‘सरजी’ के गले की फाँस बना शाहीन बाग़, बिगड़ा चुनावी गणित

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
शाहीन बाग़ का आंदोलन शुरू तो हुआ था सीएए विरोध के नाम पर लेकिन जिन भी नेताओं और पार्टियों ने इसको प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दिया था, उनके लिए अब ये गले की फाँस बनता दिख रहा है। हालाँकि पंजाब, बंगाल आदि और दूसरे राज्यों ने इस कानून को अपने राज्यों में लागू न करना का प्रस्ताव पारित कर दिया है, जो मात्र मुस्लिम मतदाताओं को पागल बनाने की बात है, क्योकि राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते ही यह कानून बन गया है, जिसे केवल लोक/राज्य सभा समाप्त कर सकती है। खैर, योजना तो थी कि यहाँ तिरंगा लहरा कर और संविधान के पाठ राग रागकर देशभक्ति का जी भर दिखावा किया जाए। लेकिन हुआ क्या? इस कथित आंदोलन के मुख्य साज़िशकर्ता शरजील इमाम ने ही कह दिया कि संविधान से मुस्लिमों को कोई उम्मीद नहीं है और इनका बस इस्तेमाल किया जाना चाहिए। लेकिन मुसलमान भूल रहा है कि उनका इस्तेमाल वोटबैंक की तरह होता रहा है। 
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आम आदमी पार्टी की स्थिति इस मामले में साँप-छुछुंदर वाली हो गई है। जहाँ एक तरफ उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कह दिया कि वो शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों के साथ खड़े हैं, तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने इस उपद्रव का सीधा समर्थन न करते हुए मणिशंकर अय्यर और दिग्विजय सिंह जैसे नाकारा नेताओं को भेज कर हवा का रुख समझने की कोशिश की। सिसोदिया ने तब इसका समर्थन किया, जब वहाँ के स्थानीय लोग काफ़ी परेशान दिख रहे हैं। उन्होंने एक दिन सड़क पर निकल कर आंदोलनकारियों के बारे में बताया कि वो पिकनिक मना रहे हैं, बिरयानी खा रहे हैं।
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सियासत समझिए। नंबर एक: कांग्रेस नकारा नेताओं को शाहीन बाग़ भेज कर हवा का रुख समझने का प्रयास करती है। नंबर दो: सिसोदिया शाहीन बाग़ के उपद्रवियों का समर्थन करते हैं। नंबर तीन: केजरीवाल कहते हैं कि भाजपा नेताओं को वहाँ जाकर लोगों को मनाना चाहिए क्योंकि लोगों को दफ्तर जाने-आने और बच्चों को स्कूल जाने-आने में परेशानी हो रही है। नंबर चार: अमित शाह केजरीवाल को घेरते हुए शाहीन बाग़ पर उनसे सवाल पूछते हैं। नंबर पाँच: अरविन्द केजरीवाल सरकार से कहते हैं कि वो शरजील इमाम को गिरफ़्तार करे। ये थी इस कथित आंदोलन पर पक्ष-विपक्ष की पूरी सियासत गणना।
अरविन्द केजरीवाल शरजील को गिरफ़्तार करने की बात करते हैं लेकिन कन्हैया कुमार मामले में कार्यवाही में देरी करते हैं। दिल्ली सरकार फाइलों को दबा देती है। केजरीवाल इतने बुरे फँसे हैं कि एक दिन पहले जिनके डिप्टी ने शरजील के आंदोलन का समर्थन किया था, विपरीत इसके केजरीवाल उसी शरजील को गिरफ़्तार करने की बात कर रहे हैं। कारण क्या हो सकता है? घटनाओं के घटनाक्रम के बाद अब जरा इसका कारण जानने का प्रयास करते हैं। 
  • जनता समझ चुकी हैं कि शाहीन बाग़ में आंदोलन के नाम पर बिरयानी खाकर लोग पिकनिक मना रहे हैं
  • शरजील इमाम, अरफ़ा खानम और इमरान प्रतापगढ़ी जैसों के बयानों ने असली मंसूबों को जगजाहिर कर दिया है।
  • वहाँ लोगों को परेशानी हो रही है। आश्रम क्षेत्र में 70,000 अतिरिक्त गाड़ियों के बढ़ जाने के कारण लम्बा ट्रैफिक जाम लग रहा है।
  • कांग्रेस शाहीन बाग़ का खुल कर समर्थन नहीं कर रही, इससे आम आदमी पार्टी आशंकित है। आंदोलन संदिग्ध हो चुका है।
  • सीएए के बहाने भाजपा ने अनुच्छेद 370 को फिर से ज़िंदा किया है और राम मंदिर मामले की भी पार्टी बात कर रही है।
अरविन्द केजरीवाल को लग गया है कि शाहीन बाग़ आंदोलन से उन्हें जो उम्मीदें थी, उसने नकारात्मकता का रूप लेकर उनके ख़िलाफ़ ही माहौल बनाना शुरू कर दिया है। विदेशी फंडिंग और इस्लामी कट्टरपंथियों के लगातार आ रहे भड़काऊ बयानों से ‘सरजी’(केजरीवाल) डर गए हैं और जिस शाहीन बाग़ को उन्होंने फूलों की माला समझ कर अपने गले में लगाया था, वो अब उनके गले की फाँस बन चुका है, यानि 
पहने थे हार, गला अपना सजाने को,
वही बन गए हैं सांप, आज हमें डस जाने को  
जिस दिल्ली में उन्होंने ख़ुद की एकतरफा जीत का माहौल बनाया था, वहाँ भाजपा ने जबरदस्त वापसी की है। आंतरिक सर्वे में पार्टी को 40 सीटें आती दिख रही हैं।
हकीकत यह है कि 'सरजी' ने समझा था कि जिस तरह भ्रष्टाचार में घिर चुकी तत्कालीन युपीए को निर्भय कांड पर हंगामा खड़ा कर अपना राजनितिक जीवन का बीजारोपण कर एकदम दिल्ली सत्ता पर काबिज हो गए थे, संभव है, इस आंदोलन को मुस्लिम विरोधी नाम देकर, लोकसभा में भी बाज़ी मार में सफल हो जाएं। क्योकि 'सरजी' ने आन्दोलन को ही अपनी सफलता का आधार समझा हुआ है। लेकिन 'सरजी' भूल जाते हैं कि दिल्ली और पंजाब के बाहर कोई घास तक नहीं डालता, यानि NOTA भी इनकी पार्टी से ज्यादा वोट प्राप्त कर लेता है।    
कुछ दिनों से अरविन्द केजरीवाल ने सेना के ख़िलाफ़ न बोलने की रणनीति अपनाई हुई थी। वो भी ख़ुद को लिबरल राष्ट्रवादी दिखाना चाह रहे थे। लेकिन, सीएए के ख़िलाफ़ जगह-जगह हुए प्रदर्शनों से दिल्ली के मुख्यमंत्री ने समझ लिया कि ये जनांदोलन है और इसे जनता का रुख समझ कर आम आदमी पार्टी ने बड़ी ग़लती कर दी। अब जामिया उपद्रव की भी पोल खुल गई। वहाँ आयशा-लदीदा की ब्रांडिंग की कोशिश फेल हो गई। एक के बाद एक इस्लामी कट्टरवादी जब बिल से बाहर निकले, उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से आप सुप्रीमो को ही डसना शुरू कर दिया।


जनता को पता चल चुका है कि हाथों में संविधान लेने वाले संविधान को गाली देते हैं। पब्लिक जान चुकी है कि नेहरू-आंबेडकर की बात करने वाले गाँधी जी को गाली देते हैं। लोग समझ चुके हैं कि संवैधानिक संस्थानों की शुचिता की बात करने वालों ने न्यायालय को मुस्लिमों का दुश्मन बताया है। आम जनमानस को मालूम हो गया है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान पाने के लिए वहाँ 90 साल की महिलाओं और 20 दिन की बच्ची को प्रदर्शन का चेहरा बनाया जा रहा है। जनसमूह को ज्ञात हो गया है कि शरीयत लागू करने वालों और खलीफा राज की बात करने वालों ने सीएए प्रदर्शन का चोला ओढ़ लिया है।
वास्तव में ‘सरजी’ का क्या दोष? वो तो राजनीतिक फसल काटने पहुँचे थे लेकिन उन्हें भी इसका भान नहीं था कि उनके पार्टी के ही अमानतुल्लाह ख़ान से भी ज्यादा कट्टरवादी इस आंदोलन को हाईजैक कर लेंगे। एक वीडियो सामने आया था। इसमें शरजील इमाम के समर्थक अमानतुल्लाह ख़ान से कह रहे हैं कि वो शरजील को बोलने दें। अमानतुल्लाह भी इस आंदोलन का चेहरा नहीं बन पाया। इस्लामी कट्टरपंथी होते हुए भी अमानतुल्लाह तक को जिस भीड़ ने स्वीकार नहीं किया, उसके नेतृत्वकर्ता केजरीवाल को क्या भाव देंगे? अमानतुल्लाह फेल, केजरीवाल फेल।

जिस शाहीन बाग़ की तर्ज पर तुर्कमान गेट आदि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में धरने से दिल्ली में माहौल बनाने के लिए लगातार शह दिया गया, उससे पल्ला छुड़ाने के लिए और क्या-क्या गलतियाँ करते हैं आम आदमी पार्टी के कमांडर-इन-चीफ अरविन्द केजरीवाल। शाहीन बाग़ में जिस तरह से दीपक चौरसिया जैसे पत्रकार के साथ बदसलूकी हुई और सुधीर चौधरी के ख़िलाफ़ नारेबाजी हुई, ये स्पष्ट हो चुका है कि ये साधारण आंदोलन नहीं है। इसके पीछे काफ़ी ऐसे लोग हैं, जो अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। पत्रकारों से जो लोग डर रहे हैं, वहाँ दाल में जरूर कुछ काला है।
शाहीन बाग प्रदर्शन की मैं खुद अगुवाई करूंगा-अमानतुल्लाह
ओखला से आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान भी शाहीन बाग के प्रदर्शन में शामिल हुए। उन्होंने खुलकर प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया और उनका हौसला बढ़ाते हुए कहा कि यदि पुलिस यहां से लोगों को हटाने आएगी, तो वह सबसे आगे आकर पुलिस से बातचीत करेंगे। उन्होंने वादा किया कि अब से इस प्रदर्शन की वह खुद अगुवाई करेंगे। उन्होंने कहा कि प्रदर्शन स्थल से कुछ ही कदम की दूरी पर स्थित वह अपने कार्यालय पर चौबीसों घंटे मौजूद रहेंगे। वह राजनीति में रहें या न रहें, सत्ता में रहें या बेदखल कर दिए जाएं, उन्हें फर्क नहीं पड़ता। वह क्षेत्र की महिलाओं के इस सत्याग्रह के साथ खड़े रहेंगे।
शाहीन बाग की धरना से बढ़ी परेशानी
अरविंद केजरीवाल शाहीन बाग के चूल्हे पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे हैं, वहीं दिल्ली की आम जनता परेशान है। अपनी राजनीति चमकाने के लिए अभी तक केजरीवाल ने आम आदमी और छात्रों का सहारा लिया था लेकिन अब वो महिलाओं को मोहरा बना रहे हैं। अब शाहीन बाग के धरने के पीछे की राजनीति खुलकर सामने आ गई है। यह धरना बिल्कुल प्रायोजित है। इसका समर्थन करने वाला हर शख्स और हर दल सवालों के घेरे में है। संविधान बचाने के नाम पर उस कानून का हिंसक विरोध किया जा रहा है, जिसे संविधान संशोधन द्वारा खुद संसद ने ही बहुमत से पारित किया है। जो लोग महीने भर तक रास्ता रोकना अपना संवैधानिक अधिकार मानते हैं, उन्हें उन लोगों के संवैधानिक अधिकारों की चिंता नहीं है, जो लोग उनके इस धरने से परेशान हो रहे हैं। प्रदर्शनकारी सड़क पर इस प्रकार से धरने पर बैठे हैं कि लोगों के लिए वहाँ से पैदल निकलना भी दूभर है। लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रहे, स्थानीय लोगों का व्यापार ठप्प हो गया है,आधे घंटे की दूरी तीन चार घंटों में तय हो रही है जिससे नौकरी पेशा लोगों का अपने कार्यस्थल तक पहुंचने में असाधारण समय बर्बाद हो रहा है। ऑफिस देर से पहुंचने पर कई लोगों की नौकरी जा चुकी है। एंबुलेंस को रास्ता नहीं दिए जाने के कारण मरीज समय पर अस्पताल नहीं पहुंच रहे हैं। ऐसे में केजरीवाल का ट्वीट घड़ियाली आंसू के अलावा कुछ भी नहीं है।
मुस्लिम वोट बैंक के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार
केजरीवाल की नजर मुस्लिम वोट बैंक पर है। इस वोट बैंक को पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार है। उनका हमेशा प्रयास रहा है कि मुस्लिम वोट नहीं बंटे और पूरे वोट उसे ही मिले। लोकसभा चुनाव-2019 के दौरान केजरीवाल ने सिविल लाइन स्थित अपने निवास पर ऑल इंडिया शिया सुन्नी फ्रंट के नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। इस मौके पर केजरीवाल ने कहा कि मुस्लिम वोट बैंक नहीं बंटे इसके लिए हम कांग्रेस से गठबंधन करना चाहते थे। गठबंधन के लिए हर संभव प्रयास किए। मगर कांग्रेस ने गठबंधन नहीं किया।
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फोटो साभार: इंडिया टुडे आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने ...
मजे की बात यह है कि गिरोह विशेष के पत्रकारों के साथ वहाँ अच्छा व्यवहार हुआ है। रवीश कुमार सरीखों ने आंदोलन को अच्छी कवरेज दी। वो वहाँ गए तो उन्हें पलकों पर बिठाया गया। जनता सब देख रही है। अरविन्द केजरीवाल को लग गया है कि दिल्ली का चुनाव अब एकतरफा नहीं रहा। पलड़ा काफ़ी तेज़ी से कहीं और झुक रहा है।

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