छात्रा ने निकाल दी राकेश टिकैत किसान आंदोलन की हवा

गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हिंसा के बाद किसान आंदोलन खत्म होने के कगार पर पहुंच गया था, लेकेिन भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन को संजीवनी दे दी थी। आंदोलकारी किसान नेताओं में नया जोश देखने को मिला। किसान पंचायत में लोगों की भीड़ से नेताओं के हौसले और बढ़ गए। इसी  बीच एक छात्रा के सवाल ने राकेश टिकैत की मजबूत होती स्थिति पर गहरा चोट किया,जिसके बाद उनका जादू उतार पर है।

वैसे भी अब किसान भी समझ गया है कि राकेश मोदी विरोधी तो हैं ही, लेकिन अपनी खोई नेतागिरी को नया आयाम देने मोदी विरोधियों के हाथ एक कठपुतली बन नाच रहे हैं। किसान आंदोलन में खालिस्तानी नारे, दिल्ली दंगों में पकडे गए दंगाइयों की रिहाई की मांग आदि ने असली किसानों ने अपने आपको इस आंदोलन से अलग कर लिया है। 

 दरअसल, टिकैत झज्जर-दिल्ली सीमा पर स्थित ढांसा बॉर्डर पर कृषि कानून विरोधी आंदोलनकारियों को संबोधित कर रहे थे। तभी मंच पर एक छात्रा पहुंच गई। उसने अपनी बात कहने की इजाजत मांगी और सीधे टिकैत से सवाल पूछ लिया कि आंदोलन का हमारे समाज और आपसी मेल-मिलाप पर क्या असर पड़ रहा है, यह देखा जाना चाहिए?

छात्रा ने पूछा कि अगर इस आंदोलन का समाधान न निकला तो क्या होगा? टिकैत के पास उसके सवालों का जवाब नहीं था। उन्होंने उस बेटी के हाथ से माइक ले लिया तो उसने कहा कि देश का युवा सवाल तो पूछेगा ही। आपका इस तरह से मेरे हाथ से माइक लेना उचित नहीं है। हरियाणा के लोग उस बेटी के अपमान से क्षुब्ध हैं। इस प्रकरण से प्रदेश का वह समुदाय भी राकेश टिकैत से नाराज हो गया है, जो अब तक उनका दीवाना हुआ करता था।

किसान आंदोलन की वजह से हो रहे नुकसान को लेकर सब्जी उत्पादक किसानों में काफी आक्रोश था। लेकिन वे विरोध का साहस नहीं जुटा पा रहे थे। मार्च का पहला सप्ताह बीतते-बीतते उनका धैर्य टूट गया। बहादुरगढ़ से लगे हुए गांव झाड़ौदा कलां के किसानों ने आंदोलन की वजह से बंद किए गए बॉर्डर खुलवाने के लिए नजफगढ़-बहादुरगढ़ रोड पर यातायात बाधित कर दिया। इससे वाहनों की लंबी कतारें लग गईं। क्षुब्ध किसान तब जाकर माने जब दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि वे तीन दिन में बॉर्डर खोल देंगे। और ऐसा हुआ भी।

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पहले झाड़ौदा के किसानों का आक्रोश प्रदर्शन, फिर छात्र का सवाल पूछना और उसके हाथ से माइक छीना जाना एक तरह से राकेश टिकैत के आंसुओं से लगभग डेढ़ महीने पहले खुश होने वाले आंदोलनकारियों के चेहर पर चिंता की लकीरें खींच रही हैं। धरनास्थल के पंडाल खाली हो चुके हैं। हालांकि नए-नए तरीके से उन्हें भरने का प्रयास किया जा रहा है।
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महिला दिवस पर महिलाओं को आगे लाने की कोशिश की गई। पंजाब का संगठन भारतीय किसान यूनियन एकता (उगराहां) फिर से पुरानी मांग दोहराने लगा है। महिला दिवस पर इस संगठन के मंच पर दिल्ली दंगे एवं भीमा कोरेगांव के आरोपितों सुधा भारद्वाज, शोमा सेन, नताशा नरवाल, देवांगना कालीता, सफूरा जरगर एवं गुलफिशा फातिमा आदि को रिहा करने के लिए पोस्टर लगाए गए।

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