मोदी को बदनाम करने के लिए स्क्रॉल ने गढ़ी झूठी कहानी

आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
1965 इंडो-पाक युद्ध के दौरान विविध भारती पर 'हवा महल' की बजाए भारत-पाक युद्ध से सम्बंधित हंसी के नए प्रोग्राम "रेडियो झूठिस्तान" और "ढोल की पोल" प्रसारित होते थे। इस मनोरंजन भरे प्रोग्राम में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो एवं जनरल अयूब खान के भाषणों को फ़िल्मी गीतों से जोड़कर पेश किया जाता था, श्रोताओं को बड़ा आनंद आता था। ठीक वही काम आज एजेंडा पत्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ निराधार समाचार प्रकाशित कर जनता को भ्रमित कर, हंसी के पात्र बन रहे हैं।
किसी मोदी-योगी विरोधी एजेंडा पत्रकार ने देश के सम्मुख कोरोना पीड़ित एवं मृतकों की हो रही दुर्गति को रखने का साहस क्यों नहीं किया? क्या कारण है कि पत्रकारिता की गरिमा को कलंकित किया जा रहा है? दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के शव गृह में लाशों के लग रहे ढेर, जून 11 को India Tv रजत शर्मा ने दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में कोरोना मरीज के पलंग के नीचे निर्वस्त्र पड़ी लाश, कोरोना लाशों के बीच मरीज(पहले भी इस अस्पताल की लापरवाही को इसी प्रोग्राम को प्रसारित किया जा चूका है) और आज(जून 12) को  आजतक चैनल पर 'दंगल' कार्यक्रम में बंगाल में सड़ रही लाशों को हुक से घसीट कर कूड़े की गाड़ी में डाला जाने पर चर्चा दर्शाती है कि दिल्ली और बंगाल की सरकारें कोरोना को गंभीरता से नहीं ले रही हैं। क्या बंगाल सरकार की मानवता मर गयी है? क्यों लाशों को हुक से घसीटा जा रहा है? क्या लाशें सड़ रही हैं? ये एजेंडा पत्रकार इस अतिगंभीर मुद्दे पर क्यों चुप्पी साधे हुए हैं? क्या उनकी मानवता मर चुकी है कि चाहे कुछ भी होता रहे, हमें तो अपनी रोजी-रोटी और तिजोरी के लिए मोदी और योगी का ही विरोध करना है?  
कोरोना महामारी के इस दौर में भारत पूरी दुनिया को एक नई राह दिखा रहा है, पूरा विश्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की तारीफ कर रहा है। ऐसे में कुछ एजेंडा पत्रकार और मीडिया संस्थान गिद्ध दृष्टि लगाकर मोदी जी को बदनाम करने की साजिश रच रहे हैं। और इस मुहिम में द प्रिंट भी पीछे नहीं। 
देश में कुछ एजेंडा पत्रकार और पत्रकारिता संस्थान हमेशा मोदी सरकार के खिलाफ प्रोपेगेंडा में लगे रहते हैं। जब भी मौका मिलता है, मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए अपनी खबरों से लोगों में डर पैदा करने की कोशिश करते रहते हैं। अपनी वेबसाइट द प्रिंट से शेखर गुप्ता अक्सर इस तरह का नैरेटिव पेश करने की कोशिश करते है कि लोगों के मन में मोदी सरकार के प्रति गलत धारणा पैदा हो। ‘द प्रिंट’ में 2 मई को कोरोना को लेकर प्रकाशित खबर में कहा गया कि स्थिति सामान्य है, फिर भी सब कुछ बंद है, लॉकडाउन है।
कुछ इसी प्रकार के कुत्सित प्रयासों के साथ एक लेख स्क्रॉल में प्रकाशित किया गया है। इसमें वाराणसी के एक गांव डोमरी की कहानी छापी गई है। डोमरी गांव इसलिए चुना गया है, क्योंकि आदर्श ग्राम योजना के तहत प्रधानमंत्री मोदी द्वारा गोद लिया हुआ ये चौथा गांव है। स्क्रॉल ने कुछ लोगों को आधार बनाकर ये नैरेटिव सेट करने की कोशिश की है कि लॉकडाउन की वजह से प्रधानमंत्री मोदी का गोद लिया हुआ गांव भूखा है। लेकिन जब हमने पड़ताल की तो पता चला कि ये आर्टिकल न केवल तथ्यहीन और भ्रामक है, बल्कि पूर्वाग्रह के साथ लिखा गया है।
स्क्रॉल ने लेख में बताया है कि किस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी के गोद लिए गांव डोमरी में लोग खाने के लिए तरस रहे हैं। वेबसाइट ने चार केस स्टडी भी दी हैं। लेकिन चारों केस स्टडी मनगढ़ंत, पक्षपातपूर्ण और झूठ पर आधारित हैं। हमने चारों केस स्टडी की पड़ताल की और इसके चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। आइए एक-एक कर चारों केस स्टडी की सत्यता सामने रखते हैं-
स्क्रॉल का आरोप 
पहली केस स्टडी कल्लू नाम के दिहाड़ी मजदूर की है। स्क्रॉल लिखता है कि लॉकडाउन के दौरान कल्लू को मुफ्त भोजन के लिए 1 से 5 किमी तक पैदल चलना पड़ा। कल्लू दिहाड़ी मजदूर है, लेकिन लॉकडाउन में उसे काम नहीं मिला। मछली व्यवसाय के लिए कल्लू 10 वर्षों तक घर से बाहर रहा। वह मथुरा से मछली लेकर फरीदाबाद में बेचता था, लेकिन छह साल पहले वह डोमरी वापस लौटा और राशनकार्ड बनवाने की कोशिश की, लेकिन उसका राशन कार्ड नहीं बना और उसे बाहर से ही राशन खरीदना पड़ा। जब वह राशन लेने के लिए पीडीएस दुकान पहुंचा, तो वहां से उसे भगा दिया गया।

हकीकत 
जांच में पता चला कि कल्लू अब डोमरी का स्थायी निवासी नहीं है। यहां पर वो अपना मकान बेच चुका है। इस समय वो अपने भाई सीताराम के घर में ठहरा है, जहां मंशा देवी के नाम से अंत्योदय कार्ड बना हुआ है, जिसका नंबर 219720554188 है। इस नंबर पर खाद्यान्न भी प्राप्त किया जा रहा है। लेख में लिखा गया है कि वह छह साल पहले लौटकर आया है, जो गलत है। वह हाल-फिलहाल में ही लौटकर वाराणसी के डोमरी गांव अपने भाई के पास आया है।

जांच में ये भी पता चला कि कल्लू को प्रवासी/ अस्थायी राशनकार्ड (नंबर 219750005113) जारी किया जा चुका है। क्षेत्रीय लेखपाल के अनुसार उसे 2 बार राशन किट भी दी गई है। 14 मई, 2020 को कल्लू ने स्थानीय राशन की दुकान से कच्ची सामग्री की किट ली है, इसका भी रिकॉर्ड दर्ज है। यही नहीं, सामान लेने के बाद उस पर कल्लू के अंगूठे का निशान भी लगा है।
स्क्रॉल ने दूसरी कहानी माला नाम की महिला की लिखी है। घरों में काम करने वाली माला सिंगल मदर है और उसके पांच बच्चे हैं। लॉकडाउन के दौरान उसके मालिक ने सैलरी रोक दी। नए काम की तलाश में वो कई बार वाराणसी गई, लेकिन काम नहीं मिला। माला एक तरह से वाराणसी की सड़कों पर भीख मांगने के लिए मजबूर हो गई। उसकी मां के पास राशन कार्ड है, लेकिन उसके पास नहीं है। 6 महीने पहले उसके बेटे को 6,000 रुपये प्रति महीने पर सफाई कर्मचारी की नौकरी मिल गई और वो खुद 2,000 का काम कर लेती थी, लेकिन लॉकडाउन में मां और बेटे दोनों का काम छिन गया। बगैर राशनकार्ड के राशन मिलने की खबर पर वो पीडीएस दुकान गई, लेकिन उसे वहां राशन नहीं दिया गया।
हकीकत –
स्क्रॉल ने माला की कहानी को जिस प्रकार से पेश किया, उसे पढ़कर हम सबको गुस्सा आएगा। और इसमें कोई गलत बात भी नहीं है। लेकिन जिस प्रकार इस वेबसाइट ने हकीकत को छिपा लिया, वो पत्रकारिता के गुण-धर्म के न केवल विपरीत है, बल्कि खतरनाक भी है।

सच्चाई यह है कि माला की शादी नाटी ईमली में हुई है। वह लॉकडाउन के समय ग्रामसभा डोमरी में अपनी मां के पास आई हुई है। यही नहीं, माला का प्रवासी/ अस्थायी राशनकार्ड (नंबर 219750005086) भी जारी किया गया है। और इन सबसे बड़ी बात यह है कि कि माला नगर निगम वाराणसी में कॉन्ट्रैक्ट पर काम करती है। इस बात की पुष्टि खुद लेखपाल और राजस्व निरीक्षक ने भी की है।
स्क्रॉल ने रंजू देवी नाम की महिला की कहानी को बिल्कुल रुपहले पर्दे की तरह पेश किया है। इस कहानी को कुछ इस प्रकार शुरू किया गया है कि रंजू देवी के हाथ में सिर्फ बीस रुपये का एक नोट और पांच रुपये का एक सिक्का है। और वो इस पैसे से अपने बच्चों के लिए दूध और बिस्किट खरीदने जा रही है, जिसमें उसे दिक्कत हो रही है।
स्क्रॉल का आरोप है कि रंजू देवी के पास राशन कार्ड नहीं है। राशन कार्ड नहीं होने के कारण उन्हें कोटे से राशन नहीं मिल पाया। दो-तीन बार कोशिश करने के बाद भी उसका राशन कार्ड नहीं बना और उसे पंचायत दफ्तर से भगा दिया गया। रंजू देवी के तीन बच्चे हैं। बच्चों के लिए दूध और बिस्किट के पैसे नहीं हैं। जबकि उसका पति नाव चलाकर पेट भरता था, लेकिन लॉकडाउन के कारण घर पर बैठा हुआ है।
स्क्रॉल की इस कहानी पर एक सनसनीखेज उपन्यास लिखा जा सकता था, लेकिन सच्चाई इससे कोसों दूर है। पड़ताल में पता चला कि रंजू देवी अपने पति महेश के साथ डोमरी की नई बस्ती में रहती है। पति पेशे से नाविक है। इनका डोमरी में 8 कमरों का तीन मंजिला मकान है। इनके मकान में तीन किरायेदार भी रहते हैं। फोटो देखकर आप इनकी आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं।
उनके परिवार में कुल 7 भाई हैं और सभी गंगापार अपने मकान में रहते हैं। दिलचस्प बात यह है कि रंजू देवी का वाराणसी में भी अपना एक मकान है। आर्थिक रूप से संपन्न होने के कारण परिवार का राशन कार्ड नहीं बन सकता।
स्क्रॉल ने चौथी केस स्टडी के रूप में सिर्फ तस्वीर लगाई है। शब्दों की जादूगरी से ज्यादा काम नहीं लिया। दरअसल गरीबी को दिखाने के लिए कुछ मसाला नहीं मिला होगा। स्क्रॉल लिखता है कि राधा देवी की मां राजमणि का तो राशन कार्ड है, लेकिन राधा के पास राशन कार्ड नहीं होने के कारण राशन नहीं मिला।
पूरी पड़ताल की तो जो सच सामने आया, उससे हमारे होश उड़ गए। राधा देवी के पति का नाम संजय कुमार है। जबकि संजय कुमार का नाम उसकी मां नगीना के नाम पर बने अंत्योदय कार्ड में अंकित है। इनका राशन कार्ड नंबर 219720554603 है। जब राशन कार्ड की ऑनलाइन सूची देखी तो इनके पूरे परिवार की लिस्ट सामने आ गई। इसमें राधा के पति संजय कुमार का भी नाम है और तफ्तीश में पता चला कि ये राशन भी ले रहे हैं।
इसके अलावा संजय की पत्नी राधा देवी का अलग से एक यूनिट का पात्र गृहस्थी कार्ड बना हुआ है। इसका नंबर 219740892251 है। खास बात यह है कि उक्त दोनों कार्डों पर ये परिवार नियमानुसार खाद्यान्न प्राप्त कर रहा है। रही बात राधा की मां राजमणि देवी की तो उनके राशन कार्ड की संख्या 2197040616728 है। इस कार्ड पर भी नियमानुसार खाद्यान्न प्राप्त किया जा रहा हैा
अब इन चारों परिवारों की कहानियों को पढ़कर समझ में आ गया होगा कि स्क्रॉल ने किस प्रकार आधारहीन, तथ्यहीन, भ्रामक और पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर झूठी रिपोर्ट प्रकाशित की और जान बूझकर प्रधानमंत्री मोदी को बदनाम करने की साजिश रची।
द प्रिंट का पाखंड- हर हाल में मोदी विरोध है इनका एजेंडा
एक जगह लॉकडाउन करने का विरोध, दूसरी जगह लॉकडाउन में राहत देने का विरोध। हर हाल में मोदी विरोध ही इनका एजेंडा है। क्या आपने इससे बड़ा पाखंडी देखा है-
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इसके पहले प्रोपगेंडा पत्रकार शेखर गुप्ता ने 30 मार्च को वेबसाइट ‘द प्रिंट’ से फेक न्यूज फैलाने की कोशिश की। द प्रिंट में दावा किया गया कि मोदी सरकार कोरोना वायरस लॉकडाउन को 14 अप्रैल के बाद भी कुछ हफ्तों के लिए बढ़ा सकती है। ‘Modi govt could extent coronavirus lockdown by a week a migrant exodus triggers alarm’ शीर्षक की ‘एक्सक्लूसिव’ रिपोर्ट में कहा गया कि दिल्ली एनसीआर से पलायन संकट के कारण लॉकडाउन को एक हफ्ते बढ़ाया जा सकता है।

प्रसार भारती ने इस बारे में जब इस दावे पर सरकार से बात की तो कहा गया कि इस तरह की कोई योजना नहीं है और ये सरासर गलत खबर है।

कैबिनेट सचिव राजीव गाबा ने कहा कि लॉकडाउन बढ़ाने की फिलहाल कोई योजना नहीं है। उन्होंने साफ कहा कि केंद्र सरकार के पास अभी ऐसी कोई योजना नहीं है। ऐसी खबरों को देखकर हैरानी होती है। सरकार की अभी लॉकडाउन बढ़ाने की कोई योजना ही नहीं है।
द प्रिंट इससे पहले भी कई बार फेक खबर फैलाने की कोशिश कर चुकी है। इस फेक न्यूज को लेकर जब थू-थू होने लगी तो प्रिंट ने अपनी खबर वेबसाइट से डिलीट कर दी।
‘द प्रिंट’ का एक और कारनामा
तथाकथित सेक्युलर और बुद्धिजीवी मीडिया और इससे जुड़े लोग लगातार धर्म और जाति के नाम पर देश को बांटने का काम कर रहे हैं। इस मामले में द प्रिंट न्यूज बेवसाइट काफी आगे हैं। द प्रिंट ने Hindi news anchors such as Rubika Liyaquat and Sayeed Ansari are like Muslim leaders of BJP हेडलाइन से एक खबर प्रकाशित की। इस लेख के जरिए समाज को धर्म और जाति के नाम पर बांटने की भरपूर कोशिश की गई।

लेख की शुरूआत में लिखा गया है कि कोरोना वायरस महामारी के दौर में न्यूज मीडिया के लिए रिपोर्टिंग करना एक मुश्किल और जोखिम भरा काम है। इसमें संक्रमण होने का पूरा खतरा है, फिर भी कई रिपोर्टर जान जोखिम में डालकर अपनी पेशेवर जिम्मेदारी निभा रहे हैं, लेकिन पत्रकारिता के पेशे में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपनी जान तो जोखिम में नहीं डाल रहे हैं लेकिन वे हर दिन पेशेवर कारणों से अपनी अंतरात्मा, अपने जमीर और वजूद को खतरे में डाल रहे रहे/रही हैं और उसे बचाने की कोशिश कर रहे/रही हैं या मान चुके/चुकी हैं कि ये मुमकिन नहीं है। 
इस लेख में ये कहने की कोशिश की गई है कि आखिर मुसलमान होते हुए भी रोमाना इसार खान, रुबिका लियाकत और सईद अंसारी जैसे मुस्लिम एंकर्स कैसे अपने ही समुदाय को खबरें प्रसारित कर निंदा करते हैं और कहीं न कहीं ये सब ये लोग मजबूरी में करते हैं। 
द प्रिंट की इस खबर का रुबिका लियाकत ने तीखी निंदा की है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि मुझे विक्टिम कार्ड वाले एजेंडा में फ़िट न पा कर, भाई लोगों को काफी दुख हो रहा है। मुसलमानों को मुख्यधारा से अलग ऐसे रखा जाता है। हिंदुस्तान में मुसलमान ख़ुद को बेचारा और डरा हुआ बताए तभी इन जैसों का हीरो बना पाता है। @ThePrintIndia अपनी दुकान कहीं और सजाना..

एएनआई की पत्रकार स्मिता प्रकाश ने भी इस लेख की निंदा की है और लिखा है कि आगे क्या? हिन्दू एंकर, जैन एंकर, बौद्ध एंकर, सिख एंकर और फिर इसके बाद किस जाति के एंकर और फिर नार्थ, साउथ, वेस्ट और ईस्ट इंडिया के एंकर !

‘द वायर’ ने फैलाया सीएम योगी का झूठा बयान
‘द वायर’ जैसे प्रोपेगेंडा पोर्टल्स इस आपदा काल में भी अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं। ताज़ा मामला ‘द वायर’ के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन का है, जिसने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में फेक न्यूज़ फैलाई है। तबलीगी जमात को बचाने के लिए तड़पते ‘द वायर’ ने फेक न्यूज़ चलाया कि जिस दिन इस इस्लामी संगठन का मजहबी कार्यक्रम हुआ, उसी दिन सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 25 मार्च से 2 अप्रैल तक अयोध्या प्रस्तावित विशाल रामनवमी मेला का आयोजन नहीं रुकेगा क्योंकि भगवान राम अपने भक्तों को कोरोना वायरस से बचाएंगे।

योगी आदित्यनाथ के एमडीए सलाहकार मृत्युंजय कुमार ने सिद्धार्थ वरदराजन की ये चोरी पकड़ ली और उन्हें जम कर फटकार लगाई। उन्होंने ‘द वायर’ और उसके संस्थापक पर झूठ फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा कि मुख्यमंत्री योगी ने कभी कोई ऐसी बात कही ही नहीं है, जैसा कि लेख में दावा किया गया है। उन्होंने सिद्धार्थ को चेताया कि अगर उन्होंने अपनी इस फेक न्यूज़ को तुरंत डिलीट नहीं किया तो कार्रवाई की जाएगी और उन पर मानहानि का मुकदमा भी चलाया जाएगा। साथ ही उन्होंने तंज कसते हुए ये भी कहा कि कार्रवाई के बाद वेबसाइट के साथ-साथ केस लड़ने के लिए भी सिद्धार्थ वरदराजन को डोनेशन माँगना पड़ जाएगा।

वैष्णों देवी में श्रद्धालुओं के फंसे होने की झूठी खबर
इसी तरह सोशल मीडिया पर ऐसी फैलाई जा रही हैं कि वैष्णो देवी तीर्थ में करीब 400 श्रद्धालु फंसे हुए हैं। जब पीआईपी की फैक्टचेक टीम ने इस खबर की जांच की तो पाया कि यह पूरी तरह झूठी खबर है। पीआईबी ने ट्वीटकर बताया कि कोई भी श्रद्धालु कटरा या वैष्णो देवी तीर्थ में नहीं फंसा हुआ है। यात्रा को लॉकडाउन होने से बहुत पहले, 18 मार्च को ही रोक दिया गया था।



‘ऑल्ट न्यूज़’ के संस्थापक ने फैलायी झूठी खबर
इसी तरह कथित फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट ‘ऑल्ट न्यूज़’ के संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने फेक अकाउंट को रीट्वीट कर झूठी खबर फैलाने की कोशिश की। एक ट्विटर अकाउंट जो कई दिनों से बंद पड़ा हुआ था। उस ट्विटर अकाउंट से अचानक से एक वीडियो ट्वीट किया जाता है, जिसमें एक महिला डॉक्टर बताती है कि किस तरह डॉक्टरों को सरकार द्वारा कुछ भी सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। वो बताती हैं कि उसने जो मास्क पहना हुआ है, वो काफ़ी पुराना है और उसे बार-बार धो कर उसे पहनना पड़ रहा है। वो डॉक्टर बताती हैं कि वो एक सप्ताह से यही मास्क पहन रही हैं। इस ट्वीट का सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस ट्विटर अकाउंट से ट्वीट किया गया था, वह अकाउंट किसी पुरुष के नाम पर था, जिसका हैंडल है- विक्रमादित्य। पहले नाम भी किसी पुरुष का था लेकिन इसको वायरल करने के लिए इसे किसी महिला के नाम पर बना दिया गया।

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