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वैदिक शिक्षक डेविड फ्रॉली : ‘राम मंदिर निर्माण नेहरूवादियों, मार्क्सवादियों, मीडिया, शिक्षाविदों की हार है, जिसने इतिहास, पुरातत्व, भक्ति को नकारने की कोशिश की’

डेविड फ्रॉली ने
पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित अमेरिकी वैदिक शिक्षक डेविड फ्रॉली ने बुधवार (अगस्त 5, 2020) को कहा कि राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत एक अरब सपनों का साकार होना है। ज्ञात हो, डेविड फ्रॉली वेद, हिन्दुत्व, योग, आयुर्वेद और वैदिक एस्ट्रॉलजी पर कई किताबें लिख चुके हैं।
डेविड फ्रॉली ने टाइम्स नाउ के प्रधान संपादक राहुल शिवशंकर के साथ एक्सक्लुसिव इंटरव्यू में राम मंदिर पर अपने विचार रखते हुए कहा कि भगवान राम की महिमा को पुन: स्थापित किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि अयोध्या विवाद संभवतः दुनिया के इतिहास में सबसे अधिक समय तक चलने वाला मुकदमा था।
अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन का कार्यक्रम
भूमि पूजन करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 
डेविड फ्रॉली ने राम मंदिर के निर्माण को देश की आजादी के बाद आधुनिक भारत की सबसे महत्वपूर्ण घटना बताते हुए कहा कि रामायण एशिया की सबसे लोकप्रिय कहानियों में से एक है और अब राम मंदिर भारत को उसके वास्तविक भाग्य के प्रति जागृत करेगा। उन्होंने आगे कहा, “हमें ‘अयोध्या के विजय’ को श्री राम की विजय के रूप में स्वीकार करना चाहिए।”
फ्रॉली ने कहा कि अयोध्या भारत के सात पवित्र शहरों में सबसे महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही उन्होंने कहा, “हिन्दू धर्म एक परंपरा है जो कई प्रकार के आध्यात्मिक मार्ग स्वीकार करता है। यह संकीर्ण विचारधारा वाली परंपरा नहीं है।”

फ्रॉली ने आगे कहा, “हिन्दुओं ने अपने मंदिरों के पुन: प्राप्ति के लिए राजनीतिक रूप से कोई स्टैंड नहीं लिया। जब तक हिन्दू राजनीतिक रूप से स्टैंड नहीं लेगें, उन्हें अल्पसंख्यक ही माना जाएगा, उन जगहों पर भी, जहाँ पर वो बहुसंख्यक हैं।”
फ्रॉली ने ट्वीट करते हुए लिखा था, “राम मंदिर का निर्माण नेहरूवादियों, मार्क्सवादियों, माओवादियों, चीन समर्थकों, मीडिया और शिक्षाविदों के लिए हार है, जिसने इतिहास, पुरातत्व और भक्ति को नकारने की कोशिश की थी।”
डॉ फ्रॉली ने अपने ट्वीट के माध्यम से वास्तविकता को नकारने वालों को बेनकाब कर एक नयी बहस को जन्म दे दिया है। ट्विटर पर इनके पक्षकारों की भी कमी नहीं। इस सच्चाई से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि केवल मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते भारत के गौरवमयी इतिहास को अंधकारमय कर मुग़ल आतताइयों को महान बताया गया, जो भारत के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण समय रहा। यदि वास्तविक इतिहास पढ़ाया जाता न अयोध्या मुद्दा विवादित बनता और न ही रामजन्म स्थान मुकदमा इतना लम्बा चलता।
साम्प्रदायिक कौन?
जब संघ समर्पित विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल एवं हिन्दू महासभा ने हिन्दुओं को अपने राम के प्रति जागृत करने आंदोलन कर रहे थे, छद्दम धर्म-निरपेक्षों के साथ हमारा मीडिया संघ, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और हिन्दू महासभा के विरुद्ध देश में शांति भंग कर साम्प्रदायिकता का जहर फ़ैलाने जैसे समाचारों को खूब प्रसारित कर रहा था। बाबरी पक्षकार और इनके समर्थक दल झूठ पर झूठ बोल जनता को गुमराह कर राममंदिर पक्षकारों के विरुद्ध समाचारों को प्रमुखता दे रहे थे, उस समय किसी खोजी पत्रकार ने वास्तविकता को उजागर करने का साहस तक नहीं किया। 2014 चुनाव के बाद ऐसा समय चक्र घुमा, वही मीडिया गले फाड़-फाड़ कर राम धुन गाने लगा।
अगर राम मंदिर मुक़दमे का गहन अध्ययन किया जाए, तो तुष्टिकरण की चाटुकारिता में मुस्लिम कट्टरपंथियों का साथ छद्दम धर्म-निरपेक्ष, धूर्त नारा गंगा-जमुना तहजीब, संविधान पर आघात का शोर मचाने वाले हिन्दुओं की भी जमात थी। राम के अस्तित्व को नाकारा जा रहा है, लालची हिन्दू धर्म पर होते प्रहारों को बर्दाश्त करते रहे। मुस्लिम कट्टरपंथी तो साम्प्रदायिकता फ़ैलाने में बदनाम है, लेकिन इनका साथ देने में जयचन्दी हिन्दू भी पीछे नहीं रहे।
इतना ही नहीं, अभी जब नागरिकता संशोधक कानून के विरोध में हुए धरने और प्रदर्शनों में साम्प्रदायिकता का नंगा नाच इन्हीं जयचन्दी हिन्दुओं के सम्मिलित रहते "fuck hindutva ", "मोदी तेरी कब्र खुदेगी" और "योगी तेरी कब्र खुदेगी" आदि नारेबाजी के माध्यम से होता रहा। दूसरे, जब दिल्ली में हिन्दू-विरोधी दंगे हुए, तो आरोपियों को बचाने में यही छद्द्म धर्म-निरपेक्ष हिन्दू आगे आ रहा है, इनमें से कोई कोट पर जनेऊ पहन घूमते देखा गया तो किसी को हनुमान चालीसा पढ़ते आदि।     




प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में बुधवार(अगस्त 5) को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया और मंदिर की आधारशिला रखी। इसके बाद उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा, “यह मेरा सौभाग्य था कि श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने मुझे मंदिर निर्माण के भूमि पूजन में आमंत्रित किया। आज पूरा देश राममय और हर मन दीपमय है। सदियों का इंतजार समाप्त हुआ।”
मोदी ने कहा, ”राम हमारे मन में गढ़े हुए हैं, हमारे भीतर घुल-मिल गए हैं। कोई काम करना हो, तो प्रेरणा के लिए हम भगवान राम की ओर ही देखते हैं। भगवान राम की अद्भुत शक्ति देखिए। इमारतें नष्ट कर दी गईं, अस्तित्व मिटाने का प्रयास भी बहुत हुआ, लेकिन राम आज भी हमारे मन में बसे हैं, हमारी संस्कृति का आधार हैं। श्रीराम भारत की मर्यादा हैं, श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।”

नरेंद्र मोदी को फेक न्यूज फैलाकर हराएँ: शेखर गुप्ता

वीके सिंह शेखर गुप्ता
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
जबसे 2014 में मोदी सरकार बनी है, मोदी विरोधियों की नींद हराम हो चुकी है। और 2019 चुनावों ने जले पर नमक डाल दिया है। अब इनका उद्देश्य फर्जी खबरें चलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार को बदनाम करने फर्जी ख़बरों का सहारा लेने के लिए कुछ सम्पादकों और पत्रकारों को मालपुए खिला रहे हैं।  
शुक्रवार (मई 15, 2020) को ‘द प्रिंट’ ने सारी बेशर्मी को पार करते हुए अपनी वेबसाइट पर एक लेख प्रकाशित किया। जिसका लब्बोलुबाब यह था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने के लिए विपक्ष फेक न्यूज फैलाए।
इस लेख में मुख्यत: इस बात पर जोर दिया गया कि लिबरलों को/विपक्षियों को नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ छिड़ी जंग में किस प्रकार फेक न्यूज को बढ़ावा देना चाहिए। इस लेख में अपनी बातों को सही ठहराने के लिए द प्रिंट ने अमेरिकी थिंक-टैंक रैंड कॉर्पोरेशन के लिए लिखे गए क्रिस्टोफर पॉल और मिरियम मैथ्यूज के एक लेख का हवाला दिया है।
प्रिंट के लेख में तर्क दिया गया कि पूरे विश्व में आज झूठ को तेजी से फैलाना प्रोपेगेंडा फैलाने का सबसे शक्तिशाली उपकरण बनता जा रहा है। इसलिए जो लोग इस प्रोपेगेंडा को हराना चाहते हैं, उन्हें अपने झूठ को आग की तरह फैलाना होगा। 
मोदी सरकार के खिलाफ फेक न्यूज फैलाने की सलाह देने पर केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने लगाई शेखर गुप्ता को लगाई लताड़
सत्तारुढ़ भाजपा के खिलाफ कॉन्ग्रेस के इकोसिस्टम द्वारा फेक न्यूज फैलाए जाने के प्रपंच को सड़क परिवहन और राजमार्ग राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह ने आड़े हाथों लिया। उन्होंने मोदी सरकार के खिलाफ फर्जी न्यूज फैलाने को बढ़ावा दिए जाने को लेकर प्रकाशित लेख पर एडिटर्स गिल्ट ऑफ इंडिया के प्रमुख शेखर गुप्ता को लताड़ लगाई।
रिटायर्ड जनरल वीके सिंह ने अपने ट्वीट में लिखा कि जब आप किसी ऐसे आर्टिकल को शेयर करते हैं, जिसमें सरकार पर सवाल उठाया गया हो, तो ये आपका लोकतांत्रिक अधिकार है। इसी तरह अगर आप दुनिया में घटित होने वाले किसी अन्य घटनाओं को रिट्वीट करते हो तो ये भी आपका लोकतांत्रिक अधिकार है।
शेखर गुप्ता पर हमला करते हुए सिंह ने कहा कि जब कोई शख्स एडिटर्स गिल्ड के अध्यक्ष के रुप में किसी आर्टिकल को रिट्वीट करता है, जिसमें न केवल सरकार पर सवाल उठाया गया हो, बल्कि लिबरलों को/विपक्षियों को नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ छिड़ी जंग में फेक न्यूज को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया हो, तो यह उनकी बिरादरी को भी अपमानित करता है।
शेखर गुप्ता ने खुद भी उस विवादित आर्टिकल को रिट्वीट किया था, जिसके बाद केंद्रीय मंत्री की यह तीखी प्रतिक्रिया सामने आई। वीके सिंह ने शेखर गुप्ता पर कटाक्ष करते हुए उन्हें ‘कूप्ता’ भी कहा।
सोशल मीडिया पर शेखर गुप्ता के लिए कूप्ता शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है, क्योंकि उन्होंने जनरल वीके सिंह के सेना में रहने के दौरान शेखर गुप्ता ने फर्जी तख्तापलट की कहानी प्रकाशित की थी। शेखर गुप्ता उस समय इंडियन एक्सप्रेस में कार्यरत थे। वीके सिंह ने उनसे कहा कि भले ही वे अपने पेशे के प्रति ईमानदार नहीं हो सकते, लेकिन अपने संपादक पद के प्रति ईमानदार रहें।
जनरल वीके सिंह ने शेखर गुप्ता के लिए ‘बिके हुए’ पत्रकार शब्द का इस्तेमाल करते हुए फर्जी खबरों को फैलाने, अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध लगाने व राजनैतिक विरोधियों पर कार्रवाई करने के आह्वान के साथ ही तख्तापलट की झूठी खबर को प्रकाशित करने को लेकर मजाक उड़ाया।
शेखर गुप्ता के खिलाफ हमला ऐसे समय में हुआ है, जब हाल के दिनों में ‘द प्रिंट’ एक कुख्यात फर्जी खबर फैलाने वाले वेबसाइट के रुप में उभरा है। मुख्यधारा मीडिया जो पिछले काफी समय से फर्जी की खबरें फैला रहे हैं, वे केवल राजनीति के एक धड़े को फायदा फहुँचाने के लिए है।
जाहिर है वो धड़ा भाजपा का नहीं है। इस काम में पिछले कुछ समय में शेखर गुप्ता का द प्रिंट सबसे आगे रहा है और अब तो इसके पीछे की वजह भी साफ हो गई है।
द प्रिंट तमाम झूठ फैलाने के बाद अपनी नैतिक श्रेष्ठता पर इतना आश्वस्त है कि लेख से ऐसी बातें बताने की कोशिश कर रहा है कि विपक्ष के पास राजनैतिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए फेक न्यूज फैलाने की आज़ादी है और वे इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
द प्रिंट, मोदी, फेक न्यूज
कपिल सिबल के साथ शेखर गुप्ता 
नरेंद्र मोदी को फेक न्यूज फैलाकर हराएँ: शेखर गुप्ता
पिछले कुछ समय में फर्जी खबरों को फैलाने में मुख्यधारा मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि फेक न्यूज फैलाने के पीछे उनका मुख्य उद्देश्य द्वेष के अतिरिक्त कुछ नहीं हेता। द प्रिंट ने आज इसी बात को साबित करते हुए अपनी वेबसाइट पर एक लेख प्रकाशित किया है। जिसका लब्बोलुबाब यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने के लिए विपक्ष फेक न्यूज फैलाए।
इस लेख में मुख्यत: इस बात पर जोर दिया गया कि लिबरलों को/विपक्षियों को नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ छिड़ी जंग में किस प्रकार फेक न्यूज को बढ़ावा देना चाहिए। इस लेख में अपनी बातों को सही ठहराने के लिए द प्रिंट ने अमेरिकी थिंक-टैंक रैंड कॉर्पोरेशन के लिए लिखे गए क्रिस्टोफर पॉल और मिरियम मैथ्यूज के एक लेख का हवाला दिया है।
प्रिंट के लेख में तर्क दिया गया कि पूरे विश्व में आज झूठ को तेजी से फैलाना प्रोपेगेंडा फैलाने का सबसे शक्तिशाली उपकरण बनता जा रहा है। इसलिए जो लोग इस प्रोपेगेंडा को हराना चाहते हैं, उन्हें अपने झूठ को आग की तरह फैलाना होगा। जैसे हिंदी में कहते हैं कि लोहा ही लोहे को काटता है। जब जनता के मत को फर्जी खबरों और झूठों से बरगलाया जा रहा है, उस समय विपक्ष फैक्ट चेक करके पूरा खेल नहीं जीत सकता।
इस लेख में हालाँकि, अपनी सारी बातें द प्रिंट ने सकारात्मक रूप से दर्शाने की कोशिश की है। लेकिन वास्तविकता में उनका क्या मतलब है इस बात को अच्छे से समझा जा सकता है।
द प्रिंट का ये लेख इतने बिंदुओं पर नहीं खत्म होता। लेख में अंत तक आते-आते अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध लगाने व राजनैतिक विरोधियों पर कार्रवाई करने का आह्वान की बात शामिल कर ली जाती है। साथ ही इस लेख में विपक्षियों को सुझाव दिया जाता है कि वे अपने विरोधियों के झूठ की श्रृंखला पर प्रहार करें।
लेखक चरणबद्ध तरीके से समझाता है कि कैसे विपक्षियों को हराया जा सकता है। वह कहता है कि अगर विपक्षी शासित राज्य अपने राज्यों में फर्जी खबरों और सांप्रदायिक घृणा फैलाने वालों पर शिकंजा नहीं कस रहे तो वह बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं।
अब ये ध्यान देने वाली बात है कि ‘हेट स्पीच’ का मतलब जरूरी नहीं एक व्यक्ति के लिए जो हो, वहीं दूसरे व्यक्ति के लिए भी हेट स्पीच कहलाए। दरअसल, हर व्यक्ति अपने मतों के हिसाब से किसी की बातों को हेट स्पीच कहता है और सरकार भी अपना राजनैतिक पलड़ा देखते हुए इसकी परिभाषा तय करता है।
उदाहरण के लिए अर्नब गोस्वामी के केस में यही हुआ। जहाँ कॉन्ग्रेस पॉर्टी ने सोनिया गाँधी पर सवाल उठाए जाने को कम्यूनल वॉयलेंस यानी साम्प्रदायिक हिंसा करार दे दिया। साथ ही जहाँ-जहाँ कॉन्ग्रेस शासित राज्य थे, वहाँ उन पर शिकायत दर्ज हो गई और कार्रवाई की माँग उठने लगी। आज शेखर गुप्ता का द प्रिंट अपने इस लेख के जरिए जिन बातों को तर्कों में गढ़कर समझा रहा है, उसका निष्कर्ष यही है कि कैसे राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में नरेंद्र मोदी के समर्थकों को दबाया जाए।
यहाँ स्पष्ट तौर पर बता दें कि मुख्यधारा मीडिया जो पिछले समय से फर्जी की खबरें फैला रहा है, वे केवल राजनीति के एक धड़े को फायदा फहुँचाने के लिए है। जाहिर है वो धड़ा भाजपा का नहीं है। इस काम में पिछले कुछ समय में शेखर गुप्ता का द प्रिंट सबसे आगे रहा है और अब तो इसके पीछे की वजह भी साफ हो गई है।
द प्रिंट तमाम झूठ फैलाने के बाद अपनी नैतिक श्रेष्ठता पर इतना आश्वस्त है कि लेख से ऐसी बातें बताने की कोशिश कर रहा है कि विपक्ष के पास राजनैतिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए फेक न्यूज फैलाने की आज़ादी है और वे इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
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दिल्ली पुलिस ने ‘द वायर’ को एक फर्जी रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए फटकार लगाई है। दिल्ली दंगों की आरोपित सफूरा जरगर...
द प्रिंट के लिए इस लेख को लिखने वाले शिवम विज वही पत्रकार हैं, जिन्होंने एक समय में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को व्हॉइटवॉश करने की कोशिश की थी। अब इस लेख को पढ़कर भी यही लगता है कि मीडिया गिरोह में शिवम से लेकर शेखर गुप्ता तक के लिए फर्जी न्यूज फैलाना तब तक उचित है, जब तक इसका उपयोग नरेंद्र मोदी और हिंदुत्व को हराने के लिए किया जाए।

पुलिस जल्लाद, लॉकडाउन काफी नहीं, लोग फूटकर सड़कों पर आ जाएँ : विनोद दुआ

विनोद दुआ
विनोद दुआ का दोहरा रवैया 
कोरोना महामारी के बीच मीडिया गिरोह की हरकतें अब बिलकुल बर्दाशत करने लायक नहीं रह गई हैं। बीते दिनों सिर्फ़ प्रधानमंत्री की अपीलों का अनुसरण करने वाले लोगों को ये गिरोह उल-जुलूल बातें कहते नजर आए थे। मगर अब तो इन्होंने हद कर दी है कि ये देश की स्थिति जानते हुए लॉकडाउन का विरोध कर रहे हैं। उसके खिलाफ़ लोगों को भड़का रहे हैं और उन्हें बाहर आने की वजह दे रहे हैं। जी हाँ, जिस समय सरकार, प्रशासन, स्वास्थ्यकर्मी, सुरक्षाकर्मी हर कोई देश के नागरिकों से घरों में रहने की अपील कर रहा है। बार-बार उन्हें कोरोना से बचाए रखने की कोशिश कर रहा हैं। उस बीच मीडिया गिरोह के बुजुर्ग सदस्य विनोद दुआ अपनी अनर्गल बातों व फालतू के तर्कों को वीडियो के माध्यम से ला लाकर समाज में जहर फैलाने के लिए अग्रसर हैं।
सब जानते-समझते-परखते हुए कि जिस तरह देश में कोरोना मामले बढ़ रहे थे, उस समय देश में लॉकडाउन व सोशल डिस्टेंसिंग का फैसला लेना कितना आवश्यक था और इस फैसले को लेने में देरी की जाती तो हालात बदतर हो सकते थे। बावजूद इसके विनोद दुआ ने अपने तथाकथित बुद्धिजीवि होने का प्रमाण पेश किया है। एचडब्ल्यू न्यूज नेटवर्क पर स्थिति का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कई वीडियोज़ में सरकार और पुलिस पर सवाल उठाए हैं।
लॉकडाउन के बाद सामने आई वीडियोज़ में वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ हर तथ्य से लोगों को भड़का रहे हैं। सरकार को संवेदनहीन बता रहे हैं और देश की पुलिस को अंग्रेजों के समय वाली पुलिस जैसी पुलिस बता रहे हैं। इसके अलावा अपनी ताजा वीडियो (एपिसोड 261) की शुरुआत में ही लॉकडाउन के मामले में नागरिकों के सामने सविनय अवज्ञा करने की भी बात कर रहे हैं।

उन्होंने अपने एपिसोड नंबर 253 में जहाँ पुलिस को जल्लाद कहकर अमानवीय बताया है। वहीं ये भी पूछा है कि अगर लॉकडाउन से पहले लोगों को तैयारी के लिए कम समय दिया जाएगा तो वो पैनिक नहीं होंगे तो क्या करेंगे? वीडियो के अंत तक उनका कहना है कि सरकार ने जो 1500 करोड़ रुपए दिए हैं उससे देश का काम नहीं चलेगा। क्योंकि वो चवन्नी-अठन्नी हैं। इसके लिए 5-6 लाख करोड़ रुपयों की आवश्यकता है। ताकि लोगों को सड़कों पर उतरने से रोका जा सके।
वे अपनी वीडियो के जरिए लोगों को विकल्प दे रहे हैं कि या तो वे लॉकडाउन को मानने से अंदर ही अंदर इंकार कर दें। जैसे सिविल नाफरमानी। क्योंकि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए लॉकडाउन काफी नहीं है। या फिर ये लोग फूटकर सड़कों पर आ जाएँ क्योंकि आखिर वे कब तक एनजीओ या सरकारी संगठन के दिए खाने को खाकर जिंदा रहेंगे। इसके अलावा वो इस समय में भी लोगों को बेरोजगारी के नाम पर वीडियो में डराते हैं। साथ ही कहते हैं सरकार और स्वयं सेवी संस्था इस समय जो भी कर रहे हैं। उससे काम नहीं चलने वाला। यानी वे सबके प्रयासों को खारिज कर देते हैं।
हैरानी की बात है न कि आखिर लंबे समय से पत्रकार के रूप में पहचाने जाने वाला ये शख्स ऐसी बातें कैसे कर सकता है। इसका काम तो इस घड़ी में लोगों से अपील करने का होना चाहिए था कि वे खुद को सुरक्षित रखें। जहाँ से जो मदद मिले उसका फायदा उठाएँ… फिर आखिर वे यह सब क्यों कर रहे हैं?
ये जहर इतना ही नहीं है। विनोद दुआ ने अपनी इन वीडियोज में सरकार प्रशासन सब पर सवाल उठाए हैं। खुद को देश के नागरिकों का हितैषी स्थापित करते हुए उन्हें जमकर भड़काया है। अपने कुतर्कों से उन्हें गुमराह करने की कोशिश की है। वीडियोज की शुरुआत से लेकर अंत तक में विनोद दुआ एक भी बार देश के नागरिकों को कोरोना से बचे रहने की बात कहते नजर नहीं आते। बल्कि सरकार के ख़िलाफ़ बोलते, उनके फैसलों की निंदा करते और लोगों को उकसाते नजर आते हैं।
विश्लेषण की शुरुआत में वे अपनी दिक्कत इस बात पर दिखाते हैं कि आखिर प्रधानमंत्री हर ऐलान रात के 8 बजे क्यों करते हैं और जब करते हैं तो फिर वो फैसला 12 बजे से क्यों लागू होना होता है? जैसे नोटबंदी, जीएसटी आदि। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री सिर्फ़ 4 घंटे का समय देते हैं। इससे लोगों को दिक्कत होती हैं। इसके बाद दुआ किसानों की स्थिति बताकर विषय को गंभीर मोड़ देने की कोशिश करते हैं। वे सवाल करते हैं कि गेहूँ बाजार तक कैसे पहुँचेगा और अगर पहुँच भी गया तो लोग उसे कैसे खरीदेंगे। वे सरकार से पूछते नजर आते हैं कि आखिर इस देश में जो लॉकडाउन कर दिया गया है। उसे सिर्फ़ पुलिस के भरोसे क्यों किया गया।
विनोद को शायद यह भी नहीं मालूम कि दिल्ली में ही कई स्थानों पर जनता पुलिस के साथ मिलकर लॉक डाउन पालन करने के लिए सडकों पर है। इतना ही नहीं कुछ क्षेत्रों में पुलिस से पहले लोग अपनी जरुरत की चींजे खरीदने बाहर आये लोगों को बिना मास्क के होने पर वापस भेजते देखे जाते हैं, दुकान पर उचित दूरी बनाए रखने में आम नागरिक पुलिस को सहयोग करते देखे जा सकते हैं। बहस होने की स्थिति में ही पुलिस को हस्ताक्षेप करते देखा गया है। सरकार अथवा पुलिस की आलोचना करो, करनी भी चाहिए, लेकिन वक़्त की नजाकत को भी समझना चाहिए। ये वो समय है जब हर नागरिक को, चाहे वह किसी भी क्षेत्र से हो, इस समय सरकार और पुलिस के साथ खड़े होकर इस वैश्विक कोरोना को हराना होगा।    
ये वो समय है जब सरकार और देश की जनता अच्छे से जानती है कि इस समय कुछ भी किसी के भी हाथ नहीं है। मगर फिर भी सरकार स्थिति सुधारने के लिए प्रयासरत है। हर देश के पास इस समय लॉकडाउन के अलावा कोई विकल्प नहीं है। क्योंकि इस महामारी की दवाई तैयार होने तक यही एक रास्ता है कि इसकी चेन तोड़ी जाए। जो बिना दूरी बनाए संभव नहीं है।
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सरकार मानती है कि इस समय देश का गरीब वर्ग दिक्कत में है। जिसके लिए वह इंतजाम कर रही है। बड़े-बड़े धनवान सामने आ रहे हैं। ऐसे में जनता के मन में ये डालना कि आखिर कब तक वे एनजीओ आदि की मदद पर खाना खाएँगे, उन्हें भड़काना नहीं, तो क्या है? खुद सोचिए, इस संवेदनशील स्थिति में, सरकार के कदमों पर सवाल उठाना कहाँ तक जरूरी है? और कहा तक जरूरी है पुलिस को जल्लाद बताना, जो अपनी जान को खतरे में डालकर नागरिकों की सुरक्षा में तैनात है।