हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की स्टडी ने किया चौंकाने वाला खुलासा : क्या इस्लामिक देश बनने की तरफ बढ़ रहा है भारत?


आर.बी. एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
एक तरफ कांग्रेस और इसके समर्थक दल देश नागरिक संशोधन कानून के विरुद्ध मुसलमानों में जहर घोलकर अशांति फैला रहे हैं, तो दूसरी तरफ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने सनसनी खेज खुलासा किया था, जिस पर गहन मंथन करने की जरुरत है। आखिर तुष्टिकरण पुजारी देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं? 
वास्तव में, देश में फैलाये जाने वाले उपद्रव के पीछे केवल नागरिक संशोधन कानून नहीं, कई कारण हैं। जिन पर कांग्रेस और इसके समर्थक दल मुसलमानों को अगर सड़क पर लेकर आती, शायद इनके परिवार भी इनका विरोध कर रहे होते। विरोध कर रहे लोगों में से 99.9 को इस नागरिक संशोधन कानून की ही जानकारी नहीं, केवल भ्रमित बातों को सुन सड़क पर शोर-शराबा कर रहे हैं। 
भागवत गीता में लिखा है, "विनाश काले, विपरीत बुद्धि", यानि कांग्रेस और इसके समर्थक दल जितना अधिक नागरिक संशोधन कानून को उछालेंगे, उससे कहीं अधिक उनके लिए आगामी चुनावों में घातक सिद्ध होगा और भाजपा के लिए वरदान। अब देखते हैं, सिलसिलेवार मुख्य कारण:-  
एक, मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तान पर प्रहार; दो, कश्मीर में पत्थरबाजों पर प्रहार; तीन, आतंकवाद पर प्रहार; चार, पाकिस्तान में आतंकवादी अड्डों पर सर्जिकल और एयर स्ट्राइक; पांच, अंतर्राष्ट्रीय पटल पर पाकिस्तान में पल रहे आतंकियों को उजागर कर, विश्व पटल पर अलग-थलग करना; छः, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त करना; सात, कांग्रेस राज में विस्थापित किए गए कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की कवायद; आठ, वर्षों से लम्बित अयोध्या में राममंदिर बनने का मार्ग साफ करना। इस सन्दर्भ में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब सुप्रीम कोर्ट में दैनिक सुनवाई चल रही थी, तब आतंकी सरगना हाफिज सईद ने अयोध्या में राममंदिर बनने पर हिंदुस्तान में खून-खराबे की बात कही थी; नौ, वर्षों से लम्बित मुस्लिम महिलाओं द्वारा तीन तलाक और हलाला से हो रही दिक्कतों को समाप्त करना आदि आदि। 
हालाँकि कई बार प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सार्वजनिक भाषणों में स्पष्ट कहा कि यदि ये काम गलत हुए हैं, कांग्रेस और उसकी समर्थक पार्टियां कहें की "सत्ता में आने पर हम इन सभी को समाप्त करेंगे। लेकिन किसी में साहस नहीं हुआ, लेकिन अब नागरिकता संशोधन कानून की आड़ में मुसलमानों को डरा-धमका कर सडकों पर उतर इन सभी देशहित कार्यों से हुई इनको पीड़ा को उजागर कर रहे हैं।     
मुसलमानों की बढ़ती आबादी भारत के लिए बड़ा खतरा है। मुसलमानों की बढ़ती आबादी भारत के सेक्युलर स्ट्रक्चर के लिए खतरा है। मुसलमानों की बढ़ती आबादी हिन्दुस्तान के हिन्दुओं के अस्तित्व पर खतरा है। यह हम नहीं कह रहे, बल्कि यह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में सामने आया है। इजरायल की एक न्यूज वेबसाइट में छपी खबर के मुताबिक जिस देश में मुसलमानों की आबादी 16 प्रतिशत के आंकड़े को छू लेती है, उसे भविष्य में मुस्लिम राष्ट्र बनने से कोई रोक नहीं सकता है। आपको बता दें कि भारत में मुसलमानों की आबादी करीब 20 करोड़ है, जो कुल आबादी का लगभग 15 प्रतिशत है। यानि इसी रफ्तार से अगर मुसलमानों की आबादी भारत में बढ़ती रही तो फिर बड़ी मुश्किल खड़ी होने वाली है।
भारत में आपतकाल के दौरान के संजय गाँधी द्वारा "हम दो, हमारे दो" का नारा दिया गया था, जगह-जगह नसबंदी कैंप लगाकर, लोगों की जबरदस्ती नसबंदी की गयी थी। उस समय परिवार नियोजन का घोर विरोध मुस्लिम समाज ने ही किया था। और 1977 में हुए चुनावों में कांग्रेस विरोधी जनता पार्टी का नारा था, "नसबंदी के तीन हैं लाल, इन्दिरा संजय, बंसीलाल।" क्योकि उस समय इस योजना का भरपूर दुरूपयोग हुआ था। कर्मचारियों को अपनी वार्षिक उन्नति अथवा ट्रांसफर रुकवाने के लिए कम से कम दो केस ऑफिस में देने होते थे, और कर्मचारी इन अवरोधों से बचने के लिए 100-100 रूपए में नकली प्रमाण-पत्र बनवाने को मजबूर थे।   
इस स्टडी के मुताबिक तुर्की, मिस्र और सीरिया पहले क्रिश्चियन देश थे, लेकिन वहां धीरे-धीरे मुस्लिम आबादी बढ़ती गई और फिर ये मुस्लिम देश बन गए। इस स्टडी में साफ कहा गया है कि जब किसी देश में मुस्लिम आबादी कुल आबादी की लगभग 16 प्रतिशत हो जाती है, तो फिर अगले 100 से 150 वर्षों में वो देश पूरी तरह से इस्लामिक देश बन जाता है।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के इस अध्ययन के अनुसार जिन देशों में मुस्लिम आबादी 2 प्रतिशत से कम होती है, वहां ये लोग अमनपसंद अल्पसंख्यक के रूप में रहते हैं और वहां के निवासियों से कोई पंगा नहीं लेते हैं। जैसे कि अभी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, इटली और नार्वे जैसे देशों में है। इन देशों में मुसलमानों की आबादी 2 प्रतिशत से कम है।
जैसे ही किसी देश में मुसलमानों की आबादी 2 प्रतिशत से अधिक हो जाती है और 5 प्रतिशत तक पहुंचती है, वहां ये अपने रीतिरिवाज थोपने लगते हैं, अपने अधिकारों की मांग करने लगते हैं। जैसा कि इन दिनों डेनमार्क, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और थाईलैंड में हो रहा है। डेनमार्क में मुसलमानों की आबादी 2%, जर्मनी में 3.7%, ब्रिटेन में 2.7%, स्पेन में 4% और थाईलैंड में 4.6% है।
स्टडी के अनुसार किसी भी देश में 5 प्रतिशत का आंकड़ा पार होते ही मुसलमान अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए दबाब बनाने लगते हैं। जैसे हलाल खाने के लिए सुपर मार्केट चेन्स पर दबाब बनाने लगते हैं, नहीं तो कंपनी बंद कराने की धमकी देने लगते हैं। इतना ही नहीं ऐसे देशों में मुसलमान शरिया कानून लागू करने का भी दबाब बनाने लगते हैं। ठीक ऐसा ही इन दिनों फ्रांस, फिलिपीन्स, स्वीडन, स्विटजरलैंड, नीदरलैंड्स आदि देशों में देखने को मिल रहा है। इन देशों में मुसलमानों की आबादी 5 से 8 प्रतिशत के बीच पहुंच चुकी है।
जैसे ही किसी देश में मुसलमानों की आबादी 10 प्रतिशत का आंकड़ा पार करती है, वे उस देश में अराजकता फैलाने लगते हैं। जरा-जरा सी बात पर इन देशों में मुसलमान आगजनी, गोलीबारी जैसी घटनाओं से भी नहीं चूकते हैं। भारत (15%), गुयाना (10%), इजरायल (16%), केन्या (10%), रूस (15%) जैसे देशों में इस तरह की घटनाएं आम हो चुकी हैं।
20 प्रतिशत से अधिक आबादी होते ही मुसलमानों द्वारा इस तरह की हिंसक घटनाएं बढ़ने लगती हैं। इन देशों में दंगे बढ़ने लगते हैं, जिहादी आतंकी संगठन खड़े हो जाते हैं, दूसरे धर्मों के पूजास्थलों पर हमले और आगजनी की घटनाएं बढ़ जाती हैं। दूसरे धर्म के लोगों की हत्या कर खौफ फैलाया जाने लगता है। ठीक ऐसा ही 32.8 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले इथोपिया में इन दिनों हो रहा है।
इतना ही नहीं 40 प्रतिशत की आबादी होते ही उन देशों में बड़े नरसंहार, आतंकी हमले आदि बढ़ जाते हैं। बोस्निया (40%), लेबनान (59.7%) में यही देखने को मिल रहा है।
स्टडी के अनुसार जैसे ही किसी देश में मुसलमानों की आबादी का आंकड़ा 60 प्रतिशत को छूने लगता है वहां दूसरे धर्मों के लोगों की धार्मिक प्रताड़ना बढ़ने लगती है। जातीय नरसंहार की घटनाएं बढ़ जाती हैं। शरिया कानून को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगता है। ऐसा ही अल्बानिया, मलेशिया, कतर और सूडान में हो रहा है। अल्बानिया में मुस्लिम आबादी 70%, मलेशिया में 60.4%, कतर में 77.5% और सूडान में 70% से अधिक है।
अध्ययन के मुताबिक जैसे ही किसी देश में मुसलमानों की 80 प्रतिशत की आबादी हो जाती है, तो एक प्रकार से वहां मुसलमान पूरी तरह से अराजक हो जाता है। ऐसे देशों में हिंसा रोजाना की बात हो जाती है। सरकार द्वारा आतंकवाद को प्रायोजित किया जाने लगता है और ऐसे देशों में दूसरे धर्मों के लोगों का जबरन धर्मपरिवर्तन कराया जाता है और तेजी से ऐसे देश 100 प्रतिशत इस्लामीकरण की तरफ बढ़ने लगते हैं। कुछ ऐसा ही बांग्लादेश (83%), मिस्र (90%), गाजा (98.70%), इंडोनेशिया (86.1%), ईरान (98%), इराक (97%), जॉर्डन (92%), मोरक्को (98.70%), पाकिस्तान (97%), फिलस्तीन (99%), सीरिया (90%), तजाकिस्तान (90%), तुर्की (99.80%), यूएई (96%) जैसे देशों में दिखाई देता है।
और फिर जैसे ही किसी देश में 100 फीसदी मुस्लिम आबादी हो जाती है, तो फिर वो देश एक बार फिर अमनपसंद देश बन जाता है। वहां कहा जाने लगता है कि चूंकि 100 फीसदी इस्लामी देश है, इसलिए अब वहां कोई खतरा नहीं है, कोई हिंसा नहीं है। जैसे कि अफगानिस्तान, सऊदी अरब, सोमालिया और यमन में कहा जाता है, क्योंकि इन देशों में 100 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है।
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आर.बी.एल. निगम, वरिष्ठ पत्रकार एक तरफ कांग्रेस और इसकी समर्थक समस्त मोदी विरोधी पार्टियां CAA पर मुस्लिम समाज को भ्रम....
हार्वर्ड विश्वविद्यालय की इस स्टडी के मुताबिक अभी विश्व में मुसलमानों की कुल आबादी करीब 1.5 अरब है, जो विश्व की कुल जनसंख्या का 22 प्रतिशत है। लेकिन जिस प्रकार मुसलमानों की जन्मदर है, उससे वो दिन दूर नहीं जब दुनिया में मुसलमानों की आबादी 50 प्रतिशत के पार चली जाएगी। इसलिए हिन्दुस्तान के लिए चिंतित होने की जरूरत है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ खड़े होने की जरूरत है।(इनपुट्स सहित)

1 comment:

Readers said...

In which Journal of Harvard University it is published?