दिल्ली : निगम चुनावों में आप ने बाज़ी मार, क्या भाजपा का सफाया करने की दस्तक दे दी है?

राजधानी दिल्ली में नगर निगम के हुए 5 उपचुनावों में भाजपा के प्रति  नाराजगी देखने को मिली है। आम आदमी पार्टी  को 4 सीटें  जबकि कांग्रेस को 1 सीट  मिली है। क्या भाजपा शीर्ष नेतृत्व दिल्ली प्रदेश से इसका जवाब मांगेगा? या प्रदेश जिला अथवा मंडल से?

अभी गुजरात में भाजपा ने निकाय और पंचायत चुनावों में विपक्ष को धूल चटवा दी, लेकिन दिल्ली में स्थिति एकदम विपरीत। अपनी छेंप मिटाने प्रदेश से लेकर मंडल तक बढ़ती महंगाई और किसान आंदोलन का सहारा लेंगे, जबकि यही समस्या गुजरात में भी थी। कारण स्पष्ट है, वहां प्रदेश से लेकर मंडल तक जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं, लेकिन दिल्ली में एकदम विपरीत, क्यों?  

यदि इस ब्लॉग पर मेरे पुराने लेखों को देखा जाए, स्पष्ट लिख चूका हूँ कि तीन नगर निगमों से कम से कम एक नगर निगम भाजपा गँवा सकती है, जिसके लक्षण इन उपचुनाव नतीजों ने अब तो दीवारों पर लिख दिया है। लोकसभा तक तो जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पूर्णरूप से विश्वास करती है, लेकिन लोक सभा से नीचे नहीं। हर वक्त केजरीवाल के भ्रष्टाचार और नाकामियों को गिनवाने की बजाए नगर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार को भी दूर कर उदाहरण प्रस्तुत किया होता। चुनावों में चीखते-चिल्लाते आएंगे "हर हर मोदी, घर घर मोदी", लेकिन धरातल पर इनका काम जीरो है। इसका साफ तौर पर कारण भाजपा के निगम पार्षद हैं जिन्होंने अपने इलाकों में जनता का कोई काम नहीं किया  केवल  दिखावा किया है। इसमें कई निगम पार्षद अपने आप को प्रधानमंत्री मोदी से कम नहीं समझते। सारा दिन केवल स्वांग करने में, स्वागत करने में, स्वागत करवाने में उनका बीत जाता है। केवल मोदी-योगी-अमित के कन्धों पर अपने आपको किसी शहंशाह से कम नहीं समझते।

पुराने कमर्ठ कार्यकर्ताओं को दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर फेंका हुआ है। केवल वही पुराने कार्यकर्ता हैं, जो भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं। अगर कोई भाजपा कार्यकर्ता उनको कार्यक्रम में अपनी परेशानी बता दे तो उनका यह कहना होता है, 'अरे देख तो लो जगह कौन सी है  मेरे ऑफिस में आना और ऑफिस में जाने के बाद और हां हो जाएगा', लेकिन उसके बाद भी काम होते नहीं हैं जब नेता इस तरह से जनता को बरगलाएंगे तो भला पार्टी का क्या हाल होगा, इन उपचुनावों ने सिद्ध कर दिया है। 

आज दिल्ली में केंद्र को छोड़ दें तो नगर निगम और विधानसभा में भाजपा की सरकार नहीं बन पाई है। शीर्ष नेतृत्व ने कभी चिंतन नहीं किया। उसके पीछे छोटे-छोटे नेता हैं जो कि चुनाव जीतने के बाद  जनता का काम नहीं करते, उनका नाम लेने में भी शर्म आती है ज्यादातर निगम पार्षद दिनभर अपनी पत्नियों के साथ घूमते रहते हैं आप भी समझ गए होंगे कि मैं किसी की बात कर रहा हूं मैंने भी अपने क्षेत्र के नेता से एक परिवारिक काम करवाने की गूजराइश की थी, लेकिन वह काम आज तक नहीं हुआ। कोई बात नहीं समय आ गया है जब इस देश में रावण का घमंड चूर हो गया तो निगम पार्षद  किस खेत  की मूली है इधर से उधर घूमते रहते हैं, पर सब कुछ दिखावा है। कई नेता भी दिनभर चटुकारिता मे लगे रहते है आप जैसे नेताओं की अनदेखी की वजह से आने वाले समय मे भाजपा के लिए परेशानी होगी

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