जामिया मिलिया इस्लामिया में और उसके आसपास 15 दिसंबर, 2019 को नागरिकता संशोधन विधेयक (CAA) के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा को लेकर सोमवार (जुलाई 6,2020) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। न्यायाधीश डीएन पटेल और प्रतीक जालान की खंडपीठ ने इससे जुड़ी कई याचिकाओं पर सुनवाई की।
याचिकाकर्ताओं ने जामिया मिलिया इस्लामिया में हुई हिंसा की स्वतंत्र जाँच के लिए कहा। कोर्ट में सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता दिल्ली पुलिस की तरफ से पेश हुए तो वहीं वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्विस याचिकाकर्ताओं के लिए उपस्थित हुए।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलों के कुछ हिस्सों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि याचिकाओं में कहा गया है कि गृह मंत्री ने पुलिस को छात्रों को मारने और उनकी हड्डियों को निर्दयता से तोड़ने का आदेश दिया है। दलीलों में कहा गया है कि यह एक आम राय है कि छात्रों को पीटने के लिए पुलिस को ऊपर से निर्देश दिए गए थे।
ऐसे में प्रश्न यह होता है कि "क्या गृह मंत्री ने आंदोलन को दंगे में परिवर्तित करने के लिए कहा था? क्या गृह मंत्रालय ने पत्थरबाज़ी करने के लिए कहा था? क्या गृह मंत्रालय ने हिन्दुत्व के विरोध में नारेबाजी करने के लिए कहा था? क्या गृह मंत्रालय ने पुलिस और जनता को चोट पहुँचाने के लिए पेट्रोल बम, ट्यूब लाइट, पत्थर और लाठियां जमा करने के लिए कहा था? क्या गृह मंत्रालय ने शांति प्रदर्शन के नाम पर दंगा प्रदर्शन करने के लिए कहा था? दूसरे, क्या पेट्रोल बम बनाने के लिए गृह मंत्रालय ने धन दिया था? आदि, आदि। एक लम्बी लिस्ट बन सकती है प्रश्नों की।
एसजी मेहता ने कहा कि बिना किसी सबूत के याचिकाकर्ता संवैधानिक अधिकारियों के खिलाफ ऐसा दावा नहीं कर सकते। उन्होंने कहा, “संवैधानिक अदालत के समक्ष इस तरह के आरोप नहीं लगाए जा सकते।” बिना किसी सबूत के जो आरोप लगाए गए हैं, उन्हें दलीलों से दूर किया जाना चाहिए। एसजी ने कहा कि इस तरह के आरोप सार्वजनिक भाषणों में अच्छे लग सकते हैं, लेकिन संवैधानिक अदालत के समक्ष दायर एक हलफनामे में नहीं।
कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता गोंसाल्विस से याचिकाओं से आपत्तिजनक सामग्री हटाने पर विचार करने को कहा। इस दौरान जब न्यायमूर्ति जालान ने एसजी मेहता से पूछा कि क्या आपत्ति का शुरुआती चरण में फैसला किया जाना था, तो उन्होंने जवाब दिया कि यह सुनवाई के स्तर पर तय किया जा सकता है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने अदालत से पूछा कि क्या याचिकाओं और जवाबी हलफनामों की एक संगठित सूची हो सकती है, जिसका समर्थन अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने किया था। अदालत ने अपने अंतिम आदेश में मुद्दों की एक समेकित सूची प्रस्तुत करने के लिए कहा। साथ ही स्पष्ट रूप से कहा कि किसी सबूत के इस्तेमाल किए गए आपत्तिजनक सामग्री को याचिका से हटा दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने जामिया हिंसा मामले में सुनवाई की अगली तारीख 13 जुलाई 2020 तय की है।
दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ 15 दिसंबर 2019 को हुआ प्रदर्शन हिंसा में बदल गया था। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने जमिया में लाठीचार्ज किया था। उस समय आरोप लगाए गए थे कि पुलिस ने पुस्तकालय में पढ़ने वाले निहत्थे छात्रों पर हमला किया और उनके साथ मारपीट की, फर्नीचर को भी तोड़ दिया। हालाँकि बाद में सामने आए वीडियो सबूतों से पता चला कि जो दंगाई पुलिस पर पथराव कर रहे थे, वो ही छात्र बनकर लाइब्रेरी में बैठे थे।
दिल्ली पुलिस की ओर से कोर्ट में कुछ वीडियोज और तस्वीरें भी सबूत के तौर पर पेश की गई। इनके जरिए बताया गया कि छात्रों के आंदोलन की आड़ में वास्विकता में कुछ लोगों ने स्थानीय लोगों की मदद से दंगा भड़काने की कोशिश की।
अवलोकन करें:-
क्राइम ब्रांच ने कहा था, “जामिया हिंसा कोई छोटी-मोटी घटना नहीं थी। बल्कि सुनियोजित घटना थी, जहाँ दंगाइयों के पास पत्थर, लाठियाँ , पेट्रोल बम, ट्यूबलाइट आदि पहले से थीं। इससे साफ होता है कि भीड़ का इरादा केवल कानून-व्यवस्था को बाधित करना था।”
याचिकाकर्ताओं ने जामिया मिलिया इस्लामिया में हुई हिंसा की स्वतंत्र जाँच के लिए कहा। कोर्ट में सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता दिल्ली पुलिस की तरफ से पेश हुए तो वहीं वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्विस याचिकाकर्ताओं के लिए उपस्थित हुए।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलों के कुछ हिस्सों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि याचिकाओं में कहा गया है कि गृह मंत्री ने पुलिस को छात्रों को मारने और उनकी हड्डियों को निर्दयता से तोड़ने का आदेश दिया है। दलीलों में कहा गया है कि यह एक आम राय है कि छात्रों को पीटने के लिए पुलिस को ऊपर से निर्देश दिए गए थे।
ऐसे में प्रश्न यह होता है कि "क्या गृह मंत्री ने आंदोलन को दंगे में परिवर्तित करने के लिए कहा था? क्या गृह मंत्रालय ने पत्थरबाज़ी करने के लिए कहा था? क्या गृह मंत्रालय ने हिन्दुत्व के विरोध में नारेबाजी करने के लिए कहा था? क्या गृह मंत्रालय ने पुलिस और जनता को चोट पहुँचाने के लिए पेट्रोल बम, ट्यूब लाइट, पत्थर और लाठियां जमा करने के लिए कहा था? क्या गृह मंत्रालय ने शांति प्रदर्शन के नाम पर दंगा प्रदर्शन करने के लिए कहा था? दूसरे, क्या पेट्रोल बम बनाने के लिए गृह मंत्रालय ने धन दिया था? आदि, आदि। एक लम्बी लिस्ट बन सकती है प्रश्नों की।
[JAMIA VIOLENCE]— Bar & Bench (@barandbench) July 6, 2020
Delhi High Court hears Petitions concerning violence that broke out at Jamia University last year following an Anti-CAA protest. #jamiamilliaislamia #antiCAA @jamiamillia_
Solicitor General Tushar Mehta raises strong objections regarding certain portions of pleadings in one of the matters.— Bar & Bench (@barandbench) July 6, 2020
It says the instructions to mercilessly beat the students and break their bones came from the Home Minister: SG Mehta #jamiamilliaislamia
The pleadings says that the common people were of the opinion that police had instructions/clearance from the top: SG Mehta— Bar & Bench (@barandbench) July 6, 2020
What is the evidence or source of the information? : SG Mehta
Mehta argues that such allegations be deleted from the pleadings.— Bar & Bench (@barandbench) July 6, 2020
You say these things in a public rally but not before a court : SG Mehta— Bar & Bench (@barandbench) July 6, 2020
Court asks Senior Advocate Colin Gonsalves to consider deleting the objectionable passages.
"Why personal allegations against xyz .. everyone was arguing so nicely .. ": CJ DN Patel #JamiaViolence
[Jamia Violence] Irresponsible pleadings becoming order of the day: Solicitor General Tushar Mehta objects to allegations against Home Minister Amit Shah@HMOIndia #JamiaMilliaIslamia #jamiaviolence https://t.co/vrmu9RD8x6— Bar & Bench (@barandbench) July 6, 2020
एसजी मेहता ने कहा कि बिना किसी सबूत के याचिकाकर्ता संवैधानिक अधिकारियों के खिलाफ ऐसा दावा नहीं कर सकते। उन्होंने कहा, “संवैधानिक अदालत के समक्ष इस तरह के आरोप नहीं लगाए जा सकते।” बिना किसी सबूत के जो आरोप लगाए गए हैं, उन्हें दलीलों से दूर किया जाना चाहिए। एसजी ने कहा कि इस तरह के आरोप सार्वजनिक भाषणों में अच्छे लग सकते हैं, लेकिन संवैधानिक अदालत के समक्ष दायर एक हलफनामे में नहीं।
कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता गोंसाल्विस से याचिकाओं से आपत्तिजनक सामग्री हटाने पर विचार करने को कहा। इस दौरान जब न्यायमूर्ति जालान ने एसजी मेहता से पूछा कि क्या आपत्ति का शुरुआती चरण में फैसला किया जाना था, तो उन्होंने जवाब दिया कि यह सुनवाई के स्तर पर तय किया जा सकता है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने अदालत से पूछा कि क्या याचिकाओं और जवाबी हलफनामों की एक संगठित सूची हो सकती है, जिसका समर्थन अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने किया था। अदालत ने अपने अंतिम आदेश में मुद्दों की एक समेकित सूची प्रस्तुत करने के लिए कहा। साथ ही स्पष्ट रूप से कहा कि किसी सबूत के इस्तेमाल किए गए आपत्तिजनक सामग्री को याचिका से हटा दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने जामिया हिंसा मामले में सुनवाई की अगली तारीख 13 जुलाई 2020 तय की है।
दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ 15 दिसंबर 2019 को हुआ प्रदर्शन हिंसा में बदल गया था। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने जमिया में लाठीचार्ज किया था। उस समय आरोप लगाए गए थे कि पुलिस ने पुस्तकालय में पढ़ने वाले निहत्थे छात्रों पर हमला किया और उनके साथ मारपीट की, फर्नीचर को भी तोड़ दिया। हालाँकि बाद में सामने आए वीडियो सबूतों से पता चला कि जो दंगाई पुलिस पर पथराव कर रहे थे, वो ही छात्र बनकर लाइब्रेरी में बैठे थे।
दिल्ली पुलिस की ओर से कोर्ट में कुछ वीडियोज और तस्वीरें भी सबूत के तौर पर पेश की गई। इनके जरिए बताया गया कि छात्रों के आंदोलन की आड़ में वास्विकता में कुछ लोगों ने स्थानीय लोगों की मदद से दंगा भड़काने की कोशिश की।
अवलोकन करें:-
क्राइम ब्रांच ने कहा था, “जामिया हिंसा कोई छोटी-मोटी घटना नहीं थी। बल्कि सुनियोजित घटना थी, जहाँ दंगाइयों के पास पत्थर, लाठियाँ , पेट्रोल बम, ट्यूबलाइट आदि पहले से थीं। इससे साफ होता है कि भीड़ का इरादा केवल कानून-व्यवस्था को बाधित करना था।”
No comments:
Post a Comment