तिरस्कृत हुए, मौत के 16 साल बाद, नरसिम्हा राव कांग्रेस को क्यों आए याद?

नरसिम्हा राव, सोनिया गॉंधी
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
किसी ने यदि गुलामों को न देखा हो तो कांग्रेस पार्टी को देखा जा सकता है। यह कोई आरोप नहीं, कटु सत्य है। जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज सोनिया गाँधी तक पार्टी में एकछत्र शहंशाह बन कर अपनी बात आदेश मान लागू करते जरूर अनुभव किया जा सकता है। कांग्रेस में एक से बढ़कर एक धुरंधर नेता हुए हैं, लेकिन पार्टी में गुलामों के मिलते साथ ने उन सभी को दरकिनार किया जाता रहा। लाल बहादुर शास्त्री ने प्रधानमंत्री रहते अपने कामों से जवाहर लाल नेहरू के 18 वर्ष भुलवा दिए थे। शायद यही कारण था कि ताशकंत में उनकी हत्या करवा दी गयी। वरना क्या कारण था कि उनकी आकस्मित मृत्यु की जाँच क्यों नहीं हुई? क्यों नहीं उनका पोस्टमॉर्टेम करवा गया? क्यों उनके परिवार को शास्त्री से दूर रखा जा रहा था? यदि उनकी धर्मपत्नी ललिता जी द्वारा अपने पति के शव से दूर रखने पर हंगामा करने उपरांत परिवार को उनके शव के पास जाने दिया था। 
इतना ही नहीं, परिवार के गुलामों ने अपने आकाओं के अध्यक्ष पद पर आसीन किए जाने के लिए सोनिया गाँधी को अध्यक्ष बनाने के लिए अध्यक्ष सीताराम केसरी को पार्टी ऑफिस से बाहर फेंका था। किसी को गुलाम देखने हैं तो कांग्रेस पार्टी को देख लें।
जब कांग्रेस ने अपने ही मंत्रियों और सेना चीफ की जासूसी करवाई थी 
कांग्रेस पार्टी और उसके नेता इन दिनों वाट्सएप पर कुछ लोगों की कथित जासूसी को लेकर केंद्र सरकार पर बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी बिना की किसी तथ्य के सरकार को घेरने में लगे हैं। लेकिन वो उस वक्त को भूल गए हैं जब उनके और उनकी मां सोनिया गांधी के इशारे पर यूपीए सरकार में वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी की जासूसी कराई गई थी। 
सोनिया के इशारे पर हो रही थी प्रणब की ...
प्रणब मुखर्जी के घर जासूसी
आज बिना किसी सबूत के केंद्र सरकार पर कुछ लोगों की जासूसी कराना का आरोप लगाने वाली कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं ने अपनी ही सरकार के वित्त मंत्री और वरिष्ठ नेता प्रणब मुखर्जी की जासूसी कराई थी। बात 2011 की है, जब प्रणब मुखर्जी के दफ्तर पर जासूसी खबर मीडिया में छाई हुई थी। तब इसकी शिकायत खुद प्रणब मुखर्जी ने तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह से की थी और इसकी जांच कराने की मांग की थी।

जासूसी का मामला तब सामने आया था, जब तत्कालीन यूपीए सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री प्रणब मुखर्जी के ऑफिस में 16 अहम जगहों पर गोंद लगी मिली है। इन जगहों में खुद मुखर्जी का ऑफिस, उनकी करीबी सलाहकार ओमिता पॉल का ऑफिस, उनके प्राइवेट सेक्रेटरी मनोज पंत का ऑफिस और वित्त मंत्री द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले दो कॉन्फ्रेंस हॉल शामिल थे। तब वित्त मंत्रालय की ओर से पहली बार प्राइवेट इनवेस्टिगेटर्स की मदद से मंत्रालय के अति महत्वपूर्ण कक्षों की ‘इलेक्ट्रॉनिक स्वीपिंग’ कराई गई थी। इसके बाद प्रणब मुखर्जी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस मामले की शिकायत की थी। तब प्राइवेट इनवेस्टिगेटर्स का कहना था कि गोंद खास मकसद से चिपकाई गई थी। गोंद के बाहरी हिस्से में हल्की लकीर जैसे निशान मिले हैं जो इस बात का संकेत हैं कि वहां कोई छोटे उपकरण लगाए गए होंगे जो हटा लिए गए।
रिटायर्ड आर्मी चीफ वी के सिंह के घर जासूसी
यूपीए शासन के दौरान ही पूर्व आर्मी चीफ जनरल (रिटायर्ड) वी के सिंह की भी जासूसी कराने का मामला सामने आया था। जनवरी 2013 में वी के सिंह के परिवारवालों ने आरोप लगाया था कि उनके घर में जासूसी करने के लिए बगिंग की कोशिश की गई। 4 जनवरी 2013 को दिल्‍ली के कैंटोनमेंट एरिया स्थित पूर्व जनरल के घर में घुसे सेना के मेजर को पकड़ा गया था। पकड़ा गया मेजर आर. विक्रम सिंह सेना के सिग्‍नल कोर 1, सिग्‍नल यूनिट में तैनात था। मेजर की गतिविधि संदिग्‍ध लगी तो वहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने उसे पकड़ा और पूछताछ की।

पी.वी. नरसिंह राव की जयन्ती पर ...नरसिम्हा राव की मौत के 16 साल बाद तिरस्कार पर कांग्रेस को पछतावा या मौकापरस्ती? 
उन्होंने बेहद मुश्किल वक्त में देश और कांग्रेस का नेतृत्व सॅंभाला था। वे नेहरू-गॉंधी परिवार के बाहर के पहले शख्स थे, जिसने बतौर प्रधानमंत्री पॉंच साल का कार्यकाल पूरा किया। उस शख्सियत का नाम था पीवी नरसिम्हा राव।
राव को जीते जी सोनिया गॉंधी के इशारे पर पहले कांग्रेस में अपमानित कर किनारे लगाया गया। मृत्यु हुई तो दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार होने नहीं दिया गया। उनके शव को कांग्रेस कार्यालय में लाने तक की अनुमति नहीं दी गई। दिल्ली में उनका मेमोरियल 2015 में तब बन पाया, जब केंद्र में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार चल रही थी।
दिसंबर 2004 में मौत के बाद राव का जब तिरस्कार हुआ तो मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री हुआ करते थे। वित्त मंत्री बनाकर राजनीति में मनमोहन को लाने वाले भी राव थे। लेकिन मनमोहन सिंह ने उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होना भी उचित नहीं समझा।
“यूपीए काल में किसी भी बड़े कांग्रेस नेता ने दिवंगत पूर्व पीएम नरसिम्हा राव के जन्मदिवस या पुण्यतिथि के कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब उनकी मौत के 16 सालों बाद आप कार्यक्रम क्यों आयोजित कर रहे हो? कांग्रेस आलाकमान ने उनके योगदानों को हाइलाइट नहीं किया। दिल्ली में कोई कार्यक्रम नहीं हो रहा। कांग्रेस उन्हें तेलंगाना तक ही क्यों सीमित करना चाहती है? वो तो एक राष्ट्रीय नेता थे।”
इस घटना के 16 साल बाद जब कांग्रेस का सूर्य ढलता दिख रहा उसने राव को लेकर यू टर्न मारा है। सोनिया गॉंधी ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर उनकी प्रशंसा की है। हैदराबाद में शुक्रवार को कांग्रेस की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में सोनिया गॉंधी का पत्र पढ़ा गया। इसमें उन्होंने राव को प्रधानमंत्री के रूप में साहसिक फैसलों से देश को नई दिशा देने का श्रेय दिया गया।
सोनिया ने पत्र में लिखा, “राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में एक लंबे कैरियर के बाद वह गंभीर आर्थिक संकट के समय भारत के प्रधानमंत्री बने। उनके साहसिक नेतृत्व के माध्यम से हमारा देश कई चुनौतियों को सफलतापूर्वक पार करने में सक्षम हुआ। 24 जुलाई 1991 का केंद्रीय बजट और हमारे देश के आर्थिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया।”
वहीं पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राव को देश का ‘महान सपूत’ और भारत में आर्थिक सुधारों का जनक बताया है। उन्होंने कहा, “आर्थिक सुधार और उदारीकरण में वाकई उनके सबसे बड़े योगदान हैं। विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदानों को कम करके आँका नहीं जा सकता है।”
भारत में खुली अर्थव्यवस्था का श्रेय राव को देते हुए मनमोहन ने कहा, “यह एक कठिन विकल्प और साहसी फैसला था और यह संभव इसलिए हो सका क्योंकि प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने मुझे चीजों को शुरू करने की आजादी दी, क्योंकि वह उस समय भारत की अर्थव्यवस्था की समस्या को पूरी तरह से समझ रहे थे।”
राजीव गॉंधी की हत्या के बाद अचानक राव को जिम्मेदारी सॅंभालनी पड़ी थी। लेकिन कांग्रेस में सोनिया गाँधी के उदय के साथ ही उनका तिरस्कार शुरू हो गया था, जो उनकी मृत्यु के बाद तक चलता रहा।
23 दिसंबर 2004 को राव की मृत्यु हुई थी और 27 दिसंबर को स्तंभकार एमडी नलपत ने लिखा,”वास्तव में, 1998 में कांग्रेस की कमान नेहरू वंश के हाथों में दोबारा आने से बाद, AICC के पूर्व अध्यक्ष और प्रधानमंत्री होने के बावजूद, नरसिम्हा राव को कांग्रेस कार्यसमिति से न केवल बाहर किया गया था, बल्कि उन्हें विशेष आमंत्रित सदस्य की सूची से भी निकाल दिया गया था। उस सूची में केवल वे थे जो आलाकमान की जय-जयकार करते थे।”
नलपत ने दावा किया था कि राव के अंतिम संस्कार के विषय पर चर्चा के लिए दोपहर 3 बजे एक विशेष केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक बुलाने के बावजूद, 9 मोतीलाल नेहरू मार्ग पर उनके शव को लाकर एक मंच पर रखने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। वहाँ न फूल थे और न शोक सभा में आए लोगों के बैठने के लिए कारपेट। यहाँ तक लॉन के शामियाने में कोई इंतजाम नहीं था।
यह सिलसिला राव के देहांत पर भी खत्म नहीं हुआ था। उनके निधन के बाद भी कांग्रेस पार्टी ने उनका तिरस्कार करना नहीं बंद किया। वे हमेशा पार्टी के निशाने पर हमेशा रहे। पिछले वर्ष राव के पोते एनवी सुभाष ने इसके लिए पार्टी को आड़े हाथों भी लिया था। लगातार राव पर लगते आरोपों को देखते हुए उन्होंने गाँधी परिवार से उस अन्याय के लिए माफी माँगने को कहा था, जो उन्होंने नरसिम्हा राव के साथ किया।




एन वी सुभाष ने AICC सचिव जी चिन्ना रेड्डी के एक बयान पर कहा था कि राव ने अपने कार्यकाल के दौरान नेहरू-गाँधी परिवार को ‘दरकिनार’ करने की कोशिश की थी, ‘यह सच नहीं है और निंदनीय’ है। उन्होंने दावा किया कि राव, गाँधी परिवार के सबसे भरोसेमंद और वफादार नेता थे और हमेशा कई मुद्दों पर गाँधी परिवार का मार्गदर्शन करते थे।
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि मौत के 16 साल बाद राव को लेकर कांग्रेस के स्टैंड में यह​ बदलाव पाश्चाताप है या फिर मौकापरस्ती?
असल में यह राव का जन्म शताब्दी वर्ष है। उनकी जयंती पर पिछले महीने कई अखबारों में पूरे पन्ने का विज्ञापन छपा था। इसमें उन्हें ‘तेलंगाना का बेटा… भारत का गर्व’ बताया गया था। यह विज्ञापन तेलंगाना की सत्ताधारी पार्टी टीआरएस की तरफ से प्रकाशित किए गए थे। इसी विज्ञापन ने अचानक से राव को राजनीति में फिर से प्रासंगिक बनाते हुए कांग्रेस को अपने स्टैंड में बदलाव के लिए मजबूर किया।
इस विज्ञापन के बाद कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से पोस्ट कर उन्हें दूरदर्शी नेता बताया गया था। राहुल गॉंधी से लेकर मनमोहन सिंह तक सबने उन्हें याद किया। लेकिन सोनिया उस वक्त भी चुप रहीं। अचानक से राव को लेकर सोनिया का मुखर होना कभी मजबूत गढ़ रहे दक्षिण भारत में जमीन तलाशने की कांग्रेस रणनीति का हिस्सा है।
कांग्रेस कर्नाटक की सत्ता बीजेपी के हाथों गॅंवा चुकी है। तेलंगाना में टीआरएस ने उसकी जगह ले ली है। आंध्र प्रदेश से उसे उस जगन मोहन रेड्डी ने उखाड़ फेंका है, जिसे कभी उसने पार्टी से बाहर कर दिया था। तमिलनाडु में उसकी उम्मीदें डीएमके पर टिकी है। बीते साल आम चुनावों में भी इन राज्यों में उसका प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा था। ऐसे में यह करनी पर पछतावे से ज्यादा राव की विरासत पर दावा कर कम से कम तेलंगाना में पैठ बनाने की कवायद दिखती है।
शायद कांग्रेस के लिए अब इस मोर्चे पर देर हो चुकी है। राव के लिए भारत रत्न की मॉंग और जन्म शताब्दी के मौके पर साल भर के कार्यक्रम का ऐलान कर इस विरासत पर टीआरएस पहले ही दावा ठोक चुकी है।

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