पाकिस्तान : ‘कोरोना काफिरों के लिए है, वुज़ू करने वालों को सिर्फ मौत आ सकती हैं, ये बीमारी नहीं’

Muslim Community use Vaju Water in water recharging
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
एक ओर जहाँ तबलीगी जमात का मरकज देश-विदेश में कोरोना वायरस (COVID-19) का सबसे बड़ा स्रोत बनकर उभरा है वहीं यह भी हकीकत है कि मुस्लिम समुदाय ही अभी तक भी इस बात की गंभीरता को मजहबी विश्वासों के सामने छोटा मानकर चल रहा है।
ऐसा ही एक वीडियो सामने आया है जिसमें पाकिस्तान में मौजूद कुछ मुस्लिम कहते सुने जा सकते हैं कि कोरोना सिर्फ काफ़िरों को होता है और वुज़ू करने वालों को इससे डर नहीं लगता।
ट्विटर पर “साउथ चाइना मोर्निंग पोस्ट” (SCMP) ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा है- “पाकिस्तान के कुछ मुस्लिम सरकार द्वारा मजहबी जमावड़ों को प्रतिबंधित करने को बेकार मानते हुए कह रहे हैं कि COVID-19 वायरस सिर्फ काफिरों को ही संक्रमित कर सकता है।”
इस वीडियो में वकास अहमद कहते हैं- “ये जो बिमारी है, ये इंशा अल्लाह हम सब.. जो भी मुसलमान हैं उनको बिलकुल भी नहीं आएगी, हमारा भरोसा अल्लाह पर है। जो काफिर हैं, वही डरते हैं इससे, उनको इस चीज का ज्यादा खौफ है।”
वीडियो में कुछ तथ्य दिए गए हैं, उनमें बताया गया है कि पाकिस्तान में हजारों मुस्लिम मजहबी सामूहिक जमावड़ों के लिए प्रतिबंधों का उलंघन कर रहे हैं। जबकि पकिस्तान की सरकार ने पाँच से ज्यादा लोगों के एक जगह पर रहने पर प्रतिबन्ध लगाया हुआ है। बावजूद इसके, लोग रोजाना मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए जा रहे हैं।
वीडियो में वकास अहमद आगे कहते हैं- “मैं मास्क और ग्लव्स इसलिए नहीं पहनता क्योंकि मैं अल्लाह की प्रार्थना करता हूँ, मुझे अल्लाह पर भरोसा है। कोई भी शख्स अगर इस बात पर अमल करेगा…हम सब मुसलामानों का इस बात पर यकीन है कि जो शख्स वज़ू कर के घर से आएगा, उसे कभी कोई बिमारी नहीं होगी सिवाए मौत के।”
विडियो में एक अन्य तथ्य में बताया गया है कि पाकिस्तान में 15 अप्रैल तक COVID-19 के संक्रमण से अब तक 5,988 केस सामने आ गए हैं जिनमें से अब तक 107 लोगों की मौत हो चुकी है।
पाकिस्तान में भी 60% से भी ज्यादा कोरोना वायरस का संक्रमण महज मजहबी जमावड़ों में शामिल होने से फैला है। साथ ही मध्य-एशिया के मजहबी कार्यक्रमों से लौटे लोग भी इसके संक्रमण का बड़ा स्रोत हैं। फिर भी सभी तथ्यों को दरकिनार कर जुम्मे की नमाज में बड़ी संख्या में लोग मस्जिद में इकट्ठे होते हैं।

वीडियो में दिखाया गया है कि मजहब के सामने पाकिस्तान के पुलिसकर्मी और सुरक्षा में तैनात लोग कितने बेबस हैं। उनका कहना है क्योंकि यह मजहबी मामला है इस कारण इसके संवेदनशील होने की वजह से लोगों से ज्यादा सख्ती नहीं कर सकते।
इन मौलानाओं को संलग्न भारत के इस नए नक़्शे को देखना चाहिए। और भारत के इस नए नक़्शे की गंभीरता को भी अपने दिमाग से कूड़े को निकालकर होश में आकर हिन्दू-मुसलमान की गन्दी सोंच से बाहर आकर ही समझ पाएंगे। यह भारत का बिगड़ा नक्शा नहीं, बल्कि इस नक़्शे के माध्यम से नक्शा बनाने वाले ने, डॉक्टरों, नर्सों, पुलिस और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोसने वालों को समझाने के लिए अपनी कितनी बुद्धि, परिश्रम और समय लगाया होगा। मोदी ने जिस प्रकार डॉक्टर, नर्स और पुलिस की सहायता से विश्व के मुकाबले भारत को इस वैश्विक बीमारी से बचाने के प्रयास में 24X7 व्यस्त हैं। इस नक़्शे को नकारात्मक दृष्टि की बजाए सकारात्मक दृष्टि से देखने और समझने की जरुरत है। हिन्दू-मुसलमान करने, मोदी, डॉक्टर, नर्स और पुलिस को गालियां देने के लिए ज़िंदगी पड़ी है, पहले इस बीमारी को दूर करने में कंधे से कन्धा मिलाकर इनका मनोबल बढ़ाओ। 
इस नक़्शे की विशेषता देखिए कि कौन सा देश भारत के किस प्रदेश के बराबर है। फिर तुलना करिए उस देश में कितने पीड़ित हैं और कितने अकाल मृत्यु का ग्रास बन चुके हैं और भारत के उस प्रान्त में कितने। मोदी-डॉक्टर-नर्स-पुलिस अपने नागरिकों को अन्य देशों के मुकाबले कितने अधिक सुरक्षित रखने में प्रयत्नशील हैं।    
पाकिस्तान ही नहीं बल्कि भारत में भी मजहबी जुटान प्रशासन के सामने बड़ा सरदर्द बने हुए हैं। लॉकडाउन के दौरान भी निरंतर यह संदेश देना पड़ रहा है कि सोशल डिस्टेंस के द्वारा ही कोरोना के संक्रमण पर अंकुश लगाया जा सकता है। लॉक डाउन के दौरान जब जनता को उनकी जरुरत का सामान खरीदने की छूट दी जाती है, हिन्दू क्षेत्रों में तो उचित दूरी का ध्यान रखा जाता है, लेकिन मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में स्थिति एकदम विपरीत है। जो यह भी साबित करता है कि चाहे भारत हो या पाकिस्तान सोंच में ज्यादा अंतर नहीं।ऐसा नहीं है सभी मुसलमान ऐसा करते हैं, कुछ समझदार बीमारी की गंभीरता को देखते हुए, दूरी का पालन करने के साथ-साथ दूसरों से भी दूरी बनाए रखने के लिए कहते देखे भी जाते हैं।  
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लेकिन फिर एक विशेष स्रोत का एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो अभी भी मानता है कि कोरोना का कहर सिर्फ काफिरों पर ही बरस सकता है और नमाज पढ़ने वाले इससे सुरक्षित हैं। शायद इसीलिए डॉक्टरों, नर्सों और पुलिस पर थूकते हैं, हॉस्पिटल लॉबी में शौच करते हैं, पत्थरों से हमला किया जा रहा है, मस्जिदों में छुपाकर अपने ही समाज को मुसीबत में डाल रहे हैं। 

1 comment:

Shweta said...

I Agree with you.