कपूर का वृक्ष
आरती पूजा पाठ में कपूर का उपयोग वर्षो से होता आया है जो वातावरण को शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा से युक्त बनाता है लेकिन कटते पेड़ो और अधिक लाभ की लालसा ने असली कपूर को दुर्लभ बना दिया हैIआज अधिकांश कपूर केमिकल्स युक्त है,कपूर एक विशालकाय,बहुवर्षायु लगभग सदावहार वृक्ष है,इसका वृक्ष एशिया के विभिन्न भागों में पाया जाता है, भारत, श्रीलंका,चीन,जापान,मलेशिया,कोरिया,ताइवान,इन्डोनेशिया आदि देशों में बहुतायत पाया जाता है,अन्य देशों में भी यहीं से ले जाया गया है,कपूर का वृक्ष 100 फीट से भी ऊँचे आकार का पाया जाता है,इसी तरह आयु में भी हजारों वर्ष पुराने वृक्ष पाये गये हैं,इसके पुष्प अति सुंदर सुगन्धित और मनमोहक फल तथा पत्तियाँ बरबस ही अपनी ओर आकृष्ट करते हैंI यही कारण है कि कहीं-कहीं इसे श्रृंगारिक वृक्ष के रुप में भी अपनाया गया है,पत्तियाँ बड़ी सुन्दर,चिकनी,मोमी, लालीमायुक्त हरापन लिए होती हैं,वसन्त ऋतु में छोटे-छोटे अति सुगन्धित फूल लगते हैं, इसके फल भी बड़े मोहक होते हैं। कपूर वृक्ष की लकड़ियाँ सुन्दर फर्नीचर के काम में भी लायी जाती हैं,जो काफी मजबूत और टिकाऊ होती हैं, प्रौढ़ पौधे से प्राप्त लकड़ियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर,तेज ताप पर उबाला जाता है....फिर वाष्पीकरण और शीतलीकरण विधि से रवादार कपूर का (crystalline substance )निर्माण होता हैI इसके अलावा अर्क और तेल भी बनाया जाता है जिसका प्रयोग प्रसाधन एवं औषधी कार्यों में बहुतायत होता है,आयुर्वेद में इसके अनेक औषधीय प्रयोगों का वर्णन है, अंग्रेजी और होमियोपैथी दवाइयों में भी कपूर का प्रयोग होता है, यह शीतवीर्य है,यानी ताशीर ठंढा है।भारतीय कर्मकांड और तन्त्र में तो कपूर रसाबसा है ही
कपूर की कज्जली और गौघृत से काजल भी बनाया जाता है जो बड़ा गुणकारी होता है।

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