नागरिकता संशोधक कानून की आड़ में जगह-जगह बनाए शाहीन बाग़ों की असलियत सामने आनी शुरू चुकी है। शाहीन बाग़ों का आयोजन असल में कुर्सी के भूखे नेताओं ने उन रोहिंग्यों को बचाने के लिए आम मुसलमानों को भड़का कर लगवाए थे। इन्हीं रोहिंग्यों की वोटों के दम पर जनता को पागल बनाने वाले नेता क्या देश के सगे हो सकते हैं?
केंद्र और राज्य सरकारों को रोहिंग्यों को बसाने वाले एनजीओ और नेताओं के बैंक खाते सील कर सख्त कार्यवाही करनी चाहिए। क्योकि जिन्हें कोई मुस्लिम देश रखने को तैयार नहीं, उन्हें ये किस आधार पर बसा कर रख रहे हैं? इन लोगों को शायद नहीं मालूम कि जिस दिन ये रोहिंग्या समुदाय बहुसंख्यक हो गया, आम मुसलमानों के साथ-साथ संरक्षण देने वालों जीना हराम कर देंगे। इनकी ऐसी खतरनाक मानसिकता की वजह से कोई मुस्लिम देश इन्हें रखने को तैयार नहीं। आम मुसलमानों को भी इनसे सचेत रहने की की जरुरत है।
म्यांमार की न तो सीमा जम्मू कश्मीर से लगी हुई है और न ही दोनों संस्कृतियों के बीच कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध है, फिर भी प्रदेश में रोहिंग्या मुस्लिमों की संख्या इतनी कैसे हुई? हजारों की तादाद में रोहिंग्या मुस्लिमों का यहाँ पहुँच कर बस जाना किसी साजिश का हिस्सा प्रतीत होता है। असल में इससे पहले भी देश में एक खास मजहब के कट्टर लोगों द्वारा ‘डेमोग्राफी बदलने’, अर्थात जनसंख्या में दबदबा बढ़ाने की साजिश की बात होती रही है।
‘दैनिक जागरण’ की एक विस्तृत खबर के अनुसार, इस साजिश में राजनीतिक लोगों के साथ-साथ कई NGO भी शामिल हैं। सुरक्षा एजेंसियों की नाक के नीचे इतना सब कुछ अंजाम दिया गया। बांग्लादेश के रास्ते रोहिंग्या मुस्लिमों की खेप कोलकाता पहुँचती रही है, जबकि अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड की सीमाएँ सीधे म्यांमार से लगती हैं। पता चला है कि उन्हें मालदा लाकर वहाँ से जम्मू भेजा जा रहा था।
इन सब चीजों के तार दिल्ली से भी जुड़ते हैं, जहाँ संयुक्त राष्ट्र से सम्बद्ध संस्था द्वारा इन रोहिंग्या मुस्लिमों का पंजीकरण किया जाता है। ये संस्थाएँ ‘शरणार्थियों की मदद’ के नाम पर दिल्ली से लेकर कोलकाता तक सक्रिय रहती हैं। इन तत्वों द्वारा रोहिंग्या मुस्लिमों को विश्वास दिलाया जाता है कि जम्मू कश्मीर एक मुस्लिम बहुल इलाका है, जहाँ उन्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी। वहाँ उन्हें इस्लाम प्रैक्टिस करने से कोई नहीं रोकेगा।
जम्मू की इस रोहिंग्या बस्ती में अवैध तरीके से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों की हो रही है पहचान। @sunilJbhat की रिपोर्ट #Khabardar #RE pic.twitter.com/I4RTpl3RVi
— AajTak (@aajtak) March 9, 2021
Desh ke liye ye khatra hai .hindu ko kashmir se baher aur rohangiya muslamano ko kashmir me vasaya jay ye kha ka nyay hai .
— Santosh Kumar Singh (@Santosh68389705) March 9, 2021
इन रोहिंज्ञाओं को बसाने वाले माD₹℃∆दों पर कठोर कार्रवाई होने चाहिए😡
— Shaligram Sharma (@ShaligramShar17) March 9, 2021
हिंदुओं को कश्मीर से भगाकर अवैध तरीके से रोहिंज्ञाओं को बसाया जा रहा था।
देश के अलग अलग हिस्सों में बसाकर सम्पूर्ण देश की Demography में बदलाव करने की साजिश हो रही है।
ये NGO और इस्लामी संस्थाएँ रोहिंग्या मुस्लिमों को जम्मू पहुँचाती थीं और उनकी यात्रा से लेकर रहने और खाने-पीने तक की व्यवस्था का पूरा जिम्मा उठाती थीं। जम्मू, सांबा और बाड़ी ब्राह्मणा में इनके लोग पहले से मौजूद रहते थे, जो मस्जिदों और मदरसों में इनके रहने का बंदोबस्त करते थे। फिर उन्हें झुग्गियों में बसा दिया जाता था। खास बात ये है कि उन्हें उन्हीं क्षेत्रों में बसाया जा रहा था, जहाँ मुस्लिमों की जनसंख्या कम है।
साथ ही उन्हें जम्मू कश्मीर में चल रहे ‘जिहाद’ और म्यांमार में ‘बौद्धों के अत्याचार’ को जोड़ कर और कट्टर बनाया जाता है। उनसे कट्टर बातें कर के जिहादी तत्वों के लिए काम करने के लिए तैयार किया जाता था। पाकिस्तान के साथ जम्मू कश्मीर के सटे होने का उन्हें दोहरा फायदा मिलता था। उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और बांग्लादेश के मुस्लिम जम्मू में पहले से बसे हुए हैं, इसीलिए किसी को शक नहीं होता था।
जब भी इस पर कोई आवाज़ उठती थी तो इनकी मददगार संस्थाएँ उन्हें पीड़ित बताते हुए अपने खेल शुरू कर देती थीं। नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, अवामी इत्तेहाद पार्टी और कॉन्ग्रेस ने रोहिंग्या मुस्लिमों को अपने वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया। भले ही उन्हें वोट का अधिकार न हो, लेकिन उन्हें संरक्षण देकर मुस्लिम समाज को खुश किया जाता था और उनके खिलाफ कार्रवाई न कर के तुष्टिकरण की राजनीति की जाती थी।
जम्मू कश्मीर की अंतिम मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने अपने कार्यकाल में कहा था कि रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर केंद्र सरकार ही निर्णय ले सकती है। जमात-ए-इस्लामी कश्मीर जैसे कई संगठन इनके लिए काम कर रहे हैं और उनके नाम पर जुलूस निकालते रहे हैं, क्षेत्र में तनाव का माहौल बनाते रहे हैं। ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के एक गुट के अध्यक्ष मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने रोहिंग्या के लिए कश्मीर में सांत्वना दिवस का भी आयोजन किया था।
कुछ वर्षों पहले म्यांमारी आतंकी छोटा बर्मी को सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में मार गिराया था। पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI भी जम्मू कश्मीर के ‘जिहादियों’ और म्यांमार के ‘रोहिंग्याओं’ के बीच सेतु का काम कर रही है। कोलकाता के मौलवी भी उन्हें जम्मू पहुँचाने में मदद करते हैं। जम्मू कश्मीर में उन्हें रोजगार भी आसानी से मिल जाता है। कई रोहिंग्याओं का कहना है कि वो बिना किसी जाँच के ट्रेन से यहाँ आराम से पहुँच जाते हैं।
आँकड़े कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में कुल 13600 विदेशी नागरिक अवैध रूप से रह रहे हैं। जिनमें सबसे ज्यादा संख्या रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों की है। जम्मू के बेली चराना और सांबा में भी इनकी बड़ी संख्या है। ड्रग्स रैकेट और आतंकी हमलों में इनका नाम सामने आता रहता है। जम्मू के बठिंडी में रोहिंग्याओं की संख्या बहुत ज्यादा है। अब वो स्थानीय आबादी में मिल गए हैं, जिससे उनकी पहचान खासी मुश्किल हो रही है।
हाल ही में जम्मू-कश्मीर में 155 ऐसे रोहिंग्या मिले थे, जो म्यांमार में अपनी सज़ा से बच कर यहाँ रह रहे थे। उन सभी को ‘होल्डिंग सेंटर’ भेज दिया गया है। पुलिस ने फॉरेनर्स एक्ट के अनुच्छेद-3(2)e के तहत ये कार्रवाई की। साथ ही पासपोर्ट एक्ट के अनुच्छेद-3 के तहत प्रवासियों के पास पुष्ट ट्रैवल दस्तावेज होने चाहिए, जो उनके पास नहीं थे। ऐसे अन्य अवैध घुसपैठियों की पहचान करने की कोशिशें भी जारी हैं।
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