![]() |
दिल्ली में बंगले वली मस्जिद के बाहर तब्लीगी जमात के फॉलोवर (फोटो साभार: Mint) |
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
2014 में मोदी सरकार आने से पहले की सरकारें इस्लामिक आतंकवाद को संरक्षण देने के लिए "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" के नाम से हिन्दू धर्म पर प्रहार करती रहीं। आतंकवाद के झूठे आरोपों में निर्दोष साध्वी प्रज्ञा, स्वामी असीमानंद और कर्नल पुरोहित आदि को जेलों में डाल देशद्रोही आतंकवादियों के हौसले बुलंद किये जा रहे थे। दीपावली के शुभावसर पर हिन्दू धर्म के सम्मानित शंकराचार्य को गिरफ्तार करने ने भूतपूर्व महामहिम प्रणव मुख़र्जी तक को झंझोर दिया था। उस समय कांग्रेस कार्यकारणी के सदस्य रहते, कांग्रेस वर्किंग समिति की मीटिंग में प्रश्न किया था कि "क्या ईद के मौके किसी इमाम को गिरफ्तार करने की हिम्मत है?" उनके इस प्रश्न का आज तक उन्हें उत्तर नहीं मिला। जिस कारण विवश होकर अपनी पुस्तक में सोनिया गाँधी के हिन्दू विरोधी होने की पीड़ा को व्यक्त कर दिया।
2014 में मोदी सरकार आने से पहले की सरकारें इस्लामिक आतंकवाद को संरक्षण देने के लिए "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" के नाम से हिन्दू धर्म पर प्रहार करती रहीं। आतंकवाद के झूठे आरोपों में निर्दोष साध्वी प्रज्ञा, स्वामी असीमानंद और कर्नल पुरोहित आदि को जेलों में डाल देशद्रोही आतंकवादियों के हौसले बुलंद किये जा रहे थे। दीपावली के शुभावसर पर हिन्दू धर्म के सम्मानित शंकराचार्य को गिरफ्तार करने ने भूतपूर्व महामहिम प्रणव मुख़र्जी तक को झंझोर दिया था। उस समय कांग्रेस कार्यकारणी के सदस्य रहते, कांग्रेस वर्किंग समिति की मीटिंग में प्रश्न किया था कि "क्या ईद के मौके किसी इमाम को गिरफ्तार करने की हिम्मत है?" उनके इस प्रश्न का आज तक उन्हें उत्तर नहीं मिला। जिस कारण विवश होकर अपनी पुस्तक में सोनिया गाँधी के हिन्दू विरोधी होने की पीड़ा को व्यक्त कर दिया।
नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही जिस प्रकार विश्व पटल पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध आवाज़ को बुलंदता से उठा उस विश्व को मानने को विवश कर दिया, जो विश्व पहले भारत की आवाज़ को यह कहकर दबा दिया करता था कि "यह भारत और पाकिस्तान का अंदरूनी मामला है।" जैसे-जैसे आतंकवाद की समस्या जोर पकड़ती गयी, पाकिस्तान विश्व में अलग-थलग पड़ना शुरू हो गया। जिस कारण पाकिस्तान से अधिक चीन परेशान होने लगा। आतंकवाद के बाद भारत का दूसरा प्रहार कश्मीर को लेकर हुआ ही था कि सर्जिकल और एयर स्ट्राइक ने तो पाकिस्तान और चीन दोनों की नींद ही उड़ा दी।
पाकिस्तान तो सर्जिकल और एयर स्ट्राइक की मार से उभर नहीं पाया। लेकिन चीन ने पाकिस्तान से दोस्ती निभाते बायो बम की बात कही थी। जिसे कोई नहीं समझ पाया। कोरिया के केमिकल बम पर तो हर कोई चिंतित था, परन्तु चीन की ओर किसी का ध्यान नहीं गया। वर्तमान की बात करें, तो समस्त विश्व उस कोरोना से जूझ रहा है, जो चीन के वुहान से विश्व में फैली जरूर है, लेकिन इस बीमारी की मार से दोस्त पाकिस्तान भी नहीं बचा।
भारत के कई राज्यों में वुहान कोरोना वायरस के प्रसार में तबलीगी जमात की भूमिका सामने आई है। दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन स्थित मरकज में इस्लामी संगठन द्वारा आयोजित एक इस्लामी मजहबी आयोजन में भाग लेने के बाद कई लोगों की मौत हो गई है। वैसे भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जो तबलीगी जमात की लापरवाही से प्रभावित है। अन्य दक्षिण एशियाई देश भी इसका खामियाजा भुगत रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में, अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठनों के साथ तबलीगी जमात के संबंध बेहद अर्थपूर्ण हो जाते हैं।
2011 में विकिलिक्स द्वारा जारी गुप्त अमेरिकी दस्तावेजों से पता चला है कि अलकायदा के कुछ गुर्गों ने जमात का इस्तेमाल अपनी पाकिस्तान की यात्रा के लिए वीजा और फंड हासिल करने के लिए किया। दस्तावेजों में कहा गया है कि वे दिल्ली या फिर इसके आस-पास भी रहते थे। ‘एक अनुभवी जिहादी’ के रूप में सऊदी अरब के अब्दुल बुखारी का हवाला देते हुए, क्यूबा में ग्वांतानामो बे के अमेरिकी अधिकारियों द्वारा तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि 1985-1986 में वह जिस जमात के सदस्य से मिले थे, उसने पाकिस्तान के लिए वीजा में उनकी मदद की। 25 जुलाई, 2007 की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जमात तबलीगी के एक सदस्य ने एक बंदी के लिए पाकिस्तान का वीजा खरीदा, जिसके बाद वो बंदी और अन्य सऊदी लोग लाहौर गए।
विकीलीक्स में खुलासा किया गया है कि उस बंदी को फिर नई दिल्ली में जमात तबलीगी के नेता से मिलवाया गया संगठन के लिए एक जीवन समर्पित करने के लिए कहा गया। बंदी ने जमात तबलीगी से कहा कि उसे इस बारे में सोचने की जरूरत है क्योंकि वह अपना जीवन सेवा, तीर्थयात्रा और मिशनरी कार्यों में नहीं लगाना चाहता। इसके बाद वो दो सप्ताह के लिए लाहौर लौटा और फिर सऊदी अरब चला गया।
1 सितंबर, 2008 को सोमालियाई बंदी मोहम्मद सोलिमन बर्रे पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में धर्मांतरण करवाने वाली संस्था जमात तबलीगी की पहचान अलकायदा कवर स्टोरी के रूप में की गई है। अलकायदा, जमात तबलीगी के सदस्यों की अंतर्राष्ट्रीय यात्रा को सुविधाजनक बनाने और फंड देने का काम करती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उसे भारत में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी का दर्जा देने से इनकार कर दिया गया था, लेकिन उसने जमात तबलीगी के प्रायोजन के तहत पाकिस्तान जाने के लिए वीजा लिया था। बंदी ने कहा कि उसका मिशनरी कर्तव्यों को पूरा करने या जमात तबलीगी के साथ सेवा करने का कोई इरादा नहीं है, उन्होंने तो सिर्फ वीजा प्राप्त करने के लिए समूह का इस्तेमाल किया था।
एक अन्य रिपोर्ट में भी तबलीगी जमात का उल्लेख है। 27 जनवरी 2008 को तैयार किए गए सूडान के अमीर मुहम्मद पर एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 1991 की शुरुआत में बंदी ने सुडान ने केन्या के रास्ते भारत की हवाई यात्रा की। भारत के लिए उड़ान भरते समय बंदी ने तबलीगी जमात के एक प्रतिनिधि से मुलाकात की, जिसने उसे नई दिल्ली के एक बड़े तबलीगी सेंटर के बारे में बताया, जहाँ वह सहायता के लिए जा सकता था। रिपोर्ट में कहा गया है कि बंदी ने पाकिस्तानी वीजा प्राप्त करने के लिए खुद को एक तबलीगी के रूप में पेश किया।
इस तरह से यह स्पष्ट है कि इस्लामिक संगठनों ने तबलीगी जमात का इस्तेमाल अपने सदस्यों की यात्राओं को सुविधाजनक बनाने के लिए एक पाइपलाइन की तरह इस्तेमाल किया। 2003 में ब्रुकलिन ब्रिज को नष्ट करने के लिए एक आतंकवादी साजिश के आरोपित ओहियो ट्रक ड्राइवर आयमान फारिस ने अल कायदा के लिए एक काम पूरा करने के लिए जमात का इस्तेमाल पाकिस्तान की सुरक्षित यात्रा के लिए किया। तबलीगी जमात का नाम संयुक्त राज्य अमेरिका में 9/11 आतंकवादी हमले के बाद के बाद जाँचकर्ताओं की नजर में आया। इसके बाद कम से कम चार हाई-प्रोफाइल आतंकवाद मामलों में इसका नाम सामने आया था।
एक प्रतिष्ठित जिओपोलिटिकल इंटेलीजेंस प्लेटफॉर्म स्ट्रैटफ़ोर ने तबलीगी जमात और ग्लोबल जिहाद की दुनिया से इसके संबंध पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की। रिपोर्ट में कहा गया है कि जमात और शिया विरोधी संप्रदाय समूहों, कश्मीरी आतंकवादियों और तालिबान के बीच ‘अप्रत्यक्ष कनेक्शन’ का सबूत है। इसमें कहा गया है कि तबलीगी जमात संगठन इस्लामिक चरमपंथियों के लिए और नए सदस्यों की भर्ती के लिए अलकायदा जैसे समूहों के लिए एक वास्तविक समूह के रूप में कार्य करता है। तबलीगी कट्टरपंथी इस्लामवाद की दुनिया से तब रूबरू होते हैं जब वे अपना शुरुआती ट्रेनिंग लेने के लिए पाकिस्तान जाते हैं। एक बार पाकिस्तान में भर्ती होने के बाद, तालिबान, अल कायदा और हरकत-उल-मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी संगठन उन्हें अपने में शामिल करने की कोशिश करते हैं।
दुनिया भर में वुहान कोरोना वायरस के प्रसार में अपनी भारी भागीदारी सुनिश्चित करने से पहले तबलीगी जमात से जुड़े लोगों ने आतंकवादी हमलों में नियमित रूप से भाग लिया। 2017 के लंदन ब्रिज हमले में हमलावरों में से एक, यूसुफ ज़ाग्बा को तबलीगी जमात से जुड़ा था। 2005 में लंदन बम धमाकों को अंजाम देने वाले 7/7 आतंकवादियों के सरगना मोहम्मद सिद्दीकी खान और सहयोगी शहजाद तनवीर को भी तबलीगी जमात से जुड़ा था।
अवलोकन करें:-
अवलोकन करें:-
वुहान कोरोना वायरस के प्रसार में तबलीगी जमात के संदिग्ध तरीके और आतंकवादी संगठनों के लिंक उसके इतिहास को देखते हुए यह संभावना जताई जा रही है कि यह ‘बायोलॉजिकल टेरर’ का एक हिस्सा हो सकता है। पाकिस्तान, मलेशिया और अब भारत में भी तबलीगी जमात के मजहबी कार्यक्रमों ने दक्षिण एशियाई देशों में वायरस फैला दिया है। यदि यह सच में जानबूझकर फैलाने का मामला था, तो यह उन घटनाओं के सबसे खतरनाक मोड़ को दर्शाता है जो अब देशों के अधिकारियों को झेलनी पड़ेंगी। साथ ही उनके लापरवाही के इस घिनौने कृत्य की वजह से कई जीवन खतरे में पड़ गए हैं।
No comments:
Post a Comment