आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
101 पूर्व ब्यूरोक्रेट्स ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख कर ‘मुस्लिमों के ख़िलाफ़ हो रहे अत्याचार’ पर अपना विरोध जताया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि कोरोना वायरस की आपदा के बीच देश के कई क्षेत्रों में ‘मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार’ को लेकर विरोध जताया है। हालाँकि, उन्होंने ये भी कहा कि तबलीगी जमात ने दिल्ली में जो बैठक किया वो ‘गुमराह होने के कारण’ और निंदनीय है, लेकिन साथ ही कहा कि मीडिया में कुछ लोग मुस्लिमों को लेकर घृणा फैला रहे हैं, जो निंदनीय और दोषपूर्ण व्यवहार है।
उन्होंने दावा किया कि कोरोना वायरस रूपी आपदा से पूरा देश त्रस्त है और यहाँ डर एवं असुरक्षा का माहौल है, जिसे देश के विभिन्न हिस्सों में मुस्लिमों के ख़िलाफ़ अभियान चलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। आरोप लगाया गया है कि मुसलमानों को अलग कर के घृणा की नज़र से देखा जा रहा है, उन्हें सार्वजनिक जगहों से दूर रखा जा रहा है और ऐसा इसीलिए किया जा रहा है, ताकि कथित रूप से बाकी जनता को बचाया जा सके।
कभी CAA विरोध, कभी चिदंबरम का बचाव, कभी जमातियों की रक्षा
इन पूर्व अधिकारियों का आरोप है कि पूरा देश उस डर के माहौल से गुजर रहा है। साथ ही इसमें एकता से रहने जैसी बातें भी की गई हैं। ये पूर्व नौकरशाहों ने ये बताना नहीं भूला कि वो किसी भी राजनीतिक विचारधारा से ताल्लुक नहीं रखते हैं और वो भारत के संविधान के प्रति आस्था रखते हुए ये पत्र लिख रहे हैं। जैसा कि आप देख सकते हैं, इस पत्र में जमात को निर्दोष, गुमराह और भटका हुआ साबित करने की कोशिश की गई है, जैसा आतंकवादियों के साथ किया जाता है।
आखिर जब मुस्लिम समाज सब तरफ से फंस जाता है, बड़ी होशियारी से Victim Card खेलने लगते हैं। अपने आपको मासूम, गुमराह, गरीब और असहाय बता शैतानी हरकतों पर पर्दा डालने का प्रयास करते हैं। ये लोग कुकुरमुत्ते नहीं जानते कि इनकी इस तरह की अमानवीय हरकतों से बेकसूर मुसलमान बदनाम होता है, और उन्हीं बेकसूर मुसलमानों को बलि का बकरा बनाकर ये ही लोग अपनी तिजोरियां भर मालपुए खाते हैं और बेकसूर मुसलमान वहीं रहता है एवं उसी स्थिति में रहकर अपमानित होता रहता है।
प्रधानमंत्री मोदी को पत्र को पत्र लिखने की बजाए किसी ने जमात के मोहम्मद साद को नहीं लिखा कि जमातियों से कहो किसी मस्जिद में छिपने की बजाए बाहर आकर अपना इलाज करवाओ। लोगों का यहाँ तक कहना है कि मस्जिदों से पकडे जा रहे कोरोना पीड़ित जमातियों से सारा खर्चा वसूला जाये।
जम्मू कश्मीर के आतंकियों को भी सालों तक ‘भटका हुआ’ बता कर उनका पोषण किया जाता रहा। अलगाववादी भी भटके हुए थे, उसी तरह अब महामारी फ़ैलाने वाले भी भटके हुए हैं। पूरे भारत में कोरोना वायरस के जितने मामले आए हैं, उनमें से अकेले 30% तबलीगी जमात से जुड़े हैं। क्या इसके लिए उन्हें दोष न दिया जाए? क्या इसके लिए जमात की पूजा की जाए? ये देश भर में विभिन्न इलाक़ों में जाकर छिप गए और वहाँ पुलिस पर हमले हुए। यानी, पहले महामारी और फिर पुलिस व स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला।
पहले भी कर चुके हैं कांड
ये कुकुरमुत्तों का समूह है, जो ब्यूरोक्रेट्स के रूप में यदा-कदा प्रकट होकर मोदी सरकार को ही नहीं बल्कि पूरे देश को बदनाम करने में लगा हुआ है। 100 से भी अधिक ब्यूरोक्रेट्स ने तब भी पत्र लिखा था, जब सीएए के विरोध में आंदोलन भड़काया जा रहा था। इन ‘महान’ बुद्धिजीवियों ने तो यहाँ तक दावा कर दिया था कि देश को सीएए, एनआरसी और एनपीआर की ज़रूरत ही नहीं है। असम में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एनआरसी हुआ, यानी ये ब्यूरोक्रेट्स सुप्रीम कोर्ट से भी ज्यादा समझदार हैं।
इन्होने एनपीआर का भी विरोध किया लेकिन जब यूपीए-2 के समय एनपीआर हुआ था, तब इन्होने कुछ नहीं कहा था। यानी, जब वही योजना मोदी सरकार के समय आई तो बुरी हो गई। अभी जिन ब्यूरोक्रेट्स ने चिट्ठी लिखी है, इनमें से कई पी चिदंबरम को आईएनएक्स मीडिया केस में बचाने में शामिल थे। दरअसल, उस मामले में कई अधिकारियों की भी संलिप्तता सामने आई थी। अक्टूबर 2019 में 71 रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर इस केस में अधिकारियों पर कार्रवाई किए जाने का विरोध किया था।
इन्होने आरोप लगाया था कि रिटायर्ड अधिकारियों को चुन-चुन कर निशाना बनाया जा रहा है। यूपीए के समय के कई भ्रष्टाचार के मामले ऐसे हैं, जिनकी अभी भी जाँच चल रही है। अधिकतर ब्यूरोक्रेट्स इस बात से डरे हुए हैं कि जाँच की आँच उन तक पहुँच सकती है और आईएनएक्स मीडिया केस हो या फिर अगस्ता-वेस्टलैंड हैलीकॉप्टर घोटाला, इन सब में उस समय के बड़े अधिकारियों की भूमिका की जाँच चल रही है। ऐसे में, ये मोदी सरकार को दबाव में रखना चाहते हैं।
ये बताना चाहते हैं कि अगर पुरानी फाइलों को खोला जा रहा है तो ये भी सरकार को बदनाम करते रहेंगे, ताकि इनमें से कुछ ने तब जो किया, उसकी सज़ा न मिलने पाए। अब सवाल उठता है कि इन्हें हर उस चीज से दिक्कत क्यों होती है, जो मोदी सरकार को बदनाम करने के काम आ सकती है? इन ब्यूरोक्रेट्स ने पालघर में साधुओं की भीड़ द्वारा निर्मम हत्या पर सवाल क्यों नहीं पूछे? इन रिटायर्ड नौकरशाहों ने सीएए विरोध की आड़ में दिल्ली में हुए हुए हिन्दुओं के नरसंहार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई क्या?
इनका उद्देश्य : मोदी विरोध और भाजपा की छवि धूमिल करना
इन नौकरशाहों ने शाहीन बाग़ के आतताइयों के ख़िलाफ़ भी कुछ नहीं बोला, जहाँ राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और देश के संविधान को गाली देते हुए 3 महीने तक पूरी दिल्ली को एक तरह से बंधक बना कर रखा गया। आज यही ब्यूरोक्रेट्स संविधान की शपथ खाने की बात करते हैं। असल जड़ यही है कि आईएनएक्स केस जैसे मामलों में कई ब्यूरोक्रेट्स के भी हाथ रंगे हुए हैं, पी चिदंबरम के साथ। जब दलाल क्रिस्चियन मिशेल की मंत्रालयों में ऊँची पहुँच होने की बात पता चली है, तब से इनके कान खड़े हैं क्योंकि इनमें से कई तब इस खेल में शामिल रहे होंगे।
ISI की भूमिका
मोईद पीरज़ादा एक प्रोपेगेंडा वेबसाईट चलाता है, जिसे शाहीनबाग़ के ‘उजड़ते’ ही भारत भर में मुस्लिमों से हिन्दुओं की घृणा की ‘बुद्धिजीवी वर्ग’ की ‘कल्पना’ को किसी ना किसी प्रकार से साबित करने का प्रोजेक्ट मिला हुआ है। इस सब के पीछे CAA और NRC के लागू होने को लेकर पाकिस्तान की कुछ एजेंसियों का बड़ा समर्थन प्राप्त है।
CAA से लेकर Article 370 तक पाकिस्तान की बौखलाहट
पाकिस्तान तभी से बौखलाया हुआ है, जब से भारत की संसद में शरणार्थी हिन्दुओं को नागरिकता देने वाले नागरिकता संशोधन विधेयक ने कानून (CAA) की शक्ल ली। इसके बाद से ही पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के भारत में जासूसी से लेकर आतंकी गतिविधियों की साजिश पर बड़े स्तर पर लगाम लगते जा रही है। यही नहीं, नागरिकता रजिस्टर के कारण ऐसे लोग भी स्वतः चिह्नित हो जाएँगे, जो पाकिस्तान या अन्य देशों से यहाँ किसी अन्य मकसद से आए हुए हैं।
सबने देखा है कि किस प्रकार लगभग तीन महीने से ज्यादा समय तक देशभर में CAA-NRC पर सरकार के फैसले के विरोध में मुस्लिम समुदाय ने व्यापक स्तर पर हिंसक प्रदर्शन और विरोध किए। इस काम में सोशल मीडिया पर बैठे हुए हिन्दुफोबिया से ग्रसित ‘फैक्ट चेकर्स‘ ने भी इनका खूब साथ दिया। लेकिन शाहीन बाग के उजड़ते ही आईएसआई जैसी एजेंसियों ने अब दूसरी रणनीतियों के जरिए भारत को घेरने का काम शुरू किया है।
आर्टिकल-370 और नागरिकता कानून के बाद से पाकिस्तान के साथ काफी सारी प्रत्यक्ष अवरोध आने के बाद तबलीगी जमाती पकड़े जाने लगे, जो कि मस्जिदों से पकड़े गए, जहाँ कि पहचान पत्र तक दिखाने उनके लिए जरूरी नहीं होते। आईएसआई का हाथ इसलिए भी है क्योंकि भारतीयों को लेकर उनकी राय सकारात्मक है जबकि पाकिस्तानी और बांग्लादेशियों की छवि उनकी नजरों में अच्छी नहीं है।
पाकिस्तान और उसकी ख़ुफ़िया एजेंसियों की मुश्किलें उसी दिन से बढ़ गईं थीं, जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में चले आ रहे आर्टिकल-370 के कुछ प्रावधानों को निष्क्रिय कर घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने का पहला कदम उठाया था।
इस्लामिक देशों में बढ़ता मोदी का वर्जस्व
कुछ सालों में भारत में मौजूद कट्टरपंथी (वामपंथी-उदारवादी) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व को इस्लामिक देशों द्वारा मिलती स्वीकार्यता से चिंतित नजर आया है। सऊदी अरब (ऑर्डर ऑफ़ जायेद) से लेकर बहरीन (द किंग हमाद ऑर्डर ऑफ़ द रेनेशां) ने भारत के प्रधानमंत्री को अपने देशों के सर्वोच्च नागरिक अलंकरणों से सम्मानित किया है।
मोदी को इस्लामिक देशों की ओर से मिलने वाले ये सर्वोच्च सम्मान इसलिए भी बड़ी उपलब्धियाँ और पाकिस्तान के लिए चिंता बनी रही हैं क्योंकि आज तक भी कई देश नरेन्द्र मोदी की पहली पहचान ‘गुजरात 2002’ को ही साबित करने का निरर्थक प्रयास करते आए हैं। इस कारण राणा अयूब से लेकर तमाम ‘विचारक वर्ग’ ने 2002 तक को हवा देने की कोशिशें की लेकिन, दिन-रात के प्रयासों के बाद भी यह वर्ग खुद के द्वारा तैयार किए गए इस मिथक को आज तक स्थापित करने में विफल ही रहा है।
पाकिस्तान ने विशेष तौर पर सऊदी अरब द्वारा नरेन्द्र मोदी को सम्मानित करने पर चिंता व्यक्त की थी। इस विरोध के पीछे पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल- 370 को पंगू बनाने का तर्क दिया था। लेकिन हर बड़ी अर्थव्यवस्था इसे भारत का आंतरिक मसला बताकर पाकिस्तान की ‘चिंता’ को ठोकर मारता आया है।
बेहतर यही है कि इनके उकसाने पर इनके एजेंडे में ना पड़कर अरब देशों को सोशल मीडिया पर किसी भी तरह की आपत्तिजनक टिप्पणी से बचना चाहिए। इसका नकारात्मक प्रभाव किसी ना किसी रूप से उन लोगों की नौकरी पर पड़ सकता है, जो कि गल्फ देशों में नौकरी कर रहे हैं।
इस सन्दर्भ में निम्न लिंक अवश्य देखें:-
ये कुकुरमुत्ते हर अच्छे कार्य व अच्छी योजनाओं को बर्बाद करने के लिए उनके ऊपर ऐसे ही उग आते हैं। तबलीगी जमात के कारण देश के कई राज्यों में महामारी फैली है, जिसे ‘सिंगल सोर्स’ और ‘अंडर स्पेशल ऑपरेशन’ जैसे शब्दों के नीचे ढका गया। कई वीडियो सामने आए, जिसमें फल व सब्जी बेचने वाले महामारी फैलाने जैसा काम कर रहे थे। कई लोगों ने मुसलमानों से सामान लेना बंद कर दिया। इसमें मीडिया की क्या ग़लती? क्या ये ब्यूरोक्रेट्स थूक लगा फल या सब्जी खाएँगे?
ये उनसे अलग नहीं है। ऐसे ही सैकड़ों की संख्या में वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी सामने आ जाते हैं और पत्र लिखते रहते हैं। कभी ‘अवॉर्ड वापसी’ का ढोंग रचा जाता है तो कभी राफेल का राग अलापा जाता है। वजह एक ही है- मोदी सरकार को बदनाम करो। आज ब्यूरोक्रेसी में सुधार लाया जा रहा है। नए अधिकारियों को ट्रेनिंग के क्रम में ‘स्टेचू ऑफ यूनिटी’ ले जाया गया। बिल गेट्स से इन्हें प्रशासन के गुर सीखने को मिले। मोदी सरकार ब्यूरोक्रेसी को आरामफरामोशी से सक्रियता की ओर ले जा रही है, ये इसका ही दर्द है।
इतना ही नहीं, शाहीन बाग़ नागरिकता संशोधक कानून पर ठेकेदार बन समाचार चैनलों पर परिचर्चाओं में हिस्सा लेने वाले तथाकथित इस्लामिक स्कॉलर शुएब जमाई निजामुद्दीन में लॉक आउट होने के बावजूद जमा हुए हज़ारों जमातियों के बचाव में कहता है कि कोरोना वैष्णो मंदिर में जमा लोगों से भी फ़ैल सकता है, जबकि अपने आप को इस्लामिक स्कॉलर कहने वाले को नहीं मालूम की लॉक डाउन से पहले ही भारत के जितने भी बड़े मन्दिर हैं, उन्हें बंद कर दिया गया था। दूसरे, यह कि निजामुद्दीन मरकज़ से जगह-जगह फैले जमातियों ने समूचे भारत में कोरोना को बढ़ावा दिया। और अगर मरकज़ इस्लामिक था, फिर क्यों इसके आयोजक फरार हैं? सिद्ध करता है कि किसी सोंची-समझी सियासत के भारत में अराजकता फैलाना ही इनका उद्देश्य था। पहले नागरिकता संशोधक कानून के विरोध में शांति के नाम पर प्रदर्शन और धरनों को आयोजन और अब इस्लाम की आड़ में कोरोना जैसी संक्रामक बीमारी को फैलाना।
अवलोकन करें:-
उत्तर प्रदेश में हमने देखा है कि कैसे मायावती के पूर्व मुख्य सचिव के यहाँ से करोड़ों बरामद हुए। तमिलनाडु के एक बड़े अधिकारी को कोर्ट ने जेल भेजने को कहा। त्रिपुरा में पीडब्ल्यूडी मामले में एक बड़े अधिकारी को दोषी पाया गया। इन ब्यूरोक्रेट्स को भी पुरानी फाइलें खुलने का डर है, इसीलिए कभी कांग्रेस के अपने आकाओं को बचाने के लिए निकलते हैं तो कभी मोदी सरकार की योजनाओं को गाली देते हैं।
101 पूर्व ब्यूरोक्रेट्स ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख कर ‘मुस्लिमों के ख़िलाफ़ हो रहे अत्याचार’ पर अपना विरोध जताया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि कोरोना वायरस की आपदा के बीच देश के कई क्षेत्रों में ‘मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार’ को लेकर विरोध जताया है। हालाँकि, उन्होंने ये भी कहा कि तबलीगी जमात ने दिल्ली में जो बैठक किया वो ‘गुमराह होने के कारण’ और निंदनीय है, लेकिन साथ ही कहा कि मीडिया में कुछ लोग मुस्लिमों को लेकर घृणा फैला रहे हैं, जो निंदनीय और दोषपूर्ण व्यवहार है।
उन्होंने दावा किया कि कोरोना वायरस रूपी आपदा से पूरा देश त्रस्त है और यहाँ डर एवं असुरक्षा का माहौल है, जिसे देश के विभिन्न हिस्सों में मुस्लिमों के ख़िलाफ़ अभियान चलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। आरोप लगाया गया है कि मुसलमानों को अलग कर के घृणा की नज़र से देखा जा रहा है, उन्हें सार्वजनिक जगहों से दूर रखा जा रहा है और ऐसा इसीलिए किया जा रहा है, ताकि कथित रूप से बाकी जनता को बचाया जा सके।

इन पूर्व अधिकारियों का आरोप है कि पूरा देश उस डर के माहौल से गुजर रहा है। साथ ही इसमें एकता से रहने जैसी बातें भी की गई हैं। ये पूर्व नौकरशाहों ने ये बताना नहीं भूला कि वो किसी भी राजनीतिक विचारधारा से ताल्लुक नहीं रखते हैं और वो भारत के संविधान के प्रति आस्था रखते हुए ये पत्र लिख रहे हैं। जैसा कि आप देख सकते हैं, इस पत्र में जमात को निर्दोष, गुमराह और भटका हुआ साबित करने की कोशिश की गई है, जैसा आतंकवादियों के साथ किया जाता है।
आखिर जब मुस्लिम समाज सब तरफ से फंस जाता है, बड़ी होशियारी से Victim Card खेलने लगते हैं। अपने आपको मासूम, गुमराह, गरीब और असहाय बता शैतानी हरकतों पर पर्दा डालने का प्रयास करते हैं। ये लोग कुकुरमुत्ते नहीं जानते कि इनकी इस तरह की अमानवीय हरकतों से बेकसूर मुसलमान बदनाम होता है, और उन्हीं बेकसूर मुसलमानों को बलि का बकरा बनाकर ये ही लोग अपनी तिजोरियां भर मालपुए खाते हैं और बेकसूर मुसलमान वहीं रहता है एवं उसी स्थिति में रहकर अपमानित होता रहता है।
प्रधानमंत्री मोदी को पत्र को पत्र लिखने की बजाए किसी ने जमात के मोहम्मद साद को नहीं लिखा कि जमातियों से कहो किसी मस्जिद में छिपने की बजाए बाहर आकर अपना इलाज करवाओ। लोगों का यहाँ तक कहना है कि मस्जिदों से पकडे जा रहे कोरोना पीड़ित जमातियों से सारा खर्चा वसूला जाये।
जम्मू कश्मीर के आतंकियों को भी सालों तक ‘भटका हुआ’ बता कर उनका पोषण किया जाता रहा। अलगाववादी भी भटके हुए थे, उसी तरह अब महामारी फ़ैलाने वाले भी भटके हुए हैं। पूरे भारत में कोरोना वायरस के जितने मामले आए हैं, उनमें से अकेले 30% तबलीगी जमात से जुड़े हैं। क्या इसके लिए उन्हें दोष न दिया जाए? क्या इसके लिए जमात की पूजा की जाए? ये देश भर में विभिन्न इलाक़ों में जाकर छिप गए और वहाँ पुलिस पर हमले हुए। यानी, पहले महामारी और फिर पुलिस व स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला।
पहले भी कर चुके हैं कांड
ये कुकुरमुत्तों का समूह है, जो ब्यूरोक्रेट्स के रूप में यदा-कदा प्रकट होकर मोदी सरकार को ही नहीं बल्कि पूरे देश को बदनाम करने में लगा हुआ है। 100 से भी अधिक ब्यूरोक्रेट्स ने तब भी पत्र लिखा था, जब सीएए के विरोध में आंदोलन भड़काया जा रहा था। इन ‘महान’ बुद्धिजीवियों ने तो यहाँ तक दावा कर दिया था कि देश को सीएए, एनआरसी और एनपीआर की ज़रूरत ही नहीं है। असम में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एनआरसी हुआ, यानी ये ब्यूरोक्रेट्स सुप्रीम कोर्ट से भी ज्यादा समझदार हैं।
इन्होने एनपीआर का भी विरोध किया लेकिन जब यूपीए-2 के समय एनपीआर हुआ था, तब इन्होने कुछ नहीं कहा था। यानी, जब वही योजना मोदी सरकार के समय आई तो बुरी हो गई। अभी जिन ब्यूरोक्रेट्स ने चिट्ठी लिखी है, इनमें से कई पी चिदंबरम को आईएनएक्स मीडिया केस में बचाने में शामिल थे। दरअसल, उस मामले में कई अधिकारियों की भी संलिप्तता सामने आई थी। अक्टूबर 2019 में 71 रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर इस केस में अधिकारियों पर कार्रवाई किए जाने का विरोध किया था।
More than 100 former senior bureaucrats in India have published an open letter protesting against discriminatory attacks against Muslims, which have been on the rise amid growing coronavirus fears in the country. https://t.co/In4hKIWx2Y— CNN International (@cnni) April 24, 2020
इन्होने आरोप लगाया था कि रिटायर्ड अधिकारियों को चुन-चुन कर निशाना बनाया जा रहा है। यूपीए के समय के कई भ्रष्टाचार के मामले ऐसे हैं, जिनकी अभी भी जाँच चल रही है। अधिकतर ब्यूरोक्रेट्स इस बात से डरे हुए हैं कि जाँच की आँच उन तक पहुँच सकती है और आईएनएक्स मीडिया केस हो या फिर अगस्ता-वेस्टलैंड हैलीकॉप्टर घोटाला, इन सब में उस समय के बड़े अधिकारियों की भूमिका की जाँच चल रही है। ऐसे में, ये मोदी सरकार को दबाव में रखना चाहते हैं।
ये बताना चाहते हैं कि अगर पुरानी फाइलों को खोला जा रहा है तो ये भी सरकार को बदनाम करते रहेंगे, ताकि इनमें से कुछ ने तब जो किया, उसकी सज़ा न मिलने पाए। अब सवाल उठता है कि इन्हें हर उस चीज से दिक्कत क्यों होती है, जो मोदी सरकार को बदनाम करने के काम आ सकती है? इन ब्यूरोक्रेट्स ने पालघर में साधुओं की भीड़ द्वारा निर्मम हत्या पर सवाल क्यों नहीं पूछे? इन रिटायर्ड नौकरशाहों ने सीएए विरोध की आड़ में दिल्ली में हुए हुए हिन्दुओं के नरसंहार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई क्या?
इनका उद्देश्य : मोदी विरोध और भाजपा की छवि धूमिल करना
इन नौकरशाहों ने शाहीन बाग़ के आतताइयों के ख़िलाफ़ भी कुछ नहीं बोला, जहाँ राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और देश के संविधान को गाली देते हुए 3 महीने तक पूरी दिल्ली को एक तरह से बंधक बना कर रखा गया। आज यही ब्यूरोक्रेट्स संविधान की शपथ खाने की बात करते हैं। असल जड़ यही है कि आईएनएक्स केस जैसे मामलों में कई ब्यूरोक्रेट्स के भी हाथ रंगे हुए हैं, पी चिदंबरम के साथ। जब दलाल क्रिस्चियन मिशेल की मंत्रालयों में ऊँची पहुँच होने की बात पता चली है, तब से इनके कान खड़े हैं क्योंकि इनमें से कई तब इस खेल में शामिल रहे होंगे।
ISI की भूमिका
मोईद पीरज़ादा एक प्रोपेगेंडा वेबसाईट चलाता है, जिसे शाहीनबाग़ के ‘उजड़ते’ ही भारत भर में मुस्लिमों से हिन्दुओं की घृणा की ‘बुद्धिजीवी वर्ग’ की ‘कल्पना’ को किसी ना किसी प्रकार से साबित करने का प्रोजेक्ट मिला हुआ है। इस सब के पीछे CAA और NRC के लागू होने को लेकर पाकिस्तान की कुछ एजेंसियों का बड़ा समर्थन प्राप्त है।
CAA से लेकर Article 370 तक पाकिस्तान की बौखलाहट
पाकिस्तान तभी से बौखलाया हुआ है, जब से भारत की संसद में शरणार्थी हिन्दुओं को नागरिकता देने वाले नागरिकता संशोधन विधेयक ने कानून (CAA) की शक्ल ली। इसके बाद से ही पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के भारत में जासूसी से लेकर आतंकी गतिविधियों की साजिश पर बड़े स्तर पर लगाम लगते जा रही है। यही नहीं, नागरिकता रजिस्टर के कारण ऐसे लोग भी स्वतः चिह्नित हो जाएँगे, जो पाकिस्तान या अन्य देशों से यहाँ किसी अन्य मकसद से आए हुए हैं।
सबने देखा है कि किस प्रकार लगभग तीन महीने से ज्यादा समय तक देशभर में CAA-NRC पर सरकार के फैसले के विरोध में मुस्लिम समुदाय ने व्यापक स्तर पर हिंसक प्रदर्शन और विरोध किए। इस काम में सोशल मीडिया पर बैठे हुए हिन्दुफोबिया से ग्रसित ‘फैक्ट चेकर्स‘ ने भी इनका खूब साथ दिया। लेकिन शाहीन बाग के उजड़ते ही आईएसआई जैसी एजेंसियों ने अब दूसरी रणनीतियों के जरिए भारत को घेरने का काम शुरू किया है।
आर्टिकल-370 और नागरिकता कानून के बाद से पाकिस्तान के साथ काफी सारी प्रत्यक्ष अवरोध आने के बाद तबलीगी जमाती पकड़े जाने लगे, जो कि मस्जिदों से पकड़े गए, जहाँ कि पहचान पत्र तक दिखाने उनके लिए जरूरी नहीं होते। आईएसआई का हाथ इसलिए भी है क्योंकि भारतीयों को लेकर उनकी राय सकारात्मक है जबकि पाकिस्तानी और बांग्लादेशियों की छवि उनकी नजरों में अच्छी नहीं है।
पाकिस्तान और उसकी ख़ुफ़िया एजेंसियों की मुश्किलें उसी दिन से बढ़ गईं थीं, जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में चले आ रहे आर्टिकल-370 के कुछ प्रावधानों को निष्क्रिय कर घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने का पहला कदम उठाया था।
इस्लामिक देशों में बढ़ता मोदी का वर्जस्व
कुछ सालों में भारत में मौजूद कट्टरपंथी (वामपंथी-उदारवादी) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व को इस्लामिक देशों द्वारा मिलती स्वीकार्यता से चिंतित नजर आया है। सऊदी अरब (ऑर्डर ऑफ़ जायेद) से लेकर बहरीन (द किंग हमाद ऑर्डर ऑफ़ द रेनेशां) ने भारत के प्रधानमंत्री को अपने देशों के सर्वोच्च नागरिक अलंकरणों से सम्मानित किया है।
मोदी को इस्लामिक देशों की ओर से मिलने वाले ये सर्वोच्च सम्मान इसलिए भी बड़ी उपलब्धियाँ और पाकिस्तान के लिए चिंता बनी रही हैं क्योंकि आज तक भी कई देश नरेन्द्र मोदी की पहली पहचान ‘गुजरात 2002’ को ही साबित करने का निरर्थक प्रयास करते आए हैं। इस कारण राणा अयूब से लेकर तमाम ‘विचारक वर्ग’ ने 2002 तक को हवा देने की कोशिशें की लेकिन, दिन-रात के प्रयासों के बाद भी यह वर्ग खुद के द्वारा तैयार किए गए इस मिथक को आज तक स्थापित करने में विफल ही रहा है।
पाकिस्तान ने विशेष तौर पर सऊदी अरब द्वारा नरेन्द्र मोदी को सम्मानित करने पर चिंता व्यक्त की थी। इस विरोध के पीछे पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल- 370 को पंगू बनाने का तर्क दिया था। लेकिन हर बड़ी अर्थव्यवस्था इसे भारत का आंतरिक मसला बताकर पाकिस्तान की ‘चिंता’ को ठोकर मारता आया है।
बेहतर यही है कि इनके उकसाने पर इनके एजेंडे में ना पड़कर अरब देशों को सोशल मीडिया पर किसी भी तरह की आपत्तिजनक टिप्पणी से बचना चाहिए। इसका नकारात्मक प्रभाव किसी ना किसी रूप से उन लोगों की नौकरी पर पड़ सकता है, जो कि गल्फ देशों में नौकरी कर रहे हैं।
इस सन्दर्भ में निम्न लिंक अवश्य देखें:-
ये कुकुरमुत्ते हर अच्छे कार्य व अच्छी योजनाओं को बर्बाद करने के लिए उनके ऊपर ऐसे ही उग आते हैं। तबलीगी जमात के कारण देश के कई राज्यों में महामारी फैली है, जिसे ‘सिंगल सोर्स’ और ‘अंडर स्पेशल ऑपरेशन’ जैसे शब्दों के नीचे ढका गया। कई वीडियो सामने आए, जिसमें फल व सब्जी बेचने वाले महामारी फैलाने जैसा काम कर रहे थे। कई लोगों ने मुसलमानों से सामान लेना बंद कर दिया। इसमें मीडिया की क्या ग़लती? क्या ये ब्यूरोक्रेट्स थूक लगा फल या सब्जी खाएँगे?
ये उनसे अलग नहीं है। ऐसे ही सैकड़ों की संख्या में वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी सामने आ जाते हैं और पत्र लिखते रहते हैं। कभी ‘अवॉर्ड वापसी’ का ढोंग रचा जाता है तो कभी राफेल का राग अलापा जाता है। वजह एक ही है- मोदी सरकार को बदनाम करो। आज ब्यूरोक्रेसी में सुधार लाया जा रहा है। नए अधिकारियों को ट्रेनिंग के क्रम में ‘स्टेचू ऑफ यूनिटी’ ले जाया गया। बिल गेट्स से इन्हें प्रशासन के गुर सीखने को मिले। मोदी सरकार ब्यूरोक्रेसी को आरामफरामोशी से सक्रियता की ओर ले जा रही है, ये इसका ही दर्द है।
इतना ही नहीं, शाहीन बाग़ नागरिकता संशोधक कानून पर ठेकेदार बन समाचार चैनलों पर परिचर्चाओं में हिस्सा लेने वाले तथाकथित इस्लामिक स्कॉलर शुएब जमाई निजामुद्दीन में लॉक आउट होने के बावजूद जमा हुए हज़ारों जमातियों के बचाव में कहता है कि कोरोना वैष्णो मंदिर में जमा लोगों से भी फ़ैल सकता है, जबकि अपने आप को इस्लामिक स्कॉलर कहने वाले को नहीं मालूम की लॉक डाउन से पहले ही भारत के जितने भी बड़े मन्दिर हैं, उन्हें बंद कर दिया गया था। दूसरे, यह कि निजामुद्दीन मरकज़ से जगह-जगह फैले जमातियों ने समूचे भारत में कोरोना को बढ़ावा दिया। और अगर मरकज़ इस्लामिक था, फिर क्यों इसके आयोजक फरार हैं? सिद्ध करता है कि किसी सोंची-समझी सियासत के भारत में अराजकता फैलाना ही इनका उद्देश्य था। पहले नागरिकता संशोधक कानून के विरोध में शांति के नाम पर प्रदर्शन और धरनों को आयोजन और अब इस्लाम की आड़ में कोरोना जैसी संक्रामक बीमारी को फैलाना।
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1 comment:
यह सब बरसाती कुकरमुत्ते को जब लगता है कि किसी भी समय उनके उपर भी जांच प्रारंभ हो सकती है जो घोटाले उन्होंने कांग्रेस के शासन काल में किए है। चाहे बह चिदंबरम के साथ की नजदीकियों और फिर मिली भगत के घोटाले हो। मोदी सरकार के आने के बाद 2जी, राफेल आदि से संबंधित घोटाले पर जांच के दायरे में फसने के डर से यह भूतपूर्व बीयरोक्रेट्स मोदी जी के कार्य कलापो पर प्रश्न चिन्ह लगा कर सब का ध्यान भड़का कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं।
मुस्लिम समुदाय पर क्या अत्याचार ही रहा है।
जब शाहीन बाग़ में इसी समुदाय के लोगो ने देश विरोधी एजेंडा चलाया।उसके बाद दिल्ली के अन्य भागों में हिंसात्मक कार्यवाही, निर्दोष हिन्दुओं एवम् पुलिस तंत्र पर पत्थरवजी, हत्या आदि की घटनाओं का एन पूर्व आला अधिकारियों ने कोई रोष नहीं दिखाया।
मरकज के जमाती लोगो का निजामुद्दीन में हजारों की संख्या में इकट्ठा होना और कोराना वायरस को देश के भिन्न भिन्न जगहों पर फैलाना, देश की दूसरी मस्जिदों में छुपना,स्वाम कोराना वायरस की जांच ना करना, जब जांच के लिए जाने वाले डॉक्टर्स, पुलिस बल पर कातिलाना हमले, पत्थेरवाजी करने के बारे में इन पूर्व आला अधिकारियों को चुप रहना क्या दर्शाता है।
मोदी सरकार इन पूर्व आला अधिकारियों पर इनके घोटालों में सलग्न होने की जांच करे उससे पहले ही एनलोगो ने सीधे साधे मुस्लिम लोगो को बीच में खाचेड कर अपना उल्लू सीधा करने की चाल चली गई है।
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