किसान नहीं बल्कि पुलिस हुई थी हिंसक: दिग्विजय सिंह

                               किसानों के हिंसक प्रदर्शन के लिए कॉन्ग्रेस नेता ने पुलिस को ठहराया जिम्मेदार
एक व्यक्ति होता है, जो गलती से कुछ सीखता है, लेकिन कांग्रेस, वामपंथ और आम आदमी पार्टी ऐसी पार्टियां हैं, जो सीखने की बजाए अपनी गलतियों पर गौरवविंत होकर स्वयं ही अराजक होने का प्रमाण दे रही हैं। पहले 'टुकड़े-टुकड़े गैंग', फिर 'नागरिकता संशोधक कानून' के विरोधियों के समर्थन के बाद अब तथाकथित किसान आंदोलन के पक्ष में खड़े होकर। ये तीनों ही पार्टियां राष्ट्र को जवाब दें कि यदि कृषि कानून किसान विरोधी हैं, फिर किस आधार पर इनके नेता संसद में खड़े होकर किसान की खुशहाली के लिए दलाली प्रथा ख़त्म करने के लिए बोलने के साथ-साथ अपने-अपने घोषणा-पत्रों में इन कानूनों को लाने का उल्लेख कर रहे थे। 

दूसरे, कांग्रेस के पास अपनी छवि सुधारने के इतने अवसर आये,लेकिन तुष्टिकरण पुजारी होने के कारण सभी हाथ से गँवा दिए। अयोध्या,काशी और मथुरा के अलावा जिस खालिस्तान समर्थकों ने उनकी नेता यानि देश की प्रथानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या की, उसी खालिस्तान समर्थित किसान आंदोलन के पक्ष में खड़ी हो गयी, फिर किस मुंह से इंदिरा की हत्या को बलिदान का नाम देकर वोट मांगती है। मुंबई हमले के गुनहगार इस्लामिक आतंकवादियों को बचाने के "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" के नाम पर हिन्दुओं को बदनाम करते रहे। बेगुनाह हिन्दू साधु/संत और साध्वियों को आतंकवादी करार कर जेलों में डालती रही। पकडे गए आतंकियों को बिरयानी और बेकसूर हिन्दू साधु और साध्वियों पर अत्याचार, क्या कांग्रेस के शब्दकोष में इसी को धर्म-निरपेक्ष कहते हैं? 

तीसरे, जब ये कृषि कानून किसान विरोधी थे, फिर किस कारण मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने इन्हें दिल्ली में लागु किया था। लेकिन यू-टर्न विशेषज्ञ ने पंजाब चुनाव को देखते एकदम पलटी मार विरोध में खड़े हो गए, यानि जो पार्टी अपने निर्णय पर नहीं टिक नहीं सकती उसे भी सत्ता में रहने का अधिकार नहीं।   

26 जनवरी, गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों ने ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में खूब बवाल मचाया। सबसे शर्मनाक बात ये थी कि दंगाई किसानों ने लाल किले के प्राचीर पर चढ़कर एक विशेष धार्मिक संगठन का झंडा लगा दिया गया। इस दौरान किसानों और पुलिस के बीच झड़प भी हुई। इस मामले में कांग्रेस ने भी अब मैदान में कूदते हुए इस पूरी घटना पर दिल्ली पुलिस को ही जिम्मेदार ठहरा दिया है।

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने आज मीडिया से बात करते हुए कहा कि दिल्ली में किसान उग्र नहीं हुए थे, दिल्ली पुलिस उग्र हुई थी। वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने तय गाजीपुर सीमा बदल दी और वहाँ बैरियर लगा दिए, जिसके परिणामस्वरूप पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई।

मुंबई आतंकवादी हमले को RSS की साजिश बताने वाले दिग्विजय सिंह ने आरोप लगाया कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए आँसू गैस और लाठी-डंडे चलाए। उससे विवाद बढ़ा और वही कारण बना। यानी, उनके मुताबिक, इसी वजह से तथाकथित किसान प्रदर्शनकारियों को मुगल स्मारक, लाल किले पर तिरंगें का अपमान करते हुए सिख ध्वज फैलाने पर मजबूर होना पड़ा।

ज्ञात हो, लाल किला मुग़ल स्मारक नहीं बल्कि हिन्दू स्मारक है, जिसे अनन्तपाल तोमर ने बनवाया था। अगर गलत इतिहास लिखवाकर उसे मुग़ल नाम दे दिया गया है, कसूर कांग्रेस और वामपंथी इतिहासकार हैं।

 

देश की राजधानी में हिंसक विरोध प्रदर्शन, राष्ट्र के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व और बेरहमी से घायल किए गए 300 से अधिक पुलिस कर्मियों को देखते हुए भी कांग्रेस ने अपनी नीच राजनीति नहीं छोड़ी। दिग्विजय सिंह के अनुसार, 26 जनवरी को हुआ यह दंगा दिल्ली पुलिस की वजह से हुआ, जिसने उनके अनुसार प्रदर्शनकारियों को बैरिकेड्स लगाकर उकसाया और कथित रूप से रैली मार्गों में फेरबदल किया।

हालाँकि, यह पूरी तरह सच नहीं है। दिल्ली पुलिस ने न केवल एक, बल्कि उन सभी चार सीमाओं को भी ब्लॉक कर दिया था, जहाँ प्रदर्शनकारियों ने डेरा डाला था। गणतंत्र दिवस पर हिंसा की आशंका और मध्य दिल्ली क्षेत्र में प्रदर्शनकारियों द्वारा किसी भी प्रकार के हंगामें को रोकने की वजह से दिल्ली पुलिस ने गणतंत्र परेड के समापन तक चार मार्गों को ब्लॉक कर दिया था। दिल्ली पुलिस ने पहले ही इस बात पर जोर देकर कहा था कि गणतंत्र दिवस की परेड के समापन के बाद ही नाकाबंदी खोली जाएगी।

इसके बावजूद तथाकथित किसानों ने अपनी रैली शुरू करने के लिए तय समय सीमा से पहले ही दिल्ली में प्रवेश करने में पूरी ताकत लगा दी थी। जिसके चलते किसानों ने तय समय सीमा 12 बजे से पहले पुलिस बैरियर को जबरन तोड़ना शुरू कर दिया और राष्ट्रीय राजधानी में उन मार्गों से प्रवेश किया जिनकी अनुमति दिल्ली पुलिस द्वारा नहीं दी गई थी।

दिल्ली पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पों के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए, जिसमें देखा गया कि गणतंत्र दिवस खत्म होने से पहले ही कैसे प्रदर्शनकारी आईटीओ तक पहुँच गए थे।

वहीं कुछ वीडियो में प्रदर्शनकारी पुलिसकर्मियों के ऊपर तेजी से ट्रैक्टर चलाने की कोशिश करते हुए देखे गए। जब पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की, तो उन्होंने तलवार और डंडों से पुलिस कर्मियों पर हमला बोल दिया।

‘टाइम्स नाउ’ द्वारा साझा किए गए एक अन्य वीडियो में एक प्रदर्शनकारी को एक ऑटोमैटिक राइफल लहराते हुए देखा गया, जब पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश की। हालाँकि वे इस पर नहीं रुके और उन्होंने पुलिसकर्मियों पर हमला जारी रखते हुए गणतंत्र दिवस के ऐतिहासिक अवसर पर राष्ट्रीय ध्वज का अनादर करते हुए कथित खालिस्तानी झंडे को फहराने के लिए लाल किला पहुँच गए।

ट्रैक्टर रैली से 1 दिन पहले कथित तौर पर किसानों को बरगलाने और उकसाने वाली वाली कांग्रेस अब हिंसा के बाद इस पूरी घटना दोष दिल्ली पुलिस के मत्थे मढ़ने पर तुली है। जबकि खुद इस हिंसा में दिल्ली पुलिस तथाकथित किसानों के हाथों बड़े पैमाने पर शिकार हुए है।

जैसे ही गणतंत्र दिवस पर दंगाइयों ने राजधानी को घेर लिया, कांग्रेस पार्टी की खुशी का तो मानो ठिकाना ही न रहा हो। कांग्रेस ने इस पूरे घटनाक्रम को एक जश्न के तौर पर मनाया।

दंगे को राजनीतिक रंग देते हुए कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक हैंडल ने सोशल मीडिया पर ट्रैक्टर परेड की एक तस्वीर साझा की और कैप्शन दिया कि, “कभी भी एक गणतंत्र की शक्ति को कम मत समझो”। यह उल्लेख करना आवश्यक है कि ट्वीट दोपहर 1:45 बजे किया गया था, जब दिल्ली में भीड़ ने एक हिंसक रूप धारण कर लिया था।

हिंसक प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने पुलिस पर लाठी, तलवारों से हमला किया और पुलिसकर्मियों पर पथराव किया। कुछ उपद्रवियों ने पुलिस अधिकारियों को भड़काने का भी प्रयास किया। भीड़ यहीं नहीं रुकी। इसके बाद उन्होंने लाल किले में जाकर अपना सिख ध्वज फहराया।

वहीं इस दौरान कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने मोदी सरकार पर भी हमला बोला क्योंकि उसे इससे चुनावी फायदा मिलने की उम्मीद है। इससे पहले सीएए विरोधी दंगों के दौरान, कांग्रेस नेताओं ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के बारे में प्रचार प्रसार किया था और उसी के संबंध में विरोध प्रदर्शन भी किया था।

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