पुलिस जल्लाद, लॉकडाउन काफी नहीं, लोग फूटकर सड़कों पर आ जाएँ : विनोद दुआ

विनोद दुआ
विनोद दुआ का दोहरा रवैया 
कोरोना महामारी के बीच मीडिया गिरोह की हरकतें अब बिलकुल बर्दाशत करने लायक नहीं रह गई हैं। बीते दिनों सिर्फ़ प्रधानमंत्री की अपीलों का अनुसरण करने वाले लोगों को ये गिरोह उल-जुलूल बातें कहते नजर आए थे। मगर अब तो इन्होंने हद कर दी है कि ये देश की स्थिति जानते हुए लॉकडाउन का विरोध कर रहे हैं। उसके खिलाफ़ लोगों को भड़का रहे हैं और उन्हें बाहर आने की वजह दे रहे हैं। जी हाँ, जिस समय सरकार, प्रशासन, स्वास्थ्यकर्मी, सुरक्षाकर्मी हर कोई देश के नागरिकों से घरों में रहने की अपील कर रहा है। बार-बार उन्हें कोरोना से बचाए रखने की कोशिश कर रहा हैं। उस बीच मीडिया गिरोह के बुजुर्ग सदस्य विनोद दुआ अपनी अनर्गल बातों व फालतू के तर्कों को वीडियो के माध्यम से ला लाकर समाज में जहर फैलाने के लिए अग्रसर हैं।
सब जानते-समझते-परखते हुए कि जिस तरह देश में कोरोना मामले बढ़ रहे थे, उस समय देश में लॉकडाउन व सोशल डिस्टेंसिंग का फैसला लेना कितना आवश्यक था और इस फैसले को लेने में देरी की जाती तो हालात बदतर हो सकते थे। बावजूद इसके विनोद दुआ ने अपने तथाकथित बुद्धिजीवि होने का प्रमाण पेश किया है। एचडब्ल्यू न्यूज नेटवर्क पर स्थिति का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कई वीडियोज़ में सरकार और पुलिस पर सवाल उठाए हैं।
लॉकडाउन के बाद सामने आई वीडियोज़ में वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ हर तथ्य से लोगों को भड़का रहे हैं। सरकार को संवेदनहीन बता रहे हैं और देश की पुलिस को अंग्रेजों के समय वाली पुलिस जैसी पुलिस बता रहे हैं। इसके अलावा अपनी ताजा वीडियो (एपिसोड 261) की शुरुआत में ही लॉकडाउन के मामले में नागरिकों के सामने सविनय अवज्ञा करने की भी बात कर रहे हैं।

उन्होंने अपने एपिसोड नंबर 253 में जहाँ पुलिस को जल्लाद कहकर अमानवीय बताया है। वहीं ये भी पूछा है कि अगर लॉकडाउन से पहले लोगों को तैयारी के लिए कम समय दिया जाएगा तो वो पैनिक नहीं होंगे तो क्या करेंगे? वीडियो के अंत तक उनका कहना है कि सरकार ने जो 1500 करोड़ रुपए दिए हैं उससे देश का काम नहीं चलेगा। क्योंकि वो चवन्नी-अठन्नी हैं। इसके लिए 5-6 लाख करोड़ रुपयों की आवश्यकता है। ताकि लोगों को सड़कों पर उतरने से रोका जा सके।
वे अपनी वीडियो के जरिए लोगों को विकल्प दे रहे हैं कि या तो वे लॉकडाउन को मानने से अंदर ही अंदर इंकार कर दें। जैसे सिविल नाफरमानी। क्योंकि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए लॉकडाउन काफी नहीं है। या फिर ये लोग फूटकर सड़कों पर आ जाएँ क्योंकि आखिर वे कब तक एनजीओ या सरकारी संगठन के दिए खाने को खाकर जिंदा रहेंगे। इसके अलावा वो इस समय में भी लोगों को बेरोजगारी के नाम पर वीडियो में डराते हैं। साथ ही कहते हैं सरकार और स्वयं सेवी संस्था इस समय जो भी कर रहे हैं। उससे काम नहीं चलने वाला। यानी वे सबके प्रयासों को खारिज कर देते हैं।
हैरानी की बात है न कि आखिर लंबे समय से पत्रकार के रूप में पहचाने जाने वाला ये शख्स ऐसी बातें कैसे कर सकता है। इसका काम तो इस घड़ी में लोगों से अपील करने का होना चाहिए था कि वे खुद को सुरक्षित रखें। जहाँ से जो मदद मिले उसका फायदा उठाएँ… फिर आखिर वे यह सब क्यों कर रहे हैं?
ये जहर इतना ही नहीं है। विनोद दुआ ने अपनी इन वीडियोज में सरकार प्रशासन सब पर सवाल उठाए हैं। खुद को देश के नागरिकों का हितैषी स्थापित करते हुए उन्हें जमकर भड़काया है। अपने कुतर्कों से उन्हें गुमराह करने की कोशिश की है। वीडियोज की शुरुआत से लेकर अंत तक में विनोद दुआ एक भी बार देश के नागरिकों को कोरोना से बचे रहने की बात कहते नजर नहीं आते। बल्कि सरकार के ख़िलाफ़ बोलते, उनके फैसलों की निंदा करते और लोगों को उकसाते नजर आते हैं।
विश्लेषण की शुरुआत में वे अपनी दिक्कत इस बात पर दिखाते हैं कि आखिर प्रधानमंत्री हर ऐलान रात के 8 बजे क्यों करते हैं और जब करते हैं तो फिर वो फैसला 12 बजे से क्यों लागू होना होता है? जैसे नोटबंदी, जीएसटी आदि। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री सिर्फ़ 4 घंटे का समय देते हैं। इससे लोगों को दिक्कत होती हैं। इसके बाद दुआ किसानों की स्थिति बताकर विषय को गंभीर मोड़ देने की कोशिश करते हैं। वे सवाल करते हैं कि गेहूँ बाजार तक कैसे पहुँचेगा और अगर पहुँच भी गया तो लोग उसे कैसे खरीदेंगे। वे सरकार से पूछते नजर आते हैं कि आखिर इस देश में जो लॉकडाउन कर दिया गया है। उसे सिर्फ़ पुलिस के भरोसे क्यों किया गया।
विनोद को शायद यह भी नहीं मालूम कि दिल्ली में ही कई स्थानों पर जनता पुलिस के साथ मिलकर लॉक डाउन पालन करने के लिए सडकों पर है। इतना ही नहीं कुछ क्षेत्रों में पुलिस से पहले लोग अपनी जरुरत की चींजे खरीदने बाहर आये लोगों को बिना मास्क के होने पर वापस भेजते देखे जाते हैं, दुकान पर उचित दूरी बनाए रखने में आम नागरिक पुलिस को सहयोग करते देखे जा सकते हैं। बहस होने की स्थिति में ही पुलिस को हस्ताक्षेप करते देखा गया है। सरकार अथवा पुलिस की आलोचना करो, करनी भी चाहिए, लेकिन वक़्त की नजाकत को भी समझना चाहिए। ये वो समय है जब हर नागरिक को, चाहे वह किसी भी क्षेत्र से हो, इस समय सरकार और पुलिस के साथ खड़े होकर इस वैश्विक कोरोना को हराना होगा।    
ये वो समय है जब सरकार और देश की जनता अच्छे से जानती है कि इस समय कुछ भी किसी के भी हाथ नहीं है। मगर फिर भी सरकार स्थिति सुधारने के लिए प्रयासरत है। हर देश के पास इस समय लॉकडाउन के अलावा कोई विकल्प नहीं है। क्योंकि इस महामारी की दवाई तैयार होने तक यही एक रास्ता है कि इसकी चेन तोड़ी जाए। जो बिना दूरी बनाए संभव नहीं है।
अवलोकन करें:-
सरकार मानती है कि इस समय देश का गरीब वर्ग दिक्कत में है। जिसके लिए वह इंतजाम कर रही है। बड़े-बड़े धनवान सामने आ रहे हैं। ऐसे में जनता के मन में ये डालना कि आखिर कब तक वे एनजीओ आदि की मदद पर खाना खाएँगे, उन्हें भड़काना नहीं, तो क्या है? खुद सोचिए, इस संवेदनशील स्थिति में, सरकार के कदमों पर सवाल उठाना कहाँ तक जरूरी है? और कहा तक जरूरी है पुलिस को जल्लाद बताना, जो अपनी जान को खतरे में डालकर नागरिकों की सुरक्षा में तैनात है।

No comments: