
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आख़िर कमल क्यों नहीं खिल पाया? 38% से अधिक वोटिंग प्रतिशत रहने के बावजूद भाजपा सत्ता क्यों नहीं ले पाई? इस बारे में ऑपइंडिया के डिप्टी न्यूज़ एडिटर अजीत झा का कहना है कि कुछ महीनों पहले तक चुनाव को एकतरफा माना जा रहा था। उन्होंने बताया कि मनीष सिसोदिया काफ़ी देर तक पीछे चल रहे थे। अगर उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम किया होता तो पटपड़गंज से सिसोदिया और कालकाजी आतिशी मर्लेना को जीतने के लिए इतना संघर्ष न करना होता।
मुफ्त में चीजें देने के बल पर राजनीति हर जगह नहीं चल सकती। ये ट्रेंड दक्षिण भारत से चला लेकिन आज वहीं फेल हो रहा है। ये चुनाव विकास के मुद्दे पर नहीं लड़ा गया, ये स्पष्ट है। फिर मुद्दे क्या थे? चेहरा एक ऐसा ट्रेंड है, जो दिल्ली को प्रभावित करता है। जब चुनाव में कोई बड़ा चेहरा आता है, तो दिल्ली उस पर भरोसा जताती है। शीला दीक्षित और अरविन्द केजरीवाल पर दिल्ली ने लगातार भरोसा जताया। लोकसभा चुनावों में भाजपा के पास मोदी के रूप में बड़ा चेहरा था, तो दिल्ली ने भाजपा को भारी मतों से विजयी बनाया।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों में ध्रुवीकरण हुआ और मुस्लिम बहुल इलाक़ों में भाजपा के ख़िलाफ़ वोट गए और मुस्लिमों ने AAP पर भरोसा जताया। जहाँ तक कांग्रेस की बात है, उसने अगर 2015 वाला परफॉरमेंस ही बरक़रार रखा होता तो शायद नतीजे कुछ और होते। कांग्रेस हर जगह भाजपा को रोकने के लिए कोशिश कर रही है, जिस चक्कर में वो चौथे नंबर की पार्टी बनने या राजद जैसे दलों का पिछलग्गू बनने में नहीं हिंचकती।
शीला दीक्षित के निधन के बाद कांग्रेस को घाटा हुआ क्योंकि उनके नेतृत्व में पार्टी के वोटर लौट रहे थे। कॉन्ग्रेस लगभग 10 सीटों पर मजबूती से लड़ रही थी लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने पूरी तरह समर्पण कर दिया। दिल्ली के खेल से कांग्रेस अब बाहर जा चुकी है। कांग्रेस ने जो भी राजनीति की, वो सोशल मीडिया पर की। पीसी चाको कांग्रेस के प्रभारी थे, जिनके शीला दीक्षित से मतभेद रहे हैं। सुभाष चोपड़ा को अध्यक्ष बनाया गया और कीर्ति झा आज़ाद को कैम्पेन कमिटी का अध्यक्ष बना दिया गया। दोनों ही लगभग निष्क्रिय रहे।
आप की मेज पर भाजपा क्यों?
मतदान वाले दिन, कई मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में आप की मेज पर भाजपा कार्यकर्ताओं को देखा गया, जो इस बात को प्रमाणित करता है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र में भाजपा का आप से कोई गुप्त समझौता हो गया है। यानि अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के सैकड़ों कार्यकर्ता होते हुए भी भाजपा को आप के साथ मेज साझा करने की क्या जरुरत थी? पिछले नगर निगम चुनाव में मंडल द्वारा मेज-कुर्सी तक नहीं दी गयी थी। खर्चे के दिया गए मात्र 1500 रूपए, और यही राशि अब दी गयी। नंगी क्या नाहे और क्या निचोड़े। अगर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हिन्दू कार्यकर्ता सक्रीय नहीं हुए, तो भाजपा का वो अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के कार्यकर्ता मैदान में क्यों नहीं आए, जिन्हें भाजपा के स्थानीय नेताओं से लेकर शीर्ष नेतृत्व तक कन्धों पर लिए घूमते हैं?
मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कोई प्रचार नहीं
जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ नागरिकता संशोधक कानून के विषय में खुलकर हर बात स्पष्ट कर रहे थे, उस स्थिति में अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का क्या कर्तत्व था? क्या उसे भाजपा के प्रचार में नहीं आना था? क्या वह भी गुप्त रूप से विरोधियों के साथ खड़े थे? क्या अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ मालपुए खाने के लिए है? क्यों नहीं आये खुलकर मैदान में? क्या वह कट्टरपंथियों के आदेश पर चलते हैं,भाजपा के आदेश पर नहीं?
भाजपा ने ही भाजपा को हराया
वास्तव में भाजपा का स्थानीय नेतृत्व अपने काम की बजाए केवल मोदी-योगी-अमित त्रिमूर्ति पर ही आश्रित है। दूसरे, जब दूसरी पार्टियों से आये लोगों को सिर बैठाने के कारण भी पार्टी को आघात लगा। क्योकि ये लोग पार्टी काम उतनी सक्रियता से नहीं करते जितना करना चाहिए, जिस कारण पार्टी के अनेक पुराने कमर्ठ कार्यकर्ताओं ने दूरी बनाए रखने में अपना सम्मान समझा।
इसी ब्लॉग पर एक लेख शीर्षक "भाजपा ही भाजपा को हराएगी" लिखा था, जो विधानसभा चुनावों में सत्यापित भी हो गया। दूसरे इसी लेख में स्पष्ट रूप से पार्टी विरोधी गतिविधियों पर रौशनी डालने का प्रयास किया था, परन्तु शीर्ष नेतृत्व ने कभी गंभीरता से नहीं लिया। जिसमे लोकसभा चुनाव से पूर्व ही व्हाट्सअप पर आम आदमी पार्टी को वोट देने की अपील की जा रही थी। देखिए प्रमाण:
[4:32 PM, 6/17/2019] Bhandari Ashok: The below Msg.is from Sonia BJP ex MCD Candidate from Sita Ram Bazar Ward through phone No. 8860648747 [4:32 PM, 6/17/2019] Bhandari Ashok: आप सभी से प्रार्थना है जो भी साथी दिल्ली से हो या दिल्ली में उनके मित्र, साथी, संबंधित रिश्तेदारों को बोले "झाड़ू" को वोट दें। ये आपके बच्चों के भविष्य के लिए बहुत ही अच्छा विकल्प है। इस बार प्रधानमंत्री बनाने के चक्कर मे न पड़े । प्रधानमंत्री तो आपने 2014 में भी बनाया था क्या मिला ? न अच्छी शिक्षा, न अच्छा स्वास्थ्य न अच्छा आचार विचार दिल्ली में कांग्रेस जीत नही रही है। तो कांग्रेस को वोट दे कर अपना वोट खराब न करे। 2014 में दिल्ली की 7 सीट्स पर कांग्रेस 3 स्थान पर रही थी। और आम आदमी पार्टी मात्र कुछ वोटों से हार गई थी बीजेपी को 2019 में हराना बहुत जरूरी है। वरना हर जगह हिन्दू मुस्लिम होता रहेगा धर्म के नाम पर राजनीति चलती रहेगी । देश को आगे बढ़ाने में अरविंद केजरीवाल जी की मदद करे। नोट: झाड़ू को ही वोट दे।[4:32 PM, 6/17/2019] Bhandari Ashok: की मदद करे। नोट: झाड़ू को ही वोट दे। [4:36 PM, 6/17/2019] Bhandari Ashok: Party virodhi hai to party ke program me nahi shamil ho
पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने क्या कार्यवाही की? ऐसे पदाधिकारियों से क्या पार्टी कभी जीत सकती है? भाजपा के विभिन्न मंडलों के कार्यकर्ताओं से बात करने पर ही स्पष्ट हो चूका था कि दिल्ली में केजरीवाल ही तीसरी बार बनेंगे। उनका मत था कि "जब निर्वाचित सदस्य है हर महीने करोड़ों की मुफ्त सुविधाएं लेकर सरकार को करोड़ों का चुना लगा रहे, ऊपर से पेंशन भी। फिर केजरीवाल अगर फ्री में बिजली और पानी दे रहा है, कौन-सा अहसान कर रहा है, क्यों नहीं केजरीवाल को ही वोट दिया जाए।" स्पष्ट है पार्टी कार्यकर्ता ऊपर से जरूर पार्टी के साथ था, लेकिन अंदर से केजरीवाल के साथ था।
स्थानीय स्तर पर गुप्त समझौता ?
ऐसी भी शंका व्यक्त की जा रही है कि स्थानीय स्तर पर आम आदमी पार्टी से गुप्त समझौता हो गया था, जिस कारण पार्टी का घर-घर प्रचार-प्रसार तक नहीं हुआ। कई क्षेत्रों में तो यह भी नहीं मालूम था कि भाजपा का उम्मीदवार कौन है? भाजपा मुस्लिम क्षेत्रों में चुनाव लड़ रही है या नहीं। गुप्त समझौते की बात गहरा इसलिए भी जाती है कि मतदान वाले दिन अधिकतर मुस्लिम क्षेत्रों में भाजपा को आम आदमी पार्टी के साथ मेज-कुर्सी साझा करते देखा, जो समझौते की शंका को प्रमाणित करता है। अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ तो मात्र एक शो-पीस है। इस गंभीर मसले पर प्रदेश नहीं, शीर्ष नेतृत्व को सख्त कार्यवाही करनी चाहिए। यह पार्टी के हित में उचित होगा। ऐसे पार्टी विरोधी काम करने को किस आधार पर पार्टी में स्थान दिया हुआ है, जो पार्टी में रहकर विरोधियों के चुपचाप मालपुए का आनंद ले रहे हैं?
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