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जामिया दंगे में जलती बस |
1976 से लेकर 2020 तक दिल्ली में इतने दंगे हुए, लेकिन कभी इतनी गंभीरता से जाँच नहीं हुई, जितनी गंभीरता से आज हो रही है। वास्तव में केन्द्र में मोदी सरकार से पूर्व जितनी भी सरकारें रहीं, तुष्टिकरण के कारण किसी दंगे की सघन जाँच नहीं हुई, जिस कारण दंगाइयों के हौसले बुलंद रहे। समय ने ऐसी करवट ली, दंगाई दंगा करते वक़्त यह नहीं सोंच रहे कि "आखिर बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी?"
लाल कुआँ दिल्ली में जब उग्र मुस्लिमों ने मन्दिर पर हमला करने के अलावा घरों में घुसकर हिन्दू महिलाओं को प्रताड़ित करते समय "ला इला इल्ललला", नारा ए तकबीर, अल्लाह हु अकबर" आदि नारों से लाल कुआँ क्षेत्र गूंज उठा था, हौज़ काज़ी थाने को घेर लिया गया था, परन्तु जैसे ही दिल्ली सरकार नहीं बल्कि केन्द्र सरकार हरकत में आयी, वही लाल कुआँ क्षेत्र "हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई" और "गंगा-जमुना तहजीब" के नारों से गूंजने लगा था।
आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं, दंगाई कोई भी हो, किसी भी धर्म अथवा जाति से बक्शा नहीं जायेगा। बेगुनाहों के खून की होली खेलने वालों को उनके उचित स्थान पर पहुँचाया जाएगा। दंगे में साज़िशकर्ताओं के घर के पक्षी तक को कुछ नहीं होता, मरने वाला बेगुनाह होता है।
जून 4, 2020 को जामिया हिंसा मामले में दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाई कोर्ट में हलफनामा दायर किया। दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट को बताया कि पिछले साल दिसंबर माह में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के ख़िलाफ हुई हिंसा कोई छोटी-मोटी घटना नहीं थी। यह ये एक सुनियोजित घटना थी। हर दंगाई के पास पहले से पत्थर, लाठी और पेट्रोल बम थे।
जामिया मिलिया इस्लामिया के कैंपस में बीते साल 13 और 15 दिसंबर को हिंसा हुई थी। दिल्ली पुलिस के वकील अमित महाजन और रजत नैयर ने जामिया हिंसा मामले में इस दौरान 6 याचिकाओं पर जवाब दिया। उन्होंने कहा कि उस समय भीड़ का इरादा केवल कानून और व्यवस्था को बाधित करना था।
दिल्ली पुलिस की ओर से कोर्ट में कुछ वीडियोज और तस्वीरें भी सबूत के तौर पर पेश की गई। इनके जरिए बताया गया कि छात्रों के आंदोलन की आड़ में वास्विकता में कुछ लोगों ने स्थानीय लोगों की मदद से दंगा भड़काने की कोशिश की।
क्राइम ब्रांच ने कहा, “जामिया हिंसा कोई छोटी-मोटी घटना नहीं थी। बल्कि सुनियोजित घटना थी, जहाँ दंगाइयों के पास पत्थर, लाठियाँ , पेट्रोल बम, ट्यूबलाइट आदि पहले से थीं। इससे साफ होता है कि भीड़ का इरादा केवल कानून-व्यवस्था को बाधित करना था।”
टिड्डी हमले को जायरा ने कैसे धर्म से जोड़ा?#ISISVsTarekFatah #KhojKhabar #NewsNationTV @NewsNationTV @DChaurasia2312 @TarekFatah @manoj_gairola pic.twitter.com/3bW3H6MTt3— News Nation (@NewsNationTV) June 6, 2020
जामिया हिंसा में छात्र नहीं बाहरी लोग
जामिया हिंसा पर दायर 3 एफआईआर के मद्देनजर दिल्ली पुलिस ने कहा कि 20 लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट साकेत कोर्ट में दाखिल हुई है। इनमें से कोई भी यूनिवर्सिटी का छात्र नहीं है।
जाँच में ये भी खुलासा हुआ कि स्थानीय नेताओं और राजनेताओं ने भड़काऊ नारे लगाकर प्रदर्शनकारियों को भड़काने का काम किया।
पुलिस ने बताया, “जामिया हिंसा में दंगाइयों ने गाड़ी के टायर जलाए और पुलिस की ओर फेंके। एक एंबुलेंस, जिससे एक मरीज को यूनिवर्सिटी के रास्ते ले जाया जा रहा था, उसे भी क्षतिग्रस्त किया गया। कानून को तोड़ते हुए इस भीड़ के कई समूहों ने कैंपस में एंटर किया और फोर्स के ऊपर पत्थरबाजी की।”
दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को कोर्ट से ये भी अपील की कि जामिया हिंसा मामले में अलग से जाँच करने की कोई जरूरत नहीं है। वह पहले से ही इस संबंध में व्यापक जाँच कर रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, हलफनामे में पुलिस ने उन याचिकाओं को खारिज करने की भी माँग की, जिसमें छात्रों की गिरफ्तारी और चिकित्सा सहायता न दिए जाने का हवाला देकर फैक्ट-फाइंडिंग कमिटी के गठन की माँग हुई थी।
पुलिस ने दिल्ली हाइकोर्ट में इन याचिकाओं को खारिज करने की माँग करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं का मुख्य तर्क है कि जामिया में हुआ प्रदर्शन सिर्फ़ एक छात्र विरोध था और शांतिपूर्ण प्रदर्शन था, जो कि पूर्ण रूप से झूठ है, इसलिए इन दलीलों को अस्वीकार किया जाए।
दंगाइयों के ख़िलाफ़ पुलिस की कार्रवाई के संबंध में कुछ याचिका नबीला हसन, स्नेहन मुखर्जी और सिद्धार्थ द्वारा दाखिल की गई थी। इसके अलावा कुछ याचिकाएँ हिंसा के आरोपितों के ख़िलाफ़ दर्ज एफआईआर को निरस्त करने के लिए विभिन्न वकीलों, जामिया छात्रों, ओखला निवासियों और यहाँ तक की जामा मस्जिद के इमामों द्वारा दायर की गई थी।
दिल्ली पुलिस ने उच्च न्यायालय में यह भी कहा कि असहमति के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन किसी को भी अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में कानून हाथ में लेने, हिंसा भड़काने, आगजनी करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
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