शाहीन बाग से टेंशन में दिल्ली के इमाम, केजरीवाल के अरमानों पर झाड़ू फिरने की फिक्र में हुए दुबले

केजरीवाल, मुस्लिम70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा के लिए आठ फरवरी को वोट डाले जाएँगे। नतीजे 11 फरवरी को आएँगे।राजनीतिक दल जोर-शोर से प्रचार में जुटे हैं। मुस्लिम मतदाताओं का मूड भॉंपने की कोशिश करते हुए दैनिक भास्कर ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसके जरिए दिल्ली के मुस्लिम मतदाताओं की नब्ज टटोलने की कोशिश की गई है। इस रिपोर्ट से अंदाजा लगाया जा सकता है क्यों शाहीन बाग आम आदमी पार्टी (आप) के लिए न उगला जा रहा और न निगला।
यह रिपोर्ट दिल्ली के नौ मस्जिदों के इमाम से बातचीत पर आधारित है। सभी से 4 मसलों पर सवाल सवाल किए गए। ये हैं,
*दिल्ली की केजरीवाल सरकार का काम
*भाजपा को वोट देंगे या नहीं
*मुस्लिम वोटर किधर जाएंगे
*शाहीन बाग प्रदर्शन
जिन इमामों से बात की गई वे हैं,
*दिल्ली यूनिवर्सिटी कैंपस की मस्जिद के हबीबुर रहमान। यह मस्जिद तिमारपुर विधानसभा क्षेत्र में आता है।
*एक मीनार मस्जिद के मुफ्ती अब्दुल वाहिद। यह लक्ष्मी नगर विधानसभा क्षेत्र में आता है।
*चाँदनी चौक विधानसभा क्षेत्र के मस्जिद तकिया मंडल शाह के मोहम्मद तैयब कासमी।
*ओखला विधानसभा के हजरत अबु मस्जिद के नजीर अहमद।
*जैतपुर पार्ट-2 स्थित जामा मस्जिद के जुबैर अहमद। यह बदरपुर विधानसभा में आता है।
*त्रिलोकपुरी विधानसभा के मदीना मस्जिद के हाजी रियासत अली
*मटियामहल विधानसभा के मस्जिद मुबारक बेगम के मोहम्मद अजमल कासमी।
*बल्लीमारान विधानसभा के अनारवाली मस्जिद के जुबैर अहमद
*कैलाशनगर के मस्जिद-मदरसा अंजुमन इस्लामिया के अताउल रहमान कासमी। यह गॉंधी नगर विधानसभा में पड़ता है।
क्या मुसलमान भाजपा को वोट देगा?
इस रिपोर्ट से जो बात उभरकर आती है वह यह है कि दिल्ली के इमाम नहीं चाहते कि भाजपा सत्ता में आए। ज्यादातर इमाम का झुकाव आप की ओर है। कुछ की नजरें कांग्रेस पर भी टिकी है। लेकिन, उनकी असल चिंता यह है कि वोटों का बॅंटवारा न हो पाए। दिल्ली में 12 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। कई सीटों पर उनका प्रभाव है।
जब आप इन इमामों के जवाब पर गौर करेंगे तो आप के लिए उनकी बेचैनी समझ आ जाएगी। साथ ही यह भी साफ हो जाएगा कि शाहीन बाग के कारण आम लोगों को होने वाली परेशानी अब कैसे उनकी पंसदीदा पार्टी के लिए समस्या खड़ी कर रही है। दिल्ली यूनिवर्सिटी कैंपस की मस्जिद के इमाम हबीबुर रहमान के अनुसार केजरीवाल ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई। वे भाजपा पर बार-बार कौम का मसला उठाने का आरोप भी लगते हैं। उन्होंने कहा कि वोटों का बँटवारा रोकने की कोशिश जारी है।
केजरीवाल सरकार के काम से एक मीनार मस्जिद के इमाम मुफ्ती अब्दुल वाहिद भी खुश हैं। उन्होंने बताया कि इस चुनाव में AAP और अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट दिए जाने की बात चल रही है। चाँदनी चौक विधानसभा के मस्जिद तकिया मंडल शाह के इमाम मोहम्मद तैयब कासमी के अनुसार उनका फोकस भाजपा को हराने पर है। हजरत अबु मस्जिद के इमाम नजीर अहमद ने शाहीन बाग का दोष भी बीजेपी के मत्थे मढ़ने की कोशिश की।
हालाँकि जैतपुर पार्ट-2 स्तिथ जामा मस्जिद के इमाम जुबैर अहमद केजरीवाल के काम से खुश नहीं हैं। फिर भी वे चाहते हैं कि मुस्लिम भाजपा को वोट नहीं दें। मदीना मस्जिद के इमाम हाजी रियासत अली ने बताया कि पहले भले 10-20 फीसदी मुस्लिम भाजपा को वोट दे देते थे। अब कोई मुसलमान उन्हें वोट नहीं देगा। वैसे, मस्जिद मुबारक बेगम के इमाम मोहम्मद अजमल कासमी का मानना है कि वोटों का बँटवारा शायद ही रोकने में कामयाबी मिल पाए। अनारवाली मस्जिद के इमाम जुबैर अहमद ने शाहीन बाग के प्रदर्शन को गलत तरीके से पेश करने का आरोप भाजपा पर लगाया। मस्जिद-मदरसा अंजुमन इस्लामिया का कहना कि भाजपा के खिलाफ जो मजबूत उम्मीदवार हो मुसलमानों को उसे वोट देना चाहिए।
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दिल्ली में केजरीवाल का हारना देशहित में
जिस तरह शरजील के बयान आ रहे हैं, वह देशहित में नहीं। जब हम देश की गुप्तचर एजेंसीज और RAW के वर्तमान एवं सेवानिर्वित अधिकारियों की बातों का मन्थन करने पर कई बातें निकलकर आती हैं। कई बातें सुनकर होश ही उड़ जाते हैं। अगर केजरीवाल ने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में देश-विरोधी नारे लगाने वालों के विरुद्ध कार्यवाही करने की इजाजत दे दी होती, कोई शाहीन बाग़ एवं प्रदर्शन नहीं होता। यदि दिल्ली की जनता मुफ्तखोरी की चाहत से बाहर निकल CAA विरोधियों को चुनावों में चारों खाने चित करते हैं, उसके बहुत दूरगामी परिणाम होंगे। इसका प्रभाव केवल दिल्ली ही नहीं, समस्त भारत पर पड़ेगा। जब तक केजरीवाल सत्ता में रहेगा, देश इन अलगाववादियों को झेलने के लिए मजबूर होता रहेगा। प्रमाण देखिए: अलीगढ में भड़काऊ भाषण देकर भागा मुंबई से गिरफ्तार हुआ डॉ कफील का यह कहना,"मुझे यूपी मत भेजना", स्पष्ट कर रहा है कि भाजपा दंगाइयों और अलगाववादियों पर पहाड़ बन टूट रही। सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि पिछली सरकारों ने जितना इन एजेंसीज को कमजोर किया था, मोदी सरकार ने उससे कहीं अधिक इन्हे मजबूत किया है। जब तक दिल्ली में केजरीवाल सरकार रहेगी, पता नहीं कितने शरजील, खारिद और कन्हैया कुरकुरमुते की तरह अराजकता पैदा करते रहेंगे। अगर केजरीवाल ने जेएनयू में देश-विरोधी नारे लगाने वालों के विरुद्ध सख्ती दिखाई होती, दिल्ली ही देश में शांति रह रही होती।

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अब सवाल उठता है कि ये इमाम क्यों नहीं चाहते कि मुस्लिम अपनी पसंद के हिसाब से वोट करें? वे वोटों के बॅंटवारे को लेकर क्यों​ चिंतित हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है उनकी सैलरी जो केजरीवाल सरकार ने बढ़ा दी थी। मस्जिद के इमामों की सैलरी 10,000 से बढ़ाकर 18,000 और मुअज्जिन की सैलरी 9,000 से बढ़ाकर 16 हजार कर दी गई थी। इसके अलावा दिल्ली में करीब 1500 मस्जिदें ऐसी हैं, जहाँ पर वक्फ बोर्ड का डायरेक्ट कंट्रोल नहीं है और इन मस्जिदों में वक्फ बोर्ड की कमिटी नहीं है। वक्फ बोर्ड ने यह भी फैसला लिया था कि इन 1500 मस्जिदों के इमामों को सैलरी के तौर पर 14,000 रुपए दिए जाएँगे, जबकि मोअज्जिन को 12,000 रुपए मिलेंगे।

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