आंदोलन से सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने में, अरविंद केजरीवाल के व्यक्तित्व का असली रुप संसद द्वारा पारित कृषि बिल को सदन में फाड़ने से सामने आ गया। इसी अराजक मुख्यमंत्री ने ही सर्वप्रथम दिल्ली में लागु किया है, लेकिन पंजाब चुनाव को मद्देनज़र रख किसान आंदोलन को समर्थन देने के लिए रंग बदलने में गिरगिट को भी फेल कर दिया। वैसे रंग बदलने में न जाने कितनी बार गिरगिट को फेल चुके हैं। जो आदमी अपने बच्चों की कसम खाकर मुकर कर सरकार बना ले फिर भी मुफ्तखोरों ने इस पार्टी को वोट दे दिया, जो अपने बच्चों का नहीं हुआ, जनता का क्या होगा? मुफ्त की रेवड़ियां खाने के लालच में ऐसे संविधान विरोधी को वोट देने वाले मतदाताओं को क्या पछतावा है?
जो मुख्यमंत्री संविधान की शपथ लेकर संविधान की सुरक्षा नहीं कर सकता जनता को मुफ्त की रेवड़ियां चूसते हुए मरने के लिए छोड़ने में लेशमात्र भी संकोच नहीं करने वाला। कोरोना काल में देख भी लिया, फिर भी अब मुफ्तखोर इस पार्टी को वोट देते हैं, उन्हें फिर किस नाम से अलंकृत किया जाये, वही मतदाता निर्णय कर लें कि किस नाम से उन्हें पुकारा जाए। अब तक की इस मुख्यमंत्री की तानाशाही हरकतों को देख, यह सोंचने को मजबूर होना पड़ता है कि "जिस दिन ये अराजक देश का प्रधानमंत्री बन गया, निश्चित रूप से हिटलर और मुसोलिन को भी बहुत पीछे छोड़ देखा।" क्योकि पूत के पैर पलने में ही नज़र आ जाते हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी ने अरविंद केजरीवाल को बदल दिया, कहां तो अरविंद केजरीवाल राजनीति का चेहरा बदलने आए थे, लेकिन सत्ता के मोह ने ऐसा बदला कि इसकी हर किसी से लड़ाई हुई और आज तक सत्ता के मोह में सबसे लड़ रहे हैं।
अपनी नाकामियों को पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी करार करते रहे। जेएनयू में टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थन, दिल्ली में हिन्दू विरोधी दंगाइयों को समर्थन। उनके विरुद्ध UAPA मुकदमा चलाने के लिए इजाजत देने की बजाए फाइल को दबा कर बैठ जाना, परन्तु जब कोरोना की मार पड़ी, केन्द्र से मदद लेने के लिए तुरंत फाइलें साइन कर दी।
Kejriwal going from 'helpless CM of Delhi' to 'Delhi k Maalik hum hain' mode in no time. pic.twitter.com/bJjyMc4IEi
UP के लोग भूले नहीं वह अपमान,जब दिल्ली सरकार ने कोरोना आपदा के समय ढूंढ ढूंढ कर यूपी बिहार के लोगों को दिल्ली से भगाया,आधी रात उन्हें परिवार बच्चों के साथ भूखा प्यासा सड़क पर ला दिया,तब योगीजी ने ही पूरी रात जाग सुरक्षित घरों तक पहुँचाया,AAP का तो ‘ख़ास’ ही स्वागत करेंगे UP वाले। https://t.co/PkqNS7fzHk
— Shalabh Mani Tripathi (@shalabhmani) December 15, 2020
साजिश के तहत जबरदस्ती बिहार यूपी के भूखे प्यासे लोगों बॉर्डर पर लाकर फेक कर दिया था....बस के लिये त्राहिमाम था
— Mukesh Kumar (@itsMukeshraj) December 16, 2020
धन्यवाद @myogiadityanath जी जिन्होंने सभी को सुरक्षित घर तक भेजा. @BJP4UP को पोस्टर लगाकर इस घटना को जनता को याद दिलाना होगा @shalabhmani pic.twitter.com/D2jOHMu9va
केजरीवाल जी यूपी की जनता अपना अपमान भूली नही है जब आपकी सरकार ने लॉक डाउन मे यूपी और बिहार के भूखे प्यासे मजदूरों को दिल्ली छोड़ने पर मजबूर कर दिया था
— कुंवर अजयप्रताप सिंह🇮🇳 (@iSengarAjayy) December 15, 2020
2017 का manifesto Punjab का याद है??
— MEU TRUMP❎ _/ (@MEU_TRUMPH) December 17, 2020
किसान क़ानून तुम ने ख़ुद चाहाथा, वादा किया था... pic.twitter.com/i2lJBrOmHy
मुस्लिम अपराध व दंगे पर आम आदमी पार्टी की चुप्पी क्यों रहती है ?
— मुकेश अग्रवाल (@Rashtradharam) December 15, 2020
लव जिहाद क़ानून दिल्ली में क्यों नहीं लागू कर रहे हो ?
किसान आंदोलन में भोले किसानों को पूँजीपतियों के नाम से भविष्य भ्रमित क्यों कर रहे हो ?
MCD के 13000 करोड़ क्यों रोक रखे है ?
पूछती है मेरी दिल्ली
दिल्ली के बाद यू पी का भी यही हाल होगा ।
— Ashish kumar 💪🚩Hindi Hai Hum🇮🇳🇮🇳🇮🇳 (@HindiHaiHum2) December 15, 2020
👇🏻👇🏻👇🏻🤔🤔😉😉 pic.twitter.com/rY6W9eWLSs
MR ARVIND KEJRIWAL MEET THE REAL ARVIND KEJRIWAL ! pic.twitter.com/0fgXkkvJOJ
— SalujaSK (@sk_saluja) December 16, 2020
हाँ पता है और यह भी पता है कि 2 टके का टिकट ब्लैकिया संजय सिंह CM उम्मीदवार होगा। सरजी दाल आपकी गलने वाली नहीं है। वहां भी सब कुछ फ्री देकर नष्ट कर देना। ख़ैर दिल्ली तो अब आपके हाथ से निकल ही चुकी है। pic.twitter.com/5NmM4Eg23J
— Chandragupt (@Chandra98222664) December 15, 2020
जब केजरीवाल के सार्वजनिक जीवन का जायजा लिया तो एक ही शब्द नजर आया – लड़ाकू केजरीवाल!
जिनके साथ आंदोलन की शुरुआत की, उससे लड़े– 5 अप्रैल 2011 को जनलोकपाल की मांग को लेकर दिल्ली में जंतर मंतर से आंदोलन की शुरुआत करने में अरविंद के कई साथियों ने कंधा से कंधा मिलाया, लेकिन सभी से केजरीवाल की लड़ाई हुई और सभी ने अरविंद केजरीवाल का साथ छोड़ दिया। वे साथी, जिनसे केजरीवाल की लड़ाई हुई-
अन्ना हजारे – राजनीति में आने के फैसले पर अन्ना सख्त नाराज हुए। अन्ना नहीं चाहते थे कि आंदोलन को राजनीतिक दल में बदला जाए, लेकिन केजरीवाल ने उन्हीं के मंच का इस्तेमाल करते हुए राजनीतिक दल बनाने की घोषणा कर दी। इस बात पर पर सख्त आपत्ति जताते हुए उनका साथ छोड़ दिया।
किरण बेदी- अन्ना से केजरीवाल की केजरीवाल की लड़ाई हुई तो इससे किरण बेदी बेहद दुखी थीं। लेकिन केजरीवाल की महत्वाकांक्षा और आंदोलन को अपने स्वार्थ में हाइजैक कर लेने के वजह से किरण बेदी भी उनसे अलग हो गईं।
जिनके साथ ‘आप’ पार्टी बनाई, उससे लड़े- अन्ना हजारे से लड़कर, अलग पार्टी बनाने में जिन साथियों ने 26 नवंबर 2012 को साथ दिया, उनसे भी लड़ाई कर ली। केजरीवाल के ये साथी थे-
प्रशांत भूषण, शांति भूषण और योगेन्द्र यादव- आंदोलन को राजनीतिक पार्टी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इन तीनों ही व्यक्तियों से अरविंद केजरीवाल ने लड़ाई की और 28 मार्च, 2015 को उस पार्टी से निकाल दिया, जिसके ये फाउंडर मेंबर थे।
मयंक गांधी और अंजलि दमानिया-महाराष्ट्र में आप पार्टी के सबसे भरोसेमंद साथी-मयंक गांधी और अंजलि दामानिया से भी अरविंद ने लड़ाई कर ली और नवंबर, 2015 में अरविंद ने इन लोगों से भी नाता तोड़ लिया।
सुच्चा सिंह – पंजाब में आम आदमी पार्टी को खड़ा करने वाले सुच्चा सिंह छोटेपुर को भी केजरीवाल ने नहीं बख्शा। अपनी महत्वाकांक्षा में डूबे केजरीवाल ने लड़कर उन्हें चुनाव से ऐन पहले बाहर का रास्ता दिखा दिया।
जिनके साथ सरकार बनाई, उसी से लड़े – दिल्ली में चुनाव जीतकर पहली बार दिसंबर 2013 और दूसरी बार फरवरी, 2015 को अरविंद ने जिन साथियों के साथ सरकार सरकार बनाई, उनमें से कई साथियों से लड़ाई कर बैठे-
विनोद कुमार बिन्नी- अरविंद अपने सबसे करीबी और विधायक विनोद कुमार बिन्नी से पहली सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही लड़ाई कर ली, और 26 जनवरी 2014 को पार्टी से निकाल दिया।
शाजिया इल्मी– अरविंद केजरीवाल ने शाजिया इल्मी से भी लड़ाई कर ली और आखिर में 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दिया।
एमएस धीर- अरविंद का वह साथी जो आप की पहली सरकार के दौरान विधानसभा का अध्यक्ष रहा, उससे भी केजरीवाल लड़ पड़े। एमएस धीर ने आखिर में नवंबर 2015 में अरविंद का साथ छोड़ दिया।
कपिल मिश्रा- अरविंद ने अपने साथी और जल संसाधन मंत्री कपिल मिश्रा से भ्रष्टाचार के मामलों पर चुप न रहने के कारण, मई 2017 में पार्टी से बाहर निकाल दिया।
कुमार विश्वास- आंदोलन से लेकर सरकार तक अरविंद केजरीवाल ने अपने सबसे विश्वसनीय और जाने-माने साथी कुमार विश्वास से भी लड़ाई कर ली। केजरीवाल जिस कुमार विश्वास की उपस्थिति के बिना कोई बैठक नहीं करते थे, आज उसी कुमार विश्वास को बैठकों में भी नहीं बुलाया जाता।
जिनके साथ दिल्ली की सरकार चलानी है, उसी से लड़े-अरविंद केजरीवाल सरकार बनाने के बाद हर उस व्यक्ति से लड़ने लगे, जिसके साथ मिलकर दिल्ली की जनता की सेवा करने के लिए आये थे-
पूर्व एल जी नजीब जंग- दिसंबर 2013 में केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने वाले उपराज्यपाल नजीब जंग से अरविंद की लड़ाई जगजाहिर है। मुख्यमंत्री बनने के पहले दिन से ही दिसंबर 2016 तक नजीब जंग के एलजी का पद छोड़ने तक लड़ाई ही होती रही।
वर्तमान एलजी अनिल बैजल- अरविंद केजरीवाल की वर्तमान में दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल से आये दिन लड़ाई होती रहती है।
IAS अधिकारियों से -दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ तो अरविंद केजरीवाल ने लड़ाई की हद कर दी, बैठक के बहाने अंशु प्रकाश को अपने निवास पर बुलावकर अपने दो विधायकों – अमानुतला खान और प्रकाश जरावल से पिटाई करवा दी ।
ACB से -सरकार के एंटी करप्शन ब्रांच में जब एलजी नजीब जंग ने एम के मीणा की नियुक्ति कर दी तो केजरीवाल ने भी अपनी तरफ से एस एस यादव की नियुक्ति करके सीधा ACB में झगड़ा करवा दिया।
सरकारी कर्मचारी और स्थानीय निकायों से लड़े
दिल्ली सरकार के सभी कर्मचारी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के एकतरफा और तानाशाही फैसलों से खिन्न होकर सड़कों पर उतर आये। मुख्यमंत्री के खिलाफ कैंडिल मार्च निकाला।
दिल्ली के तीनों नगर निगमों को कई महीने तक बजट का आवंटित धन नहीं दिया, और निगमों के कर्मचारियों से सीधे झगड़ा कर बैठे। इस लड़ाई के चक्कर में कई महीनों तक दिल्ली की सड़कों से निगम कर्मचारियों ने कूड़ा नहीं हटाया।
अपने वकील राम जेठमलानी से लड़े- अरुण जेटली द्वारा दायर मानहानि के मुकदमे में अपने वकील राम जेठमलानी से भी अरविंद लड़ पड़े। आखिर में राम जेठमलानी ने मुकदमा लड़ने से मना कर दिया।
चुनाव आयोग से लड़े- पंजाब के विधानसभा चुनावों मे हार और उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में भाजपा की जबरदस्त जीत से अरविंद केजरीवाल को जब कुछ समझ में नहीं आया तो वे सीधे चुनाव आयोग से लड़ पड़े और उल्टा सीधा आरोप मढ़ दिया।
केंद्र सरकार से लड़ पड़े- संविधान के अंदर काम न करने की आदत से मजबूर अरविंद केजरीवाल केन्द्र सरकार से लड़ते रहते हैं। संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किये बिना विधानसभा से कानून पारित करवा कर, केन्द्र सरकार के पास भेज देते हैं और गैर कानूनी तरीके से लागू करवाने के लिए लड़ाई करते हैं।
हरियाणा और पंजाब सरकारों से लड़े- दिल्ली को पानी पंजाब और हरियाणा सरकार के सहयोग से मिलता है, लेकिन पंजाब चुनावों के दौरान रैली में कहा कि पंजाब के पास इतना पानी नहीं है कि वह दूसरे राज्यों को दे। अरविंद ने ऐसा कहकर हरियाणा, पंजाब और दिल्ली की अपनी ही सरकार के बीच झगड़ा करवा दिया।
जनता से सीधी लड़ाई -2 अप्रैल 2017 को दिल्ली के अंबेडकर नगर के गौतम विहार चौक पर जनसभा के दौरान केजरीवाल सीधे जनता से उलझ पड़े।
अरविंद केजरीवाल का व्यक्तित्व मूल रुप से झगड़ालू प्रवृत्ति का है, ऐसे व्यक्ति के दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने से फायदा कम, नुकसान अधिक हुआ है। दिल्ली के विकास की रफ्तार धीमी पड़ चुकी है, जो दिल्लीवासियों को साफ-साफ दिखाई पड़ रहा है।
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