महाराष्ट्र सरकार : कर्मचारियों को वेतन देने के लिए नहीं पैसे, बाँट रहे मदरसों में वेतन

महाराष्ट्र सरकार मदरसा वेतन
महाराष्ट्र सरकार ने प्रदेश में स्थित मस्जिदों और मौलवियों के लिए एक बड़ा ऐलान किया है। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की धर्म निरपेक्ष गठबंधन सरकार ने मौलवियों और मस्जिदों को 1.80 करोड़ रूपए बतौर वेतन देने का ऐलान किया है।  
ख़बरों के मुताबिक़ महाराष्ट्र सरकार के अल्पसंख्यक विकास मंत्री नवाब मलिक ने यह सूचना जारी की। उन्होंने कहा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में प्रदेश के 121 मदरसों को 1.80 करोड़ रूपए बतौर वेतन दिए जाएँगे। नवाब मलिक ने यह भी बताया कि यह राशि डॉ जाकिर हुसैन मदरसा आधुनिकरण योजना के तहत जारी की जाएगी।
महाराष्ट्र सरकार की इस तुष्टिकरण घोषणा पर लोगों की प्रक्रियाएं :



महाराष्ट्र सरकार ने यह योजना राज्य के मदरसों की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए शुरू की थी। इसके अलावा योजना का उद्देश्य राज्य के मदरसों का आधुनिकरण करना और उनकी बुनियादी सुविधाएँ पूरी करना था। 
इस राशि की मदद से नए मदरसों में आने वाले शिक्षक को वेतन दिया जाएगा और पढ़ने वाले बच्चों को छात्रवृत्ति भी दी जाएगी। यह योजना साल 2013 के दौरान कांग्रेस और एनसीपी की गठबंधन सरकार में शुरू की गई थी।
लेकिन इस योजना का एक और पहलू भी है। जुलाई के पहले हफ्ते में महाराष्ट्र सरकार में मंत्री विजय वाडेत्तिवर ने कहा था कि सरकार आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रही है। जिसकी वजह से सरकार को कर्मचारियों का वेतन देने के लिए क़र्ज़ लेना पड़ेगा। मंत्री जी का यह भी कहना था कि केंद्र सरकार से आर्थिक मदद न मिलने पर ऐसा हो रहा है। 
इसलिए उन्हें सरकारी कर्मचारियों का वेतन देने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ वही महाराष्ट्र सरकार मदरसों के आधुनिकरण के लिए मौलवियों को वेतन बाँटने वाली है। वही सरकार अब फंड जारी करके मदरसों की मदद करेगी। इसको कहते हैं मुस्लिम तुष्टिकरण। विरोध करने वालों को साम्प्रदायिक करार कर दो।  
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हिन्दू विरोधयों की जोड़ी : राहुल गाँधी और साकेत गोखले आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार अयोध्या राम मंदिर निर्माण हेतु ‘....
जब सरकार मंदिरों के चढ़ावे पर गिद्ध की नज़र रख हथियाने का भरसक प्रयत्न करती है, वही गिद्ध की नज़र उन मस्जिदों और दरगाहों पर क्यों नहीं होती? यदि मस्जिदों और दरगाहों में आने वाले धन को ही अगर सरकार अपने अधीन ले ले, एक पैसा भी सरकारी खजाने से खर्च करने की जरुरत नहीं पड़ेगी। लेकिन मुस्लिम तुष्टिकरण सरकार को ऐसा करने से रोक, जनता के धन को दोनों हाथों से लुटा रही है। क्यों मस्जिदों और दरगाहों में आ रहे धन पर कुछ ही गरीब और मजलूमों के हाथ रहे?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अयोध्या जाकर रामजन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास में शामिल होने पर साम्प्रदायिकता दिखने वालों को साम्प्रदायिकता क्यों नहीं दिखती? आखिर तुष्टिकरण का नंगा नाच कब तक होता रहेगा? 

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