भारत के प्रति नफरत और फेक न्यूज फैलाने के लिए मशहूर शेखर गुप्ता के ‘द प्रिंट’ के स्तंभकार सीजे वेरलेमैन (CJ Werleman) अपने विवादास्पद बयान के कारण सुर्खियों में हैं। स्वघोषित ‘इस्लामोफोबिया क्रूसेडर’ वेरलेमैन ने 23 नवंबर 2021 को ट्विटर पर अपने फॉलोअर्स से मुस्लिमों को बचाने के लिए भारतीय उत्पादों का बहिष्कार करने की अपील की।
उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, “भारत और कश्मीर में मुस्लिमों को बचाओ: भारतीय उत्पादों का बहिष्कार करो।” वेरलेमैन ने एक पुराना वीडियो भी शेयर किया है, जो इस साल 13 अक्टूबर का है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि भारतीय मुसलमानों की सुरक्षा का रोना-रोने वाले चीन द्वारा उइगर मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार, नमाज और रोजा पर पाबंदी, सुरक्षा कर्मियों द्वारा उइगर मुस्लिम महिलाओं का यौन शोषण करने पर, इनकी मस्जिदों को जमीदोज करने, तालिबान द्वारा अफ़ग़ानिस्तान में अत्याचार करने, पाकिस्तान में अल्पसंख्यक -हिन्दू और सिखों - पर हो रहे अत्याचारों पर चुप्पी लगाना स्पष्ट प्रमाण है कि इन भारत विरोधियों का असली मकसद भारत में अराजकता फैलाना है। किसी में चीन और पाकिस्तान से आने वाले किसी भी सामान का बहिष्कार करने की मांग करने की हिम्मत नहीं। जब कश्मीर में कश्मीरी महिलाओं का बलात्कार करने का मस्जिदों से ऐलान तब क्यों चुप थे? 1986 में मलियाना में ईद के मौके पर हुए मुस्लिमों के नरसंहार पर क्यों मुंह में दही जमाए बैठे रहे?इन्हें किसी हिन्दू, मुस्लिम या सिख से कोई मतलब नहीं।
CJ Werleman के ट्वीट का स्क्रीनग्रैब
इससे पहले उन्होंने कहा था कि भारत और जम्मू-कश्मीर में रहने वाले मुस्लिमों पर कथित ‘दुर्व्यवहार’ के लिए बढ़ता अंतरराष्ट्रीय दबाव और बहिष्कार भारत में अब कैंपेन का रूप ले चुका है। सीजे ने खेद व्यक्त किया था कि पश्चिमी लोकतंत्र और मुस्लिम बहुल देश भारतीय मुस्लिमों को बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में ले जाने की मोदी सरकार की कथित पहल के लिए मूकदर्शक बने हुए हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि असम के दरांग जिले में बेदखली अभियान के दौरान विजय शंकर बनिया नाम के एक फोटो जर्नलिस्ट द्वारा एक अवैध अतिक्रमणकारी के शव पर कूदने के बाद भारत दुनिया भर की सुर्खियों में छा गया। द सियासत डेली के एक लेख का हवाला देते हुए, स्तंभकार ने कहा कि कुवैत ने ‘भारतीय अधिकारियों और हिंदू चरमपंथियों’ द्वारा मुस्लिमों के खिलाफ किए गए कथित अत्याचारों की निंदा की थी। उन्होंने दोहराया कि भारतीय उत्पादों के बहिष्कार का वैश्विक अभियान चल रहा है।
हिंदू कार्यकर्ता समूह पर आरोप लगाया गया
इससे पहले 21 अक्टूबर को फेक न्यूज पेडलर ने हिंदू कार्यकर्ता समूह श्री रमा सेने के प्रमुख प्रमोद मुतालिक का एक वीडियो ट्वीट किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा और कर्नाटक में एक मस्जिद को गिराने का आह्वान किया था। उन्होंने लिखा था, “हिंदुत्व समूह श्री राम सेना के नेता ने मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा और कर्नाटक में जामा मस्जिद को गिराने का आह्वान किया।”
टेनिस दिग्गज भी CJ Werleman द्वारा फैलाई गई फर्जी खबरों की शिकार हुईं
टेनिस की दिग्गज खिलाड़ी मार्टिना नवरातिलोवा भी उनकी फर्जी खबरों की शिकार हो चुकी हैं। ऑपइंडिया ने पहले बताया था कि कैसे लेफ्ट-लिबरल न्यूज वेबसाइटों ने झूठा दावा किया था कि प्रमोद मुतालिक ने कर्नाटक के गडग में जामा मस्जिद का हाल ‘बाबरी मस्जिद‘ जैसा करने का आह्वान किया था। हालाँकि, हकीकत में उन्होंने ऐसा कोई दावा नहीं किया था।
वेरलेमैन एक आदतन फेक न्यूज पेडलर हैं, जो भारत के प्रति नफरत फैलाकर अपना टाईम पास करते हैं। इससे पहले सितंबर में, उन्होंने भारत के खिलाफ ‘regime decapitation‘ हड़ताल का आह्वान किया था।
शेखर गुप्ता का ‘द प्रिंट’ अब ग्लोबल हो गया है। अब सिर्फ स्थानीय मामले ही नहीं, बल्कि वैश्विक और कूटनीतिक मामलों में भी उसने झूठ और प्रपंच फैलाना शुरू कर दिया है। इस कारण रूस के विदेश मंत्रालय ने उसे जम कर लताड़ लगाई है। ‘द प्रिंट’ ने दावा किया था कि QUAD राष्ट्रों (भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान) से रूस खफा है, इसीलिए पिछले 20 वर्षों में पहली बार भारत-रूस की वार्षिक समिट नहीं होगी।
रूस के विदेश मंत्रालय ने इस खबर को गलत बताते हुए इसे ‘फेक न्यूज़’ और सनसनी पैदा करने के लिए लिखी गई खबर करार दिया। रूस के विदेश मंत्रालय ने लिखा कि दिसंबर 23, 2020 को ‘द प्रिंट’ में आए एक लेख में गलत बातें फैलाई गई, क्योंकि इस मीडिया संस्थान के पीछे जो लोग हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि इससे 2 दिन पहले भारत में रूस के राजदूत निकोलाय कुदेशव ने भारत-रूस के द्विपक्षीय और वैश्विक रिश्तों की संपूर्ण समीक्षा की थी।
क्रेमलिन ने कहा कि भले ही कोरोना वायरस संक्रमण के कारण भारत-रूस के बीच होने वाली बैठकों और एनुअल समिट के शेड्यूल में देरी हो गई है, लेकिन ये दोनों देशों के बीच के रिश्तों को बेहतर करने में कोई बाधा नहीं बन सका। यही बात राजदूत ने भी कही थी। रूस ने तभी स्पष्ट कहा था कि जिस तरह से कुछ देशों द्वारा एकता भंग किए जाने की कोशिशों के बावजूद भारत क्षेत्रीय एकता के समावेशी रूप को बढ़ावा दे रहा है, वो तारीफ के लायक है।
रूस के विदेश मंत्रालय ने ‘द प्रिंट’ को फटकारा
रूसी विदेश मंत्रालय ने याद दिलाया कि भारत के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने भी साफ़ किया है कि एनुअल समिट में देरी की वजह कोविड-19 वैश्विक महामारी है, कुछ और नहीं। इसके लिए दोनों देशों में सहमति बनी है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इन खबरों को ‘गैर-जिम्मेदाराना’ करार दिया। रूस ने कहा कि अब जब भारत के साथ उसके रिश्तों को लेकर हर जगह सकारात्मक बातें हो रही हैं, ‘द प्रिंट’ शून्य से सेंसेशन फैलाने की कोशिश कर रहा है।
रूस ने ‘द प्रिंट’ को गलत हेडलाइंस की जगह तथ्यों के आधार पर ख़बरें तैयार करने की नसीहत दी। साथ ही कहा कि वो अटेंशन पाने के लिए इस तरह की हरकतें न करे। इससे पहले भारत में रूस के राजदूत निकोलाय कुदशेव (Nikolay Kudashev) ने कांग्रेस नेता राहुल गाँधी और शेखर गुप्ता की प्रोपेगेंडा मशीनरी ‘दी प्रिंट’ को भारत और रूस के संबंधों के बारे में अफवाह फैलाने पर फटकार लगाते हुए इसे वास्तविकता से एकदम हट कर बताया था।
कुदशेव ने लिखा था, “रूस और भारत के बीच विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी कोविड-19 के बावजूद अच्छी प्रगति कर रही है। हम महामारी के कारण स्थगित किए गए शिखर सम्मेलन के लिए नई तारीखें तय करने के लिए अपने भारतीय दोस्तों के साथ संपर्क में बने हुए हैं। हमें विश्वास है कि यह जल्दी आयोजित किया जाएगा, जबकि रूसी भारतीय संबंध अपने आगे के विकास को जारी रखेंगे।”
क्या एडिटर्स गिल्ड के चीफ शेखर गुप्ता पत्रकार बिरादरी के खिलाफ काम कर रहे हैं? यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि क्योंकि आज जब कुछ लोग पत्रकारों की अभिव्यक्ति की आजादी पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहे हैं, तब शेखर गुप्ता पत्रकारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने के बजाय विरोधी पक्ष के साथ खड़े हैं।
अक्टूबर 5 को बॉलीवुड के प्रमुख निर्माताओं ने फिल्म जगत की छवि बिगाड़ने का आरोप लगाकर रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ न्यूज चैनल और चार पत्रकारों के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर किया। चार पत्रकारों में रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी और पत्रकार प्रदीप भंडारी, टाइम्स नाउ के प्रधान संपादक राहुल शिवशंकर और समूह संपादक नविका कुमार शामिल हैं। याचिका में बॉलीवुड को लेकर गैर जिम्मेदाराना, अपमानजनक और बदनाम करने वाली बयानबाजी और मीडिया ट्रायल्स करने से रोकने की अपील की गई है। याचिका दायर करने वालों में चार फिल्म इंडस्ट्री एसोसिएशनों के साथ आमिर खान, शाहरुख खान, सलमान खान, करण जौहर, अजय देवगन, अनिल कपूर, रोहित शेट्टी के प्रोडक्शन हाउस भी शामिल हैं।
This collective legal action agains calumny can be a turning point for Bollywood. It could mark an ‘industry’ daring to see itself as an institutions. And institutions must have a spine.
फिल्म निर्माताओं की ओर से दायर ये याचिका पत्रकारों को खबर तक पहुंच और आम लोगों तक जानकारी को पहुंचाने से रोकने के लिए हैं। ऐसे में एडिटर्स गिल्ड की जिम्मेदारी कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है कि सभी पत्रकार एक साथ आकर इस तरह के कदम को विरोध करें, लेकिन एडिटर्स गिल्ड के चीफ शेखर गुप्ता खुद पत्रकारों की जगह बॉलीवुड के समर्थन में आगे आ गए हैं। शेखर गुप्ता ने ट्वीट किया, “झूठे इल्जामों के खिलाफ सामूहिक कानूनी कार्रवाई बॉलीवुड के लिए एक टर्निंग प्वाइंट हो सकती हैं। इससे ‘उद्योग’ को एक संस्था की तरह देखने की हिम्मत मिलेगी और एक संस्था में हमेशा रीढ़ होनी चाहिए।”
शेखर गुप्ता का ट्वीट पोस्ट होने के बाद सोशल मीडिया यूजर्स ने उन्हें लताड़ लगानी शुरू कर दी।
If fighting for justice invites court cases, bring it on. All the a-listers can come together but India will continue to fight for the truth. You can’t intimidate us @TimesNow & can’t take away the viewers who believe in us. Let Truth prevail. @aamir_khan@iamsrk@karanjohar
कहते हैं अगर व्यक्ति सकारात्मक सोंच रखता है, वह किसी बुराई से भी सकारात्मक शब्द निकालने में समर्थ होता, परन्तु नकारात्मक सोंच वाले को सकारात्मक में भी नकारात्मक ही हाथ लगता है। जिसे चरितार्थ कर रहे हैं कांग्रेस के पूर्व केन्द्रीय मंत्री मनीष तिवारी, जो अपने अनुभव अपने ट्वीट में बता रहे हैं। यानि जो जैसा होता है सामने वाले को भी वैसा ही समझता है। जिस तरह इन्होंने अपने यूपीए कार्यकाल में मीडिया को अपने कब्जे में कर, इस्लामिक आतंकवादियों को बचाने बेगुनाह हिन्दू साधु-संतों को जेलों में डाल रहे थे। इन्हीं के तत्कालीन गृह मंत्री सुशील शिंदे "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" नाम से हिन्दू होते हुए हिन्दू धर्म को अपमानित कर रहे थे। चलो देर आए दुरुस्त आए, सच्चाई कबूल दी।
Congress’s Manish Tewari goes beyond calling journalists pliable, suggests that they are up for sale and he claims to be speaking from his experience as I&B Minister. Let me know if you see President of Editors Guild take exception to this. Oh wait! pic.twitter.com/Gs7NGdJTo4
It's irony to see all the torch bearers of FoE in media coming out & appreciating Bollywood for trying to suppress the freedom of expression of their own competitors in profession. This doesn't augur well neither for Indian journalism nor for right to FoE.
Mungeri Lal Coupta ji ke Haseen Sapney. Turning point for the Drugwood is not their going to court. But the people's resolve to punish these lumpen druggies a lesson. Sadak2 was just the first demonstration of that resolve.#KBC12's poorest TRP is another. Wait, more ahead.
नहीं जी सच्चाई उजागर करना तो पत्रकारिता है ही नहीं, सच्चाई को छुपा के समझौता करके पैसा लेके जो घर चलाता हो उसे आदर्श पत्रकार केहते है,जैसे गांजा फूकने वालों के तारीफ में ट्वीट करते है।अभिनेताओं के बारे में नहीं जानता पर समाज में जो लोग गांजा फूंकते है उनको आम आदमी गंजाखोर कहते है
Guptaji sharing. Now that some Bollywood Producers taken 2 Times Now Anchors to Delhi HC, shd they be questioned in Court why Bollywood show Hindus in poor light & Pakistan is good light. Amrit throws light on former.https://t.co/is73O5BETR
जी हां भाइयो और बहनों ये है पत्रकारों के सर सेठ हुकुमचंद जो चाहते है कि साथी पत्रकारों पे मुकदमा चलाया जाए फिल्मी माफिया द्वारा। वाह जी वाह , फिर तो आर्मी को भी इनपे केस करा जाना चाहिए, तख्ता पलट की झूठी खबर फैलाने के लिए ।
This wld have a adverse effect on the industry.. mark my words.. Politicans have been accused like this so many times .. congress and BJp too.. Bollywood need to have thick skin ..rem ur experience with them.. That shld be eye opener for us.. we have made them what they are
हाथरस केस से जुड़ा इंडिया टुडे पत्रकार तनुश्री पांडे का ऑडियो लीक जैसाकि सर्वविदित है कि देश में जब कभी चुनाव होने को होते, भाजपा शासित किसी भी राज्य में हुई घटना को जी का जंजाल बनाने में भाजपा विरोधी पार्टियां और मीडिया इस प्रकार उछालती है, मानो कहर टूट पड़ा है। जबकि गैर-भाजपा शासित राज्यों में उससे अधिक जघन्न अपराध होने पर चुप्पी साध ली जाती है। क्या इसी का नाम सियासत है? अगर इसी का सियासत है, नहीं चाहिए ऐसे सियासतखोर। आज हाथरस पर आसमान सर पर उठाने वाले राजस्थान और अन्य गैर-भाजपा शासित राज्यों में हो रही ऐसी ही घटनाओं पर क्यों मौन रहे? अपराध अपराथ ही होता है, वह चाहे भाजपा शासित राज्य में हो अथवा गैर-भाजपाई राज्य में। ये सियासत और पत्रकारिता में दोहरा मापदंड क्यों?
वैसे भी 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से देश में होने वाले चुनावों से पूर्व मोदी विरोधी गैंग जैसे: #metoo, #intolerance, #not in my name, #award vapasi, #mob lynching, #freedom of speech आदि बिकाऊ गैंग सड़क पर उतर आते हैं, और मतदान होते ही कालकोठरी में जाकर बैठ जाते हैं। बिहार में मतदान होते ही, कोई नेता एवं मीडिया हाथरस को घास तक नहीं डालेगा। यह कटु सच्चाई है। दूसरे, सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे निम्न वीडियो में लगाए जा रहे धन के आदान-प्रदान की योगी सरकार को जाँच करवानी चाहिए। अगर वीडियो में धन के लेन-देन की बात सत्यापित होती है, परिवार पर अन्यथा वीडियो में इस व्यक्ति पर सख्त कार्यवाही होनी चाहिए।
हाथरस की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। हालाँकि इस मामले में अब भी कई पहलुओं से राज उठना बाकी है। मगर कुछ राजनेता इस केस के जरिए अपनी राजनीति करने में जुटे हैं। इसी दौरान सोशल मीडिया पर भी मुख्यधारा मीडिया अपना अजेंडा चलाने के लिए कई झूठ फैला रहा है और इसी बीच एसआईटी को पूरे मामले की जाँच भी सौंप दी गई हैं।
हाथरस की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। हालाँकि इस मामले में अब भी कई पहलुओं से राज उठना बाकी है। मगर कुछ राजनेता इस केस के जरिए अपनी राजनीति करने में जुटे हैं। इसी दौरान सोशल मीडिया पर भी मुख्यधारा मीडिया अपना अजेंडा चलाने के लिए कई झूठ फैला रहा है और इसी बीच एसआईटी को पूरे मामले की जाँच भी सौंप दी गई हैं।
बातचीत को सुनकर यह साफ पता चलता है कि तनुश्री पीड़िता के भाई से एक निश्चित बयान दिलवाने का प्रयास कर रही हैं और संदीप की दबी आवाज सुनकर लग रहा है जैसे वह ऐसा नहीं करना चाहते। संदीप इस ऑडियो में पहले दबाव की बात कहते हैं। मगर बाद में कहते हैं कि उनके पिता इस बात को लेकर स्पष्ट नहीं है कि उन पर दबाव बनाया गया या नहीं।
इसके बाद तनुश्री, संदीप से कहती हैं कि उसे कहीं से पता चला है कि परिवार पर ही बहन की मौत का इल्जाम लगाने का प्रयास किया जा रहा है। ये इस बातचीत का ऐसा हिस्सा है जिसे सुन कर लगता है कि ये सवाल खुद ही गढ़े गए, क्योंकि अभी तक कहीं भी मीडिया में ऐसी बात निकल कर सामने नहीं आई है। इससे पता चलता है कि पॉलिटिकल अजेंडा चलाने के लिए कैसे परिवार की स्थिति का फायदा उठाया गया।
कुल मिलाकर इस बातचीत का मकसद सिर्फ़ मृतका के पिता का वीडियो निकलवाना था, जिसमें पिता किसी भी तरह बस यही बोल दें कि उनपर दबाव बनवाकर बयान दिलवाया गया कि वह संतुष्ट हैं।
उन्हें ऑडियो में कहते सुना जा सकता है, “संदीप, प्लीज मेरे लिए एक चीज कर दो। मैं तुमसे वादा करती हूँ कि जब तक तुम्हारे परिवार को इंसाफ नहीं मिल जाता मैं यहाँ से हिलूँगी भी नहीं… संदीप एक वीडियो अपने पिता की बनाओ जिसमें वो कहें, ‘हाँ, मुझ पर ऐसा बयान जारी करने का बहुत प्रेशर था कि मैं संतुष्ट हूँ। मैं जाँच चाहता हूँ क्योंकि हमारी बेटी मरी है और हमें न उसे देखने का मौका मिला और न उसके अंतिम संस्कार का।”
वे आगे कहती हैं, ”सिर्फ 5 मिनट लगेंगे। जल्दी से वीडियो बनाओ और सिर्फ़ मुझे भेज दो।” इस बातचीत में तनुश्री बार-बार संदीप को एसआईटी के ख़िलाफ़ भड़काती है। मगर, लड़की का भाई कहता है कि जाँच टीम सिर्फ़ उसे जरूरी सवाल कर रही थी और फिर वह चली गई।
पूरी बातचीत को सुनिए। मृतका का भाई वीडियो बनाने में अनिच्छुक नजर आता है और हिचकिचाता है। मगर तनुश्री उसे यह कहकर समझाती हैं कि वो भी उनकी बहन हैं।
इस मामले में एक अन्य ऑडियो भी सामने आई है। यह ग्रामीणों और संदीप के बीच की है। इसमें मृतका के भाई को सलाह दी जाती है कि उसे 25 लाख रुपए नहीं स्वीकारने चाहिए। इस बातचीत में महिला का कहना है कि कुछ राजनेता कह रहे हैं कि ‘फैसला’ नहीं होना चाहिए। बता दें कि इस बातचीत में, किसी राहुल, मनीष सिसोदिया और बरखा दत्त का नाम भी आता है।
उल्लेखनीय है कि यह पहली बार नहीं है जब तनुश्री का नाम ऐसे किसी मामले में सामने आया हो। सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान, उन्होंने जेएनयू में एक वामपंथी छात्र के साथ कान में फुसफुसाकर बातचीत करते देखा गया था। उस वीडियो को देखककर ऐसा लग रहा था जैसे वह उसे कैमरे पर बोलने की कोचिंग दे रही हैं। वीडियो में, पत्रकार को स्पष्ट रूप से छात्र से चर्चा करते देखा गया था। हालाँकि फुसफुसाने के कारण उनकी बात कैमरे व माइक में सुनाई नहीं पड़ी थी।
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राजस्थान जल रहा है और सेक्युलर मीडिया खामोश, क्यों?
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार एसटी आरक्षण की माँग के कारण राजस्थान का
पुलिस भी संदेह के घेरे में
पीड़िता के कज़िन ने इंडिया टुडे को बताया कि पुलिस लगातार उन पर, परिवार पर बयान बदलने के लिए दबाव बना रही है। उन्होंने आरोप लगाया है कि पुलिसवाले परिवार के लोगों को डरा-धमका रहे हैं, पीट भी रहे हैं। साथ ही परिवार के सभी लोगों को घर से निकलने नहीं दिया जा रहा है, सबके फोन ले लिए गए है।ताकि कोई भी मीडिया से बात न कर सके। पीड़िता के कज़िन ने बताया कि वे किसी तरह पुलिस से बचकर बाहर निकले तो मीडिया से बात की। उन्होंने कहा कि परिवार गांव में बिल्कुल भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा। उन्हें पुलिस और राजनेताओं पर भरोसा नहीं है। परिवार को डर है कि कल को उन्हें गांव छोड़कर भी जाना पड़ सकता है।
पीड़िता के परिवार का आरोप- पुलिस ने पीटा, फोन ज़ब्त कर लिए, घर से निकलने नहीं दे रहे
इससे पहले एक अक्टूबर को हाथरस के डीएम प्रवीण कुमार का एक वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें वो परिवारवालों को धमकी भरे अंदाज में कह रहे हैं कि आधे मीडिया वाले आज चले गए, आधे कल चले जाएंगे। फिर हम लोग ही बचेंगे।
हालांकि पुलिस-प्रशासन को लेकर लगातार आ रही शिकायतों के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अक्टूबर को पूरे मामले में स्वतः संज्ञान भी ले लिया है। जस्टिस राजन रॉय और जसप्रीत सिंह की बेंच ने उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव, डीजी, एडीजी-लॉ एंड ऑर्डर, डीएम हाथरस, एसपी हाथरस को नोटिस जारी किया है। कहा है कि 12 अक्टूबर को होने वाली सुनवाई में आकर अब तक की जांच के बारे में बताएं।
शेखर गुप्ता और उनके प्रोपेगेंडा पोर्टल ‘दी प्रिंट’ ने दक्षिणपंथी समाचार पोर्टल ‘स्वराज्य मैगजीन’ की जर्नलिस्ट स्वाति गोयल शर्मा पर एक कथित ‘विचार’ प्रकाशित किया, जिस पर हुए भारी विरोध के बाद आखिर में ‘दी प्रिंट’ को माफ़ी माँगते हुए अपनी वेबसाइट से चुपके हटाना पड़ा।
दरअसल, दी प्रिंट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए इसमें स्वाति गोयल शर्मा का नाम घसीटते हुए ‘लव जिहाद’ पर की गई उनकी रिपोर्टिंग के तरीकों पर कई तरह के आरोप लगाए थे। लेकिन स्वाति गोयल ने ना सिर्फ दी प्रिंट के अजेंडा को बेनकाब किया बल्कि उन्हें जमकर लताड़ा भी।
करवा ली बेइज्जती? ‘दी प्रिंट’ ने पहले थूका, फिर पकड़े जाने पर चाटा
दी प्रिंट ने एक रिपोर्ट (विचार) प्रकाशित की जिसमें उन्होंने स्वाति गोयल शर्मा पर आरोप लगे कि उन्होंने ट्विटर पर ‘लव-जिहाद’ का कैम्पेन चलाया। यही नहीं, दी प्रिंट ने अपनी इस रिपोर्ट में स्वाति गोयल शर्मा पर आरोप लगाया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के हाथरस कांड में पीड़िता और आरोपितों की जाति को भी विवादित तरीके से पेश किया।
1 अक्टूबर को, शेखर गुप्ता के ‘दी प्रिंट’ ने यह ‘विचार’ प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने स्वाति गोयल शर्मा पर हाथरस हत्या मामले में जाति के नजरिए को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया। साथ ही, उन्होंने ट्विटर पर ‘लव जिहाद’ के बारे में ‘एक अभियान चलाने’ के लिए भी स्वाति गोयल को निशाना बनाया और कहा कि उन्होंने ‘लव’ में ‘जिहाद’ देखा।
स्वाति गोयल शर्मा ने अपने ट्विटर अकाउंट पर शेखर गुप्ता को टैग किया और ‘दी प्रिंट’ की इस रिपोर्ट के स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए लिखा, “यह गटर के स्तर की चीज है। क्या आपके कम अनभिज्ञ लेखकों की यह आदत है और उनके काम की जाँच के बिना ही उन पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाते हैं? आपने आईआईटी-कानपुर के वाशी शर्मा के साथ भी ऐसा ही किया और बाद में माफी माँगी थी।”
स्वाति शर्मा ने लिखा, “तुम्हारे अनपढ़ लेखक मुझे यह स्पष्ट करें कि मैंने हाथरस मामले में जाति की बात को कब नकारा या फिर माफ़ी माँगे।”
So Print has done a hit-job on me. Says I run a Twitter campaign called ‘love jihad’ even when I never use this term and report facts they can’t dispute. Lies that I disputed caste angle in Hathras. This is filth, @ShekharGupta. Gutter-level stuff pic.twitter.com/OsGfuGKK4d
So Print has done a hit-job on me. Says I run a Twitter campaign called ‘love jihad’ even when I never use this term and report facts they can’t dispute. Lies that I disputed caste angle in Hathras. This is filth, @ShekharGupta. Gutter-level stuff pic.twitter.com/OsGfuGKK4d
प्रिंट के इस लेख का शीर्षक था – “आप हाथरस बलात्कार के बारे में अन्य बलात्कारों को भी रखते हुए बात नहीं कर सकते – आईटी सेल की व्हाटअबाउट्री को धन्यवाद।”
‘व्हाटअबाउट्री’ का सामान्य शद्बों में अर्थ गुमराह करने की कला होता है। इस ‘विचार’ में स्वाति शर्मा पर यह कहते हुए हमला किया गया कि जब वह ‘लव’ में ‘जिहाद’ देख सकती हैं, तो वह ‘जाति के नजरिए’ को नहीं देख पाई क्योंकि ‘4 ऊँची जाति के पुरुषों ने एक दलित महिला का बलात्कार किया था’।
‘दी प्रिंट’ ने जो लिखा है, वह ट्विटर पर पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा द्वारा साझा किए गए इन स्क्रीनशॉट्स में देखा जा सकता है –
दिलचस्प बात यह है कि, ‘दी प्रिंट’ इस लेख को प्रकाशित करने से पहले मूल तथ्यों की भी जाँच नहीं कर पाए। स्वाति गोयल शर्मा एक ग्राउंड रिपोर्टर हैं, जिन्होंने दलितों के अधिकारों और उनके खिलाफ अपराधों के बारे में कई मामले सामने रखे हैं। यहाँ तक कि वह दलित कार्यकर्ता संजीव नेवार या अज्ञेय के साथ एक एनजीओ भी चलाती हैं।
स्वाति गोयल शर्मा द्वारा दी प्रिंट के झूठ को उजागर करने के बाद ‘दी प्रिंट’ ने चुपचाप अपने इस ‘विचार’ को हटा दिया। लेकिन तब तक स्वाति गोयल शर्मा लेख के स्क्रीनशॉट ले चुकी थीं। स्वाति गोयल शर्मा ने ट्विटर पर लिखा कि उन्हें ख़ुशी है कि यह लेख हटा लिया गया है लेकिन लेखक फैक्ट चेक करने का ध्यान अवश्य रखें।
यह देखने के बाद कि ‘दी प्रिंट’ का प्रोपेगेंडा बेनकाब हो चुका है, उन्होंने एक ट्वीट के माध्यम से स्वाति गोयल शर्मा से माफ़ी माँगी जिसमें कि डिलीट भी स्क्रीनशॉट रह गया था। दी प्रिंट ने अपने आर्टिकल की ही तरह फिर इस ट्वीट को भी डिलीट किया और दोबारा ट्वीट किया और इस बार स्वाति गोयल के ट्वीट को इसमें लिंक नहीं किया।
हाथरस कांड
सितम्बर 29, 2020 की सुबह दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में पीड़िता की मौत के बाद से हाथरस मामले को लेकर काफी बहस और राजनीतिक उथल-पुथल देखी जा सकती हैं। हाथरस पुलिस ने बृहस्पतिवार को कहा कि ‘जबरन यौन क्रिया’ अभी तक भी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पुष्टि नहीं हो पाई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गला घोंटने से मौत को मौत का कारण बताया गया था।
Thanks for your feedback @swati_gs. We have re-checked and find that the opinion piece with references to you indeed contained errors. It shouldn’t have got past our editorial filters. We have unpublished it, and apologise to you for it.
Another piece that "shouldn’t have got past our editorial filters". Just a gentle reminder, as we spend 3 years of the #hitjob. 😉https://t.co/MJcQlkMu6K
दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में एक कथित सामूहिक बलात्कार पीड़िता की मौत हो गई। उसके साथ दो सप्ताह पहले कथित तौर पर बलात्कार किया गया था। इस मामले ने देशव्यापी आक्रोश देखा जा रहा है। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि हाथरस पुलिस ने परिवार के सदस्यों की सहमति के बिना मंगलवार रात लड़की का जबरन अंतिम संस्कार कर दिया। हालाँकि, पुलिस ने बाद में कहा था कि दाह संस्कार के दौरान पीड़िता के पिता मौजूद थे।
पत्रकार शेखर गुप्ता ने अपने वीडियो शो ‘Cut The Clutter’ के जरिए एक बार फिर फेक न्यूज फैलाने की कोशिश की, लेकिन पोल खुल जाने पर वीडियो को प्राइवेट कर दिया। कांग्रेसी झुकाव वाले इस पक्षकार ने निष्पक्षता की आड़ में लोगों के बीच गलत जानकारी परोसने की कोशिश की। पूरी दुनिया को पता है कि ब्लूम्सबरी इंडिया पब्लिकेशन ने इस्लामी कट्टरपंथियों और लेफ्ट लिबरलों के दबाव में आकर दिल्ली दंगों पर आधारित करीब-करीब छप चुकी किताब ‘दिल्ली रायट्स 2020: द अनटोल्ड स्टोरी’ को छापने से इनकार कर दिया। लेकिन खुद को कथित सेकुलर-लिबरल बताने वाले ‘द प्रिंट’ के इस संस्थापक ने इसके लिए तीन लेखकों को संजीव सान्याल, डॉ. आनंद रंगनाथन और संजय दीक्षित को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया। जबकि सच्चाई यह है कि मोनिका अरोड़ा, सोनाली चितलकर और प्रेरणा मल्होत्रा की किताब ‘Delhi Riots 2020: The Untold Story’ ना छापने पर ब्लूम्सबरी पब्लिकेशन के खिलाफ इन्हीं लोगों ने आवाज उठाई थी। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट शेखर गुप्ता ने अपने वीडियो में कहा कि ब्लूम्सबरी से संजीव सान्याल, डॉ. आनंद रंगनाथन और संजय दीक्षित ने अपनी कई किताबें प्रकाशित करवाई हैं और इन्होंने उसके साथ अपने संबंध तोड़ने की धमकी दी है। प्रोपेगेंडा पक्षकार शेखर गुप्ता ने अपने वीडियो में इन लेखकों के जिस ट्वीट का इस्तेमाल किया है वो किताब छापने से इनकार करने के फैसले के बाद का है। इस वीडियो के बाद इन लेखकों ने शेखर गुप्ता पर गलत जानकारी देने, तथ्यों को तोड़-मरोड़कर सामने रखने और ट्वीट को गलत तरीके से पेश करने के लिए कोर्ट में ले जाने की चेतावनी दी। इसके बाद अपनी चोरी पकड़ने जाने पर शेखर गुप्ता ने यूट्यूब पर अपलोड वीडियो को तुरंत ‘प्राइवेट’ मोड में कर दिया। पब्लिक से प्राइवेट होने पर लोग अब इस वीडियो को यूट्यूब पर नहीं देख सकते। आप देखिए वीडियो का वो हिस्सा जिसमें पक्षकार शेखर गुप्ता ने ब्लूम्सबरी इंडिया पब्लिकेशन को दोषी ठहराने की जगह ब्लूम्सबरी के फैसले के खिलाफ किताब के समर्थन में आए लोगों को ही दोषी ठहराने की कोशिश की-
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हाल ही में शेखर गुप्ता ने माना वे निष्पक्ष नहीं हैं खुद को निष्पक्ष बताने वाले प्रोपगेंडा पत्रकार शेखर गुप्ता ने हाल ही में आखिर मान लिया कि वे निष्पक्ष नही हैं। शेखर गुप्ता ने अपने मीडिया समूह ‘द प्रिंट’ के तीन साल पूरे होने पर आयोजित एक यूट्यूब कार्यक्रम में माना कि अगर कोई भी पत्रकार दावा करता है कि वह निष्पक्ष है तो वह झूठ बोल रहा है। आखिर पत्रकार बनने से पहले वह इंसान था इसलिए कैसे निष्पक्ष हो सकता है। उन्होंने साफ कहा कि हम इंसान हैं और हम निष्पक्ष नहीं हो सकते हैं। हम न तो कोई मशीन हैं और न ही कोई रोबोट हैं। हम हर पांच साल में मतदान करने जाते हैं और किसी न किसी राजनीतिक दल को अपना वोट देते हैं। हर व्यक्ति की अपनी कोई न कोई राजनीतिक विचारधारा होती है। ऐसे में निष्पक्षता का दावा सही नहीं हो सकता है।
It's mea culpa season in sekoolardom. Btw Coupta @ShekharGupta, take it one step forward and accept you are a Congress voter. Just do it pic.twitter.com/GS4N4wv9CS
Asianet News ने खोली शेखर गुप्ता की पोल शेखर गुप्ता फेक न्यूज फैलाने के लिए कुख्यात हैं। इसी महीने अगस्त, 2020 में उन्होंने गलत खबर फैला कर कर्नाटक सरकार और बेंगलुरु पुलिस को बदनाम करने की कोशिश की, लेकिन Asianet News ने शेखर गुप्ता की पोल खोल दी। दरअसल, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट के नाते शेखर गुप्ता ने एक पत्र जारी किया जिसमें लिखा गया है कि 11 अगस्त को नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में खबर करने गए कारवां के पत्रकारों के साथ बदसलूकी की गई और उसी दिन बेंगलुरु में खबर कवर कर रहे इंडिया टुडे, द न्यूज मिनट और सुवर्ण न्यूज 24X7 के पत्रकारों पर सिटी पुलिस द्वारा हमला किया गया। ये सभी पत्रकार उस समय ड्यूटी पर थे। ये दोनों घटनाएं निंदनीय है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट शेखर गुप्ता के इस पत्र को Asianet News (सुवर्ण न्यूज) ने गलत बताते हुए कहा कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है। उनके पत्रकारों पर हमला बेंगलुरु सिटी पुलिस द्वारा नहीं बल्कि उन्मादी भीड़ द्वारा किया गया और उनके पत्रकारों को पिटा गया। उसके तीन रिपोर्ट्स घायल हैं और इस संबंध में बेंगलुरु में रिपोर्ट दर्ज कराई गई है। पूर्व मेजर जनरल के नाम पर झूठ फैलाते पकड़े गए शेखर गुप्ता प्रोपगेंडा पक्षकार शेखर गुप्ता ने 23 जुलाई,2020 को द प्रिंट में Dropping lightweight tanks in Ladakh not enough. India’s forces need to be made more lethal शीर्षक से एक आर्टिकल प्रकाशित किया। द प्रिंट में दावा किया गया कि पूर्व मेजर जनरल बीएस धनोआ का कहना है कि लद्दाख में सिर्फ हल्के टैंक तैनात करना पर्याप्त नहीं है, यहां सेना को और अधिक घातक बनाने की जरूरत है। चीन के साथ तनाव के बीच वेबसाईट व्यूज बढ़ाने के लिए शेखर गुप्ता ने इस फेक न्यूज का सहारा लेकर सनसनी फैलाने की कोशिश की। फेक न्यूज फैलाने में माहिर शेखर गुप्ता ने ORF की वेबसाइट पर एक दिन पहले प्रकाशित बीएस धनोआ के आलेख Why Ladakh needs tanks को टाइटल बदलकर अपने यहां प्रकाशित किया। और ट्वीट कर सरकार को बदनाम करने की कोशिश की, लेकिन बीएस घनोआ ने उन्हें तगड़ी फटकार लगाई। द प्रिंट का पाखंड- हर हाल में मोदी विरोध है इनका एजेंडा शेखर गुप्ता अपनी वेबसाइट द प्रिंट से अक्सर इस तरह का नैरेटिव पेश करने की कोशिश करते है कि लोगों के मन में मोदी सरकार के प्रति गलत धारणा पैदा हो। ‘द प्रिंट’ में हाल ही में 2 मई को कोरोना को लेकर प्रकाशित खबर में कहा गया कि स्थिति सामान्य है, फिर भी सब कुछ बंद है, लॉकडाउन है।
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 1965 इंडो-पाक युद्ध के दौरान विविध भारती पर 'हवा महल' की बजाए भारत-पाक युद्ध से सम्बंधित हंसी के नए प्रोग्राम "रेडियो झूठिस्तान" और "ढोल की पोल" प्रसारित होते थे। इस मनोरंजन भरे प्रोग्राम में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो एवं जनरल अयूब खान के भाषणों को फ़िल्मी गीतों से जोड़कर पेश किया जाता था, श्रोताओं को बड़ा आनंद आता था। ठीक वही काम आज एजेंडा पत्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ निराधार समाचार प्रकाशित कर जनता को भ्रमित कर, हंसी के पात्र बन रहे हैं। किसी मोदी-योगी विरोधी एजेंडा पत्रकार ने देश के सम्मुख कोरोना पीड़ित एवं मृतकों की हो रही दुर्गति को रखने का साहस क्यों नहीं किया? क्या कारण है कि पत्रकारिता की गरिमा को कलंकित किया जा रहा है? दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के शव गृह में लाशों के लग रहे ढेर, जून 11 को India Tv रजत शर्मा ने दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में कोरोना मरीज के पलंग के नीचे निर्वस्त्र पड़ी लाश, कोरोना लाशों के बीच मरीज(पहले भी इस अस्पताल की लापरवाही को इसी प्रोग्राम को प्रसारित किया जा चूका है) और आज(जून 12) को आजतक चैनल पर 'दंगल' कार्यक्रम में बंगाल में सड़ रही लाशों को हुक से घसीट कर कूड़े की गाड़ी में डाला जाने पर चर्चा दर्शाती है कि दिल्ली और बंगाल की सरकारें कोरोना को गंभीरता से नहीं ले रही हैं। क्या बंगाल सरकार की मानवता मर गयी है? क्यों लाशों को हुक से घसीटा जा रहा है? क्या लाशें सड़ रही हैं? ये एजेंडा पत्रकार इस अतिगंभीर मुद्दे पर क्यों चुप्पी साधे हुए हैं? क्या उनकी मानवता मर चुकी है कि चाहे कुछ भी होता रहे, हमें तो अपनी रोजी-रोटी और तिजोरी के लिए मोदी और योगी का ही विरोध करना है? कोरोना महामारी के इस दौर में भारत पूरी दुनिया को एक नई राह दिखा रहा है, पूरा विश्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की तारीफ कर रहा है। ऐसे में कुछ एजेंडा पत्रकार और मीडिया संस्थान गिद्ध दृष्टि लगाकर मोदी जी को बदनाम करने की साजिश रच रहे हैं। और इस मुहिम में द प्रिंट भी पीछे नहीं। देश में कुछ एजेंडा पत्रकार और पत्रकारिता संस्थान हमेशा मोदी सरकार के खिलाफ प्रोपेगेंडा में लगे रहते हैं। जब भी मौका मिलता है, मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए अपनी खबरों से लोगों में डर पैदा करने की कोशिश करते रहते हैं। अपनी वेबसाइट द प्रिंट से शेखर गुप्ता अक्सर इस तरह का नैरेटिव पेश करने की कोशिश करते है कि लोगों के मन में मोदी सरकार के प्रति गलत धारणा पैदा हो। ‘द प्रिंट’ में 2 मई को कोरोना को लेकर प्रकाशित खबर में कहा गया कि स्थिति सामान्य है, फिर भी सब कुछ बंद है, लॉकडाउन है। कुछ इसी प्रकार के कुत्सित प्रयासों के साथ एक लेख स्क्रॉल में प्रकाशित किया गया है। इसमें वाराणसी के एक गांव डोमरी की कहानी छापी गई है। डोमरी गांव इसलिए चुना गया है, क्योंकि आदर्श ग्राम योजना के तहत प्रधानमंत्री मोदी द्वारा गोद लिया हुआ ये चौथा गांव है। स्क्रॉल ने कुछ लोगों को आधार बनाकर ये नैरेटिव सेट करने की कोशिश की है कि लॉकडाउन की वजह से प्रधानमंत्री मोदी का गोद लिया हुआ गांव भूखा है। लेकिन जब हमने पड़ताल की तो पता चला कि ये आर्टिकल न केवल तथ्यहीन और भ्रामक है, बल्कि पूर्वाग्रह के साथ लिखा गया है। स्क्रॉल ने लेख में बताया है कि किस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी के गोद लिए गांव डोमरी में लोग खाने के लिए तरस रहे हैं। वेबसाइट ने चार केस स्टडी भी दी हैं। लेकिन चारों केस स्टडी मनगढ़ंत, पक्षपातपूर्ण और झूठ पर आधारित हैं। हमने चारों केस स्टडी की पड़ताल की और इसके चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। आइए एक-एक कर चारों केस स्टडी की सत्यता सामने रखते हैं- स्क्रॉल का आरोप पहली केस स्टडी कल्लू नाम के दिहाड़ी मजदूर की है। स्क्रॉल लिखता है कि लॉकडाउन के दौरान कल्लू को मुफ्त भोजन के लिए 1 से 5 किमी तक पैदल चलना पड़ा। कल्लू दिहाड़ी मजदूर है, लेकिन लॉकडाउन में उसे काम नहीं मिला। मछली व्यवसाय के लिए कल्लू 10 वर्षों तक घर से बाहर रहा। वह मथुरा से मछली लेकर फरीदाबाद में बेचता था, लेकिन छह साल पहले वह डोमरी वापस लौटा और राशनकार्ड बनवाने की कोशिश की, लेकिन उसका राशन कार्ड नहीं बना और उसे बाहर से ही राशन खरीदना पड़ा। जब वह राशन लेने के लिए पीडीएस दुकान पहुंचा, तो वहां से उसे भगा दिया गया। हकीकत जांच में पता चला कि कल्लू अब डोमरी का स्थायी निवासी नहीं है। यहां पर वो अपना मकान बेच चुका है। इस समय वो अपने भाई सीताराम के घर में ठहरा है, जहां मंशा देवी के नाम से अंत्योदय कार्ड बना हुआ है, जिसका नंबर 219720554188 है। इस नंबर पर खाद्यान्न भी प्राप्त किया जा रहा है। लेख में लिखा गया है कि वह छह साल पहले लौटकर आया है, जो गलत है। वह हाल-फिलहाल में ही लौटकर वाराणसी के डोमरी गांव अपने भाई के पास आया है। जांच में ये भी पता चला कि कल्लू को प्रवासी/ अस्थायी राशनकार्ड (नंबर 219750005113) जारी किया जा चुका है। क्षेत्रीय लेखपाल के अनुसार उसे 2 बार राशन किट भी दी गई है। 14 मई, 2020 को कल्लू ने स्थानीय राशन की दुकान से कच्ची सामग्री की किट ली है, इसका भी रिकॉर्ड दर्ज है। यही नहीं, सामान लेने के बाद उस पर कल्लू के अंगूठे का निशान भी लगा है।
स्क्रॉल ने दूसरी कहानी माला नाम की महिला की लिखी है। घरों में काम करने वाली माला सिंगल मदर है और उसके पांच बच्चे हैं। लॉकडाउन के दौरान उसके मालिक ने सैलरी रोक दी। नए काम की तलाश में वो कई बार वाराणसी गई, लेकिन काम नहीं मिला। माला एक तरह से वाराणसी की सड़कों पर भीख मांगने के लिए मजबूर हो गई। उसकी मां के पास राशन कार्ड है, लेकिन उसके पास नहीं है। 6 महीने पहले उसके बेटे को 6,000 रुपये प्रति महीने पर सफाई कर्मचारी की नौकरी मिल गई और वो खुद 2,000 का काम कर लेती थी, लेकिन लॉकडाउन में मां और बेटे दोनों का काम छिन गया। बगैर राशनकार्ड के राशन मिलने की खबर पर वो पीडीएस दुकान गई, लेकिन उसे वहां राशन नहीं दिया गया। हकीकत – स्क्रॉल ने माला की कहानी को जिस प्रकार से पेश किया, उसे पढ़कर हम सबको गुस्सा आएगा। और इसमें कोई गलत बात भी नहीं है। लेकिन जिस प्रकार इस वेबसाइट ने हकीकत को छिपा लिया, वो पत्रकारिता के गुण-धर्म के न केवल विपरीत है, बल्कि खतरनाक भी है। सच्चाई यह है कि माला की शादी नाटी ईमली में हुई है। वह लॉकडाउन के समय ग्रामसभा डोमरी में अपनी मां के पास आई हुई है। यही नहीं, माला का प्रवासी/ अस्थायी राशनकार्ड (नंबर 219750005086) भी जारी किया गया है। और इन सबसे बड़ी बात यह है कि कि माला नगर निगम वाराणसी में कॉन्ट्रैक्ट पर काम करती है। इस बात की पुष्टि खुद लेखपाल और राजस्व निरीक्षक ने भी की है। स्क्रॉल ने रंजू देवी नाम की महिला की कहानी को बिल्कुल रुपहले पर्दे की तरह पेश किया है। इस कहानी को कुछ इस प्रकार शुरू किया गया है कि रंजू देवी के हाथ में सिर्फ बीस रुपये का एक नोट और पांच रुपये का एक सिक्का है। और वो इस पैसे से अपने बच्चों के लिए दूध और बिस्किट खरीदने जा रही है, जिसमें उसे दिक्कत हो रही है। स्क्रॉल का आरोप है कि रंजू देवी के पास राशन कार्ड नहीं है। राशन कार्ड नहीं होने के कारण उन्हें कोटे से राशन नहीं मिल पाया। दो-तीन बार कोशिश करने के बाद भी उसका राशन कार्ड नहीं बना और उसे पंचायत दफ्तर से भगा दिया गया। रंजू देवी के तीन बच्चे हैं। बच्चों के लिए दूध और बिस्किट के पैसे नहीं हैं। जबकि उसका पति नाव चलाकर पेट भरता था, लेकिन लॉकडाउन के कारण घर पर बैठा हुआ है। स्क्रॉल की इस कहानी पर एक सनसनीखेज उपन्यास लिखा जा सकता था, लेकिन सच्चाई इससे कोसों दूर है। पड़ताल में पता चला कि रंजू देवी अपने पति महेश के साथ डोमरी की नई बस्ती में रहती है। पति पेशे से नाविक है। इनका डोमरी में 8 कमरों का तीन मंजिला मकान है। इनके मकान में तीन किरायेदार भी रहते हैं। फोटो देखकर आप इनकी आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं। उनके परिवार में कुल 7 भाई हैं और सभी गंगापार अपने मकान में रहते हैं। दिलचस्प बात यह है कि रंजू देवी का वाराणसी में भी अपना एक मकान है। आर्थिक रूप से संपन्न होने के कारण परिवार का राशन कार्ड नहीं बन सकता। स्क्रॉल ने चौथी केस स्टडी के रूप में सिर्फ तस्वीर लगाई है। शब्दों की जादूगरी से ज्यादा काम नहीं लिया। दरअसल गरीबी को दिखाने के लिए कुछ मसाला नहीं मिला होगा। स्क्रॉल लिखता है कि राधा देवी की मां राजमणि का तो राशन कार्ड है, लेकिन राधा के पास राशन कार्ड नहीं होने के कारण राशन नहीं मिला। पूरी पड़ताल की तो जो सच सामने आया, उससे हमारे होश उड़ गए। राधा देवी के पति का नाम संजय कुमार है। जबकि संजय कुमार का नाम उसकी मां नगीना के नाम पर बने अंत्योदय कार्ड में अंकित है। इनका राशन कार्ड नंबर 219720554603 है। जब राशन कार्ड की ऑनलाइन सूची देखी तो इनके पूरे परिवार की लिस्ट सामने आ गई। इसमें राधा के पति संजय कुमार का भी नाम है और तफ्तीश में पता चला कि ये राशन भी ले रहे हैं। इसके अलावा संजय की पत्नी राधा देवी का अलग से एक यूनिट का पात्र गृहस्थी कार्ड बना हुआ है। इसका नंबर 219740892251 है। खास बात यह है कि उक्त दोनों कार्डों पर ये परिवार नियमानुसार खाद्यान्न प्राप्त कर रहा है। रही बात राधा की मां राजमणि देवी की तो उनके राशन कार्ड की संख्या 2197040616728 है। इस कार्ड पर भी नियमानुसार खाद्यान्न प्राप्त किया जा रहा हैा अब इन चारों परिवारों की कहानियों को पढ़कर समझ में आ गया होगा कि स्क्रॉल ने किस प्रकार आधारहीन, तथ्यहीन, भ्रामक और पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर झूठी रिपोर्ट प्रकाशित की और जान बूझकर प्रधानमंत्री मोदी को बदनाम करने की साजिश रची।
द प्रिंट का पाखंड- हर हाल में मोदी विरोध है इनका एजेंडा एक जगह लॉकडाउन करने का विरोध, दूसरी जगह लॉकडाउन में राहत देने का विरोध। हर हाल में मोदी विरोध ही इनका एजेंडा है। क्या आपने इससे बड़ा पाखंडी देखा है-
इसके पहले प्रोपगेंडा पत्रकार शेखर गुप्ता ने 30 मार्च को वेबसाइट ‘द प्रिंट’ से फेक न्यूज फैलाने की कोशिश की। द प्रिंट में दावा किया गया कि मोदी सरकार कोरोना वायरस लॉकडाउन को 14 अप्रैल के बाद भी कुछ हफ्तों के लिए बढ़ा सकती है। ‘Modi govt could extent coronavirus lockdown by a week a migrant exodus triggers alarm’ शीर्षक की ‘एक्सक्लूसिव’ रिपोर्ट में कहा गया कि दिल्ली एनसीआर से पलायन संकट के कारण लॉकडाउन को एक हफ्ते बढ़ाया जा सकता है। प्रसार भारती ने इस बारे में जब इस दावे पर सरकार से बात की तो कहा गया कि इस तरह की कोई योजना नहीं है और ये सरासर गलत खबर है।
The Print on May 2nd: Situation normal, but all locked up. Modi is bad.
The Print on June 9th: India is unlocking too soon. Modi is bad.
कैबिनेट सचिव राजीव गाबा ने कहा कि लॉकडाउन बढ़ाने की फिलहाल कोई योजना नहीं है। उन्होंने साफ कहा कि केंद्र सरकार के पास अभी ऐसी कोई योजना नहीं है। ऐसी खबरों को देखकर हैरानी होती है। सरकार की अभी लॉकडाउन बढ़ाने की कोई योजना ही नहीं है। द प्रिंट इससे पहले भी कई बार फेक खबर फैलाने की कोशिश कर चुकी है। इस फेक न्यूज को लेकर जब थू-थू होने लगी तो प्रिंट ने अपनी खबर वेबसाइट से डिलीट कर दी। ‘द प्रिंट’ का एक और कारनामा तथाकथित सेक्युलर और बुद्धिजीवी मीडिया और इससे जुड़े लोग लगातार धर्म और जाति के नाम पर देश को बांटने का काम कर रहे हैं। इस मामले में द प्रिंट न्यूज बेवसाइट काफी आगे हैं। द प्रिंट ने Hindi news anchors such as Rubika Liyaquat and Sayeed Ansari are like Muslim leaders of BJP हेडलाइन से एक खबर प्रकाशित की। इस लेख के जरिए समाज को धर्म और जाति के नाम पर बांटने की भरपूर कोशिश की गई। लेख की शुरूआत में लिखा गया है कि कोरोना वायरस महामारी के दौर में न्यूज मीडिया के लिए रिपोर्टिंग करना एक मुश्किल और जोखिम भरा काम है। इसमें संक्रमण होने का पूरा खतरा है, फिर भी कई रिपोर्टर जान जोखिम में डालकर अपनी पेशेवर जिम्मेदारी निभा रहे हैं, लेकिन पत्रकारिता के पेशे में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपनी जान तो जोखिम में नहीं डाल रहे हैं लेकिन वे हर दिन पेशेवर कारणों से अपनी अंतरात्मा, अपने जमीर और वजूद को खतरे में डाल रहे रहे/रही हैं और उसे बचाने की कोशिश कर रहे/रही हैं या मान चुके/चुकी हैं कि ये मुमकिन नहीं है। इस लेख में ये कहने की कोशिश की गई है कि आखिर मुसलमान होते हुए भी रोमाना इसार खान, रुबिका लियाकत और सईद अंसारी जैसे मुस्लिम एंकर्स कैसे अपने ही समुदाय को खबरें प्रसारित कर निंदा करते हैं और कहीं न कहीं ये सब ये लोग मजबूरी में करते हैं। द प्रिंट की इस खबर का रुबिका लियाकत ने तीखी निंदा की है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि मुझे विक्टिम कार्ड वाले एजेंडा में फ़िट न पा कर, भाई लोगों को काफी दुख हो रहा है। मुसलमानों को मुख्यधारा से अलग ऐसे रखा जाता है। हिंदुस्तान में मुसलमान ख़ुद को बेचारा और डरा हुआ बताए तभी इन जैसों का हीरो बना पाता है। @ThePrintIndia अपनी दुकान कहीं और सजाना..
अरे रे रे कितना दुख झलक रहा है भाई लोगों का मुझे विक्टिम कार्ड वाले एजेंडा में फ़िट न पा कर। मुसलमानों को मुख्यधारा से अलग ऐसे रखा जाता है। हिंदुस्तान में मुसलमान ख़ुद को बेचारा और डरा हुआ बताए तभी इन जैसों का हीरो बना पाता है। @ThePrintIndia अपनी दुकान कहीं और सजाना.. https://t.co/XBVddM7lun
एएनआई की पत्रकार स्मिता प्रकाश ने भी इस लेख की निंदा की है और लिखा है कि आगे क्या? हिन्दू एंकर, जैन एंकर, बौद्ध एंकर, सिख एंकर और फिर इसके बाद किस जाति के एंकर और फिर नार्थ, साउथ, वेस्ट और ईस्ट इंडिया के एंकर !
Next is what? Hindu anchors? then Jain anchors? Buddhist anchors? Sikh anchors? Then? Once done with those, divide on caste lines? Then? North, South? North East, South West? https://t.co/hFWwTxnA6V
‘द वायर’ ने फैलाया सीएम योगी का झूठा बयान ‘द वायर’ जैसे प्रोपेगेंडा पोर्टल्स इस आपदा काल में भी अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं। ताज़ा मामला ‘द वायर’ के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन का है, जिसने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में फेक न्यूज़ फैलाई है। तबलीगी जमात को बचाने के लिए तड़पते ‘द वायर’ ने फेक न्यूज़ चलाया कि जिस दिन इस इस्लामी संगठन का मजहबी कार्यक्रम हुआ, उसी दिन सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 25 मार्च से 2 अप्रैल तक अयोध्या प्रस्तावित विशाल रामनवमी मेला का आयोजन नहीं रुकेगा क्योंकि भगवान राम अपने भक्तों को कोरोना वायरस से बचाएंगे। योगी आदित्यनाथ के एमडीए सलाहकार मृत्युंजय कुमार ने सिद्धार्थ वरदराजन की ये चोरी पकड़ ली और उन्हें जम कर फटकार लगाई। उन्होंने ‘द वायर’ और उसके संस्थापक पर झूठ फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा कि मुख्यमंत्री योगी ने कभी कोई ऐसी बात कही ही नहीं है, जैसा कि लेख में दावा किया गया है। उन्होंने सिद्धार्थ को चेताया कि अगर उन्होंने अपनी इस फेक न्यूज़ को तुरंत डिलीट नहीं किया तो कार्रवाई की जाएगी और उन पर मानहानि का मुकदमा भी चलाया जाएगा। साथ ही उन्होंने तंज कसते हुए ये भी कहा कि कार्रवाई के बाद वेबसाइट के साथ-साथ केस लड़ने के लिए भी सिद्धार्थ वरदराजन को डोनेशन माँगना पड़ जाएगा।
झूठ फैलाने का प्रयास ना करे, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कभी ऐसी कोई बात नहीं कही है। इसे फ़ौरन डिलीट करे अन्यथा इस पर कार्यवाही की जाएगी तथा डिफ़ेमेशन का केस भी लगाया जाएगा। वेबसाईट के साथ-साथ केस लड़ने के लिए भी डोनेशन माँगना पड़ेगा फिर। https://t.co/2rEJmToLIh
वैष्णों देवी में श्रद्धालुओं के फंसे होने की झूठी खबर इसी तरह सोशल मीडिया पर ऐसी फैलाई जा रही हैं कि वैष्णो देवी तीर्थ में करीब 400 श्रद्धालु फंसे हुए हैं। जब पीआईपी की फैक्टचेक टीम ने इस खबर की जांच की तो पाया कि यह पूरी तरह झूठी खबर है। पीआईबी ने ट्वीटकर बताया कि कोई भी श्रद्धालु कटरा या वैष्णो देवी तीर्थ में नहीं फंसा हुआ है। यात्रा को लॉकडाउन होने से बहुत पहले, 18 मार्च को ही रोक दिया गया था।
Social media messages claiming that 400 devotees are stranded at the #VaishnoDevi or Katra is false. #PIBFactcheck: It is clarified that Yatra stopped on 18th March, much before the lockdown:
‘ऑल्ट न्यूज़’ के संस्थापक ने फैलायी झूठी खबर इसी तरह कथित फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट ‘ऑल्ट न्यूज़’ के संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने फेक अकाउंट को रीट्वीट कर झूठी खबर फैलाने की कोशिश की। एक ट्विटर अकाउंट जो कई दिनों से बंद पड़ा हुआ था। उस ट्विटर अकाउंट से अचानक से एक वीडियो ट्वीट किया जाता है, जिसमें एक महिला डॉक्टर बताती है कि किस तरह डॉक्टरों को सरकार द्वारा कुछ भी सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। वो बताती हैं कि उसने जो मास्क पहना हुआ है, वो काफ़ी पुराना है और उसे बार-बार धो कर उसे पहनना पड़ रहा है। वो डॉक्टर बताती हैं कि वो एक सप्ताह से यही मास्क पहन रही हैं। इस ट्वीट का सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस ट्विटर अकाउंट से ट्वीट किया गया था, वह अकाउंट किसी पुरुष के नाम पर था, जिसका हैंडल है- विक्रमादित्य। पहले नाम भी किसी पुरुष का था लेकिन इसको वायरल करने के लिए इसे किसी महिला के नाम पर बना दिया गया।