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चुनाव परिणाम के बाद उल्लू बोलते शाहीन बाग़ में |
जैसाकि सर्वविदित था कि दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध की आड़ में चल रहे प्रदर्शन के पीछे कौन सी ताकतें काम कर रही हैं। भारत के ‘टुकड़े-टुकड़े’ करने की मंशा रखने वाले शरजील इमाम की गिरफ़्तारी के बाद चीजें स्पष्ट हो गई हैं। शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों का जोश चुनाव परिणाम आते ही ठंडा पड़ गया। ऐसा प्रतीत होता है कि आम आदमी पार्टी की भारी जीत से मुस्लिमों का मकसद पूरा हो गया है। ‘अमर उजाला’ में प्रकाशित एक ख़बर ने भी इस बात की पुष्टि की। भाजपा की हार के साथ ही शाहीन बाग़ वीरान पड़ गया है और वहाँ से प्रदर्शनकारी जाने लगे हैं।
मोदी-योगी विरोधियों का नंगा नाच
मोदी विरोधियों ने चुनाव जीतने के लिए दो महीने तक लोगों को बढ़िया जलपान और बिरयानी खिलाकर खूब रोजगार दिया। खूब शोर मचाया जाता था कि जब तक CAA और NRC वापस नहीं होगा, यहीं बैठे रहेंगे। आखिर मजदूर वही काम करेगा, जो उसको बोला जाएगा, बच्चा मरता हो मर जाए, दो पैसों के लालच में बच्चे को भी खो दिया। यदि CAA विरुद्ध था, तो चुनाव परिणाम आते ही क्यों शाहीन बाग़ खाली होना शुरू हुआ, कहाँ है वो औरत जो अपना मर जाने पर कहती थी कि दो और बच्चे मरवाने को तैयार हूँ?जो प्रमाणित करता है,मोदी सरकार द्वारा तीन तलाक पर पाबन्दी लगाने के कारण भाजपा की ओर आकर्षित हुई मुस्लिम महिलाओं को पैसे के दम पर मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण कर भाजपा को हराना ही उद्देश्य था।
रोज 500 देने की बात उजागर होने पर मोदी विरोधी कहते थे कि "इतनी ठंठ में छोटे-छोटे बच्चों को लेकर कौन औरत आएगी", अब जवाब दो परिणाम आते-आते कहाँ गयी सब बिकाऊ? इस प्रकरण से जनता को भविष्य में ऐसे गैंगों से सचेत रहना होगा, अन्यथा शिक्षित होते हुए भी जनता किसी अशिक्षित से भी कम दिमाग होने का प्रमाण देंगे। शाहीन बाग़ उसका प्रमाण है, जहाँ भाजपा को हराने के लिए महिलाओं और माँ का दूध पीने वाले बच्चों का शोषण किया गया। 500 रूपए रोज देने पर भाजपा विरोधी केंद्र सरकार को चाहिए कि सख्ती से हिन्दू विरोधी नारे के खिलाफ कार्यवाही करे और दिल्ली सरकार को उन उपद्रवियों के कार्यवाही करने के बाध्य करे।
ये बातें फैक्ट-चेक का दावा करने वाली वेबसाइट ‘ऑल्टन्यूज़’ को नागवार गुजरी। ऑपइंडिया ने भी इस ख़बर को चलाया था, जिससे ‘ऑल्ट न्यूज़’ को मिर्ची लग गई। भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने ऑपइंडिया की इस ख़बर को शेयर किया, जिससे प्रतीक सिन्हा का प्रोपेगेंडा पोर्टल तिलमिला उठा। शाहीन बाग़ में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों का जमावड़ा लगा है, ये साबित करने के लिए उसने बेसिक गणित ज्ञान को भी तिलांजलि दे दी।
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खाली होता शाहीन बाग़ |
इसकी तुलना घोड़ा और घास वाली पेंटिंग से की जा सकती है। कहानी के अनुसार, एक पेंटिंग थी जो पूरी खाली थी। एकदम सफ़ेद। चित्रकार उसे घोड़ा और घास की पेंटिंग बताता था। किसी ने पूछ दिया कि चित्र में घास कहाँ है, तो पेंटर ने बताया कि घास तो घोड़ा खा गया। उसे भूख लगी थी तो छोड़ेगा थोड़े? जब पूछा गया कि घोड़ा कहाँ है, तो पेंटर ने जवाब दिया कि घास खा कर घोड़ा बैठा थोड़ी न रहेगा, वो चला गया पेट भर के अपना। यही हाल ‘ऑल्टन्यूज़’ का है। वो सैकड़ों प्रदर्शनकारी और सोते हुए प्रदर्शनकारी के बीच फँसा हुआ है।
‘ऑल्टन्यूज़’ ने दावा किया कि वहाँ सैकड़ों प्रदर्शनकारी मौजूद हैं, जबकि तस्वीरों में ऊँगली पर गिने जाने लायक ही प्रदर्शनकारी दिखते हैं। बाकी समय ‘ऑल्ट न्यूज’ नासा के सॉफ़टवेयर इस्तेमाल करके फोटो लेने की तारीख, समय और फोटोग्राफर का मूड तक बता दिया करता है, लेकिन इस तस्वीर के बारे में यही बता पाया कि प्रदर्शनकारी सो रहे थे। सवाल यह है कि वो वहाँ प्रदर्शन करने गए थे या सोने? क्या वहाँ प्रदर्शन के लिए शिफ्ट नहीं लगा करती थी? वो वहाँ संविधान बचा रहे हैं कि सो रहे हैं?
अवलोकन करें:-
‘ऑल्टन्यूज़’ ने प्रदर्शनकारियों की संख्या की पुष्टि क्यों नहीं की? ये तो वही बात हो गई कि किसी ने पूछा कि आसमान में कितने तारे हैं तो एक हाजिरजवाब व्यक्ति ने बताया कि जितने उसके सिर में बाल हैं, उतने ही। सैकड़ों प्रदर्शनकारी? कितने सौ? 200..300..400..?? अगर इतने हैं तो दिख क्यों नहीं रहे? क्या वो अदृश्य हैं? जिन चार तस्वीरों को दिखा कर, 8 बजे से 12 बजे की तस्वीरें बता कर ऑल्टन्यूज यह क्लेम कर रहा है कि वहाँ सैकड़ों कर्मचारी हैं, उनमें से तीन तस्वीरों में कुल दस लोग भी नहीं दिख रहे और चौथी में संख्या तीस के आस-पास है।
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