क्या राजस्थान और महाराष्ट्र में मध्य प्रदेश दोहराया जाएगा ?

क्या मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान और महाराष्ट्र में दोहराया जाएगा 'ऑपरेशन लोटस'?
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
मध्य प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया की ही तरह सचिन पायलट भी राहुल गांधी की युवा टीम के सदस्य हैं। राहुल उन्हें मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। लेकिन सोनिया गांधी के कांग्रेस की कमान थामने के बाद बुजुर्ग कांग्रेसियों ने एक बार फिर से अपना वर्चस्व कायम कर लिया है। इन्हीं बुजुर्ग नेताओं की सलाह पर अशोक गहलोत को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया
सचिन पायलट की नाराजगी शांत करने के लिए उन्हें उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी बनाया गया। लेकिन दोनों का झगड़ा खत्म नहीं हुआ। हाल ही में पायलट खेमे के कई विधायकों ने राजस्थान विधानसभा सत्र के दौरान अपने ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की खुली आलोचना की थी
राजस्थान कांग्रेस में भी टूट की आशंका 
राजस्थान में गहलोत और पायलट की जंग पर भारतीय जनता पार्टी की निगाहें लगातार जमी हुई हैं। प्रदेश भाजपा के सूत्रों ने दावा किया है कि गहलोत सरकार के तीन दर्जन यानी लगभग 36 विधायक उनके संपर्क में हैं। राजस्‍थान में विधानसभा की कुल 200 सीटे हैं। वहां सरकार बनाने के लिए 101 विधायकों की जरूरत पड़ती है। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 99 सीटों पर जीत मिली। जबकि भाजपा 73 सीटों पर सिमट गई थी

अगर कांग्रेस के 36 विधायक भाजपा के संपर्क में हैं तो गहलोत सरकार के पास मात्र 63 विधायक बच जाएंगे। हालांकि गहलोत ने बसपा के 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल करा लिया है। लेकिन उन्हें जोड़ भी लिया जाए तो कांग्रेस के पास 69 विधायक ही बचेंगे। जो कि बहुमत से 32 विधायक कम हैं। ऐसे में गहलोत सरकार मुश्किल में पड़ सकती है
हालांकि गहलोत को 11 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन हासिल है। लेकिन उन्हें जोड़ने के बाद भी उनके पास  बहुमत से 21 विधायक कम होंगे। 
महाराष्ट्र में भी सुलग रही है बगावत की आग
उधर महाराष्ट्र में भी जल्द ही बड़ा उलटफेर हो सकता है। मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरूपम ने अपनी ही पार्टी पर करारा वार किया है। उन्होंने कहा है कि उद्धव सरकार तीन दलों की सरकार है और मैं इसके बारे में हमेशा कहता हूं कि ये उधार का सिंदूर लेकर सुहागन बनने वाली बात है। ऐसे सुहाग ज्यादा दिन टिकते नहीं है। कांग्रेस को ऐसी सरकार का हिस्सा नहीं बनना चाहिए

महाराष्ट्र का सियासी गणित
महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की सरकार चल रही है। जिसमें मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को कांग्रेस और एनसीपी समर्थन दे रहे हैं। शिवसेना के पास 56 विधायक हैं। जबकि कांग्रेस के पास 44 और एनसीपी को 54 सीटें मिली थीं। ये तीनों के पास मिल कर 154 विधायक हैं। जो कि बहुमत से 9 ज्यादा हैं। महाराष्ट्र में विधानसभा की 288 सीटें हैं


लेकिन अगर कांग्रेस नेता संजय निरुपम महाराष्ट्र में बगावत कर देते हैं तो वहां कांग्रेस मुश्किल में पड़ जाएगी। क्योंकि वह पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके हैं और विधायकों पर उनकी अच्छी पकड़ है। संजय निरुपम शिवसेना में रह चुके हैं और कई पार्टियां बदलते हुए फिलहाल कांग्रेस में हैं। अगर वह भाजपा में शामिल होकर महाराष्ट्र सरकार गिरा देते हैं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए
क्या है सिंधिया, पायलट और निरुपम जैसे नेताओं की परेशानी
दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए राहुल गांधी ने युवा नेताओं को आगे बढ़ाने का काम किया था। जिसमें सिंधिया, पायलट और निरुपम जैसे नेता शामिल थे। लेकिन राहुल के कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद सोनिया ने कुर्सी संभाली। जिसके बाद कांग्रेस पार्टी में फिर से पुराने बुजुर्ग कांग्रेसियों का बोलबाला हो गया।जिसके बाद सिंधिया,पायलट और निरुपम जैसे युवा नेता हाशिए पर भेज दिए गए

हरियाणा में अशोक तंवर भी राहुल की युवा ब्रिगेड के ही सदस्य थे। जिनके जाने के बाद हरियाणा में कांग्रेस का सत्ता में आने का सपना चकनाचूर हो गया था
लेकिन अब सोनिया और उनकी बुजुर्ग ब्रिगेड भारत को कांग्रेस मुक्त बनाने की इबारत तेजी से लिख रही है, क्योंकि युवा नेता तेजी से कांग्रेस छोड़ चुके हैं या फिर छोड़ने की तैयारी में हैं

No comments: