दिल्ली में ‘किसान आंदोलन’ के बीच हिंसा की आशंका, अमित शाह ने शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों के साथ की बैठक

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली के शीर्ष सरकारी अधिकारियों से मुलाकात की। इनमें सुरक्षा विभाग और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि दिल्ली में चल रहे ‘किसान आंदोलन’ के हिंसक होने की आशंका है। ऐसे में केंद्र सरकार पहले से ही सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद रखते हुए अधिकारियों को सतर्क रखना चाहती है। किसी भी प्रकार की हिंसा की वारदात को टालने की योजना बनाई जा रही है।

‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के सूत्रों के अनुसार, प्रदर्शनकारियों के बीच कुछ कट्टरपंथी तत्व घुस गए हैं और वो न सिर्फ इस विरोध-प्रदर्शन को लम्बे समय तक चलाना चाहते हैं, बल्कि हिंसा को भी बढ़ावा देना चाहते हैं। उनका मकसद है कि इससे पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव होगा और अराजकता की स्थिति बनेगी। ख़ुफ़िया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया है कि कम से कम ऐसे 10 संगठन इस आंदोलन में घुस चुके हैं।

किसान संगठनों ने अब पूरी तरह तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की माँग रख दी है, जबकि केंद्र सरकार MSP और APMC पर लिखित में आश्वासन देने के अलावा उनके सुझाव अनुसार संशोधनों के लिए भी तैयार है। सरकार अभी भी बातचीत के लिए तैयार है। केंद्रीय मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर, पीयूष गोयल और अमित शाह के साथ बातचीत के बावजूद किसान नहीं माने। दिसंबर 12, 2020 को देश भर में प्रदर्शन के साथ-साथ दिल्ली-जयपुर हाइवे को जाम किया जा रहा है।

किसान संगठनों ने धमकाया है कि दिसंबर 14 को इससे भी बड़ा विरोध-प्रदर्शन किया जा सकता है। ये भी जानने लायक बात है कि इन्होंने ‘जेल में बंद बुद्धिजीवियों, लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले एक्टिविस्ट्स और छात्र नेताओं’ की रिहाई की माँग भी रखी हुई है। हिंसा की संभावना को देखते हुए गुरुग्राम में 3500 और फरीदाबाद में 2000 पुलिसकर्मियों को लगाया गया है। हरियाणा के इन दोनों क्षेत्रों की सीमाएँ दिल्ली से लगती हैं।

दिसंबर 11 को भारतीय किसान यूनियन (BKU) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर तीनों कानूनों को एकपक्षीय बताया। कई याचिकाओं के दायर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट पहले ही केंद्र को नोटिस जारी कर चुका है। अगले कुछ दिनों में भाजपा इन कानूनों के फायदे जन-जन तक पहुँचाने के लिए 100 अलग-अलग जगहों पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी और किसानों के साथ 700 बैठकों के माध्यम से उन्हें भ्रामक अभियान के विरुद्ध सजग करेगी।

हालांकि किसानों ने कट्टर वामपंथियों द्वारा उनके आंदोलन को हाइजैक किए जाने की खबरों को नकार दिया है। ‘कृति किसान संगठन’ का कहना है कि वो सरकार के इस दावे को नकारते हैं। उसने कहा कि उन्हें कोई भी प्रभावित नहीं कर सकता है। इन संगठनों ने दावा किया है कि सभी निर्णय ‘संयुक्त किसान यूनियन’ द्वारा ही लिए जा रहे हैं। पीएम मोदी कई बार तीनों कानूनों को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम को दूर कर चुके हैं। 

लेकिन इस बात पर चुप्पी साधे रहते हैं, जब इसी जमघट में इंदिरा गाँधी की तरह वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ठोकने की बात कही जाती है। क्या मोदी के ठोकने से उनकी समस्या का समाधान हो जाएगा, विपरीत इसके दुनियां को अपना दुश्मन बना लेंगे? उनकी मांगों और नागरिकता संशोधक कानून के आड़ में हिन्दू विरोधी दंगे के आरोपियों को रिहा करने की मांग का क्या सम्बन्ध?

उधर किसानों ने टोल नाकों को फ्री करने के अपने अभियान के तहत अम्बाला के शम्भू टोल प्लाजा के पास हिंसा की। उन्होंने इसे बंद करवा दिया। वहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी दिसंबर 14 को होने वाले विरोध-प्रदर्शनों में पूर्णरूपेण भागीदारी की बात की है। उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी कहा है कि सार्थक बातचीत के जरिए हर समस्या को सुलझाया जा सकता है। इन सबके बावजूद किसान लगातार अड़े हुए हैं।

विभिन्न रिपोर्ट्स में पता चल रहा है कि किसान प्रदर्शनों पर अब वामपंथी अतिवादी अपना कब्जा जमा चुके हैं। खुफिया सूत्रों का कहना है कि अतिवादी संगठन किसानों को भड़का कर हिंसा, आगजनी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने की योजना बना रहे हैं। सोशल मीडिया के जरिए किसानों के प्रदर्शन को खालिस्तानियों के समर्थन की बात भी सामने आई है।

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