पंजाब के कृषि संकट और किसानों के शोषण के लिए अगर सबसे अधिक कोई जिम्मेदार है, तो वह है आढ़तिया। आढ़तिया कमीशन एजेंट होते हैं, जो किसानों और उनकी उपज के खरीदारों के बीच की एक कड़ी का काम करते हैं। वे काटी गई फ़सल की नीलामी और ख़रीदारों को डिलीवरी की व्यवस्था करते हैं। वे लंबे समय से किसानों को पैसे उधार देने का काम भी कर रहे हैं। यही कारण है कि राज्य के किसानों पर उनका बहुत ज़्यादा नियंत्रण होता है। साथ ही ये राज्य की राजनीति में एक शक्तिशाली लॉबी के रूप में भी काम करते हैं।
कमीशन एजेंट (आढ़तिया) किसानों को दिए कर्ज पर मनमाना वसूली करते हैं। साथ ही समय पर कर्ज नहीं चुकाने वाले किसानों पर ये काफी जुल्म करते हैं। आपको मानसा जिले के टिब्बी जटाना गांव के 50 वर्षीय कुलदीप सिंह पर हुए जुल्म के बारे में बताते हैं। कुलदीप सिंह को गांव का ‘नंबरदार’ होने का गौरव प्राप्त था। वे अपने उपजाऊ खेत में कपास की खेती करते थे। पैसे की जरूरत पड़ने पर वे अक्सर आढ़तियों से कर्ज लेते थे।
अमेरिकन बॉलवॉर्म के कारण कुलदीप सिंह के कपास की फसल कई बार बर्बाद हो गई, जिससे वे कर्ज चुकाने में नाकाम रहे और कर्ज पर ब्याज बढ़ता चला गया। आढ़तिया अपने आदमियों के साथ आया और उनके घर में रखा सारा गेहूं और ट्रैक्टर लेकर चला गया। कुलदीप आढ़तिया के इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पाये और कीटनाशक का सेवन कर आत्महत्या कर ली। कुलदीप सिंह अपने पीछे माता-पिता और छोटे बच्चे छोड़ गए। कुलदीप सिंह की यह दुखद कहानी वर्ष 2000 की है, लेकिन पंजाब में इस तरह की घटनाएं लगातार हो रही हैं और किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। आज भी पंजाब के किसान आढ़तियों के कर्ज के तले दबे रहते हैं।
भारत दुनिया का एकमात्र देश है, और पंजाब भारत का एकमात्र राज्य है, जहां एक किसान को वर्तमान मूल्य पर खुले बाजार में अपनी उपज को बेचने से रोक दिया जाता है। एपीएमसी एक्ट-1961 के तहत किसानों को सिर्फ आढ़तियों (कमीशन एजेंटों) को अपनी उपज बेचने की अनुमति दी गई है। इस कानून के तहत आढ़तियों को काफी शक्तियां दी गई हैं। वो किसानों की उत्पादक और गैर-उत्पादक जरूरतों को पूरा कर सकते हैं।
Got on whatsapp 👇 and it’s true Sardar V M Singh demanding MSP Law is a Congress leader. He was Lok Sabha candidate from Pilibhit. In 2009 he has assets worth ₹6.32 billion. pic.twitter.com/Hu0I7Lhypj किसान की खड़ी फ़सल देखकर बहुत से आवारा पशु खेत में घुस कर चरने का प्रयास करते है, पर मुस्तैद किसान उसे लाठी मारकर भगा देता है। सुना है शाहीनबाग वाले नाराज़ हैं। कह रहे हैं कि उनको सिर्फ बिरयानी में निपटा दिया गया और वहां बॉर्डर पर किसान आंदोलन में जिम, DJ, पिज़्ज़ा, फुट मसाज तक की व्यवस्था की गई है। ये वामपंथी गैंग ने उनके साथ अच्छा नहीं किया। pic.twitter.com/UNMd7DCeoD कैप्टन साहिब, आपने ऐसा क्यों किया? https://t.co/ISPCkKbPsz
सोशल मीडिया पर BJP के लिए 80% प्रचार वो लोग करते हैं जो पार्टी के प्राथमिक सदस्य तक नहीं होते भले ही उन्हें कोई BJP नेता भी नहीं जानता होगा पर ये लोग सिर्फ देश,धर्म के लिए निस्वार्थ भाव से लगे रहते हैं।
किसानों को आन्दोलन में भी एैसी मुस्तैदी की ज़रूरत है।
कहनी है इक बात मुझे,
आंदोलनकारी प्यारों से।
संभल के रहना,
अपने घर में,
छिपे हुए ग़द्दारों से।
क्या ये वास्तव में किसानों का ही आंदोलन है देखें और स्वयं फैसला करें pic.twitter.com/96JbD9uZLm
— Manjeet Bagga (@Goldenthrust) December 11, 2020
This is madness & there is a method in madness. pic.twitter.com/TD8ycCjSYA
— Rajeev Panday (@RKpanday1977) December 11, 2020
खेल शुरू NIA ने 16 विदेशी खालिस्तान नेताओं के खिलाफ किया मुकदमा दर्ज किसान आंदोलन की सच्चाई अब आएगी सामने ।
— Gajendra Chauhan 🇮🇳 (@Gajjusay) December 10, 2020
#Sikhs in London chant:
— Tarek Fatah (@TarekFatah) December 11, 2020
“Allah-O-Akbar”
“ #Kashmir banega #Pakistan”
“ #Punjab banega #Khalistan”
“ @ImranKhanPTI Zindabad”
Jihadi Khalistanis coming soon to
a neighbourhood near you, courtesy Pakistan’s ISI. pic.twitter.com/IbM6H24khd
फिर हंगामा क्यूँ है बरपा ???? pic.twitter.com/ifrBLS98Wl
— नंदिता ठाकुर (@nanditathhakur) December 11, 2020
किसान आंदोलन में बैठे पंचर पुत्रों को बता रहा हूं - प्रदर्शन छोड़कर अपने कागज़ बनवा लीजिए..
— Gajendra Chauhan 🇮🇳 (@Gajjusay) December 10, 2020
क्योंकि जिनके कहने पर आप बैठे है,,,,उनके पास सब कागज है..
एपीएमसी एक्ट-1961 अंग्रेजी शासन के दौरान लागू Punjab Registration of Money Lenders Act, 1938 का दूसरा रूप है। इसके तहत कमीशन एजेंट एक सामंत की तरह किसानों का शोषण करते हैं। इस कानून में इतनी कमियां हैं कि जब अधिकारियों द्वारा छापेमारी की जाती है, तो शोषण के आरोपी कमीशन एजेंट रिश्वत देकर आरोपों से मुक्त हो जाते हैं। आढ़ितियों के खातों की जांच वर्ष में सिर्फ एक बार की जाती है।
इस दौरान कमीशन एजेंट (आढ़तिया) किसानों की उपज और उसकी बिक्री से होने वाली आय के संरक्षक के रूप में कार्य करना जारी रखते हैं, क्योंकि सभी खरीद उनके माध्यम से होती है और खरीद एजेंसियों से भुगतान भी उनके माध्यम से किसान तक पहुंचता है। भुगतान की इस अप्रत्यक्ष प्रणाली से सबसे अधिक नुकसान किसानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि किसानों को उपज का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है।
उपज की खरीद-बिक्री के साथ ही आढ़तिया किसानों को उधार देकर एक साहूकार के रूप में समानांतर व्यावसाय करते हैं। बुवाई और कटाई के बीच, किसी भी समय किसी किसान को पैसे की जरूरत होती है, तो आढ़तिया किसानों को कर्ज देते हैं। जब किसानों की फसल तैयार हो जाती है, तो आढ़तिया उपज के मूल्य का भुगतान करने से पहले दिए गए कर्ज और उसके ब्याज को काट कर भुगतान करते हैं। किसानों को जहां उपज का उचित दाम नहीं मिलता है, वहीं अधिक ब्याज के भुगतान से उनकी लागत के मुकाबले लाभ कम हो जाता है, जिससे किसानोंं को दोहरा नुकसान उठाना पड़ता है। जैसे-जैसे किसानों की इनपुट लागत बढ़ती है और सापेक्ष रिटर्न कम होता जाता है, वे अक्सर कर्ज की जरूरत में खुद को पाते हैं और कर्ज लेने का सिलसिला जारी रहता है।
आढ़तिया राजनीतिक रूप से काफी शक्तिशाली होते हैं। वे एक लॉबी के रूप में काम करते हैं, जिनके प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1961 में उनका कमीशन 1.5 प्रतिशत था, जिसे बढ़ाकर वर्तमान में 2.5 प्रतिशत कर दिया गया है। वर्ष 2013 के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले खरीद सीजन में 20,232 पंजीकृत आढ़तियां थे। अनुमान लगाया गया था कि प्रत्येक आढ़तिया प्रत्येक सीजन में लगभग 5.3 लाख कमाते थे।
पंजाब के बरनाला में 40 साल पहले लिए गए कर्ज ने एक परिवार की चार पीढ़ियों को लील लिया। सितंबर 2019 में इस परिवार की चौथी पीढ़ी के पांचवे शख्स 22 वर्षीय लवप्रीत ने विरासत में मिले कर्ज को नहीं चुका पाने के कारण आत्महत्या कर ली। लवप्रीत के परिवार में अब उनकी दादी, मां और एक बहन बची है। 50 साल पहले परिवार के पास 13 एकड़ जमीन थी, जो अब घटकर सिर्फ एक एकड़ रह गयी है।
आढ़तियों के जुल्म ने ले ली जान
नवंबर 2017 में फतेहगढ़ साहिब के चनारथल कलां गांव किसानी के संकट से इस कदर घिरा कि एक ही परिवार से तीन तीन अर्थियां निकलीं। सबसे पहले बड़े लड़के ने आत्महत्या की फिर पिता और छोटे बेटे ने भी कर ली। घर में केवल एक ही बुजुर्ग बची हैं। परिवार के अनुसार तीनों ने कर्ज़ और आढ़तियों (कमीशन एजेंट्स) के जुल्मों से तंग आकर आत्महत्या की। इसके बाद पुलिस ने कमीशन एजेंट्स के ख़िलाफ़ आत्महत्या का मामला दर्ज़ किया।
कमीशन एजेंट ने झांसा देकर बेच दी जमीन
घर की महिला बुजुर्ग जसपाल कौर ने कहा, “कुछ साल पहले, मेरा घर खुशियों से भरा था, लेकिन आज पूरी तरह से निराशा है।” उदासी और निराशा उनके चेहरे पर साफ़ दिखती है। वो कहती हैं, “गांव के कमीशन एजेंट्स ने झांसा देकर हमारी ज़मीनें किसी को बेच दी। चक्कर काटने के बाद भी पैसे नहीं दिए। इसी वजह से पहले मेरे पति ने और फिर छोटे बेटे ने जान दे दी।”
आढ़तियों से परेशान होकर किसान ने की आत्महत्याअमृतसर में अक्टूबर, 2020 में एक किसान ने आत्महत्या कर ली। वह कर्ज से परेशान बताया जा रहा था। फंदा लगाकर जान देने से पहले उसने एक वीडियो में एक आढ़ती समेत दो लोगों खिलाफ बयान दिया। अपनी मौत का जिम्मेदार बताते हुए कहा कि उसने इनसे कुछ पैसे लिए थे। लौटा भी दिए, मगर बावजूद इसके झूठे केस दर्ज करवाकर परेशान कर रहे थे। आए दिन धमकी देते थे। सूचना के बाद पुलिस ने मौके का मुआयना किया, जहां से एक कागज पर भी किसान ने अपनी मौत की वजह लिखी थी।
आढ़तियों के शोषण से दुखी होकर किसान कर रहे आत्महत्या
आढ़तियों के शोषण और अत्याचार का नतीजा है कि पंजाब के किसान आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे हैं। दैनिक ट्रिब्यून की 13 नवंबर, 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के अनुमानों के मुताबिक पिछले 10 वर्षों में 5,000 किसानों ने आत्महत्या की थी। 2008-09 में संगरूर और बठिंडा में लगभग 3,000 किसानों को आत्महत्या करने का अनुमान लगाया गया था।
MASR ने 1988 और 2010 के बीच पंजाब के 91 गांवों में 1,738 आत्महत्याएं दर्ज की थी। 2013 में MASR के अनुमान के मुताबिक पिछले दो दशकों में पंजाब में 50,000 किसानों ने आत्महत्याएं की थीं। हालांकि MASR की रिपोर्ट में बताया गया था कि पंजाब के सभी जिलों में आत्महत्या के मामले एक समान नहीं है। 2013 में भारतीय किसान यूनियन (आर) के अनुमान के मुताबिक 1990 और 2006 के बीच 90,000 किसानों ने आत्महत्याएं की थीं।
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