आज होने वाली किसानों से वार्ता निष्फल होगी, क्योकि जब किसान नेता अपनी बुद्धि से नहीं अराजकों की बुद्धि से चल रहे हों, समाधान की उम्मीद करना ठीक वैसे है जैसाकि चील के घोंसले में मांस ठूंठना। राकेश टिकैत जिसने पहले बिल का समर्थन किया, अब वापस लेने की बात कर रहा है, दिल्ली मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी जो सबसे पहले कानूनों को लागु करने वाले मुख्यमंत्री हैं, अब पंजाब चुनाव को ध्यान में रख विरोध कर रहे हैं। और भी अनेकों नेता और पार्टियां हैं, जो कृषि कानून को किसानों के हित में मानते हैं, लेकिन अराजक तत्वों के कारण विरोध कर रहे हैं। प्रमाण के लिए किसी भी पार्टी के घोषणा-पत्र को देख लो, सब ने इन्ही प्रावधानों को लागु करने की बात कही है, अब इनसे पूछो, "फिर किस कारण आंदोलन को हवा दे रहे हो।"
तीन कृषि कानूनों के विरोध में कई किसान संगठन पिछले लगभग छह सप्ताह से दिल्ली की सीमा पर डेरा डाले हुए है, वहीं इन कानूनों को किसान संगठनों का समर्थन भी मिल रहा है। कई किसान संगठन केंद्रीय कृषि मंत्री से मिलकर अपना समर्थन पत्र सौंप चुके हैं। उधर मोदी सरकार भी कानून को लेकर चल रहे गतिरोध को दूर करने के लिए लगातार अपनी पार्टी के नेताओं से भी संवाद कर रही है। इसी क्रम में मंगलवार को पंजाब के बीजेपी नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उनके सरकारी आवास पर मुलाकात की।
प्रधानमंत्री मोदी से मिलने वाले पंजाब के बीजेपी नेताओं में पूर्व मंत्री सुरजीत कुमार ज्याणी और हरजीत सिंह ग्रेवाल शामिल थे। लगभग दो घंटे की मुलाकात के बाद बीजेपी नेताओं ने कहा कि किसान यूनियन के नेताओं से अधिक प्रधानमंत्री मोदी किसानों को लेकर चिंतित हैं। प्रधानमंत्री पंजाब को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। उनसे पंजाब से संबंधित सभी मुद्दों पर चर्चा हुई।
पूर्व मंत्री सुरजीत कुमार ज्याणी ने कहा, “मैं प्रभावित हूं कि वह (प्रधानमंत्री) पंजाब के बारे में बहुत कुछ जानते हैं। हमने किसान के मुद्दे पर भी चर्चा की। उन्होंने उनके लिए चिंता व्यक्त की है। न तो हमारे पास कोई ऐसा प्रधानमंत्री होगा जो इतना बुद्धिमान हो और न ही हमारे पास कभी था। प्रधानमंत्री पंजाब को बेहतर तरीके से समझते हैं और किसानों को अहमियत देते हैं।”
बीजेपी नेता हरजीत सिंह ग्रेवाल ने कहा कि किसानों के आंदोलन में माओवादियों ने प्रवेश कर लिया है वे इस मुद्दे को हल नहीं होने दे रहे। वहीं बीजेपी नेता सुरजीत कुमार ज्याणी ने कहा कि किसानों को अड़ना नहीं चाहिए, उन्हें कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग छोड़ देनी चाहिए।
गौरतलब है कि ज्याणी को पिछले साल तीन कृषि विधेयकों पर पंजाब के किसानों से चर्चा के लिए बीजेपी की ओर से गठित किसान समन्वय समिति की अध्यक्षता सौंपी गई थी। उस समय ये विधेयक संसद से पारित नहीं हुए थे। ग्रेवाल भी इस समिति के सदस्य थे। पंजाब बीजेपी के इन नेताओं की प्रधानमंत्री से मुलाकात सरकार और किसानों के बीच संपन्न हुई सातवें दौर की वार्ता के ठीक एक दिन बाद हुई है।
ये "मोदी" है... विपक्ष जहाँ से सोंचना बन्द करता,मोदी जी शुरू करते हैं!
— नमो_नमः✍ (@SaffronSangh) January 7, 2021
👉अब क्या पंजाब सरकार... छोटे किसानों का गला घोटेगी?क्या राज्य सरकार ही M.S.P पर केंद्र की जगह खरीद कर लेगी?
अति-उत्तम फैसला है... अब राज्य के गले मे घण्टी बांध दी जाए तब पता लगेगा!#नमो_नमः @BJP4India pic.twitter.com/XECq7CgHEu
Rakesh Tikait himself got just 9000 votes(0.08%) and lost deposits in a farmer dominated constituency on RLD seat(Earlier held by RLD)
— Dhaval Patel (@dhaval241086) January 7, 2021
Now he is challenging to defeat PM @narendramodi in 2024 who won back to back 2 Lok Sabha Elections with full majority
pic.twitter.com/QOH2oMp84k
राकेश टिकैत कहते हैं प्रधान मंत्री बदलेगा ज़रा इस एजेंडे को समझिए ये किसान आंदोलन नहीं प्रधान मंत्री बदलो आंदोलन है।
— Dr. Kaushal K.Mishra (@drkaushalk) January 8, 2021
जो मोदी दुनिया के किसी भी देश के आगे नही झुका,
— Social Tamasha (@SocialTamasha) January 8, 2021
ये कुछ दलाल सोचते है उन्हें झुका देंगे 😂#FarmersProtestHijacked #FarmersProtests pic.twitter.com/0E57nRmZEe
किसानों के आंदोलन में माओवादियों के प्रवेश की बात की पुष्टि विभिन्न मीडिया और खुफिया रिपोर्टों से हुई हैं।
किसान नेता सरदार वीएम सिंह का कांग्रेस से संबंध
न्यूज एजेंसी IANS ने उन रिपोर्टों की एक श्रृंखला प्रकाशित की है, जिसमें ‘किसान प्रदर्शनकारी’ नेताओं के राजनीतिक संबंधों का खुलासा किया गया है। प्रदर्शन में शामिल अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के प्रमुख सरदार वीएम सिंह कांग्रेस नेता हैं। दिसंबर 2015 में इन्होंने पॉलिटिकल पार्टी राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ पार्टी बनाई थी। इससे यह चुनाव भी लड़ चुके हैं। इसके अलावा 2007 और 2012 में एआईटीसी से टिकट लेकर भी चुनाव लड़े हैं। उनके पास करोड़ों की संपत्ति भी है और 8 अलग-अलग मामलों में आरोपित हैं।
कांग्रेस का समर्थन करता है भारतीय किसान यूनियन मान
भारतीय किसान यूनियन मान के जनरल सेक्रेटरी बलवंत सिंह बहराम हैं। राजनीतिक तौर पर यह संगठन कांग्रेस से जुड़ा हुआ है। इस संगठन का सिर्फ मोगा जिले के कुछ इलाकों में ही प्रभाव है। बाकी यह काफी छोटा संगठन है लेकिन मीडिया में अपना काफी प्रभाव रखता है।
AAP से जुड़ा है भारतीय किसान यूनियन गुरनाम
भारतीय किसान यूनियन गुरनाम के संस्थापक गुरनाम सिंह चादूनी हैं। गुरनाम सिंह कुरुक्षेत्र के एक मशहूर किसान नेता हैं। हरियाणा में कई बार यह किसानों के लिए रैली कर चुके हैं। भारतीय किसान यूनियन गुरनाम की स्थापना 2004 में इन्होंने किया था। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से इनके अच्छे संबंध हैं।
नक्सलियों और इस्लामिक कट्टरपंथियों से बीकेयू (उग्रहा) का संबंध
दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसान प्रदर्शन में भारतीय किसान यूनियन एकता उग्रहा के सबसे अधिक सदस्य मौजूद है। इसके मुख्य फाउंडर और प्रेसिडेंट जोगिंदर सिंह उग्रहा हैं। जोगिंदर सिंह उग्रहा ने 2002 में बीकेयू उग्रहा किसान संगठन बनाया था। IANS के मुताबिक उग्रहा के प्रदर्शन में शामिल किसान ही एलगार परिषद मामले में शामिल ‘अर्बन नक्सलियों’ और दिल्ली दंगों के मामले में गिरफ्तार इस्लामिक कट्टरपंथियों की रिहाई की मांग कर रहे हैं।
बीकेयू (उग्रहा) के वकील और समन्वयक एनके जीत ने कहा कि पूरे भारत में नक्सल आंदोलन हमेशा से किसानों का आंदोलन रहा है। नक्सलवाद ने आदिवासियों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने में मदद की है। इसलिए जेलों में बंद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग की जा रही है। उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों के खिलाफ सरकार को जो मांग-पत्र सौंपा था, उसमें भी यह मांग शामिल था।
माकपा से जुड़ा है क्रांतिकारी किसान यूनियन
क्रांतिकारी किसान यूनियन के संस्थापक और स्टेट प्रेसिडेंट डॉक्टर दर्शन पाल हैं। इस संगठन की स्थापना 2016 में हुई थी। यह संगठन राजनीतिक तौर माकपा की तरफ झुकाव रखता है। दर्शन पाल पर एलडब्ल्यूई एक्टिविटीज के चलते आरोप लगते रहे हैं। यही नहीं इनके कई सीपीआई (मोओविस्ट) नेताओं से संपर्क रहे हैं, जिसे लेकर इनके ऊपर बड़े सवाल उठे हैं।
PDFI का संस्थापक सदस्य है दर्शन पाल
दर्शन पाल कथित तौर पर पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PDFI) के संस्थापक सदस्य भी हैं। अन्य सदस्यों में वरवरा राव, कल्याण राव, मेधा पाटकर, नंदिता हक्सर, एसएआर गिलानी और बीडी सरमा हैं। PDFI माओवादियों द्वारा अपनी स्थिति को मजबूत और विस्तार करने के लिए गठित किए गए टैक्टिकल यूनाइटेड फ्रंट (टीयूएफ) का एक हिस्सा है।
माकपा से जुड़ा है भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी
प्रदर्शन में शामिल भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी के संस्थापक सुरजीत सिंह फूल हैं। इस किसान संगठन की 2004 में स्थापना की गई थी। इस संगठन का राजनीतिक झुकाव माकपा की तरफ है। सुरजीत सिंह फूल के ऊपर कई बार पुलिस ने एफआईआर भी दर्ज की है। यही नहीं पंजाब सरकार ने 2009 में इन पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया था क्योंकि इनके संबंध कई नक्सलियों से बताए गए थे। ‘गहन पूछताछ’ के लिए फूल को अमृतसर की जेल में रखा गया था।
माकपा से जुड़ा है कीर्ति किसान यूनियन
कीर्ति किसान यूनियन के संस्थापक निर्भय सिंह दूधीके हैं। 1972 में इस किसान संगठन की स्थापना की गई थी। यह किसान संगठन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ मार्क्सिस्ट लेनिनिस्ट डेमोक्रेटिक से राजनीतिक रूप से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा जम्हूरी किसान सभा के प्रेसिडेंट सतनाम सिंह अजनाला हैं। इस संगठन की स्थापना 2004 में हुई थी। इस संगठन की भी राजनीतिक संपर्क हैं। रिवॉल्यूशनरी मार्कसिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से इसके राजनीतिक संबंध बताए जाते हैं।
अपने-अपने एजेंडे को पूरा करने की लगी है होड़
किसानों के नाम पर हो रहे प्रदर्शनों में असामाजिक तत्वों और देश विरोधी ताकतों की भारी भागीदारी देखी जा रही है। प्रदर्शन में खालिस्तानी झंडे, विवादित पोस्टरों और बयानों की भरमार है। प्रदर्शन स्थलों पर मसाज पार्लर, जिम की व्यवस्था, पिज्जा की सुविधा से पता चलता है कि इनका कृषि कानून से कोई लेनादेना है। इनका एकमात्र मकसद अपने एजेंडे को लागू करना और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश को बदनाम कर सरकार पर दबाव बनाना है।
समर्थन के नाम पर वाशिंगटन में महात्मा गांधी का अपमान
किसान आंदोलन के समर्थन में विदेशों में भी प्रदर्शन एवं संयुक्त रैलियां की जा रही हैं लेकिन अब इन आंदोलनों को खालिस्तानी संगठनों ने हाईजैक कर लिया है। कनाडा के बाद अब ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में किसानों के समर्थन में प्रदर्शन के नाम पर अधिकतर खालिस्तानी और पाकिस्तानी समर्थक शामिल हो रहे हैं। अमेरिका के वाशिंगटन में किसान आंदोलन के समर्थन में किए गए प्रदर्शन में महात्मा गांधी की प्रतिमा पर खालिस्तान का तथाकथित झंडा लपेट दिया गया। ये प्रदर्शन सिख अमेरिकन यूथ संस्था द्वारा आयोजित किया गया था।
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