NCERT, कक्षा-12
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
मुगलों का महिमामंडन मुख्यधारा की मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर उदारवादियों और वामपंथियों द्वारा अक्सर किया जाता है। यहाँ तक भी दावे किए जाते हैं कि औरंगजेब जैसे आक्रांताओं ने भी भारत में रहते हुए मंदिरों की रक्षा की और उनकी देखरेख का जिम्मा उठाया था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्कूलों में जिस पाठ्यक्रम में हमें NCERT यह सब बातें सदियों से पढ़ाते आई है, उसके पास इसकी पुष्टि के लिए कोई आधिकारिक विवरण ही मौजूद नहीं है?
यह भारतवासियों का दुर्भाग्य है कि कांग्रेस और वामपंथियों ने भारत के वास्तविक इतिहास को इतना धूमिल कर दिया है कि सच्चाई बताने वाले को इनके गैंग "गंगा-जमुनी तहजीब" जैसे भ्रमिक नारों से साम्प्रदायिक, फिरकापरस्त और शान्ति के दुश्मन आदि उपनामों से बदनाम करते आ रहे हैं। कुछ वर्ष पूर्व युपीए के कार्यकाल में RTI के माध्यम से पूछा गया था कि (1) महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता की उपाधि कब मिली; (2) नोट पर महात्मा गाँधी की फोटो किसके कहने से छापी जा रही है। इन दोनों RTI में सरकार की तरफ से एक ही जवाब था, "कोई जानकारी नहीं।"
दूसरे यह कि जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में केन्द्रीय शिक्षा मंत्री डॉ मुरली मनोहर जोशी ने वास्तविक इतिहास को लाने का प्रयास कर रहे थे, तब तुष्टिकरण पुजारी कांग्रेस, वामपंथी एवं इनके समर्थक दलों ने इतिहास के भगवाकरण किये जाने का इतना शोर मचाया था कि 21 बैसाखियों के सहारे खड़े अटल बिहारी ने डॉ जोशी से अपने कदम पीछे हटाने को कहा।
2012 में सेवानिर्वित होने उपरांत एक हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते अपने स्तम्भ "झोंक आँखों में धूल" में शीर्षक "लाल किला किसने और कब बनवाया?", के प्रकाशन पर लोगों ने जी-भरकर आलोचना की थी, लेकिन 2014 के चुनावों में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा भारतीय इतिहास और भूगोल को कलंकित किये जाने के आरोप पर अपने इसी स्तम्भ में शीर्षक "प्रधानमंत्री राष्ट्र को जवाब दो" में लाल किले से लेकर क़ुतुब मीनार और ताजमहल तक के विषय में प्रश्न किये थे, जिसका इन तुष्टिकरणकर्ताओं की तरफ से तो कोई जवाब नहीं मिला, परन्तु दर्ज हुई वर्तमान RTI के माध्यम से सकारात्मक जवाब मिल गया। जो प्रमाणित कर रहा है कि मुस्लिम वोटबैंक को खुश करने के लिए हमारे नेताओं ने इतिहास और जनता के साथ कितना घोर निंदनीय काम किया है। जनता को चाहिए ऐसे कुर्सी के भूखे नेताओं को अपने वोट के माध्यम से पाताललोक में भेजें। क्योकि जो नेता अपने देश के गौरवमयी इतिहास को धूमिल कर सकते हैं, वह जनता का क्या हित करेंगे?
NCERT कक्षा-12 की पुस्तक का हिस्सा, पेज -234 (हिंदी)
NCERT कक्षा-12 की पुस्तक का हिस्सा, पेज -234
एक व्यक्ति ने नवंबर 18, 2020 में एक आरटीआई (RTI) आवेदन दायर कर NCERT (नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग) की पुस्तकों (जो स्कूलों में इस्तेमाल होती आई हैं) में किए गए दावों के स्रोत के बारे में जानकारी माँगी।
इस RTI में विशेष रूप से उन स्रोतों की माँग की गई, जिनमें NCERT की कक्षा-12 की इतिहास की पुस्तक में यह दावा किया गया था कि ‘जब (हिंदू) मंदिरों को युद्ध के दौरान नष्ट कर दिया गया था, तब भी उनकी मरम्मत के लिए शाहजहाँ और औरंगजेब द्वारा अनुदान जारी किए गए।
इसके अंतर्गत मुग़ल आक्रांता शाहजहाँ और औरंगज़ेब द्वारा मरम्मत किए गए मंदिरों की संख्या भी पूछी गई। इन दोनों ही सवालों के जवाब बेहद चौंकाने वाले थे। RTI में पूछे गए इन दोनों सवालों के सम्बन्ध में NCERT का जवाब था- “जानकारी विभाग की फाइलों में उपलब्ध नहीं है।”
An Indian citizen files an RTI (Right to Information) Application, which is protecting by law. The applicant is seeking source information about claims made in NCERT (National Council of Educational Research and Training) textbooks (which are the ones used in schools).
— Dr. Indu Viswanathan (@indumathi37) January 13, 2021
In other words, Indian school textbooks are making claims that these marauders were actually benevolent, generous rulers and empathic to Hindus...but the organization that publishes these books is unable to provide any substantiating evidence.
— Dr. Indu Viswanathan (@indumathi37) January 13, 2021
This is a level of systemic, institutional gaslighting of Hindus that must be recognized by the international educational community.
— Dr. Indu Viswanathan (@indumathi37) January 13, 2021
Instead, white American “scholars” profit from this and that Indian “eminent historian” is celebrated for it.
डॉक्टर इंदु विश्वनाथन द्वारा NCERT द्वारा RTI के अनुरोध के इस जवाब की प्रति ट्वीट की है और इस पर प्रतिक्रिया करने वाले सभी लोग हैरान हैं। इंदु विश्वनाथन ने अपने ट्विटर थ्रेड में लिखा है, “दूसरे शब्दों में, भारतीय स्कूल की पाठ्यपुस्तकें यह दावा तो कर रही हैं कि ये आतताई वास्तव में उदार, और हिंदुओं के प्रति दयावान थे, लेकिन इन पुस्तकों को प्रकाशित करने वाला संगठन कोई पुख्ता सबूत देने में असमर्थ है।”
उन्होंने लिखा है कि यह हिंदुओं की संस्थागत गैसलाइटिंग किए जाने का स्तर है, जिसे अंतरराष्ट्रीय शैक्षिक संस्था द्वारा मान्यता प्राप्त होना चाहिए। इसके बजाय, श्वेत अमेरिकी ‘विद्वानों’ को इससे लाभ होता है और भारतीय ‘प्रख्यात इतिहासकार’ की इसके लिए वाह-वाही होती है।
इंदु विश्वनाथन लिखती हैं कि इसके बावजूद भी ये झूठ वैकल्पिक-वास्तविकता बनाने वाली मशीनरी का हिस्सा बने हुए हैं और जब हिंदू सिर्फ सच की माँग कर रहा है तो इसके लिए उन्हें खतरनाक इस्लामोफोबिक कट्टरपंथियों की संज्ञा दी जाती है।
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