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चंपानेर जामा मस्जिद |
जब दिसम्बर 6, 1992 को विवादित ढांचा ध्वस्त होने पर कोर्ट के आदेश पर हुई खुदाई में मिले मदिरों के सबूतों को छुपा, केवल एक खम्बा कोर्ट को दिखाया गया। जिसका उल्लेख डॉ के.के.मोहम्मद, तत्कालीन पुरातत्व निदेशक, जिनके उपस्थिति में मंदिर के प्रमाण मिले थे, ने सेवानिर्वित होने उपरांत लिखित पुस्तक में इसका उल्लेख भी किया है।
यह भारत देश का दुर्भाग्य है कि जनता अपने ही वास्तविक इतिहास से अज्ञान है। मुग़ल आक्रांता जिन्होंने हिन्दुओं के मंदिरों को लूटा, उनकी जगह मस्जिदें और दरगाहें बनायीं, उन्हें महान बताकर देश के इतिहास का मजाक बना दिया।
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण समतलीकरण और खुदाई के दौरान काफी संख्या में पुरावशेष, देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियां, पुष्प कलश, आमलक दोरजाम्ब आदि कलाकृतियां निकली हैं। इन अवशेषों के मिलने से जहां हिंदू समुदाय के लोगों ने खुशी जताई वहीं कुछ लोग इन अवशेषों को बौद्ध धर्म से जोड़ते हुए दावा कर रहे हैं कि जो अवशेष मिले हैं वह सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान की है। दिलीप मंडल ने ट्विटर पर इसे राजनीतिक और धार्मिक रंग देने की कोशिश की। इसके बाद लोगों ने ट्विटर पर उनकी क्लास लगा दी। लोगों ने यह कहकर उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया कि चंपानेर का जामा मस्जिद बौद्ध मंदिर है आप उनके लिए अभियान चलाइए हम आपके साथ हैं। इसके साथ ही ट्विटर पर यह ट्रेंड करने लगा कि चंपोनेर का जामा मस्जिद बौद्ध स्थल है। अब माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर हैशटैग #बौद्धस्थल_जामा_मस्जिद टॉप ट्रेंड कर रहा है।
#ABVPForEducation— @Control_Population_Save_India (@PopulationCheck) May 22, 2020
Many Mosques across India were built after demolishing Hindu temples.
Jihadi terrorists destroyed more than 40,000 temples in last 1400 years.
Destruction of Hinduism & loot of temple wealth was their motto.#AyodhyaTempleTruth#बौद्धस्थल_जामा_मस्जिद pic.twitter.com/fWuoXkHdpe
अयोध्या प्राचीन बौद्ध नगरी है. इस विरासत को हड़पने की कोशिश हो रही है. वहां खुदाई में मिल रहे बौद्ध अवशेषों की गलत व्याख्या की जा रही है. अपने इतिहास को बचाइए. ये ही भारत का मूल इतिहास है.— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) May 21, 2020
कोई भी इतिहासकार बताएगा कि ये धम्मचक्र है. बौद्ध धम्म का प्रतीक.#बौद्धस्थल_अयोध्या pic.twitter.com/RQjcFCFFpZ
कुछ लोग ये अफवाह फैला रहे हैं कि अयोध्या में मंदिर के लिए किये जा रहे समतलीकरण में बौद्ध अवशेष मिल रहे हैं।— شيخ شيتان غوبتا (@iChetanGupta) May 22, 2020
ये धम्म चक्र नहीं है। ये विष्णु स्तंभ है। धम्म चक्र में सिर्फ चौबीस पंखुड़िया होती हैं जबकि इसमें 29 हैं। धम्म चक्र में दो वृत्त नहीं होता। #बौद्धस्थल_जामा_मस्जिद pic.twitter.com/5dZlunsHkL
खुदाई में मिले अवशेषों के आधार पर अयोध्या को बौद्धस्थल कहना गलत है। जिसे धम्म चक्र बताया जा रहा है असल में वह विष्णु स्तंभ है। धम्म चक्र में 24 तिल्लियां होती हैं जबकि इसमें 29 हैं। धम्म चक्र में एक वृत्त होता है जबकि इसमें दो हैं। #बौद्धस्थल_अयोध्या #बौद्धस्थल_जामा_मस्जिद pic.twitter.com/IQQnd1YPNo— Avadhesh Akodia (@avadheshjpr) May 22, 2020
— DIPAK NARWADE (@narwade_dipak) May 22, 2020
हमारा सच पत्थरों में उकेरा हुआ है— 🇮🇳 मधु सिंह 🇮🇳 (@pyari_bacchi) May 22, 2020
उनके झूठ इतिहास की किताबों में लिखे गए हैं #अयोध्या_में_मिले_बुद्ध_के_अवशेष
This is Jama Mosque in #Champaner standing atop an ancient Hindu temple— Ravi Kant Tripathi ツ🇭🇰 (@LegalKant) May 22, 2020
One look at the structure and one easily see how tomb and ugly minarets were added to the temple structure#बौद्धस्थल_जामा_मस्जिद को खुदाई करवाओ pic.twitter.com/q4MyguiLSj
एक बौद्धस्थल को जबरदस्ती जामा मस्जिद बना दिया गया— X2XX2XXX2 (@_X2X2X2) May 21, 2020
आईये जामा मस्जिद को वापस बौद्ध मंदिर में बदल के बहुजनों को उनका सम्मान लौटाये
मै अपने बहुजन भाईयों के साथ हूँ,#बौद्धस्थल_जामा_मस्जिद#बौद्धस्थल_जामा_मस्जिद
#बौद्धस्थल_जामा_मस्जिद— 🇮🇳Alok Kumar Singh🚩 (@aloksingh_ail) May 22, 2020
Muhammad Bakhtiyar Khilji's massacre of Buddhist monks in Bihar.Khaliji destroyed Nalanda & vikramshila universities during his raids across North India massacring many Buddhist and Brahmin scholars.
Somnaath temple, Kashivishwanath temple, etc..Destroyed pic.twitter.com/WAIouUSa8Z
#बौद्धस्थल_जामा_मस्जिद— Ratan Vaishnav (@RatanVaishnav6) May 22, 2020
कोई लड़ाई नही
आवाज़ दो
कसम बुद्ध की खाते है
मंदिर वही बनाएंगे#बौद्धस्थल_जामा_मस्जिद pic.twitter.com/ZdR5xvtohG
— Diyan (@daniel_diyan) May 22, 2020
#बौद्धस्थल_जामा_मस्जिद— स्वामी मंजुनाथ (मालगुड़ी वाले नहीं) (@NandNandraj) May 22, 2020
ध्यान से देखने पर बौद्ध मंदिर और जामा मस्जिद की बनावट में बहुत सी समानता है, दोनों की दीवार और फर्श एक ही तरह की है, इस से ये सिद्ध होता है कि जामा मस्जिद वास्तव में एक बौद्ध स्थल है, पुख्ता सबूतों के लिए जामा मस्जिद कि खुदाई होनी चाहिए |
स्मृतियों को सहेजने की जरूरत ताकि दुनिया भूल न सके हिन्दुओं का दमन
अयोध्या की पुण्यभूमि की खुदाई शुरू हो गई है। भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए इसे तैयार किया जा रहा है। 500 सालों तक ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ में दफन रहने वाला भारत का वास्तविक इतिहास प्रस्फुटित होने लगा है।
आजादी के 70 साल बाद तक वामपंथी इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के ताकतवर गठजोड़ ने इन आवाजों को दबाने की कोशिश की। लेकिन वे असफल रहे। न्याय और सत्य में विश्वास रखने वाले सभी लोगों के लिए यह विजय का क्षण है।
हालाँकि यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के साथ यह जीत पूरी नहीं हुई है। अयोध्या में महज भव्य राम मंदिर का निर्माण ही वास्तविक जीत नहीं है।
वास्तविक जीत वह है, जब भारत के दबे-कुचले हिन्दू पीढ़ियों की व्यथा को इतिहास के पन्नों में दर्ज किया जाएगा। इसके लिए इससे जुड़े साक्ष्यों को संरक्षित और सुरक्षित रखे जाने की आवश्यकता है, जिससे इसे पूरी दुनिया देख सके और याद रख सके।
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खुदाई के दौरान राम जन्मभूमि स्थल से मिले मंदिर के अवशेष और मूर्तियाँ |
यही कारण है कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को तथ्यों के बजाय भावनाओं पर निर्णय लेने का आरोप लगाते हैं। इतना ही नहीं ये लोग सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को भाजपा की राजनीतिक सफलता और ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ के एजेंडे से जोड़ने के साथ अफवाह फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
वामपंथी इतिहासकार चाहते हैं कि दुनिया को यह लगे कि हिन्दुओं पर अत्याचार कभी हुआ ही नहीं। हम यहूदी लोगों से सीख सकते हैं कि इस तरह के प्रोपेगेंडा को कैसे धराशायी किया जाए।
इसी तरह के अत्याचार झेलने वाली यहूदी लोगों की पीढ़ी ने दो संकल्प लिए। पहला, उन्हें एक महान यहूदी राष्ट्र बनाना है। दूसरा, दुनिया यह कभी नहीं भूले कि उनके साथ क्या हुआ था।
अपने साथ हुए अत्याचारों से संबंधित साक्ष्यों को इकट्ठा करना, उनका दस्तावेजीकरण कर उन्हें सहेजना सुनिश्चित किया। अत्याचारों की निशानियों से संबंधित संग्रहालय पूरे यूरोप के अंदर खोले गए। इनमें स्कूली बच्चों को ले जाया जाता, जिससे वे खुद जान सकें कि अतीत में उनके साथ क्या हुआ था। यहूदी लोगों के खिलाफ हुए भीषण अत्याचारों की गाथाएँ मानवता की अंतरात्मा को चुभती रहे।
उनका मानना था कि अत्याचारों की हकीकत आखिर में लोगों के सामने आएगी। सार्वजनिक स्मृतियाँ कभी भी विशेष रूप से अच्छी नहीं होती। समय के साथ नैरेटिव के युद्ध में वास्तविक इतिहास के खो जाने का भी खतरा है। इसके लिए आपको जनता के सामने वास्तविक इतिहास रखना होगा।
भारत में हम हिन्दुओं के सामने भी इसी प्रकार का खतरा है। वामपंथियों की एक लॉबी इस देश में हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों से संबंधित सभी ऐतिहासिक दस्तावेजों को नकारने में लगातार लगी हुई है। वे हमारे ऊपर कथित गंगा-जमुनी तहज़ीब थोपते का प्रयास करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि वे झूठ बोल रहे हैं। वे नहीं चाहते कि अयोध्या में जमीन की खुदाई हो और हकीकत सामने आए।
ऐतिहासिक साक्ष्य हर जगह है। लेकिन वे हमें इसके बारे में बात नहीं करने देंगे और इसके लिए सही शब्दों का इस्तेमाल नहीं करेंगे।
यदि साक्ष्य जमीन के अंदर मिलते हैं तो वे कहेंगे कि मंदिर की जगह इस स्थान पर मंदिर होने की कहानियाँ महज किंवदंतियाँ हैं। अगर किसी दस्तावजों में साफ तौर पर लिखा हुआ मिलता है कि एक मंदिर को नष्ट किया गया था, तो वे कहते हैं कि वास्तविक उद्देश्य लूट था न कि किसी धर्म को थोपना। यदि दस्तावेज कहते हैं कि उनका उद्देश्य मूर्ति पूजा करने वालों को कुचलना था, तो वे पूछते हैं कि उन हिन्दुओं के बारे में क्या कहोगे जिन्हें उस समय अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया गया था?
यदि आप वास्तव में पुराने मंदिर के अवशेषों को देखते हैं, तो वे कहेंगे कि यह इंडो-इस्लामिक वास्तुकला की एक अनूठी शैली है, जो गंगा-जमुनी तहज़ीब का हिस्सा है! तो सवाल उठता है कि हम इस प्रोपेगेंडा को कैसे धराशायी कर सकते हैं?
हमें बिल्कुल वही करना है जो यहूदियों ने खुद पर हुए अत्याचारों को लेकर किया था। हमें साक्ष्यों को एकत्रित करना, दस्तावेजीकरण करना और उन्हें संरक्षित करना शुरू करना होगा। हमें अयोध्या में राम मंदिर के साथ ही एक संग्रहालय स्थापित करना होगा, जहाँ दुनिया उन साक्ष्यों को देख सके, जो आज तक लोगों के सामने आए ही नहीं।
इसके बाद हमें इसे वैश्विक स्तर पर लाना होगा। हमें हिन्दुओं के साथ हुए अत्याचारों के बारे में लोगों को बताने के लिए संग्रहालय बनाने, प्रदर्शनियाँ लगाने और स्कूली बच्चों के भ्रमण की शुरुआत करने की आवश्यता है। हमें यह याद रखने के लिए एक वैश्विक दिवस की आवश्यकता है कि हिन्दुओं को अपनी ही भूमि पर क्या-क्या झेलना पड़ा।
आज भी जर्मनी में ऐसे रेल कोच हैं जो एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं और लोगों को याद दिलाते हैं कि उनके साथ क्या अत्याचार हुए थे। दुनिया यह कभी नहीं भूलती, क्योंकि यहूदी लोगों ने ये सुनिश्चित किया कि इसे लोग भूल नहीं पाए।
अवलोकन करें:-
भारत में हिन्दुओं ने इस तरह की समस्याओं को झेला। मैं कहता हूँ कि अधिकांश हिन्दू यह भूल गए हैं। पहले हमें हिन्दुओं को बताना पड़ेगा कि उनके पूर्वजों ने क्या झेला। फिर हमें यह पूरी दुनिया को बताना होगा।
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