निर्भय को न्याय मिलने में देरी का कारण लगता है तथाकथित मानवाधिकार और एमनेस्टी के इशारे पर ही फांसी से पूर्व आरोपियों के वकील कोई न कोई बहाना कर कोर्ट का दरवाज़ा खट-खटा कर फांसी टलवाने का प्रयास किया जा रहा था।
दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को एक 23 वर्षीय फिजियोथैरेपी की छात्रा निर्भया के साथ हुए सामूहिक बलात्कार एवं हत्या के मामले के चारों दोषियों को शुक्रवार (मार्च 20, 2020) की सुबह साढ़े पाँच बजे फाँसी दे दी गई। इसके साथ ही देश को झकझोर देने वाले, यौन उत्पीड़न के इस भयानक अध्याय का अंत हो गया। दोषी मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह तिहाड़ जेल में फाँसी के फंदे पर लटकाए जाने के बाद चहुँओर न्याय की जीत के जयकारे लग रहे हैं।
वहीं कुछ स्वघोषित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने दोषियों को मिली मौत की सजा को बदले की कार्रवाई बताया। ऐसे ही जयंत भट्टाचार्य ने निर्भया की माँ आशा देवी पर अपनी बेटी के लिए न्याय माँगने के लिए ‘गंदी मानसिकता’ और ‘खून की लालसा’ रखने का आरोप लगाया।
एक अन्य ट्विटर यूजर प्रकाश शास्त्री ने कहा कि कोई बलात्कारियों को फाँसी की सजा नहीं दे सकता। साथ ही उन्होंने दावा किया कि अगर मृत्युदंड देना बंद नहीं किया जाता है, तो भारत एक ‘प्रतिगामी समाज’ बन जाएगा। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि निर्भया मामले में दोषियों को फाँसी देने से उन्हें यह कहने में खुशी नहीं होगी कि न्याय दिया गया है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का छात्र होने का दावा करने वाले मोहम्मद मोजाहिद के नाम से एक ट्विटर यूजर ने लिखा कि मृत्युदंड ‘पलायनवाद’ और ‘हिंसा की संस्कृति’ का संकेत है।
जस्टिस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए, एमनेस्टी इंडिया, जो चुनिंदा आक्रोश और फेक प्रोपेगेंडा के लिए प्रसिद्ध है, ने दावा किया कि मौत की सजा कभी भी समाधान नहीं हो सकती और शुक्रवार के फाँसी की सजा से कथित तौर पर भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड में ‘एक और काला दाग’ लगा है।
मार्च 19, 2020 को कारवाँ मैगजीन, जो कि अपनी पतित प्रोपेगेंडा के लिए जाना जाता है, ने अपनी लेख में दोषी मुकेश सिंह के लिए सहानुभूति दिखाया था, जबकि असली पीड़िता निर्भया के लिए उसकी लेख में कोई सहानुभूति नहीं थी।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के विवादित जज (रिटायर) कुरियन जोसेफ ने पूछा था कि अगर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के दोषियों को फाँसी दी जाती है तो क्या ये बंद हो जाएगा? उन्होंने कहा कि मृत्युदंड जैसी सजा दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों में दिया जाना चाहिए। यानी कि इनके हिसाब से क्रूर गैंगरेप और हत्या दुर्लभ मामला नहीं है।
दुष्कर्म के मामले में आखिरी फॉंसी 14 अगस्त 2004 को धनंजय चटर्जी को अलीपुर सेंट्रल जेल में दी गई थी। वह कोलकाता में 14 साल की छात्रा से दुष्कर्म कर उसकी हत्या करने का दोषी था। इसके बाद 3 आतंकियों अफजल गुरु, अजमल कसाब और याकूब मेनन को सूली पर लटकाया गया था।
अगर हम भारत में मिले मृत्युदंड की संख्या का दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र यानी संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ तुलना करें तो जानकर आश्चर्य होगा कि सिर्फ 2019 में ही वहाँ पर 22 लोगों को फाँसी की सजा दी गई। इसके मुकाबले भारत काफी सावधानी पूर्वक मृत्युदंड के सजा का इस्तेमाल करता है।
हालाँकि, निर्भया के दोषियों के वकील ने अंत तक अपनी कोशिशें जारी रखी। इस कोशिश में पहले हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट में इस फाँसी को टालने की कोशिश की लेकिन वो काम नहीं आई। गुनहगारों को बचाने के लिए उनके वकीलों ने हर दॉंव आजमाया। यहॉं तक कि 19 मार्च की रात भी फॉंसी टालने की हरसंभव कोशिशें हुई।
अवलोकन करें:-
निर्भया की माँ आशा देवी ने 7 वर्षों तक यह लंबी लड़ाई लड़ी, जो कि आखिरकार दोषियों की फाँसी के साथ समाप्त हुई। इसके साथ ही शुक्रवार की सुबह दोषियों की फाँसी ने समाज को एक कठोर संदेश भी दिया कि इस तरह के अपराधों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को एक 23 वर्षीय फिजियोथैरेपी की छात्रा निर्भया के साथ हुए सामूहिक बलात्कार एवं हत्या के मामले के चारों दोषियों को शुक्रवार (मार्च 20, 2020) की सुबह साढ़े पाँच बजे फाँसी दे दी गई। इसके साथ ही देश को झकझोर देने वाले, यौन उत्पीड़न के इस भयानक अध्याय का अंत हो गया। दोषी मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह तिहाड़ जेल में फाँसी के फंदे पर लटकाए जाने के बाद चहुँओर न्याय की जीत के जयकारे लग रहे हैं।
वहीं कुछ स्वघोषित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने दोषियों को मिली मौत की सजा को बदले की कार्रवाई बताया। ऐसे ही जयंत भट्टाचार्य ने निर्भया की माँ आशा देवी पर अपनी बेटी के लिए न्याय माँगने के लिए ‘गंदी मानसिकता’ और ‘खून की लालसा’ रखने का आरोप लगाया।
एक अन्य ट्विटर यूजर प्रकाश शास्त्री ने कहा कि कोई बलात्कारियों को फाँसी की सजा नहीं दे सकता। साथ ही उन्होंने दावा किया कि अगर मृत्युदंड देना बंद नहीं किया जाता है, तो भारत एक ‘प्रतिगामी समाज’ बन जाएगा। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि निर्भया मामले में दोषियों को फाँसी देने से उन्हें यह कहने में खुशी नहीं होगी कि न्याय दिया गया है।
By hanging the culprits in Nirbhaya case we can’t rejoice in saying justice has been served. If we are to be progressive society, safety and respect to human life should be sacrosanct and death penalty should be off the table. Otherwise we will be a regressive society.— Prakash Sastry (@sastampere) March 20, 2020
Capital punishment isn't the solution, it is escapism.— Mohd Mojahid (@MohdMojahid3) March 20, 2020
The death penalty is a symptom of a culture of violence, not a solution to it. #Nirbhaya https://t.co/tWHlKA2Zh9
"What is actually needed are effective, long-term solutions like prevention and protection mechanisms to reduce gender-based violence, improving investigations, prosecutions and support for victims’ families" said Avinash Kumar, Executive Director of @AIIndia. #NirbhayaCase— Amnesty India (@AIIndia) March 20, 2020
https://t.co/Zc5ufJNiTz— Pratyasha Rath (@pratyasharath) March 19, 2020
This is probably the most disgusting article I have read in a long long time. The amount of whitewashing, purposeful blindness and absolute lack of empathy with the real victim (there is only one victim in this case), made me gag.
Vile attempt.
Supreme Court Justice (retired) Kurian Joseph: By hanging these people (Nirbhaya case convicts), will such type of crimes stop? In Bachan Singh case, SC said that death penalty can be handed over in rarest of rare case & only when all other options are unquestionably foreclosed. pic.twitter.com/zt7UB5NcKD— ANI (@ANI) March 18, 2020
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का छात्र होने का दावा करने वाले मोहम्मद मोजाहिद के नाम से एक ट्विटर यूजर ने लिखा कि मृत्युदंड ‘पलायनवाद’ और ‘हिंसा की संस्कृति’ का संकेत है।
जस्टिस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए, एमनेस्टी इंडिया, जो चुनिंदा आक्रोश और फेक प्रोपेगेंडा के लिए प्रसिद्ध है, ने दावा किया कि मौत की सजा कभी भी समाधान नहीं हो सकती और शुक्रवार के फाँसी की सजा से कथित तौर पर भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड में ‘एक और काला दाग’ लगा है।
मार्च 19, 2020 को कारवाँ मैगजीन, जो कि अपनी पतित प्रोपेगेंडा के लिए जाना जाता है, ने अपनी लेख में दोषी मुकेश सिंह के लिए सहानुभूति दिखाया था, जबकि असली पीड़िता निर्भया के लिए उसकी लेख में कोई सहानुभूति नहीं थी।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के विवादित जज (रिटायर) कुरियन जोसेफ ने पूछा था कि अगर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के दोषियों को फाँसी दी जाती है तो क्या ये बंद हो जाएगा? उन्होंने कहा कि मृत्युदंड जैसी सजा दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों में दिया जाना चाहिए। यानी कि इनके हिसाब से क्रूर गैंगरेप और हत्या दुर्लभ मामला नहीं है।
दुष्कर्म के मामले में आखिरी फॉंसी 14 अगस्त 2004 को धनंजय चटर्जी को अलीपुर सेंट्रल जेल में दी गई थी। वह कोलकाता में 14 साल की छात्रा से दुष्कर्म कर उसकी हत्या करने का दोषी था। इसके बाद 3 आतंकियों अफजल गुरु, अजमल कसाब और याकूब मेनन को सूली पर लटकाया गया था।
अगर हम भारत में मिले मृत्युदंड की संख्या का दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र यानी संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ तुलना करें तो जानकर आश्चर्य होगा कि सिर्फ 2019 में ही वहाँ पर 22 लोगों को फाँसी की सजा दी गई। इसके मुकाबले भारत काफी सावधानी पूर्वक मृत्युदंड के सजा का इस्तेमाल करता है।
हालाँकि, निर्भया के दोषियों के वकील ने अंत तक अपनी कोशिशें जारी रखी। इस कोशिश में पहले हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट में इस फाँसी को टालने की कोशिश की लेकिन वो काम नहीं आई। गुनहगारों को बचाने के लिए उनके वकीलों ने हर दॉंव आजमाया। यहॉं तक कि 19 मार्च की रात भी फॉंसी टालने की हरसंभव कोशिशें हुई।
अवलोकन करें:-
निर्भया की माँ आशा देवी ने 7 वर्षों तक यह लंबी लड़ाई लड़ी, जो कि आखिरकार दोषियों की फाँसी के साथ समाप्त हुई। इसके साथ ही शुक्रवार की सुबह दोषियों की फाँसी ने समाज को एक कठोर संदेश भी दिया कि इस तरह के अपराधों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
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