उसकी भी कई सालों तक अनदेखी करते रहे। आखिरकार जब अदालत ने उनके खिलाफ वारंट जारी किया, तब जाकर 12 साल बाद 2018 में राजदीप सरदेसाई, आशुतोष और अरुणोदय मुखर्जी ने सरेंडर किया। हालाँकि इन्हें जेल से बेल मिल गई।
खैर, फर्जी स्टिंग ऑपरेशन के मामले में इनकी फेहरिस्त लंबी है और इन्हें इसका अच्छा-खासा अनुभव भी है। अब हम आपको उनके 2006 में किए गए उस ‘कारनामे’ से भी रूबरू करवाते हैं, जिसने एक आम आदमी की जिंदगी को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। यहाँ पर हम आपको बता दें कि राजदीप अकेले ही इसमें शामिल नहीं हैं। इनका पूरा गिरोह ही इस मामले में काफी सक्रिय रहा है। राजदीप के इस गिरोह में उनके अलावा पत्रकार से नेता और फिर भाव न मिलने पर पत्रकार बने आशुतोष, राघव बहल (तब IBN के थे, अब Quint के मालिक) और जमशेद खान भी शामिल है। ये वही जमशेद खान हैं, जिन्होंने जेएनयू के फर्जी स्टिंग ऑपरेशन में भी अहम भूमिका निभाई है।
फर्जी खबरें चलाकर TRP बढ़ाने का प्रयास
‘मीडिया’ और ‘पत्रकार’ किस तरह से माफिया की तरह काम करता है, इसका उदाहरण है यह मामला। दरअसल यह मामला 2006 का है, जब नोएडा के सरकारी अस्पताल के डॉक्टर अजय अग्रवाल के खिलाफ IBN-7 और CNN-IBN चैनल ने ‘शैतान डॉक्टर’ नाम से एक ‘स्टिंग ऑपरेशन’ किया था। इस तथाकथित स्टिंग ऑपरेशन में दावा किया गया था कि डॉक्टर अग्रवाल भीख मँगवाने वाले गिरोहों के लिए बच्चों के हाथ-पैर काटने का काम करते हैं। इस स्टिंग ऑपरेशन के बाद डॉक्टर अग्रवाल की जिंदगी में तूफान आ गया। उनका घर से निकलना मुश्किल हो गया। जिंदगी नर्क बन गई। लोगों ने उनके घर पर पथराव भी किया।
अभी तक की जाँचों में डॉक्टर अग्रवाल को निर्दोष पाया गया है। लेकिन इसके बावजूद इन लोगों ने डॉक्टर अग्रवाल से माफी नहीं माँगी है। बता दें कि इस फर्जी स्टिंग ऑपरेशन के कर्ता-धर्ता थे राजदीप सरदेसाई, जो कि उस समय IBN-7 के एडिटर इन चीफ थे और आशुतोष चैनल के एडिटर थे। डॉक्टर अग्रवाल ने फर्जी केस में फँसाने को लेकर राजदीप सरदेसाई, आशुतोष, चैनल के मालिक राघव बहल और रिपोर्टर जमशेद खान, अरुणोदय मुखर्जी समेत कई अन्य के खिलाफ मानहानि का केस दर्ज कराया था। केस अभी भी कोर्ट में लंबित है। इन पर केस चल रहा है।
डॉक्टर अग्रवाल ने आरोप लगाया कि राजदीप सरदेसाई, आशुतोष और राघव बहल ने चैनल की टीआरपी बढ़ाने के लिए उनकी जिंदगी बर्बाद कर दी। 2006 में चैनल के शुरू होने के कुछ दिन बाद ही ये स्टिंग ऑपरेशन दिखाया गया था। ये कार्यक्रम पूरे एक सप्ताह तक चला गया था। डॉक्टर अग्रवाल तब नोएडा के सरकारी अस्पताल में ऑर्थोपेडिक सर्जन के तौर पर तैनात थे। डॉक्टर अग्रवाल ने जमशेद खान को ब्लैकमेलकर करार देते हुए आरोप लगाया था कि उसी ने फर्जी स्टिंग ऑपरेशन को अंजाम दिया था और फिर इसे IBN7 को दिया था।
उन्होंने आगे आरोप लगाते हुए कहा था कि उस समय IBN7 और CNN-IBN चैनल नए लॉन्च किए गए थे और वे किसी सनसनीखेज स्टोरीज की तलाश में थे, ताकि चैनल को टीआरपी मिल सके। और यही वजह है कि उन्होंने जुलाई 2006 में लगभग एक सप्ताह तक लगातार इस फर्जी स्टिंग ऑपरेशन को प्रसारित किया। फिलहाल राघव बहल THE QUINT नाम के वेबसाइट से प्रोपेगेंडा फैलाने का काम कर रहे हैं, जो बीजेपी और भारतीय सेना के खिलाफ फर्जी खबरें छापती है
इंडिया टुडे का 'द लल्लनटॉप' व्यंग्य का भी करता है फैक्ट चेक
इंडिया टुडे समूह का ‘द ललल्नटॉप’ डिजीटल प्लैटफॉर्म पर सक्रीय वेब पोर्टल है। ये पोर्टल दावा करता है कि ये अन्य संस्थानों से हटकर खबरें दिखाता है। अब ये कैसे करते हैं इसे समझिए, अभी बीते दिनों इन लोगों ने एक सटायर लिखने वाली वेबसाइटस पर लिखे व्यंग्य का फैक्ट चेक किया, फिर उसके प्रमाणिक होने का भी दावा किया। खबर को इस तरह से पेश किया गया कि बाद में यूजर्स उसे इंटरनेट पर तेजी से शेयर करने लगे। देखते ही देखते खबर इतनी फैल गई कि कई अन्य मीडिया संस्थान भी प्राथमिकता देकर उस खबर को कवर करने लगे। लेकिन जब असलियत खुली तो लल्लनटॉप के साथ इंडिया टुडे की काफी फजीहत हुई।
गोरखनाथ मन्दिर पर फर्जी खबर
मोदी सरकार के कड़े विरोधी और इंडिया टुडे के मशहूर पत्रकार राहुल कंवल ने 26 दिसंबर 2018 को दावा किया था कि वो भारत की भद्दी सच्चाई उजागर करने वाले हैं। लेकिन बाद में सिर्फ़ ये बताया कि दलितों को भारत के कई मंदिरों में प्रवेश करने की इजाजत नहीं है। उन्होंने दावा किया कि इन मंदिरों की सूची में गोरखनाथ मंदिर भी है। जिसके महंत यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ हैं।
योगी आदित्यनाथ की छवि धूमिल करने के लिहाज से चलाए गए इस प्रोपगेंडा की धज्जियाँ तब उड़ी, जब भारी तादाद में दलित समुदाय के लोग खुलकर सामने आए और बताया कि उनका गोरखनाथ मंदिर में हमेशा स्वागत हुआ है। उन्हें कभी इस तरह का भेदभाव मंदिर में प्रवेश के दौरान महसूस नहीं हुआ।
मीडिया जगत में सबसे तेज और नंबर 1 बने रहने की चाह में इंडिया टुडे समूह ने अपने खोजी पत्रकारों से बीते दिनों फर्जी पड़ताल करवाई। उन्होंने एबीवीपी कार्यकर्ताओं को पूरी हिंसा के लिए दोषी साबित करने के लिए जी-जान लगा दी । लेकिन, झूठ का पर्दाफाश होते ही वे अपने दर्शकों को समझाने लगे कि आलोचना करने वालों पर ध्यान न दिया जाए। ऐसा इसलिए शायद, क्योंकि उनका मानना है कि उन्होंने जो अपने चैनल के माध्यम से दिखाया, वही अंतिम सत्य है।
ये पहली बार नहीं है, जब आजतक ने फर्जीवाड़ा फैलाकर ऑडियंस का ध्यान अपनी ओर खींचने का प्रयास किया हो। इससे पहले भी कई ऐसे मौके आए, जब इंडिया टुडे की फैक्ट चेक टीम ‘एंटी फेक न्यूज़ वॉर रूम’ ने पत्रकारिता को शर्मसार किया।
इसमें प्रमुख नाम है: बार-बार अपनी फजीहत कराने वाले अविश्वसनीय पत्रकार राजदीप सरदेसाई का। जिन्होंने अभी हाल ही में 2007 में किए गए फर्जी स्टिंग ऑपरेशन को लेकर कोर्ट के समक्ष माफी माँगी थी। हालाँकि राजदीप सरदेसाई तो यह कभी नहीं चाहते होंगे कि उनके द्वारा कोर्ट के समक्ष माफी माँगने की घटना सामने आए, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
टीवी पर बैठकर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले ये तथाकथित पत्रकार किस कदर शातिर हैं, ये इसी बात से पता चलता है कि उन्होंने गलती पकड़े जाने के बावजूद कभी माफी नहीं माँगी। जब उन्हें कोर्ट का नोटिस आया, तो वो उसकी भी कई सालों तक अनदेखी करते रहे। आखिरकार जब अदालत ने उनके खिलाफ वारंट जारी किया, तब जाकर 12 साल बाद 2018 में राजदीप सरदेसाई, आशुतोष और अरुणोदय मुखर्जी ने सरेंडर किया। हालाँकि इन्हें जेल से बेल मिल गई।
खैर, फर्जी स्टिंग ऑपरेशन के मामले में इनकी फेहरिस्त लंबी है और इन्हें इसका अच्छा-खासा अनुभव भी है। अब हम आपको उनके 2006 में किए गए उस ‘कारनामे’ से भी रूबरू करवाते हैं, जिसने एक आम आदमी की जिंदगी को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। यहाँ पर हम आपको बता दें कि राजदीप अकेले ही इसमें शामिल नहीं हैं। इनका पूरा गिरोह ही इस मामले में काफी सक्रिय रहा है। राजदीप के इस गिरोह में उनके अलावा पत्रकार से नेता और फिर भाव न मिलने पर पत्रकार बने आशुतोष, राघव बहल (तब IBN के थे, अब Quint के मालिक) और जमशेद खान भी शामिल है। ये वही जमशेद खान हैं, जिन्होंने जेएनयू के फर्जी स्टिंग ऑपरेशन में भी अहम भूमिका निभाई है।

‘मीडिया’ और ‘पत्रकार’ किस तरह से माफिया की तरह काम करता है, इसका उदाहरण है यह मामला। दरअसल यह मामला 2006 का है, जब नोएडा के सरकारी अस्पताल के डॉक्टर अजय अग्रवाल के खिलाफ IBN-7 और CNN-IBN चैनल ने ‘शैतान डॉक्टर’ नाम से एक ‘स्टिंग ऑपरेशन’ किया था। इस तथाकथित स्टिंग ऑपरेशन में दावा किया गया था कि डॉक्टर अग्रवाल भीख मँगवाने वाले गिरोहों के लिए बच्चों के हाथ-पैर काटने का काम करते हैं। इस स्टिंग ऑपरेशन के बाद डॉक्टर अग्रवाल की जिंदगी में तूफान आ गया। उनका घर से निकलना मुश्किल हो गया। जिंदगी नर्क बन गई। लोगों ने उनके घर पर पथराव भी किया।
अभी तक की जाँचों में डॉक्टर अग्रवाल को निर्दोष पाया गया है। लेकिन इसके बावजूद इन लोगों ने डॉक्टर अग्रवाल से माफी नहीं माँगी है। बता दें कि इस फर्जी स्टिंग ऑपरेशन के कर्ता-धर्ता थे राजदीप सरदेसाई, जो कि उस समय IBN-7 के एडिटर इन चीफ थे और आशुतोष चैनल के एडिटर थे। डॉक्टर अग्रवाल ने फर्जी केस में फँसाने को लेकर राजदीप सरदेसाई, आशुतोष, चैनल के मालिक राघव बहल और रिपोर्टर जमशेद खान, अरुणोदय मुखर्जी समेत कई अन्य के खिलाफ मानहानि का केस दर्ज कराया था। केस अभी भी कोर्ट में लंबित है। इन पर केस चल रहा है।
डॉक्टर अग्रवाल ने आरोप लगाया कि राजदीप सरदेसाई, आशुतोष और राघव बहल ने चैनल की टीआरपी बढ़ाने के लिए उनकी जिंदगी बर्बाद कर दी। 2006 में चैनल के शुरू होने के कुछ दिन बाद ही ये स्टिंग ऑपरेशन दिखाया गया था। ये कार्यक्रम पूरे एक सप्ताह तक चला गया था। डॉक्टर अग्रवाल तब नोएडा के सरकारी अस्पताल में ऑर्थोपेडिक सर्जन के तौर पर तैनात थे। डॉक्टर अग्रवाल ने जमशेद खान को ब्लैकमेलकर करार देते हुए आरोप लगाया था कि उसी ने फर्जी स्टिंग ऑपरेशन को अंजाम दिया था और फिर इसे IBN7 को दिया था।
उन्होंने आगे आरोप लगाते हुए कहा था कि उस समय IBN7 और CNN-IBN चैनल नए लॉन्च किए गए थे और वे किसी सनसनीखेज स्टोरीज की तलाश में थे, ताकि चैनल को टीआरपी मिल सके। और यही वजह है कि उन्होंने जुलाई 2006 में लगभग एक सप्ताह तक लगातार इस फर्जी स्टिंग ऑपरेशन को प्रसारित किया। फिलहाल राघव बहल THE QUINT नाम के वेबसाइट से प्रोपेगेंडा फैलाने का काम कर रहे हैं, जो बीजेपी और भारतीय सेना के खिलाफ फर्जी खबरें छापती है
।Taking one line from a debate and editing it to make it seem as if the anchor believes chanting Vande Mataram is anti-national is a malicious act. During the debate even the guest agreed that violence unleashed by lawyers in court was wrong. For those interested, here’s the clip: pic.twitter.com/QhDmjXf9Oe— Rahul Kanwal (@rahulkanwal) January 13, 2020
इंडिया टुडे का 'द लल्लनटॉप' व्यंग्य का भी करता है फैक्ट चेक
इंडिया टुडे समूह का ‘द ललल्नटॉप’ डिजीटल प्लैटफॉर्म पर सक्रीय वेब पोर्टल है। ये पोर्टल दावा करता है कि ये अन्य संस्थानों से हटकर खबरें दिखाता है। अब ये कैसे करते हैं इसे समझिए, अभी बीते दिनों इन लोगों ने एक सटायर लिखने वाली वेबसाइटस पर लिखे व्यंग्य का फैक्ट चेक किया, फिर उसके प्रमाणिक होने का भी दावा किया। खबर को इस तरह से पेश किया गया कि बाद में यूजर्स उसे इंटरनेट पर तेजी से शेयर करने लगे। देखते ही देखते खबर इतनी फैल गई कि कई अन्य मीडिया संस्थान भी प्राथमिकता देकर उस खबर को कवर करने लगे। लेकिन जब असलियत खुली तो लल्लनटॉप के साथ इंडिया टुडे की काफी फजीहत हुई।
मोदी सरकार के कड़े विरोधी और इंडिया टुडे के मशहूर पत्रकार राहुल कंवल ने 26 दिसंबर 2018 को दावा किया था कि वो भारत की भद्दी सच्चाई उजागर करने वाले हैं। लेकिन बाद में सिर्फ़ ये बताया कि दलितों को भारत के कई मंदिरों में प्रवेश करने की इजाजत नहीं है। उन्होंने दावा किया कि इन मंदिरों की सूची में गोरखनाथ मंदिर भी है। जिसके महंत यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ हैं।
योगी आदित्यनाथ की छवि धूमिल करने के लिहाज से चलाए गए इस प्रोपगेंडा की धज्जियाँ तब उड़ी, जब भारी तादाद में दलित समुदाय के लोग खुलकर सामने आए और बताया कि उनका गोरखनाथ मंदिर में हमेशा स्वागत हुआ है। उन्हें कभी इस तरह का भेदभाव मंदिर में प्रवेश के दौरान महसूस नहीं हुआ।
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